सीआईए और फ्रैंकफर्ट स्कूल का साम्यवाद विरोध
अन्तरराष्ट्रीय गेब्रियल रॉकहिलवैश्विक सिद्धांत उद्योग की बुनियाद
फ्रांसीसी सिद्धांत के साथ-साथ फ्रैंकफर्ट स्कूल (Frankfurt School) का आलोचनात्मक सिद्धांत (Critical Theory) वैश्विक सिद्धांत उद्योग (Global Theory Industry) के सबसे अधिक बिकनेवाले मालों (hottest commodities) में से एक रहा है। साथ में, वे (आलोचनात्मक सिद्धांत और फ्रांसीसी सिद्धांत) सैद्धांतिक आलोचना की कई प्रवृत्तियों को दिशा देने और उसे सेट करनेवाले रूपों के लिए सामान्य स्रोत की तरह कार्य करते हैं। आज वे पूंजीवादी दुनिया के अकादमिक बाजार-- उत्तर-औपनिवेशिक (postcolonial) और विऔपनिवेशिक सिद्धांत (decolonial theory) से लेकर क्वियर सिद्धांत (queer theory), अफ़्रीकी-निराशावाद (Afro-pessimism) और उससे आगे तक पर हावी हैं। इसलिए फ्रैंकफर्ट स्कूल के राजनीतिक रुझान का वैश्वीकृत पश्चिमी बुद्धिजीवियों (globalized Western intelligentsia) पर बुनियादी असर पड़ा है।
इस लेख के केंद्र में रहेंगे-- इंस्टिट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के पहली पीढ़ी के मशहूर लोग, खासकर थियोडोर अडोर्नो और मैक्स होर्खाइमर। ये सभी उस क्षेत्र की ऊँची हस्ती हैं जिसे पश्चिमी मार्क्सवाद या सांस्कृतिक मार्क्सवाद के रूप में जाना जाता है। जो लोग फ़्रंकफ़र्ट स्कूल की दूसरी और उसके बाद तीसरी पीढ़ी के ऐतिहासिक भौतिकवाद से दूर होने का रुझान युरगेन हेबरमास के कामों देखने के अभ्यस्त हैं, उन्हें पता होगा कि यह शुरुआती कार्य अक्सर आलोचनात्मक सिद्धांत के उस वास्तविक स्वर्णिम युग का प्रतिनिधित्व करता है। तबतक भी यह घराना निष्क्रिय और निराशावादी तरीके से ही सही रेडिकल राजनीति से कुछ वास्ता रखता था। इस धारणा में अगर सच्चाई का कण भी है तो सिर्फ इस बात में कि शुरुआती फ़्रंकफ़र्ट स्कूल थोड़ा-बहुत रेडिकल था जबकि बाद की पीढ़ियों ने आलोचनात्मक सिद्धांत को रेडिकल उदारवादी, या बस उदारवादी विचारधारा में बदल दिया।1 हालांकि, इस पैमाने पर तुलना करना अपने-आप ही मानदंड को नीचे गिराना है, जैसा राजनीति को अकादमिक राजनीति में सीमित करने पर होता है। आखिरकार फ़्रंकफ़र्ट स्कूल की पहली पीढ़ी के लोग वैश्विक वर्ग संघर्ष के सबसे प्रलयकारी संघात के दिनों में जी रहे थे जब साम्यवाद के अर्थ और महत्व पर एक वास्तविक बौद्धिक विश्व युद्ध लड़ा जा रहा था।
इतिहास की नक़ल या पश्चिमी अकादमिक दुनिया से धोखा खाने से बचने के लिए जरूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय वर्ग संघर्ष के परिप्रेक्ष्य में इंस्टिट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के कार्य को सटीक सन्दर्भ में रखा जाये। इस सन्दर्भ की एक महत्वपूर्ण विशिष्टता थी पूँजीवादी शासक वर्ग, उनके राज्य प्रबंधक और वैचारिक बुद्धिजीवियों द्वारा वामपंथ को पुनर्परिभाषित करने की बेधड़क कोशिश, शीत योद्धा सीआईए एजेंट थॉमस ब्राडेन के शब्दों में जिसका मतलब होता “सुसंगत” यानी गैर-कम्युनिस्ट वामपंथ।2 जैसा कि इस काम में जुड़े ब्राडेन और दूसरे लोगों ने विस्तार से बताया है कि इस संघर्ष का एक महत्वपूर्ण पहलू था-- साम्यवाद-विरोध का प्रचार और समकालीन वास्तविक समाजवाद के खिलाफ खड़े होने के लिए वामपंथियों को लुभाने में सीआईए के लिए सतह पर काम करने वाला कांग्रेस फॉर कल्चरल फ्रीडम (सीसीऍफ़) जैसे गिरोह और पूंजीपतियों के संस्थाओं से आने वाले पैसे का इस्तेमाल।
सीसीऍफ़ द्वारा हाम्बुर्ग में आयोजित भोजसभाओं में से कम से कम एक में तो होर्खाइमर ने भागीदारी की थी।3 अडोर्नो ने सीआईए की आर्थिक मदद से चलने वाली जर्नल देर मोनत में एक लम्बी समीक्षा लिखी जो यूरोप में अपने तरह की सबसे बड़ी समीक्षा थी और सीआईए द्वारा वित्तपोषित प्रकाशनों के लिए एक उदाहरण बन गयी थी। इसके अलावा सीआईए की दो और पत्रिका एनकाउंटर और टेम्पो प्रेसेंते में भी अडोर्नो के लेख छपे थे। उन्होंने उस समय के जर्मन कम्युनिस्ट-विरोधी कुल्तुरकैम्पफ के नेता और सीआईए के साथ काम करने वाले मेल्विन लास्की को अपने घर में खातिरदारी की और उनके साथ सहयोग भी किया।4 देर मोनत जर्नल के स्थापक और मुख्य संपादक तथा सीआईए की सीसीऍफ़ के शुरुआती संचालन समिति के सदस्य लास्की ने अडोर्नो को कहा था की वे अपनी पत्रिका में इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल रिसर्च के शोधपत्र तथा दूसरे बयानों को जल्द से जल्द प्रकाशित करने के साथ ही किसी भी तरह सहयोग के लिए तैयार हैं।5 अदोर्नों ने इस प्रस्ताव को तुरन्त स्वीकार किया और चार अप्रकाशित पांडुलिपियाँ भेजी जिसमे होर्खाइमर की एक्लिप्स ऑफ़ रीज़न भी थी।6
इस तरह होर्खाइमर के आजीवन सहयोगी पश्चिमी जर्मनी में सीसीऍफ़ की गिरोह से सर से पाँव तक जुड़े थे और उनका नाम सम्भवत 1958 या 59 की एक दस्तावेज में मिलता है जिसमे सीसीऍफ़ के अखिल जर्मनी कमेटी बनाने की एक रूपरेखा तैयार की गयी थी।7 इससे भी ज्यादा अचरज की बात यह है कि 1966 में जब खुलासा हो गया कि सीसीऍफ़ सीआईए का ही एक मोर्चा है तब भी अडोर्नो ने खुद को “(सीसीऍफ़ की) पेरिस की मुख्य कार्यालय के विस्तार की योजना में शामिल रखा”, क्योंकि यह जर्मनी के उस हिस्से में अमरीकी देखरेख में हो रही “सामान्य गतिविधि” ही थी।8 यह तो बस समुद्र की तलहटी पर पानी में डूबी हुई पर्वत की चोटी की तरह है, जैसा की आगे हम देखेंगे कि साम्यवाद विरोधी अभिजात वामपंथी गिरोह (elite networks of the anti-communist Left) के बीच अडोर्नो और होर्खाइमर की वैश्विक ख्याति बिलकुल अचरज की बात नहीं है।
सैद्धान्तिक उत्पादन का एक द्वंद्वात्मक विश्लेषण
आगे का विश्लेषण अंतर्राष्ट्रीय वर्ग संघर्ष की दुनिया के अन्दर ही आलोचनात्मक सिद्धांत के इन दो संस्थापकों की मनोगत सैद्द्धान्तिक व्यवहारों को उस समय की सामाजिक समग्रता के सन्दर्भ में स्थापित करने की द्वंद्वात्मक वर्णन पर आधारित है। यह विश्लेषण बौद्धिक उत्पादन और व्यापक सामाजिक-आर्थिक दुनिया के बीच उस मर्जी-माफिक खिंची गयी विभाजक रेखा को नकारती है जो अक्सर पेटी-बुर्जुआ अकादमिक बिना सोचे-समझे खड़े करते है जैसे कि किसी के “विचार” को उसकी “जिंदगी” तथा सैद्धान्तिक उत्पादन, उसका प्रसार और आत्मसात करके की भौतिक प्रणाली, जिसे मैं यहाँ बौद्धिक औजार कहूँगा, से अलग किया जा सकता है या करना चाहिए। इस तरह का गैर-द्वंद्वात्मक पूर्वानुमान आखिरकार सैद्धान्तिक कार्य के बारे में भाववादी दृष्टिकोण के लक्षण का ही एक बढ़ा हुआ रूप है जिसमे मान लिया जाता है कि एक ऐसा आध्यात्मिक और वैचारिक धरातल मौजूद है जो भौतिक यथार्थ और ज्ञान के राजनीतिक अर्थशास्त्र से बिलकुल अलग होकर काम करता है।
यह पूर्वधारणा बौद्धिक वस्तु पूजा (intellectual commodity fetishism) को चिरस्थायी बना देता है, जिसका अर्थ है सैद्धांतिक उद्योग के उन पवित्र उत्पादों की मूर्ति-पूजा जो हमें उत्पादन के सामाजिक सम्बन्ध तथा वर्ग संघर्ष के समग्र परिदृश्य के सन्दर्भ में इन चीजों को रखने से रोकता है। यह उनका भी हित साधता है जो वैश्विक सिद्धांत उद्योग के किसी विशेष दफ्तर का हिस्सा बनना चाहते हैं या हैं। कारण यह है कि चाहे वह “फ़्रंकफ़र्ट स्कूल का आलोचनात्मक सिद्धांत” हो या किसी दूसरे दफ्तर, यह उनकी ब्रांड इमेज को सुरक्षित करता है (जो वास्तविक उत्पादन के सामाजिक संबंधों से बचा रहता है)। जबकि सिद्धांत उद्योग के दायरे में उपभोग की एक प्रमुख विशेषता बौद्धिक वस्तु पूजा है, और ब्रांड इमेज प्रबंधन इसके उत्पादन की कसौटी है।
इस तरह के द्वंद्वात्मक विश्लेषण के लिए यह स्वीकृति देना जरूरी है कि अडोर्नो और होर्खाइमर ने वाकई अपने मनोगत अभिकर्तृत्व का इस्तेमाल कर पूँजीवाद, उपभोक्ता समाज और सांस्कृतिक उद्योग की महत्वपूर्ण आलोचना गढ़ने में योगदान किया है। इसे नकारने के बजाय मैं सिर्फ इन आलोचनाओं को वस्तुगत सामाजिक दुनिया के सन्दर्भ में रखना चाहूँगा जिससे एक बहुत ही साधारण और व्यवहारिक सवाल निकलता है और जो अकादमिक दायरों में मुश्किल से उठाया जाता है कि अगर पूँजीवाद का नकारात्मक प्रभाव इतना स्पष्ट है तो उसके साथ क्या सुलूक किया जाये? इससे गंभीर सवाल उनकी जिंदगी तथा उनके काम की चीरफाड़ करता है जब उनके विमर्श के स्वैच्छिक प्रगतिविरोध को उलट-पलट कर देखें और जैसे ही उनकी प्रतिक्रिया और ज्यादा स्पष्ट हो जाये वैसे ही उनके साझा बौद्धिक परियोजना के प्राथमिक सामाजिक कार्य को समझना भी आसान हो जाता है। कारण यह है कि कई बार वे पूँजीवाद के कितने बड़े आलोचक क्यों न रहे हो, वे नियमित रूप से इस बात को स्थापित करते हैं कि इसका कोई विकल्प नहीं है, और अंततः इसके बारे में कुछ भी नहीं किया जा सकता है। इससे भी बड़ी बात है, हम आगे देखेंगे कि पूँजीवाद की उनकी आलोचना समाजवाद की समझौताविहीन तिरस्कार के सामने फीका पड़ जाता है। उनके ब्रांड का आलोचनात्मक सिद्धांत अंततः पूँजीवादी व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता हैं क्योंकि उनके पैमाने में समाजवाद उससे भी कहीं अधिक बुरा है। पूँजीवादी अकादमी के दूसरे फैशनपरस्त विमर्श की तरह ही वे भी ऐसी चीज का प्रस्ताव करते हैं जिसे हम एबीएस सिद्धांत यानी ‘एनिथिंग बट सोशलिज्म’ (समाजवाद के अलावा कुछ भी) कह सकते हैं।
इस मामले में यह कत्तई अचंभित करने वाली बात नहीं है कि पूँजीवादी दुनिया में अडोर्नो और होर्खाइमर को इतना व्यापक समर्थन और बढ़ावा मिला हुआ है। वास्तव में विद्यमान समाजवाद के खिलाफ सुसंगत, गैर-कम्युनिस्ट वामपंथ को सहारा देने के लिए इनकी तरह बीसवीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण, यहाँ तक कि सबसे क्रान्तिकारी मार्क्सवादी चिंतकों से बेहतर रणकौशल क्या हो सकता है? इस तरह “मार्क्सवाद” को भी एक तरह की साम्यवाद विरोधी आलोचनात्मक सिद्धांत के रूप में पुनर्परिभाषित किया जा सकता है जिसका नीचे से उभर रहे वर्ग संघर्ष से कोई सीधा रिश्ता नहीं है, बल्कि जो स्वतंत्र रूप से किसी भी तरह की “वर्चस्व” की आलोचना करता हो और जो ताकतवर समाजवादी राज्यों के कथित “फासीवादी” आतंक के खिलाफ अंततः पूँजीवाद नियंत्रित समाजों का पक्ष लेता हो।
चूँकि पूँजीवादी संस्कृति के भीतर साम्यवाद विरोध को इतना बढ़ावा दिया गया है, इसलिए मार्क्सवाद को इसे पुनर्परिभाषित करने की कोशिश को कुछ पाठकों द्वारा तुरंत ही प्रतिक्रियावादी और सामाजिक अंधराष्ट्रवादी के रूप में पहचानना शायद सम्भव नहीं होगा (इस मायने में कि इसमें किसी तरह के विकल्प के बजाय अन्तत: बुर्जुआ समाज को ही ज्यादा तरजीह दी जाती है)। दुभार्ग्यवश, जब वास्तव में मौजूदा समाजवाद की बात आती है, तो पूँजीवादी दुनिया के ज्यादातर लोगों के मन में उसके बारे में किसी भी कठिन विश्लेषण के बजाय बेखबर चुगली से प्रेरित अगड़म-बाईस मत बैठा दिया गया है। चूँकि आगे का तर्क समझने के लिए एक कम्युनिस्ट विरोधी हौवा खड़ा करनेवाला प्रचार सर्वस्व भयानक कहानी के बजाय इन परियोजनाओं का भौतिकवादी इतिहास अपनी अच्छाई और बुराइओं के बावजूद ज्यादा जरूरी है, इसलिए मैं यहाँ एनी लाक्रोय-रिज़, दोमेनिको लोसुर्दो, कार्लोस मार्तिनेज़, माइकल पेरेंती, अल्बर्ट सिजमान्स्की, जाक पौवेल्स और वाल्टर रॉडनी जैसे मेहनती इतिहासकारों की गम्भीर और व्यापक इतिहास लेखन का हवाला देने की छूट ले रहा हूँ। पूँजीवाद और समाजवाद के बीच महत्वपूर्ण मात्रात्मक तुलना को समझने के लिए मैं पाठकों को मिनकी ली, विसेंते नवर्रो, ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टिट्यूट फॉर सोशल रिसर्च आदि विश्लेषकों के काम को पढ़ने के लिए भी कहूँगा।9 ऐसे कार्य वर्चस्वशाली विचारधारा के लिए अभिशाप हैं। इसके अच्छे-ख़ासे कारण भी हैं – सफ़ेद मनगढ़ंत कहानी और वैचारिक पूर्वाग्रह को संतुष्ट करने वाली प्रतिक्रिया पर निर्भर रहने के बजाय ये लोग तथ्यों का वैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं। इसके अलावा यह उस तरह के ऐतिहासिक और भौतिकवादी कार्य हैं जिन्हें ज्यादातर मामलों में वैश्विक सिद्धांत उद्योग द्वारा बढ़ावा दिया गया अंदाज-आधारित आलोचनात्मक सिद्धांत के साये में छुपा दिया गया है।
क्रान्ति और वैश्विक वर्ग युद्ध के युग में बुद्धिजीवी
रूसी क्रान्ति और जर्मनी की असफल क्रान्ति जैसी विश्व-ऐतिहासिक घटनाओं से उनका शुरुआती जीवन प्रभावित होने के बावजूद अडोर्नो और होर्खाइमर जनता की राजनीति के कथित दलदल से सावधानी से बचनेवाले सौन्दर्य-विज्ञानवादी ही थे। इन घटनाओं से मार्क्सवाद के प्रति उनकी दिलचस्पी बढ़ने के बावजूद उनका रुझान बौद्धिक प्रकृति का था। होर्खाइमर वाकई पहले विश्वयुद्ध के बाद म्युनिख कौंसिल प्रजातंत्र के इर्द-गिर्द हो रही कार्रवाइयों में थोडा-बहुत शामिल थे, खासकर उस कौंसिल के निर्मम दमन के बाद उसमे शामिल लोगों की मदद करने में। हालांकि, उन्होंने “उस समय के विस्फोटक राजनीतिक गतिविधियों से दूरी बनाये रखी और निजी सरोकार को प्रमुखता दी” – यह बात अडोर्नो के लिए भी लागू है।10
इस मायने में उनकी वर्गीय अवस्थिति बहुत महत्वहीन नहीं थी, क्योंकि यह उन्हें और उनकी राजनीतिक दृष्टिकोण को उत्पादन के सामाजिक सम्बन्धों की वस्तुगत और वृहत्तर दुनिया में खड़ा करती है। फ़्रंकफ़र्ट स्कूल के सिद्धांतकारों में से दोनों ही सम्पन्न परिवार से आये थे। अडोर्नो के पिताजी एक “शराब के धनी कारोबारी” थे और होर्खाइमर के पिताजी एक “लखपति” थे जिनके पास “कपड़ों के कई कारखाने” थे।11 अडोर्नो का “समाजवादी राजनीतिक जीवन से कोई लेनादेना नहीं था” और जिंदगीभर उन्होंने “किसी भी पार्टी संगठन की सदस्यता लेने से गहरा नफरत” कायम रखा।12 इसी तरह होर्खाइमर भी कभी “किसी मजदूर वर्ग की पार्टी का घोषित सदस्य” नहीं रहे।13 यह बात फ़्रंकफ़र्ट स्कूल के शुरुआती दिनों में जुड़ी दूसरी हस्तियों के बारे में भी सही है – “होर्खाइमर के गिरोह का कोई सदस्य राजनीतिक रूप से सक्रीय नहीं था, न ही उनमे से कोई मजदूर आन्दोलन या मार्क्सवाद से जुड़ा था।”14
जॉन अब्रोमित के शब्दों में होर्खाइमर ने सिद्धांत की कथित स्वतंत्रता को बरकरार रखने का फैसला किया और “लेनिन, लुकाच तथा बोल्शेविकों की राय को नकार दिया कि आलोचनात्मक सिद्धांत की ‘जड़ें’” हमेशा मजदूर वर्ग में, खासकर मजदूर वर्ग की पार्टी में होनी चाहिए।15 उन्होंने आलोचनात्मक सिद्धांतकारों को प्रोत्साहित किया कि वे अपने शोध को सर्वहारा वर्ग पर आधारित करने के बजाय स्वतंत्र बौद्धिक घटक की तरह काम करें। सर्वहारा वर्ग को केंद्र में रखकर शोध करने को वे “तानाशाही प्रोपगेंडा” कहकर मजाक उड़ाते थे।16 हर्बर्ट मर्क्युज की तरह अडोर्नो की कुल स्थिति को मारी-योसे लेवाली ने निम्नलिखित शब्दों में बयान किया है-- “बोल्शेविक पार्टी, जिसे लेनिन ने अक्टूबर क्रान्ति का हिरावल बनाया था, वह एक केंद्रीकृत और दमनकारी संस्था थी जो आगे चलकर सोवियत राज्य को अपनी अनुरूप बनाएगी और सर्वहारा की तानाशाही को अपनी तानाशाही में तब्दील कर देगी।”17
जब 1930 में होर्खाइमर इंस्टिट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के अध्यक्ष बने, तब पूँजीवाद, वर्ग संघर्ष और साम्राज्यवाद के कठोर ऐतिहासिक भौतिकवादी विश्लेषणों के बजाय संस्कृति और प्राधिकार के बारे में अनुमान आधारित चिंता उनके नेतृत्व की ख़ास बात थी। जिलियन रोज के शब्दों में “अकादमिक दुनिया को राजनीतिक बनाने” के बजाय होर्खाइमर के नेतृत्व में इंस्टिट्यूट ने “राजनीति का अकादमीकरण” किया था।18 यह बात शायद “होर्खाइमर के नेतृत्व में चलने वाली इंस्टिट्यूट की लगातार ली गयी नीतियों” के अलावा कहीं और इतना स्पष्ट नहीं है जो “न सिर्फ उन सभी कार्रवाइयों से खुद को दूर रखता था जो शायद ही राजनीतिक प्रकृति का है, बल्कि जर्मनी और वहां पलायन करने वाले लोगों की स्थिति को सबके सामने रखने की कोई भी सामूहिक या संगठित प्रयास से खुद को दूर रखता था।”19 नाज़ीवाद के उत्थान के साथ अडोर्नो शीतनिद्रा में जाने की कोशिश यह सोचकर की कि मौजूदा शासक सिर्फ उन लोगों को निशाना बनाएगा जो “कट्टर सोवियत-पंथी बोल्शेविकवादी और कम्युनिस्ट हैं और जिन्होंने राजनितिक कारणों से शासक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है” (हालांकि ऐसे ही लोगों को सबसे पहले यातना शिविर में भेजा गया था)।20 वे “नाजियों के बारे में किसी भी तरह की आलोचना करने खासकर उनकी “महान शक्ति” नीति की आलोचना करने से बचते थे।”21
अमरीकी शैली का आलोचनात्मक सिद्धान्त
प्रगतिशील राजनीति में खुले आम भागीदारी करने से इनकार करने का रुझान तीव्रतर हो गया जब 1930 के दशक की शुरुआत में इंस्टिट्यूट के नेता अमरिका पलायन कर गए। फ़्रंकफ़र्ट स्कूल ने खुद को “स्थानीय बुर्जुआ व्यवस्था” के अनुकूल बनाने के लिए “अपने अतीत और वर्तमान को सेंसर करके स्थानीय अकादमिक या कॉर्पोरेट भावनाओं से सामंजस्य रखने” की नीति अपनायी थी।22 अमरीकी प्रायोजकों को नाराज करने से बचने के लिए होर्खाइमर ने स्कूल से प्रकाशित साहित्य से मार्क्सवाद, क्रान्ति और साम्यवाद जैसे शब्दों को छांटकर बाहर कर दिया।23 इसके अलावा, जैसे हर्बर्ट मर्क्युज ने बाद में बताया कि किसी भी तरह की राजनीतिक कार्रवाई इंस्टिट्यूट में सख्ती से मना थी।24 होर्खाइमर ने अपनी सारी ताकत कॉर्पोरेट और राज्य से वित्तीय मदद जुटाने में लगा दी और यहाँ तक कि एक जनसम्पर्क कम्पनी को भी ठेके पर रखा जो अमरीका में इंस्टिट्यूट के काम का प्रचार करती थी। बर्तोल्त ब्रेख्त, एक और अमरीका प्रवासी जर्मन, पूरी तरह गलत नहीं थे जब उन्होंने फ़्रंकफ़र्ट के विद्वानों का तीखे शब्दों में वर्णन किया, जैसा स्टुआर्ट जेफ्रीज ने लिखा है कि “अमरीकी प्रवास के दौरान वेश्याओं की तरह इस या उस संस्था से वित्तीय मदद पाने के लिये वे दमनकारी अमरीकी समाज के वर्चस्वशाली विचारधारा के समर्थन में अपनी कौशल और राय को मानो मालों की तरह बेच रहे थे।”25 वे वाकई स्वतंत्र बौद्धिक घटक की तरह किसी भी मजदूर वर्ग के संगठन से वास्ता रखे बिना ही अपने ब्रांड के बाज़ार-परस्त आलोचनात्मक सिद्धान्त के लिए राज्य और कॉर्पोरेट प्रायोजक जुटाने का काम कर रहे थे।
ब्रेख्त के घनिष्ठ मित्र वाल्टर बेंजामिन फ़्रंकफ़र्ट के विद्वानों में से सबसे महत्वपूर्ण मार्क्सवादी वार्ताकारियों में से एक थे। 1940 में वे इसलिए अमरीका में अपने दोस्तों के पास पहुँच नहीं पाए चूँकि फ्रांस और स्पेन के सरहद पर उन्होंने ख़ुदकुशी कर ली थी। उससे पहली रात वे लगभग नाजियों के हाथ लगते-लगते बच गए थे। अडोर्नो के मुताबिक़ उन्होंने “ख़ुदकुशी तब की जब उन्हें बचाया जा चुका था” क्योंकि उन्हें “इंस्टिट्यूट का स्थायी सदस्य बनाया जा चूका था और वे इस बात को जानते थे।”26 इस मशहूर दार्शनिक के शब्दों में बेंजामिन के पास “भरपूर पैसा था” और वे जानते थे कि “संसाधनों के मामले में पूरी तरह हम पर भरोसा कर सकते हैं।”27 इतिहास का यह संस्करण जो बेंजामिन की ख़ुदकुशी को उन परिस्थितियों में लिया गया समझ से बाहर एक व्यक्तिगत फैसले के रूप में पेश करता है। दरअसल हाल ही में प्रकाशित उलरिच फ्राइज के एक विस्तृत विश्लेषण के अनुसार यह अपने आप में बेंजामिन की ख़ुदकुशी के लिए व्यक्तिगत और संस्थागत जिम्मेदारी से छुटकारा पाने के लिए झूठा प्रचार था। न सिर्फ फ़्रंकफ़र्ट स्कूल के चोटी की हस्तियों ने बेंजामिन को नाजियों से भागने के लिए आर्थिक मदद करने से इनकार किया, बल्कि फ्राइज तर्क देते हैं कि उन्होंने जोर-शोर से यह अभियान भी चलाया जिसमें कपटता के साथ खुद को उनका भलाई चाहने वाले मददगार के रूप में पेश किया।
ख़ुदकुशी करने से पहले बेंजामिन इंस्टिट्यूट से मिलने वाले मासिक वजीफा पर निर्भर थे। हालाँकि, फ़्रंकफ़र्ट के विद्वानों ने उनके कार्यों पर ब्रेख्त और क्रान्तिकारी मार्क्सवाद के प्रभाव का तिरस्कार किया था। ब्रेख्त के बारे में अडोर्नो ने बिना किसी झिझक के कम्युनिस्टविरोधी विशेषण “जंगली” का इस्तेमाल किया था जब वे होर्खाइमर को समझा रहे थे कि बेंजामिन को “स्पष्ट रूप से” ब्रेख्त के प्रभाव से मुक्त हो जाना चाहिए।28 फिर यह कोई अचरज की बात नहीं है कि बेंजामिन को अपना वजीफा खोने का डर था, आंशिक रूप से उनके कार्यों पर अडोर्नो की आलोचना और 1938 में बौदलेयर अध्ययन के एक हिस्से के प्रकाशन को मना कर देने के चलते।29 इसी के इर्द-गिर्द होर्खाइमर ने बेंजामिन को स्पष्ट शब्दों में कहा कि फासीवादी ताकतें उनको निशाना बना रही हैं और यह कि 1934 से उनके आय का इकलौता साधन से कभी भी हाथ धोने के लिए उन्हें तैयार रहना चाहिए। इसके अलावा उन्होंने यह दावा भी किया कि उनका हाथ “दुर्भाग्यवश बंधा हुआ है”, जब उन्होंने बेंजामिन को अमरीका जाने वाली जहाज में सुरक्षित यात्रा के लिए 200 डॉलर से भी कम रकम देने के लिए इनकार कर दिया।30 यह घटना ठीक उसके बाद घटी जब होर्खाइमर के खाते में “उससे एक महिना पहले 50 हजार डॉलर अपने मर्जीमाफिक इस्तेमाल के लिए भेजा गया था” और वह “आठ महीने में दूसरी बार” हुआ था जब उन्होंने अतिरिक्त 50 हजार डॉलर की रकम पाना सुनिश्चित किया था (2022 में उसकी कीमत दस लाख डॉलर से कुछ ज्यादा है)।31 जुलाई 1939 में फ्रेडरिख पोलाक ने पूँजीपति लखपति के पुत्र फेलिक्स वेइल से इंस्टिट्यूट के लिए अतिरिक्त 1,30,000 डॉलर का इन्तेजाम किया था। फेलिक्स वेइल का मांस का व्यापार, जमीन पर सट्टेबाजी और अर्जेंटीना में अनाज के कारोबार से आने वाली मुनाफे से फ़्रंकफ़र्ट स्कूल को वित्तीय मदद मिलती थी।
यहाँ राजनीतिक सदिच्छा की कमी थी, न कि पैसों की। वास्तव में फ्राइज यहाँ रॉल्फ विग्गेर्सहॉउस के साथ सहमत हैं कि होर्खाइमर की बेंजामिन का साथ छोड़ने का निर्मम निर्णय दरअसल उस व्यापक पैटर्न का हिस्सा है जिसके मुताबिक़ अध्यक्षों ने “व्यवस्थित रूप से अपने निजी जिन्दगी के लक्ष्यों को बाकी सबके हित से ऊपर रखा” जबकि “नाज़ी शासन में पीड़ित लोगों के बारे में प्रकांड प्रतिबद्धता” का झूठा नकाब ओढ़कर घूमते रहे।32 बेंजामिन की ताबूत में आखिरी कील ठोकने की तरह उनकी पूरी साहित्य-कृतियों से सबसे ज्यादा मार्क्सवादी तत्वों को निकालकर फेंक दिया गया। हेलमुट हेइबेनबटेल के मुताबिक़ “अडोर्नो ने बेंजामिन के कार्यों के जिस भी हिस्से में हाथ लगाया उसकी मार्क्सवादी-भौतिकवादी हिस्सों को मिटा दिया। [...।] उनका काम एक पुनर्व्याख्या जैसा मालूम होता है जिसमें जीवित विवादास्पद संवाददाता ने अपनी राय थोप दी है।”33
टॉड क्रोनन ने तर्क दिया है कि 1940 के इर्द-गिर्द, जिस साल (फ्रेडरिख) पोलाक ने “राज्य पूँजीवाद” किताब लिखी, फ़्रंकफ़र्ट स्कूल के कुल राजनीतिक झुकाव में एक स्पष्ट बदलाव आया जैसे वह तेजी से वर्ग विश्लेषण से मुंह फेरकर नस्ल, संस्कृति और पहचान को ज्यादा तबज्जो देने लगा। “अक्सर मुझे ऐसा लगता है” अडोर्नो ने होर्खाइमर को लिखा “कि वह सब चीज जिन्हें हम सर्वहारा के नजरिये से देखते थे आज यहूदियों पर डरावनी ताकत में केन्द्रित हो चुका है।”34 क्रोनन के मुताबिक़ अडोर्नो और होर्खाइमर ने “मार्क्सवाद के अन्दर से ही यह सम्भावना पैदा कर दी, जहाँ वर्ग को अर्थशास्त्र के बजाय शक्ति, वर्चस्व से जुड़ी हुई चीज की तरह देखा जा सके (यहूदी लोग आर्थिक शोषण के अधर पर निर्धारित श्रेणी में नहीं आते थे)। और एकबार ऐसी सम्भावना सामने लाया गयी तो यह व्यापक रूप से वामपंथी विश्लेषण का वर्चस्वशाली पैमाना बन गयी।”35 दूसरे शब्दों में फ़्रंकफ़र्ट स्कूल ने राजनीतिक अर्थशास्त्र पर आधारित ऐतिहासिक भौतिक विश्लेषण से संस्कृतिवाद और पहचान की राजनीति पर आधारित विश्लेषण में जाने के लिए एक व्यापक बदलाव का मंच तैयार किया जो आगे चलकर नवउदारवादी जमाने में और मजबूत होने वाला था।
पोलोक की देखरेख में इंस्टिट्यूट का 1944-45 में “अमरीकी मजदूरों में यहूदी-विरोधी भावना” के अध्ययन का काम हाथ में लेना बड़ा खुलासा करता है। पूँजीवादी शासक वर्ग की खुली मदद से फासीवाद सत्ता में आसीन हो चुका था और अब भी दुनियाभर में युद्ध का नगाड़ा बजा रहा था। फिर भी फ़्रंकफ़र्ट के विद्वानों को फासीवाद के पूँजीवादी प्रायोजक या असली नाजियों पर जो सोवियतों खिलाफ जंग लड़ रहे थे, उनपर नहीं बल्कि कथित यहूदी-विरोधी भावना पर ध्यान केन्द्रित करने का जिम्मा दिया गया। वे इस अद्भुत निष्कर्ष पर पहुंचे कि “कम्युनिस्ट-संचालित” यूनियन सबसे बदतर थी और यह कि उनमें “फासीवादी” प्रवृत्तियाँ थी – "इन यूनियनों के सदस्य फासीवादी विचारधारा वाले की तुलना में कम कम्युनिस्ट हैं।"36 विचाराधीन अध्ययन यहूदी श्रम समिति (जेएलसी) द्वारा शुरू किया गया था। जेएलसी के नेताओं में से एक, डेविड डुबिंस्की के केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) के साथ संबंध थे और संगठित श्रम पर कब्ज़ा करने और उसे कम्युनिस्टों से मुक्त करने के कंपनी के व्यापक अभियान में सीआईए ऑपरेटिव जे लवस्टोन और इरविंग ब्राउन जैसे लोगों के साथ शामिल थे।37 ऐसा लगता है कि कम्युनिस्ट यूनियनों को सबसे ज्यादा यहूदी-विरोधी, यहाँ तक फासीवादी के रूप से चिन्हित करके फ़्रंकफ़र्ट स्कूल ने कम्युनिस्ट मजदूर आन्दोलन को मिटा देने का वैचारिक औचित्य प्रदान किया था।
कुछ लोग अमेरिकी अधिकारियों के साथ इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के सहयोग और अपने खिलाफ सेंसरशिप के फैसले को अमेरिकी शक्ति अभिजात वर्ग के कम्युनिस्ट विरोधी और कभी-कभी दार्शनिक फासीवादी रवैये के कारण उचित मान सकते हैं, दुश्मन के विदेशी कृत्यों और फरमानों का उल्लेख नहीं करने के लिए वे इसे सही ठहरा भी सकते हैं।38 वास्तव में, 21 जानवरी 1944 को इंस्टिट्यूट का इतिहास और कार्रवाइयों का विस्तृत अध्ययन के बाद फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन (ऍफ़बीआई) ने बहुत सारे मुखविरों को इंस्टिट्यूट के विद्वानों पर अगले दस साल तक निगरानी के लिए लगा दिया था यह सोचकर कि शायद इंस्टिट्यूट एक कम्युनिस्ट मोर्चा है।39 उनके खबरियों में शामिल थे कार्ल विटफोगेल जैसे इंस्टिट्यूट के सहयोगी, दूसरे पेशेवर सहकर्मी और यहाँ तक कि उनके पडोसी भी। हालांकि ऍफ़बीआई को उनके संदेहास्पद व्यवहार पर लगभग न के बराबर सबूत मिला और उसके अफसर तब फिर से आश्वस्त हुए जब उन विद्वानों से नजदीकी रखने वाले मुखविरों ने उन्हें बताया कि आलोचनात्मक सिद्धान्तकार “यकीन करते हैं कि लक्ष्य और तरीकों के मामले में हिटलर और स्तालिन में कोई फर्क नहीं है।”40 वाकई, हम देखंगे, आगे चलकर उन्होंने अपने कुछ लेखों में ऐसे दावे करते रहे तब भी जब वे पश्चिमी जर्मनी में बस गए और उन पर ऍफ़बीआई की कड़ी निगरानी, सम्भावित गिरफ़्तारी या देश निकाला होने का खतरा नहीं था।
पूरब को बदनाम करो, तनख्वाह लेकर पश्चिम का बचाव करो
1949-50 में फ़्रंकफ़र्ट स्कूल के अगुआ बौद्धिक लोग इंस्टिट्यूट को पश्चिमी जर्मनी में वापस ले गए जो उस समय साम्यवाद के खिलाफ बौद्धिक विश्व युद्ध का गढ़ था। “इस माहौल में” पैरी एंडरसन लिखते हैं, “जहाँ केपीडी (जर्मनी की कम्युनिस्ट पार्टी) को गैर-कानूनी घोषित किया जाने वाला था और एसपीडी (जर्मनी की सामाजिक जनवादी पार्टी) ने औपचारिक रूप से मार्क्सवाद से कोई नाता नहीं रखा तो इंस्टिट्यूट का गैर-राजनीतिकरण पूरा हो गया।”41 युर्गेन हेबरमास जैसी हस्ती जिसने शुरुआती दिनों में कई बार अडोर्नो और होर्खाइमर से भी ज्यादा वामपंथी रुख अपनाया था, बाद में इन दोनों पर “आलोचनात्मक परम्परा के खिलाफ जाकर मौकापरस्त समझौते” का आरोप लगाया।42 होर्खाइमर ने हेबरमास के उन दो निबंधों को छापने से मना करके वाकई इंस्टिट्यूट के कामों को सेंसर करना जारी रखा जो उदारवादी लोकतन्त्र के बारे में आलोचनात्मक था और “क्रान्ति” की बात कर रहा था तथा “बुर्जुआ समाज की बेड़ियों” से मुक्ति की सम्भावना का सुझाव देने की हिम्मत कर रहा था।43 अपने व्यक्तिगत पत्र-व्यवहार में होर्खाइमर ने अडोर्नो के सामने बेलाग-लपेट स्वीकार किया था कि “उसी बेड़ियाँ बाँधनेवाले समाज के सार्वजानिक आर्थिक मदद से चलनेवाले एक इंस्टिट्यूट के शोध रिपोर्ट में इस तरह की चीजों को शामिल करना सम्भव ही नहीं है।”44 यह तो फ़्रंकफ़र्ट स्कूल का आर्थिक आधार ही उसकी विचारधारा या कम से कम उसकी सार्वजनिक चर्चा की चालक शक्ति होने की खुली स्वीकारोक्ति प्रतीत होती है।
इस मामले में याद रखना जरूरी है कि होर्खाइमर घेरे के आठ में से पांच सदस्य ने अमरीकी सरकार और राष्ट्रीय सुरक्षा राज्य के लिए विश्लेषक और प्रचार विशेषज्ञ के रूप में काम किया था जिसका “फ़्रंकफ़र्ट स्कूल की बरकरार वफादारी में निहित स्वार्थ था क्योंकि इसके कई सदस्य गुप्त सरकारी शोध परियोजना में काम कर रहे थे।”45 हालांकि होर्खाइमर और अदोर्नों उसमे शामिल नहीं थे लेकिन अदोर्नो अमरीका गए थे दरअसल पॉल लैज़र्सफेल्ड के अधीन ऑफिस ऑफ़ रेडियो रिसर्च में काम करने के लिए जो “हकीकत में सरकारी मनोवैज्ञानिक युद्ध परियोजना का सहायक” संस्थाओं में से एक था।46 इस संवाद अध्ययन केंद्र को रॉकेफेलर फाउंडेशन से 67 हजार डॉलर का भारी-भरकम अनुदान मिला था और यह अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा राज्य के साथ बहुत नजदीकी से काम करता था (अमरीकी सरकार की आर्थिक मदद से इसके सालाना बजट का 75 प्रतिशत खर्च चलता था)। रॉकेफेलर फाउंडेशन ने अप्रैल 1948 में होर्खाइमर की पहली जर्मनी वापसी का खर्च भी उठाया था जब उन्होंने फ़्रंकफ़र्ट विश्वविद्यालय में अतिथि अध्यापक के रूप में काम करना स्वीकार किया।
हम भूल न जाएँ कि रॉकेफेलर घराना अमरीकी पूँजीवाद के इतिहास में सबसे भयानक लुटेरे घरानों में से एक है और टैक्स बचाने के औजार के रूप में अपने फाउंडेशन का इस्तेमाल करते हैं जो उन्हें चुराई हुई सम्पदा के एक हिस्से को “बौद्धिक कार्रवाई तथा संस्कृति को भ्रष्ट करने में” निवेश करने का मौका देता है।47 इसके अलावा फ़्रंकफ़र्ट स्कूल को जब मदद किया जा रहा था तब राष्ट्रीय सुरक्षा राज्य से इनका सीधा रिश्ता था। ऑफिस ऑफ़ कोऑर्डिनेटर ऑफ़ इंटर-अमेरिकन अफेयर्स (एक संघीय प्रचार संस्था जिसका काम ऑफिस ऑफ़ स्ट्रेटेजिक सर्विसेज और सीआईए से मिलता-जुलता था) के अध्यक्ष के रूप में काम करने के बाद नेल्सन रॉकफेलर 1954 में “शीत युद्ध रणनीति में राष्ट्रपति के विशेष सहायक के रूप में अवैध ख़ुफ़िया कार्रवाई के “सर्वेसर्वा”” बने।48 उन्होंने सीआईए से गहरा नाता रखने वाली दूसरी पूँजीवादी संस्थाओं की तरह ही रॉकेफेलर फण्ड को सीआईए के काम के लिए जरूरत मुताबिक़ इस्तेमाल करने का भी रास्ता साफ़ कर दिया था (जैसा चर्च कमेटी रिपोर्ट में सामने आया)। अमरीकी साम्राज्य और पूँजीवादी शासक वर्ग के बीच इन सम्बन्धों को देखते हुए यह अचरज की बात नहीं है कि अमरीकी सरकार ने इंस्टिट्यूट को पश्चिमी जर्मनी में पुनर्स्थापित करने के लिए 4 लाख 35 हजार जर्मन मार्क की विराट आर्थिक मदद की थी (या 1,03,695 डॉलर जो आज 2022 में 11,95,926 डॉलर के बराबर है)।49 इन पैसों का लेनदेन पश्चिमी जर्मनी में अमरीकी राजदूत जॉन मैकक्लोय की निगरानी में हो रहा था।
मैकक्लोय अमरीकी ताकतवर अभिजात वर्ग के अंदरूनी सदस्य थे जिन्होंने कानूनविद और बैंकर के रूप में बड़ी तेल कम्पनियों और आईजी फ़ार्बेन (द्वितीय विश्वयुद्ध और उसके बाद के समय में यूरोप में सबसे बड़ी जर्मन रासायनिक और फार्मास्यूटिकल उत्पादक कम्पनी) के लिए काम किया था और जिन्होंने नाज़ी युद्ध-अपराधियों के लिए भरपूर क्षमा तथा जर्मनी से भागने में उनकी मदद की थी।द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा राज्य के एक प्रमुख वास्तुकार के रूप में काम करने के बाद वे क्रमशः चेज़ मैनहटन बैंक, कौंसिल फॉर फॉरेन रिलेशन्स और फोर्ड फाउंडेशन के अध्यक्ष बने थे। यह बात डीप स्टेट और पूँजीवादी शासक वर्ग के घनिष्ठ सम्बन्ध की सूचक है। मैकक्लोय के अलावा इंस्टिट्यूट को निजी दाताओं, सोसाइटी फॉर सोशल रिसर्च और फ़्रंकफ़र्ट शहर से भी आर्थिक मदद मिली। 1954 में इंस्टिट्यूट ने उस मानेस्मन निगम के साथ भी शोध करने का करार किया जो “बोल्शेविक-विरोधी लीग के स्थापक सदस्यों में था और नाज़ी पार्टी को आर्थिक मदद भी करता था।”50 द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस निगम ने यातना शिविर में बंदी लोगों से गुलामों की तरह काम करवाया और इसकी अध्यक्षीय कमेटी में थर्ड राइख (अनुवादक-- तीसरा साम्राज्य; पहला जूलियस सीजर का रोमन साम्राज्य और दूसरा नेपोलियन का) के युद्ध अर्थव्यवस्था प्रभारी नाज़ी विल्हेल्म जंगेन शामिल थे।51 इस कम्पनी के साथ फ़्रंकफ़र्ट स्कूल ने जिस विषय पर शोध करने का करार किया था वह है मजदूरों के समझ का समाजशास्त्रीय अध्ययन जिसका निहित मकसद यह था कि इस तरह का अध्ययन मजदूरों के बीच समाजवादी लामबंदी बंद करने या रोकने में मैनेजमेंट को मदद करेगा।
कॉर्पोरेट दुनिया और पूँजीवादी सरकारें क्यों इंस्टिट्यूट फॉर सोशल रिसर्च की मदद करती हैं? इस सवाल की शायद सबसे स्पष्ट व्याख्या शेपर्ड स्टोन की बातों में मिलती है। फोर्ड फाउंडेशन के अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध विभाग के अध्यक्ष के रूप में वे सीआईए के साथ घनिष्ठ रूप से दुनियाभर में सांस्कृतिक परियोजनाओं में आर्थिक मदद पहुंचाने का काम करते थे, उससे पहले, गौर करना चाहिए, स्टोन पत्रकारिता और सैनिक ख़ुफ़िया विभाग में काम कर चुके थे (और बाद में, इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर कल्चरल फ्रीडम जो सीआईए से सीधा सम्बन्ध सामने आने के बाद, दूसरे नाम से काम करने की कोशिश की। कांग्रेस फॉर कल्चरल फ्रीडम पुरानी संस्था का नया नाम था, वे उसके अध्यक्ध तक बने)। 1940 के दशक में, जब स्टोन अधिकृत जर्मनी में अमरीकी राजदूत के जनसम्पर्क विभाग के अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे थे, तब उन्होंने अमरीका में अडोर्नो के वीजा समय-सीमा को बढ़ाने के लिए अमरीकी गृह मंत्रालय को एक व्यक्तिगत नोट भेजा था, “फ़्रंकफ़र्ट का इंस्टिट्यूट जर्मन नेताओं को प्रशिक्षित करने में मदद कर रहा है वे इससे कुछ लोकतांत्रिक तकनीक के बारे में जानकारी हासिल कर पायेंगे। मुझे यकीन है कि जर्मनी में हमारे मोटा-मोटी लोकतांत्रिक उद्देश्य के लिए प्रोफेसर अडोर्नो जैसे लोगों को वहां रहकर काम करने का मौका मिलना चाहिए।”52 इंस्टिट्यूट उस तरह का विचारधारात्मक काम कर रहा था जो अमरीकी राज्य और पूँजीवादी शासक वर्ग करना चाहते थे और किया भी – मदद के रूप में।
संस्थान को वित्त पोषित करने वाले "बंधक समाज" के साथ वैचारिक अनुरूपता के निर्देशों को पूरा करते हुए, और यहां तक कि उससे आगे निकलते हुए, होर्खाइमर ने खुलेआम पश्चिम जर्मनी में अमेरिका की कम्युनिस्ट विरोधी कठपुतली सरकार के लिए अपना पूर्ण समर्थन व्यक्त किया, जिसका ख़ुफ़ियातंत्र पूर्व नाजियों के जत्थे से भरा था और वियतनाम में चल रही उस सरकार की साम्राज्यवादी परियोजना (जो उनके अनुसार चीनियों को रोकने के लिए जरूरी था) का पुरजोर समर्थन किया था।53 मई 1967 में जर्मनी में एक अमरीका-हौसर, कम्युनिस्ट-विरोधी कुल्तुरकम्प्फ़ की एक प्रचार टुकड़ी में भाषण देते हुए उन्होंने निष्ठापूर्वक ऐलान किया कि “जब युद्ध लड़ने की जरूरत पड़े तो – और अब मेरी बात ध्यान से सुनिये ...। अमरीका में अपने देश की रक्षा की बात उतनी महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि संविधान की रक्षा, मानव अधिकार की रक्षा करना ही असल दांव पर लगा है।”54 आलोचनात्मक सिद्धांत के बड़े पादरी साहब यहाँ उस देश का गुणगान कर रहे हैं जिसकी बुनियाद में कब्ज़ा करके उपनिवेश बनाना शामिल है और जिसके मूलनिवासियों की नरसंहारनुमा मिटा देने की प्रक्रिया किसी साम्राज्यवादी विस्तार के परियोजना से मूल रूप से मेल खाती है। वह घटना, अप्रैल 1967 में मार्टिन लूथर किंग जूनियर द्वारा दिए गए तर्क के अनुसार, जिसने आधुनिक दुनिया पर खून से सना निशान छोड़ा है जिसमे द्वितीय विश्वयुद्ध और 1967 के बीच दुनियाभर में घटित करीब 37 सैन्य और सीआईए का हस्तक्षेप भी शामिल है जब होर्खाइमर एक अमरीकी प्रचारमंच से यह बेहयाई भरा दावा कर रहे थे।
हालाँकि एडोर्नो अक्सर प्रमुख राजनीतिक घटनाओं पर सार्वजनिक घोषणाओं से बचते हुए, निष्क्रियता की पेटी-बुर्जुआ राजनीति में लिप्त रहते थे, जो भी एक-आध वतव्य उन्होंने जारी किया, वह भयानक प्रतिक्रियावादी था। उदाहरण के लिए 1956 में होर्खाइमर के साथ मिलकर एक लेख लिखा था जिसमें सुएज नहर पर कब्ज़ा करने और मिस्र के राष्ट्रपति नासेर को सत्ता से बाहर करने की मकसद से की गयी मिस्र पर इजराएल, ब्रिटेन और फ्रांस के साम्राज्यवादी हमले (संयुक्त राष्ट्र संघ ने जिसकी निंदा की थी) का बचाव किया था। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के कद्दावर नेताओं में से एक नासेर को उन्होंने “एक फासीवादी सरदार...।जो मास्को के साथ साजिश करता है” कहा। उन्होंने अचरज भी जताया कि “कोई भी इन अरब डकैत राज्यों की तरफ इशारा भी नहीं करता है कि ये लोग सालों से इजराइल पर हमला करने और वहां जिन यहूदियों को पनाह मिली उनका नरसंहार करने का बहाना ढूंढ रहे हैं ।”56 इस छद्म-द्वंदात्मक उलटपुराण के अनुसार अरब इलाके के राज्य “डकैत” हैं जबकि एक कब्ज़ा किया हुआ उपनिवेश जो धुर साम्राज्यवादियों के साथ मिलकर अरबों की आत्म-निर्णय पर हमला करा रहे हैं वह डकैत नहीं है। यहाँ बेहतर होगा कि लेनिन ने जिस तरह ऐसे वितण्डावादियों को खारिज किया था उसे याद करना जो वैश्विक सिद्धांत उद्योग में जिसे “द्वंदवाद” में शुमार किया जाता है उसकी खासियत है। लेनिन ने कहा था “द्वंदवाद ने कई बार...।। वितण्डावाद के लिए एक पुल के रूप में काम किया है। लेकिन हमें द्वन्दवाद पर अड़े रहना चाहिए और इस तरह के वितण्डावाद से मुकाबला करना चाहिए, सामान्य रूप से सभी रूपांतरण की संभावनाओं को ख़ारिज करके नहीं, बल्कि मौजूद परिघटना को उसके ठोस सन्दर्भ और विकासक्रम में विश्लेषण करके।”57 अडोर्नो और होर्खाइमर जैसों की भाववादी उलटपुराण में ठीक इसी तरह की ठोस और भौतिकवादी विश्लेषण की कमी है।
उसी साल फ़्रंकफ़र्ट स्कूल के अगुआ लोगों ने अपनी सबसे उन्नत राजनीतिक दस्तावेज में से एक को जारी किया था। उपनिवेश-विरोशी वैश्विक मुक्ति आन्दोलन और समाजवादी दुनिया के निर्माण के बजाय वे एक-आध अपवाद छोड़कर पश्चिम की श्रेष्ठता का जश्न मना रहे थे, साथ ही साथ सोवियत संघ तथा चीन को नीचा दिखा रहे थे। पुराने नस्लवादी जुमलों का सहारा लेकर पूरब के “बर्बरों” का वर्णन करने के लिए, जिन्हें वे मनुष्येतर शब्दावली में “जानवर” और “झुण्ड” कह रहे थे, उन्होंने सीधे मुंह कहा कि वे दरअसल “फासीवादी” हैं जिन्होंने “गुलामी” को चुना है।58 जो जर्मन गलती से सोचते हैं कि “रूस समाजवाद के हिमायती है” अडोर्नो ने उन्हें यह याद दिलाकर चेताया कि रूसी लोग दरअसल “फासीवादी” हैं और यह बात “उद्योगपति और बैंक मालिकों” -- वे खुद जिनके पक्ष में थे-- को पहले से पता है।59
इस दस्तावेज में अडोर्नो ने बेशर्मी के साथ जोर देकर कहा “रूसी लोग जो कुछ भी लिखते हैं आखिरकार वह विचारधारा की खाई में गिरता है, स्थूल, बेवक़ूफाना बकवास ही होता है।” इस अंदाज में जैसे उन्होंने रूसियों की लिखी हुई हर एक चीज पढ़ी हो, लेकिन इसके बावजूद हमेशा की तरह एक भी स्रोत का हवाला नहीं देते हैं (जहां तक मुझे पता है उन्हें रूसी पढनी नहीं आती थी)।60 रूसियों की सोच में “दुबारा बर्बर बनाने वाला एक तत्व है” जो उनके अनुसार मार्क्स और एंगेल्स के कार्यों में भी मिलता है, ऐसा दावा करके वह बेझिझक कहते हैं कि यह “सबसे अगुआ बुर्जुआ सोच में जैसा होता है उससे भी ज्यादा स्थूल है।”61 मानो इतना कपट होना काफी नहीं था कि अडोर्नो ने छाती ठोककर कहा होर्खाइमर के साथ मिलकर वे “वास्तव में लेनिनवादी घोषणापत्र” लिख रहे थे।62 एक चर्चा में वे दृढ़तापूर्वक कहते हैं कि वे “किसी को कार्रवाई करने का आह्वान नहीं करते हैं”। अडोर्नो ने बुर्जुआ सोच को इस तरह सबसे ऊँचा दर्जा दिया कि तुलनात्मक रूप से “(बुर्जुआ) संस्कृति सबसे अगुआ चरण पर है” समाजवादी सोच की कथित बर्बरता से ऊपर है।63 साथ ही साथ होर्खाइमर ने अपने सामाजिक अंधराष्ट्रवाद को दोगुना बढ़ाकर कहा “जहाँ तक तरक्की और न्याय की बात है, मेरा विश्वास है यूरोप और अमरीका ही सभ्यता के रूप में शायद इतिहास की सबसे बेहतर उपज है। इन उपलब्धियों का संरक्षण ही अब मुख्य चुनौती है।”64 यह 1956 की बात है जब अमरीका अब भी नस्लीय रूप से भारी पैमाने पर विभाजित था और संदिग्ध कम्युनिस्ट-विरोधी अभियान तथा दुनियाभर में अलग-अलग सरकारों को गिराने की कार्रवाई में शामिल था। उसने अभी-अभी ईरान (1953) और गुआटेमाला (1954) में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गयी सरकारों को गिराकर अपने साम्राज्यवादी विस्तार को अंजाम दिया था जबकि यूरोप की शक्तियों ने अपने उपनिवेशों को कब्जे में रखने या उन्हें नव-उपनिवेश बनाने के लिए हिंसक लड़ाई छेड़ दिया था।
“फासीवाद और साम्यवाद दरअसल एक ही हैं”
अडोर्नो और होर्खाइमर द्वारा पेश किये गये राजनीतिक दावों में सबसे सिलसिलेवार था कि फासीवाद और समाजवाद के बीच एक “अधिनायकवादी” समतुल्यता है जो समाजवादी राज्य निर्माण की परियोजनाओं में, “तीसरी दुनिया” की उपनिवेशवाद-विरोधी आन्दोलनों में या पश्चिमी दुनिया की नव-वामपंथी मुहीमों में भी खुद को उजागर करती है। इन तीनों मामलों में जो भी सोचते हैं कि वे “बंधक समाज” को तोड़कर बाहर निकल रहे हैं, वे दरअसल उससे भी बदतर स्थिति पैदा कर रहे हैं। पश्चिमी पूँजीवादी देशों ने फासीवाद, जो पूँजीवादी दुनिया के अन्दर ही पनपी थी, के प्रतिरोध में कोई महत्वपूर्ण योगदान नहीं किया था और यह कि यकीनन सोवियत संघ ने ही आख़िरकार इसे पराजित किया था इस स्पष्ट तथ्य ने भी इन सिद्धान्तकारों को अपनी नासमझ और साधारण सिद्धान्त पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर न कर सका (जिसका मतलब उपनिवेश-विरोधी आन्दोलनों और 1960 के दशक में हुए विद्रोहों में समाजवाद का महत्व के बारे में कुछ न कहना)। वास्तव में, ऑश्कविट्ज़ के दहशत के बारे में तमाम नैतिक टिपण्णी के बावजूद दृश्यतः अडोर्नो भूल गये थे कि दरअसल किसने उस कुख्यात यातना शिविर को आजाद किया था (लाल फ़ौज)।
1942 में प्रकाशित एक सीमित दायरे में वितरित पर्चे में होर्खाइमर ने विशेष स्पष्टता के साथ हॉर्सशू सिद्धान्त (horseshoe theory) का अपना संस्करण प्रस्तुत किया था जो भाषा के मामले में इंस्टिट्यूट के दूसरे प्रकाशित लेख/किताबों की पहेलीनुमा भाषा से हटकर था। फ्रेडरिक एंगेल्स पर सीधा कल्पनावाद का आरोप लगाते हुए उन्होंने मजबूती से कहा की उत्पादन के साधनों का समाजीकरण ने दमन को बढ़ाया है और आखिरकार एक निरंकुशतावादी राज्य को पैदा किया है। “पहले बुर्जुआजी अपनी सम्पत्ति के जरिये सरकार पर अंकुश लगाता था,” इसके अनुसार करोड़पति का बेटा, जबकि नये समाज में समाजवाद बस भ्रमित आस्था पैदा करने के अलावा “काम ही नहीं करता,” जिसमे से एक है पार्टी, माननीय नेता या इतिहास की कथित कूच के जरिये “कोई अपने से बहुत बड़ा किसी का नाम लेकर कार्रवाई कर रहा है।”65
इस लेख में होर्खाइमर की स्थिति पूरी तरह अराजकतावादी तथा साम्यवाद-विरोधियों से मिलती है जो पश्चिमी वाम के अन्दर व्यापक रूप से फैली हुई एक विचारधारा है। पार्टी या राज्य के घातक प्रभाव के बिना ही एक “वर्गविहीन लोकतन्त्र” जनता के अन्दर से “मुक्त संविदा” के जरिये कथित रूप से उभर सकती है। जैसा कि दोमिनिको लोसुर्दो ने व्यवहारिक रूप से दर्शाया कि 1940 के दशक की शुरुआत में नाज़ी युद्ध मशीन सोवियत संघ को तबाह कर रहा था और इसलिए होर्खाइमर का समाजवादियों को राज्य और पार्टी केन्द्रीकरण के रास्ते को छोड़ने का आह्वान करना नाजियों के नरसंहारकारी उथल-पुथल के सामने हथियार डाल देने की मांग से कुछ कम नहीं था।66
होर्खाइमर के 1942 में प्रकाशित पर्चे में अगर कुछ तत्वों के चलते समाजवाद को चाहने के बारे में अस्पष्ट इशारे हैं तो बाद के लेखन में इसे पूरी तरह से खारिज करने बारे में उनकी बेबाक राय भी खुल कर सामने आई है। उदाहरण के लिए जब अडोर्नो और होर्खाइमर सोवियत संघ के साथ उनके रिश्ते के बारे में एक सार्वजानिक वतव्य पेश करने की सोच रहे थे तो अदोर्नों ने होर्खाइमर को एक सुचिंतित साझी निबंध के अंश के रूप में निम्नलिखित नोट भेजा था – “अपने समय के सामाजिक रुझान के द्वन्द्वात्मक आलोचक के रूप में हमारा दर्शन सोवियत संघ से निकली राजनीति और सिद्धांतों के धुर विरोधी है। जनता के लोकतन्त्र नाम पर असलियत में चलने वाली सैन्य तानाशाही में हम दमन के नये रूप के अलावा कुछ नहीं देख पाते हैं।”67
अडोर्नो और होर्खाइमर की तरफ से वास्तव में विद्यमान समाजवाद की भौतिकवादी विश्लेषण की अनुपस्थिति के बावजूद यह बात करने लायक है कि यहाँ तक सीआईए ने भी स्वीकार किया था कि सोवियत संघ कोई तानाशाही नहीं है। “यहाँ तक कि स्तालिन के जमाने में भी सामूहिक नेतृत्व था। कम्युनिस्ट ढाँचे के अन्दर तानाशाही की पश्चिमी अवधारणा अतिरेक है। इस मामले में ग़लतफ़हमी का कारण है कम्युनिस्ट सत्ता संरचना के संगठन और प्रकृति के बारे में समझदारी की कमी।”68
1959 में अडोर्नो ने “द मीनिंग ऑफ़ वर्किंग थ्रू द पास्ट” शीर्षक एक निबंध प्रकशित की जिसमे उन्होंने “शर्मसार करनेवाला सच” और “पल्लवग्राही ज्ञान”, जो ऊपर कहा गया है, को नये सिरे से पेश किया। यानी शीत युद्ध के दौरान पश्चिम के वर्चस्व वाली विचारधारा से पूरी तरह सहमत होकर कहते हैं कि फासीवाद और समाजवाद दरअसल एक ही है क्योंकि वे “अधिनायकवाद” के ही दो अलग-अलग रूप हैं। खुलेआम “राजनीतिक-आर्थिक विचारधारा”, जो निश्चित रूप से इन दोनों संघर्षरत खेमों में फर्क करता है, उसे खारिज करते हुए अडोर्नो ने दावा किया कि उनके पास इन दोनों व्यवस्था को एक साबित करने वाली गहरी सामाजिक-मनोवैज्ञानिक गतिकीय विश्लेषण मौजूद है।69 पूरे प्राधिकार के साथ उन्होंने जाहिर किया कि “प्राधिकारिक व्यक्तित्व” के रूप में फासीवादी और कम्युनिस्ट लोग “कमतरी का घमंड पालते हैं” और इसकि भरपाई करने के लिए वे खुद को “वास्तव में मौजूद ताकत” और “विराट समूहों” से जोड़ते हैं।70 इस तरह एक “प्राधिकारिक व्यक्तित्व” की अवधारणा ही कपटी भ्रामक है जिसका मकसद है छद्म-द्वंदवाद का मनोवैज्ञानिक इस्तेमाल करके विरोधाभासी तत्वों को एकीकृत करना। इसके अलावा, यहाँ सवाल उठता है कि ऐतिहासिक व्याख्या में मनोविज्ञान और सोचने का यह खास तरीका क्यों भौतिक शक्ति तथा वर्ग संघर्ष से ज्यादा केन्द्रीय तत्व है।
फासीवावादियों और कम्युनिस्टों को मनोवैज्ञानिक रूप से एक साबित करने की कोशिश करने के बावजूद अडोर्नो ने उसी निबंध में यह सुझाव तो दिया ही कि पीछे मुडकर देखा जाए तो सोवियत संघ पर नाज़ी हमले को सही ठहराया जा सकता है क्योंकि जैसा हिटलर ने खुद कहा था – बोल्शेविक दरअसल पश्चिमी सभ्यता के लिए खतरा थे। “यह बात निश्चित है कि पूरब के देश पश्चिमी यूरोप की तलहटी को घेर लेंगे,” अडोर्नो ने दावा किया “और जो भी इसका प्रतिरोध करने में अक्षम होगा वह वाकई चेम्बर्लिन की तुष्टिकरण का दोषी होगा।”71 यह उपमा बहुत कुछ कहता है क्योंकि इस मामले में इसका मतलब होता कि अगर कोई “फासीवादी” कम्युनिस्टो के खिलाफ सीधा लड़ नहीं रहा है तो उनका तुष्टिकरण कर रहा है। दूसरे शब्दों में, उनकी धुंधली और जटिल शब्दाडम्बर के बावजूद यह साम्यवाद के विस्तार के खिलाफ सैनिक प्रतिरोध के बिगुल में फूंक मारने जैसा है (बिलकुल वियतनाम में अमरीकी साम्राज्यवादी युद्ध के समर्थन में होर्खाइमर की स्थिति से मिलती है)।
अल्फ्रेड सन-रेथेल के साथ पत्र-व्यवहार में भी अडोर्नो का वास्तव में विद्यमान समाजवाद की उग्र नामंजूरी खुलकर सामने आई थी। जब अल्फ्रेड सन-रेथेल ने उन्हें पूछा कि दुनिया को बदलने के बारे में नेगेटिव डायलेक्टिक्स में कोई सुझाव है या नहीं, और क्या चीनी सांस्कृतिक क्रान्ति भी उस “सकारात्मक परम्परा” का हिस्सा है जिनका उन्होंने तिरस्कार किया था। अडोर्नो ने जवाब में कहा कि वे “आधिकारिक मार्क्सवाद” का दर्शन को व्यवहार में लागू करने की नैतिक दबाव को ख़ारिज कर चुके हैं।72 बल्कि उन्होंने अपने स्वभावसिद्ध ढंग से पेटी-बुर्जुआ विषादगीत के लहजे में जाहिर किया “निराशा के अलावा कुछ भी हमें बचा नहीं सकता।”73 इसमें छौंका लगाकर उन्होंने कहा कि कम्युनिस्ट चीन में होने वाली घटनाओं में आशा की कोई कारण नहीं है। उन्होंने याद करने लायक मजबूती से व्याख्या किया कि अपनी पूरी जिन्दगी उन्होंने समाजवाद का इस, और जाहिर तौर पर दूसरे, रूप के खिलाफ सख्ती से विरोध किया है। उनके शब्दों में “इसे देखते ही अगर मेरे जहन में दहशत के सिवा कुछ आये तो ताउम्र मैंने जो कुछ भी सोचा है मुझे उन सबको नकारना पड़ेगा।”74 निराशा के प्रति में अडोर्नो का खुला प्यार और साथ ही साथ वास्तव में विद्यमान समाजवाद के बारे में हिकारत कोई दिमागी कवायद या महज निजी प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि वर्गीय स्थिति की उपज है। लेनिन ने 1910 में लिखा था “आधुनिक मजदूर आन्दोलन के प्रतिनिधि पाते हैं कि उनके पास विरोध करने को काफी चीजें हैं और निराश होने लायक कुछ नहीं।”75 अडोर्नो जैसे लोगों के पेटी-बुर्जुआ विषाद के बारे में आगाह करते हुए दुनिया की पहली सफल समाजवादी क्रान्ति के नेता ने आगे समझाया कि “निराशा उनके लिए स्वाभाविक है जो बुराई के कारण को नहीं समझते हैं, उससे निकलने का रास्ता भी सोच नहीं पाते, और लड़ने में असमर्थ हैं।”76
1960 के दशक की साम्राज्यवाद-विरोधी और पूँजीवाद-विरोधी छात्र आन्दोलन की आलोचना करते हुए अडोर्नो ने अपनी सोच, या यूँ कहें अपनी भावना की इस दिशा को आगे बढ़ाते रहे। वे हेबरमास के साथ सहमत थे कि यह छात्र आन्दोलन दरअसल “वामपंथी फासीवाद” की मिसाल है। हेबरमास वह आदमी हैं जो खुद हिटलर युवा वाहिनी के सदस्य रहे और चार साल तक “नाज़ी दार्शनिक” (उनके खुद के शब्दों में हेइडेगर) के देखरेख में पढ़ाई की। उन्होंने पश्चिमी जर्मनी को “फासीवादी” के बजाय कारगर लोकतंत्र कहकर बचाव किया जब कुछ छात्रों ने इसे फासीवादी राज्य करार दिया।77 उसी समय वे मार्कुज के साथ बहस पर उतर आये जब उनके विचार से छात्र आन्दोलन के लिए मार्कुज का समर्थन भ्रमित था और ‘क्या करना है?’ इस सवाल के जवाब में स्पष्ट रूप से दावा किया कि अच्छे द्वन्दवादी को कुछ करने की जरूरत नहीं है – “व्यवहार का असली मकसद है उसका खात्मा।”78 इस तरह उन्होंने मार्क्सवाद के एक केन्द्रीय पहलू, यानी व्यवहार की प्राथमिकता को द्वन्दवादी कुतर्कों के सहारे उलट दिया। इसी सन्दर्भ में मार्क्स को सर के बल खड़ा करते हुए उन्होंने फिर से पूँजीवादी दुनिया का मन्त्र दोहराया – “फासीवाद और साम्यवाद दरअसल एक ही है।”79 इस नारे को “पेटी-बुर्जुआ यथार्थवाद” कहने के बावजूद उन्होंने इसे बेशर्मी से गले लगा लिया।80
वास्तव में विद्यमान समाजवाद और ज्यादा व्यापक रूप से कहें तो प्रगतिशील सामाजिक आन्दोलनों के बारे में अडोर्नो और होर्खाइमर के विचार में भाववाद सनी हुई है। दूसरे विषयों पर काम करते हुए जो सख्ती और ईमानदारी वे बरतते थे, उसके बजाय जिसको बदनाम करना होता था रटी-रटाई कम्युनिस्ट-विरोधी बेबुनियाद किस्से जिसमें ठोस विश्लेषण कुछ भी नहीं होता है ऐसी चीजों का बेझिझक इस्तेमाल करते थे (यह बात अलग है कि वे कई बार आर्थर कोस्टलार जैसे शीत योद्धाओं की लिखी हुई कम्युनिस्ट-विरोधी साहित्य का भी हवाला देते थे, जिसके प्रकाशन में साम्राज्यवादी ताकत और उनके ख़ुफ़िया दफ्तरों का हाथ होता था)।81 यह बात खासकर समाजवादी राज्य निर्माण को बदनाम करने की उनकी कोशिशों के बारे में ज्यादा सच है। इस विषय पर उनके लेख न सिर्फ उल्लेखनीय रूप से इस पर किसी विद्वतापूर्ण स्रोतों के हवाले का अभाव था, बल्कि वे इतने गम्भीर मुद्दे पर ऐसे बात करते थे कि मानो उसकी जरूरत ही नहीं है। ऐसे लेख जो वर्चस्वशाली विचारधारा की गोद में शरण लेते थे, दिलेरी से लेखकों के स्तालिन-विरोधी होने को ही मुख्य माना और उसमें दिये गये तथ्य, जटिलता या बारीकियों के बारे में कोई परवाह नहीं होती थी।
फिर किसी के पास उस आरोप को गलत समझने का मौका है जब आन्दोलनकारी छात्रों ने 1960 के दशक के शेषार्ध में फ़्रंकफ़र्ट के इन विद्वानों को “तानाशाही राज्य के वामपंथी मूर्ख सेवक जो सिद्धान्त में आलोचनात्मक हैं और व्यव्हार में परम्परावादी” कहकर परचा बाँटा था।82 अडोर्नो के ही एक पीएचडी शोधार्थी हान्स-युरगेन क्रहल ने तो खुलेआम अपने शिक्षक और फ़्रंकफ़र्ट के दूसरे प्राध्यापकों को कोसते हुए कहा कि वे “बकवास करने वाले आलोचनात्मक सिद्धांतकार” हैं।83 विश्वविद्यालय की एक हड़ताल में समाजवादी जर्मन छात्र लीग में शिरकत के चलते अडोर्नो के बुलाये पुलिस के हाथों गिरफ्तार होते समय ही हान्स ने ‘समाजवाद के अलावा कुछ भी’ सिद्धान्त के इन दिग्गज समर्थकों की गम्भीर आलोचना की थी। अडोर्नो के राजनीतिक आलोचकों के लिए एक मानक उदाहरण बन गया कि नेगेटिव डायलेक्टिक्स के लेखक ने खुद अपने छात्रों को गिरफ्तार करवाने के लिए विश्वविद्यालय में पुलिस बुलाया था। बहरहाल, जैसा कि हमने देखा है कि यह बस समंदर में डूबी विराट बर्फ के पहाड़ की चोटी की झलक भर है। यह कोई विचित्र विसंगति नहीं, बल्कि उनका यह रवैया अपनी राजनीति, बौद्धिक माहौल में सामाजिक भूमिका, वर्गीय अवस्थिति और वैश्विक वर्ग संघर्ष में उनके कुल झुकाव के साथ पूरी तरह सामंजस्यपूर्ण है।
पश्चिमी “मार्क्सवाद” के दिग्गज
बुद्धिजीवियों के लिए ब्रेख्त ने एक नया शब्द गढ़ने का प्रस्ताव दिया “तुई” यानी बिकाऊ संस्कृति के अधीन वह दिग्गज बुद्धिजीवी (जर्मन में Intellektuellen) जो हर चीज को पीछे ले जाने में माहिर है – इसलिए T ellekt-u ellen-i n या Tui (तुई)। 1930 के दशक में उन्होंने वाल्टर बेंजामिन के साथ ऐसे तुईओं के बारे में एक उपन्यास लिखने की चर्चा की थी और बाद में उनके पुराने नोट्स के आधार पर एक उपन्यास लिखा भी था जिसका नाम है तुरनदोत ऑर द वाइटवॉशर्स कांग्रेस। दूसरे विश्व युद्ध के बाद फ़्रंकफ़र्ट के विद्वानों की तरह पश्चिमी जर्मनी जाकर पूँजीवादी शासक वर्ग से पैसा लेकर उनकी सेवा करने के बजाय ब्रेख्त ने जर्मन लोकतान्त्रिक गणराज्य में वापस आकर समाजवादी राज्य निर्माण परियोजना में योगदान करते हुए तुरानदोत में उन पश्चिमी “मार्क्सवादियों” की व्यंगात्मक आलोचना की है।
इस नाटक में उन तुईओं को पेशेवर दीवार पुताई करनेवालों के रूप में पेश किया गया है जिन्हें जो चीज जैसा है ठीक उसका उलट करके पेश करने के लिए ही मोटी तनख्वाह मिलती है। पहलेतुरानदोत में सेन कहता है “पूरे देश में आज अन्याय का राज है” और फिर ‘समाजवाद के अलावा कुछ भी’ सिद्धान्त का सारसंक्षिप्त प्रस्तुत करता है कि “और तुई अकादमी में यह सिखाया जाता है कि ऐसा क्यों होना चाहिए।”84 इंस्टिट्यूट फॉर सोशल रिसर्च की तरह ही तुई शिक्षण हमें यह सिखाता है कि वर्चस्वशाली व्यवस्था का कोई विकल्प नहीं है और इस तरह व्यवस्था परिवर्तन की सम्भावना को खारिज करता है। उस नाटक के सबसे असरदार दृश्यों में से एक में तुई लोग पुताई करने वालों का सम्मेलन आयोजित करने की तैयारी कर रहे होते हैं। उस अकादमी के एक शिक्षक न्यू शान एक रस्सी के सहारे वक्ताओं के मुंह के सामने लटकी हुई रोटी की टोकरी नचाते रहते हैं। प्रशिक्षण के दौरान शि मा नाम के एक नौजवान को तुई बनने के लिए बताया जाता है कि उसे “काई हो के राय क्यों सही नहीं है” इस मौजू पर एक भाषण देने के लिए (काई हो माओ त्से-तुंग से मिलती एक क्रान्तिकारी चरित्र है)। न्यू शान उसे समझाता है कि जब भी वह कुछ गलत बोलेगा तो टोकरी उसके मुंह से ऊपर होगी और सही बोलने पर मुंह के सामने लायी जायेगी। शि मा की वर्चस्वशाली विचारधारा के अनुयायी की काबिलियत के अनुसार बहुत बार टोकरी ऊपर-नीचे करने के बाद युक्तिपूर्ण तर्कों से महरूम वह पंक्तियाँ निकलती है जो कम्युनिस्ट-विरोधी झूठी निंदाओं से भरी चीख है – “काई हो कोई दार्शनिक नहीं, बल्कि बस एक बड़बोला आदमी है, (टोकरी नीचे आने लगती है) सत्ता का भूखा एक निकम्मा, गैर-जिम्मेदार जुआड़ी, कबाड़ी, बलात्कारी, नास्तिक, डकैत और एक अपराधी है।अब रस्सी से लटकी हुई टोकरी ठीक उसके मुंह के सामने है। एक अत्याचारी है!”85 यह दृश्य संक्षेप में ही वर्गीय समाज में पेशेवर बुद्धिजीवी और उनके प्रायोजकों का रिश्ता खुलकर सामने ला देता है। पेशेवर बुद्धिजीवी अपने प्रभुओं के लिए आजाद अकादमिक प्रचारक के रूप में पूंजीपति वर्ग के लिए जहाँ तक हो सके सबसे बेहतर विचारधारा देने के बदले अपनी रोटी का जुगाड़ करते हैं। यह बस दिमागी खुराक की बात है।
“बंधक समाज” को रोटी का टुकड़ा देने वालों के लिए फ़्रंकफ़र्ट स्कूल के पास देने को जो था वह कहीं से भी कम महत्वपूर्ण नहीं था। छद्म-द्वंदात्मक शब्द की जादूगरी के जरिये उन्होंने (अमरीकी) गृह मंत्रालय के दिशानिर्देश का भारी-भरकम अकादमिक भाषा में बचाव किया कि दूसरे विश्व युद्ध में नाज़ी युद्ध मशीन को पराजित करने के करीब 3 करोड़ लोग कुर्बान होने के बावजूद (फासीवाद और साम्यवाद के विरोधी होने का सबसे खतरनाक रूपों में से एक है, जबकि इसके और भी कई रूप हैं क्योंकि एक दूसरे को कभी भी हरा सकते हैं) साम्यवाद और फासीवाद में फर्क करने लायक कोई बात है ही नहीं। इससे भी आगे बढ़कर राजनीतिक शिरकत से अलग-थलग आदर्शवादी आलोचनात्मक सिद्धान्त का पक्ष लेकर वर्ग संघर्ष को विस्थापित करके उन्होंने विश्लेषण के बुनियाद को ही ऐतिहासिक भौतिकवाद से दूर वर्चस्व, सत्ता और पहचान की सोच का एक सामान्य सैद्धांतिक आलोचना की तरफ ला दिया।
इस तरह अडोर्नो और होर्खाइमर ने उन रेडिकलों की भूमिका निभायी जो आखिरकार खुद को संभालकर सारी दुश्मनी ख़त्म कर देते हैं। रेडिकल होने का ढोंग बरकरार रखकर उन्होंने आलोचना की कार्रवाई को पश्चिमी-समर्थक कम्युनिस्ट-विरोधी विचारधारा के अन्दर संभाल दिया। यूरोप और अमरीका के पेटी-बुर्जुआ बुद्धिजीवियों की तरह ही, जिसने पश्चिमी मार्क्सवाद को आधार बनाया था, उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने सामाजिक अंधराष्ट्रवाद को अभिव्यक्त किया जिसके मुताबिक़ पूरब के खूंखार बर्बरों ने लेनिन की बदौलत मार्क्सवादी सिद्धान्त के हथियार उठाकर खुद ही राज कर सकते हैं इस आदर्श को लागू करने की हिम्मत की। पश्चिम की पूँजीवाद-प्रायोजित आरामतलब प्राध्यापन की गढ़ से वे यूरो-अमरीकी दुनिया की श्रेष्ठता का गुणगान करते रहे जो उन्हें तथाकथित असभ्य प्रांतीय इलाके के बोल्शेवीकृत बर्बरों का सबकुछ सपाट करने की परियोजना के खिलाफ बढ़ावा दे रहा था।
इसके अलावा उनके वर्चस्व की सामान्यीकृत आलोचना दरअसल पार्टी-विरोधी और राज्य-विरोधी उस गलबहिया का हिस्सा है जो अंत में वाम को पूँजीवादी शासक वर्ग की मजबूत राजनीतिक, सैनिक और सांस्कृतिक औजार के खिलाफ एक सफल संघर्ष छेड़ने में अनुशासित संगठन की जरूरत की विचार से खोखला करता है। यह उनकी पराजय की राजनीति की दिशा से पूरी तरह मेल खाती है जिसे अडोर्नो ने खुलेआम व्यवहार के चरम मानदंड के रूप में निष्क्रियता के अपने मार्क्सवाद-विरोधी बचाव के जरिये गले लगाया था। इस तरह पूँजीवादी शासक वर्ग तथा अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा दफ्तर समेत साम्राज्यवादी राज्यों के अकूत पैसे से पलने वाले फ़्रंकफ़र्ट के तुई अकादमी नेतृत्व आखिरकार पूँजीवाद को अपनाने की कम्युनिस्ट-विरोधी राजनीति के वैश्विक मुखपत्र थे। उपभोक्ता समाज के नाकामयाबियों को अपने हाथों से मरोड़ते हुए, जिसपर कईबार वे चौंकानेवाले विस्तृत विवरण देते हैं, वे व्यवहार में कुछ भी लागू करने से इनकार करते हैं क्योंकि इसके पीछे उनका मानना है कि इन बीमारियों का समाजवादी इलाज इनसे भी ज्यादा खतरनाक है।
* यह लेख एक विस्तृत विश्लेषण को आगे बढ़ाता है और विकसित करता है जिसके व्यापक संदर्भ आगे यहां दिए गए दावों का समर्थन करते हैं: गेब्रियल रॉकहिल, डोमिनेशन एंड इमैन्सिपेशन : रीमेकिंग क्रिटिक में "क्रिटिकल एंड रिवोल्यूशनरी थ्योरी", संपा। डेनियल बेन्सन (लंदन: रोमन एंड लिटिलफ़ील्ड इंटरनेशनल, 2021)। मैं उन मित्रों और सहकर्मियों का बहुत आभारी हूं जिन्होंने इस लेख के पहले के मसौदे पर महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया प्रदान की, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने कुछ तर्कों के बारे में आपत्तियां व्यक्त कीं (जिनके लिए मैं पूरी जिम्मेदारी स्वीकार करता हूं): लैरी बस्क, हेल्मुट-हैरी लोवेन, जेनिफर पोंस डे लियोन, साल्वाडोर रंगेल, और यवेस विंटर।
गेब्रियल रॉकहिल एक दार्शनिक, सांस्कृतिक आलोचक और राजनीतिक सिद्धांतकार हैं। वह विलानोवा विश्वविद्यालय और ग्रेटरफोर्ड प्रिजन में पढ़ाते हैं, और वह सोरबोन में क्रिटिकल थ्योरी कार्यशाला का निर्देशन करते हैं। उनकी हालिया पुस्तकों में काउंटर-हिस्ट्री ऑफ द प्रेजेंट (2017), इंटरवेंशन इन कंटेम्परेरी थॉट (2016) और रेडिकल हिस्ट्री एंड द पॉलिटिक्स ऑफ आर्ट (2014) शामिल हैं।
टिप्पणी
[1] “क्रिटिकल एंड रिवोल्यूशनरी थ्योरी” में युरगेन हेबरमास, एक्सेल ओनेथ और नैंसी फ्रेजर पर मेरा विश्लेषण देखें।
[2] उदाहरण के लिए देखें थॉमस डब्ल्यू। ब्रैडेन, “आई एआईएम ग्लैड दैट सीआईए इज इम्मोरल,’” सैटरडे इवनिंग पोस्ट (मई 20, 1967)। इस तथ्य को मद्दे-नजर रखते हुए कि डब्ल्यू। डब्ल्यू। रॉस्टो ने सीआईए के डिप्टी डायरेक्टर रिचर्ड हेम्स के जरिये ब्रैडेन के निबंध को प्रकशित होने से पहले ही अमरीकी राष्ट्रपति के पास भेजा था, ज्यादा सम्भावना है कि इसे ही सीआईए “सीमित वितरण” कहता हो। जैसा कि सीआईए का पूर्वकार्यकारी सहायक और डिप्टी डायरेक्टर विक्टर मर्चेत्ति ने व्याख्या की थी कि सीमित वितरण का मतलब एक तरह का जनसम्पर्क कौशल है जो गुप्त रूप से काम करने वाले पेशेवर इस्तेमाल करते हैं – “ऐसे काम करने वालों का जब नकाब उतर जाता है या अब ऐसी स्थिति नहीं रहती कि वे झूठा मुख्य निबंध लिखकर जनता को गुमराह कर सके तब वे अपने करतूत कबूल करने पर उतर आते हैं, कई बार स्वैच्छिक रूप से भी, कुछ सच्चाई उछाल देते हैं जबकि उस मुद्दे का सत्ता के लिए सबसे खतरनाक सच को छिपाए रखते हैं। हालांकि जनता में इतने में ही खलबली मच जाती है और वे इससे आगे छानबीन करने का नहीं सोचते हैं।” (“सीआईए टू एडमिट हंट इन्वोल्वमेंट इन कैनेडी स्लेयिंग,” द स्पॉटलाइट, अगस्त 14, 1978) https://archive।org/details/marchetti-victor-cia-to-admit-hunt-involvement-in-kennedy-slaying-the-spotlight-aug।-14-1978/mode/2up)।
[3] देखें गेब्रियल रॉकहिल, रेडिकल हिस्ट्री एण्ड द पॉलिटिक्स ऑफ़ आर्ट (न्यू यॉर्क: कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रेस, 2014), पृष्ठ 207-8 और गिल्स स्कॉट-स्मिथ, “द कांग्रेस फॉर कल्चरल फ्रीडम, द एंड ऑफ़ आइडियोलॉजी, एंड द मिलान कांफ्रेंस ऑफ़ 1955: ‘देफिनिंग द पैरामीटर्स ऑफ़ डिस्कोर्स,’” जर्नल ऑफ़ कंटेम्पररी हिस्ट्री, खण्ड 37 अंक 3 (2002): पृष्ठ 437-455। इंस्टिट्यूट फॉर सोशल रिसर्च की पेरिस शाखा ने रेमू आरों के साथ घनिष्ठ सहयोग किया था, जो फ़्रांसिसी जनता के लिए उपयुक्त साहित्य प्रकाशन के लिए जिम्मेदार थे। (देखें थियोडोर अडोर्नो और मैक्स होर्खाइमर, पत्राचार: 1927-1969, खण्ड 1, सम्पादक क्रीस्तोफ गुड और आंरी लोनितज़, अनुवाद दिदिये रेनॉ (पेरिस: क्लिंकसिक: 2016), पृष्ठ 146। मैं यहाँ फ़्रांसिसी संस्करण का हवाला दे रहा हूँ चूँकि जहाँ तक मुझे पता है अब तक अडोर्नो-होर्खाइमर का सम्पूर्ण पत्राचार अंग्रेजी में उपलब्ध नहीं है।) दूसरे विश्व युद्ध के बाद आरों सीसीऍफ़ के दार्शनिक चेहरा बनकर उभरे जिनकी जनता में उपस्थिति को सीआईए ने हर तरीके से बढ़ावा दिया था।
[4] यहाँ “ऑपरेटिव” से मेरा मतलब है कि लास्की अपने खर्चीले कम्युनिस्ट-विरोधी प्रचार युद्ध में सीआईए तथा अमरीकी सरकारी दफ्तरों के साथ घनिष्ठ रूप से मिलकर काम करते थे, लेकिन वे खुद सीआईए के कर्मचारी नहीं थे (जहाँ तक मुझे पता है उनके कर्मचारी होने का कोई सत्यापन नहीं हुआ है)। सीआईए और दूसरे दफ्तरों के साथ मिलकर लास्की का काम करना बहुत सारे अंदरूनी दस्तावेजों तथा फ्रांसिस स्तोनोर सौन्डर्स, माइकल हॉकगेवेंदे, ह्यू विल्फोर्ड और पीटर कॉलेमन आदि के शोधकार्यों से साबित होता है। लास्की और अडोर्नो के बीच कुछ पत्राचार थियोडोर अडोर्नो और मैक्स होर्खाइमर, पत्राचार: 1927-1969, खण्ड 1-4, सम्पादक क्रीस्तोफ गुड और आंरी लोनितज़, अनुवाद दिदिये रेनॉ (पेरिस: क्लिंकसिक: 2016) में उपलब्ध है।
[5] देखें अडोर्नो और होर्खाइमर, पत्राचार, खण्ड 3, पृष्ठ 291।
[6] देखें अडोर्नो और होर्खाइमर, पत्राचार, खण्ड 3, पृष्ठ 348।
[7] देखें माइकल हॉकगेवेंदे, फ्राईहाईट इन देर ऑफेंसिव? देर कोनेग्राब फुर कुल्तुरुले फ्राईहाइट उएन दी दाई दोय्चेने (म्युनिक: आर। ओल्देनबुर्ग वेरलग, 1998), पृष्ठ 488।
[8] हॉकगेवेंदे, फ्राईहाईट इन देर ऑफेंसिव?, पृष्ठ 563।
[9] देखें, उदाहरण के लिए मिनकी ली, “द 21स्ट सेंचुरी: इज देयर ऐन अल्टरनेटिव (टू सोशलिज्म)?” साइंस एण्ड सोसाइटी 77:1 (जनवरी 2013): पृष्ठ 10-43; विसेंते नावारो, “हैज सोशलिज्म फेल्ड? ऐन एनालिसिस ऑफ़ हेल्थ इंडीकेटर्स अंडर कैपिटलिज्म एंड सोशलिज्म,” साइंस एण्ड सोसाइटी 57:1 (स्प्रिंग 1993): पृष्ठ 6-30। ट्राईकॉन्टिनेंटल ने वास्तव में विद्यमान समाजवाद और इसके साथ पूँजीवाद की तुलना पर गहरा विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
[10] जॉन अबरोमाईट, मैक्स होर्खाइमर एंड द फाउंडेशन्स ऑफ़ द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल (कैंब्रिज, इंग्लैंड: कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 2011), पृष्ठ 42।
[11] थॉमस वीटलैंड, द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल इन एक्जाइल (मिनेपोलिस: यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेपोलिस प्रेस, 2009), पृष्ठ 24; इंगर सॉल्टी, “मैक्स होर्खाइमर, अ टीचर विदाउट अ क्लास,” जेकोबीन (फरवरी 15, 2020) ; वीटलैंड, द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल इन एक्जाइल, पृष्ठ 13।
[12] पैरी एंडरसन, कंसिडरेशंस ऑन वेस्टर्न मार्क्सिजम (लन्दन: वर्सो, 1989), पृष्ठ 33; स्टीवन म्युलर-दूह्म, अदोर्नों: अ बायोग्राफी, अनुवाद रॉडनी लिविंगस्टोन (कैंब्रिज: पोलिटी प्रेस, 2005), पृष्ठ 94।
[13] एंडरसन, कंसिडरेशंस ऑन वेस्टर्न मार्क्सिजम, पृष्ठ 33।
[14] रॉल्फ विगर्सहाउस, द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल: इट्स हिस्ट्री, थ्योरीज, एंड पॉलिटिकल सिग्निफिकेंस, अनुवाद माइकल रोबर्टसन (कैंब्रिज, एमए: एमआईटी प्रेस, 1995), पृष्ठ 104।
[15] अबरोमाईट, मैक्स होर्खाइमर, पृष्ठ 105। अगर होर्खाइमर ने सोवियत संघ पर होशियारी से थोड़ा-बहुत रखा भी था तो 1930 के दशक की शुरुआत में वह गायब हो गया था और “1950 के बाद होर्खाइमर ने इस तरह पश्चिम में उदारवादी लोकतांत्रिक राजनीतिक परम्परा का बचाव करना शुरू किया जो...।एकांगी था।” (इसी किताब का पृष्ठ 181 देखें)।
[16] होर्खाइमर ने दावा किया कि “आलोचनात्मक सिद्धान्त अधिनायकवादी प्रचार की तरह जनता में ‘मजबूत जड़’ जमाये हुए है और न ही उदारवादी बुद्धिजीवियों की तरह उनसे कटा हुआ है” (मैक्स होर्खाइमर, क्रिटिकल थ्योरी: सिलेक्टेड एसेज, अनुवाद मैथ्यू जे। ओ’कांनेल और अन्य (न्यू यॉर्क: कंटिन्यूयम, 2002), पृष्ठ 223-4)।
[17] मैरी-जोसी लेवलली, "अक्टूबर एंड द प्रॉस्पेक्ट्स फॉर रेवोल्यूशन: द व्यूज ऑफ एरेन्ड्ट, एडोर्नो, एंड मार्क्यूज़," द रशियन रिवोल्यूशन एज़ आइडियल एंड प्रैक्टिस: फेल्योर्स, लेगेसीज़, एंड द फ्यूचर ऑफ़ रेवोल्यूशन , संस्करण। थॉमस टेलिओस एट अल। (चैम, स्विट्जरलैंड: पालग्रेव मैकमिलन, 2020), पृष्ठ 173।
[18] गिल्लियन रोज, द मेलनकोली साइंस: अन इंट्रोडक्शन टू द थॉट ऑफ़ थियोडोर डब्ल्यू। अडोर्नो (न्यू यॉर्क: कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रेस, 1978), पृष्ठ 2।
[19] विगर्सहाउस, द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल, पृष्ठ 133। सॉल्टी, “मैक्स होर्खाइमर, अ टीचर विदाउट अ क्लास” और रोज, द मेलनकोली साइंस, पृष्ठ 2 भी देखें।
[20] म्युलर-दुहम, अडोर्नो, पृष्ठ 181।
[21] म्युलर-दुहम, अडोर्नो, पृष्ठ 181। म्युलर-दुहम लिखते हैं कि “1930 के दशक के मध्यभाग में ही यहाँ तक कि उनके निजी पत्रों में भी हमें सामान्यीकृत, निराशावादी मिजाज के चित्रण के अलावा कुछ नहीं मिलता, और राजनीतिक स्थिति के बारे में दिये गये वक्तव्यों में अस्पष्टता की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।”
[22] एंडरसन, कंसिडरेशंस ऑन वेस्टर्न मार्क्स्सिज्म, पृष्ठ 33। थॉमस वीटलैंड व्याख्या करते हैं कि न्यू यॉर्क का होर्खाइमर सर्किल ने “उस समय की सबसे बड़ी राजनितिक घटनाओं पर चुप रहना और अपने मार्क्सवाद को छुपाना सही समझा...।होर्खाइमर लगभग पूरी तरह राजनीतिक शिरकत के प्रतिक्रिया के जोखिम उठाने और यहाँ तक कि उस जमाने के बड़े मुद्दों पर चर्चा करने से बचते रहे।” (द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल इन एक्जाइल (मिनेपोलिस: यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेपोलिस प्रेस, 2009), पृष्ठ 99)।
[23] देखें स्टुअर्ट जेफ्फ्रिज, ग्रैंड होटल अबीस: द लाइव्स ऑफ़ द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल (लन्दन: वर्सो, 2017), पृष्ठ 72 और 197।
[24] देखें वीटलैंड, द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल इन एक्जाइल, पृष्ठ 72 (141 भी)।
[25] जेफ्फ्रिज, ग्रैंड होटल अबीस, पृष्ठ 136। ब्रेख्त इस बात पर अड़े रहे कि “फ़्रंकफ़र्ट स्कूल एक ही साथ एक मार्क्सवादी संस्थान की तरह खुद को पेश करके और दूसरी ओर इस बात पर जोर देते हुए कि अब क्रान्ति मजदूर वर्ग की विद्रोह पर निर्भर नहीं है और पूँजीवाद को उखाड़ फेंकने में सक्रीय भागीदारी करने से इनकार करके बुर्जुआ जादूगरी का खेल दिखा रहा है।” (जेफ्फ्रिज, ग्रैंड होटल अबीस, पृष्ठ 77)।
[26] उलरिख फ्राइज, “एनदे देर लीजेंद: हिन्टरग्रुंदे जू वाल्टर बेन्जमिंस टॉड,” द जर्मनिक रिव्यु: लिटरेचर, कल्चर, थ्योरी 96:4 (2021), पृष्ठ 421-22 में इसका हवाला दिया गया है। मैं हेलमुट-हैरी लोवेन को शुक्रिया अदा करना चाहूँगा इस निबंध की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए और इसका आंशिक अनुवाद मुझसे साझा करने के लिए।
[27] उलरिख फ्राइज, “एनदे देर लीजेंद,” पृष्ठ 422 में हवाला दिया गया है।
[28] जनवरी 26, 1936 पर होर्खाइमर को लिखी अडोर्नो की चिट्ठी देखें। अडोर्नो और होर्खाइमर, पत्राचार, खण्ड 1, पृष्ठ 110।
[29] अडोर्नो और होर्खाइमर के बीच पत्रव्यवहार संवाद देखिये रोनाल्ड टेलर सम्पादित एस्थेटिक्स एंड पॉलिटिक्स (लन्दन: वर्सो, 1977), पृष्ठ 100-141 में।
[30] उलरिख फ्राइज, “एनदे देर लीजेंद,” पृष्ठ 409 में हवाला दिया गया है।
[31] उलरिख फ्राइज, “एनदे देर लीजेंद,” पृष्ठ 409,422 में।
[32] उलरिख फ्राइज, “एनदे देर लीजेंद,” पृष्ठ 414 में।
[33] उलरिख फ्राइज, “एनदे देर लीजेंद,” पृष्ठ 410 में हवाला दिया गया है।
[34] जैक जकोब्स, द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल, जीविश लाइव्स, एंड एंटीसेमिटिजम (कैंब्रिज, इंग्लैंड: कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 2014), पृष्ठ 59-60 में उद्धृत।
[35] टॉड क्रोनन, रेड एस्थेटिक्स: रोद्चेंको, ब्रेख्त, आइंस्टीन (लेनहैम, मेरीलैंड: रोमैन एण्ड लिटिलफील्ड पब्लिशर्स, 2021), पृष्ठ 132।
[36] क्रोनन, रेड एस्थेटिक्स, पृष्ठ 151 में हवाला दिया गया है।
[37] जीविश लेबर कमेटी के नेतृत्व के बारे में देखिये कैथरीन कोल्लोम्प, “एंटी-सेमिटिजम अमोंग अमेरिकन लेबर’: अ स्टडी बी द रिफ्यूजी स्कॉलर्स ऑफ़ द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल ऑफ़ सोशियोलॉजी ऐट द एंड ऑफ़ वर्ल्ड वार टू,” लेबर हिस्ट्री 52:4 (नवम्बर 2011): पृष्ठ 417-39। सीआईए के साथ द्युबीन्सकी के काम के बारे में देखिये सीआईए की ऍफ़ओआईए इलेक्ट्रॉनिक रीडिंग रूम में उपलब्ध दस्तावेज तथा ह्यू विल्फोर्ड, द माइटी वुर्लित्ज़र: हाउ द सीआईए प्लेड अमेरिका (कैंब्रिज, एमए: हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2008) और फ्रांसिस स्टोनर सौन्ड़र्स, द कल्चरल कोल्ड वार: द सीआईए एंड द वर्ल्ड ऑफ़ आर्ट्स एंड लेटर्स (न्यू यॉर्क: द न्यू प्रेस, 1999)।
[38] देखें डेविड जीनमैन, अडोर्नो इन अमेरिका (मिनेपोलिस: यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेपोलिस प्रेस, 2007), पृष्ठ 181-2।
[39] देखें अदोर्नों के बारे में ऍफ़बीआई का फाइल vault।fbi।gov
[40] देखें अदोर्नों के बारे में ऍफ़बीआई का फाइल vault।fbi।gov
[41] एंडरसन, कंसिडरेशंस ऑन वेस्टर्न मार्क्सिज्म, पृष्ठ 34।
[42] जेफ्रीज, ग्रैंड होटल अबीस, पृष्ठ 297। हमें याद करना चाहिए कि हेबरमास खुद हिटलर युवा वाहिनी के सदस्य थे और फारस की खाड़ी युद्ध तथा यूगोस्लाविया में नाटो के हस्तक्षेप का समर्थन किया था।
[43] हेबरमास और मार्क्सवाद के खिलाफ होर्खाइमर की शिकायत के लिए अडोर्नो को लिखी सितम्बर 27, 1958 को लिक्खी चिट्ठी देखिये अडोर्नो एंड होर्खाइमर, पत्राचार, खण्ड 4, पृष्ठ 386-399।
[44] विगर्सहाउस, द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल, पृष्ठ 554 में उद्धृत।
[45] जीनमैन, अडोर्नो इन अमेरिका, पृष्ठ 182।
[46] क्रिस्टोफर सिम्पसन, साइंस ऑफ़ कोएरशन: कम्युनिकेशन रिसर्च एंड साइकोलॉजिकल वारफेयर 1945-1960 (ऑक्सफ़ोर्ड: ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1996), पृष्ठ 4।
[47] विगर्सहाउस, द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल, पृष्ठ 397।
[48] जॉन लॉफ्टस, अमेरिका’ज नाज़ी सीक्रेट (वाल्टरवील, ओआर: ट्राईन डे, एलएलसी, 2011), पृष्ठ 228।
[49] विगर्सहाउस, द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल, पृष्ठ 434 में देखें।
[50] विगर्सहाउस, द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल, पृष्ठ 479।
[51] देखें रॉबर्ट एस। विस्त्रीच, हु’ज हु इन नाज़ी जर्मनी (न्यू यॉर्क: रुत्लेज, 2001), पृष्ठ 281।
[52] जीनमैन, अडोर्नो इन अमेरिका, पृष्ठ 184 में हवाला दिया गया है। अडोर्नो खुद के बारे में अपनी ही स्वीकारोक्ति में कहा है कि “फ़्रंकफ़र्ट विश्वविद्यालय में इंस्टिट्यूट फॉर सोशल रिसर्च (इस तरह ही) एचआईसीओजी के मदद से और भारी मात्रा में अमरीकी संसाधन के मदद से स्थापित किया गया था। इन संस्थान का मकसद है अमरीकी और जर्मन शोध पद्धतियों को समेकित करना और जर्मन छात्रों की शिक्षा में अमरीकी लोकतंत्र भावना का सहारा लेना” (जीनमैन, अडोर्नो इन अमेरिका, पृष्ठ 184)।
[53] विगर्सहाउस के अनुसार “होर्खाइमर न तो पॉल तिलिख की तरह समाजवाद का बचाव करते थे या, न ही ह्यूगो सिन्ज़्हेइमेर या हेरमान हेलर की तरह प्रतिबद्ध जनवादी तथा नाज़ीवाद के घोषित विरोधी थे” (द फ़्रंकफ़र्ट स्कूल पृष्ठ 112)। आदेनाउआर के बारे में देखें रॉकहिल, “क्रिटिकल एंड रिवोलुशनरी थ्योरी,” तथा फिलिप एजी और लुइ वुल्फ , डर्टी वर्क: द सीआईए इन द वेस्टर्न यूरोप (न्यू यॉर्क: डॉर्सेट प्रेस। 1978)।
[54] वुल्फगंग क्राउशार सम्पादित फ्रैंकफुर्टर शुले आंद स्तुदेंतेनबिवीगंग: फन देर फल्शोंपोस्त ज़ूम मोलोटवकॉकटेल 1946-1995, खण्ड 1: क्रोनिक (हम्बुर्ग: रोगनर & बर्नहर्ड जीएम्बीएच एण्ड कम्पनी वरलाग्स केजी, 1998), पृष्ठ 252-3।
[55] देखें विलियम ब्लूम, किलींग होप: यूएस मिलिट्री एंड द सीआईए इंटरवेंशन्स सिंस वर्ल्ड वर टू (लन्दन: जेड बुक्स, 2014)।
[56] जेफ्रीज, ग्रैंड होटल अबीस, पृष्ठ 297 में उद्धृत।
[57] वी। आई। लेनिन, रचना समग्र, खण्ड 22, (मास्को: प्रोग्रेस पब्लिशर्स, 1966), पृष्ठ 309।
[58] कम्युनिस्टों को नस्ली दुश्मन बनाकर पेश करना कम्युनिस्ट-विरोधी विचारधारा का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है जैसा कि डोमिनिक लुसार्दो ने व्याख्या की है वार एंड रेवोलुशन किताब में (अनुवाद ग्रेगोरी इलियट; लन्दन: वर्सो, 2015)।
[59] थियोडोर अडोर्नो और मैक्स होर्खाइमर, “एक नयी घोषणापत्र की ओर?” न्यू लेफ्ट रिव्यु 65 (सितम्बर-अक्टूबर 2019), पृष्ठ 49।
[60] थियोडोर अडोर्नो और मैक्स होर्खाइमर, “एक नयी घोषणापत्र की ओर?” पृष्ठ 59।
[61] थियोडोर अडोर्नो और मैक्स होर्खाइमर, “एक नयी घोषणापत्र की ओर?” पृष्ठ 59।
[62] थियोडोर अडोर्नो और मैक्स होर्खाइमर, “एक नयी घोषणापत्र की ओर?” पृष्ठ 57।
[63] थियोडोर अडोर्नो और मैक्स होर्खाइमर, “एक नयी घोषणापत्र की ओर?” पृष्ठ 57, 59।
[64] थियोडोर अडोर्नो और मैक्स होर्खाइमर, “एक नयी घोषणापत्र की ओर?” पृष्ठ 41। होर्खाइमर ने भी इसी तरह का कम्युनिस्ट-विरोधी और पूँजीवाद-परस्त सोच को कई मौके पर व्यक्त किया था। उदाहरण के लिए 27 सितम्बर, 1958 पर अडोर्नो का लिखा एक लम्बे ख़त में उन्होंने दावा किया कि “क्रान्ति का मतलब वाकई दहशत से गुजरना है” और जाहिर किया कि असल में “बुर्जुआ सभ्यता के उस अवशेष जिसमें अब भी निजी स्वतंत्रता और सही समाज की अवधारणा का महत्व है” का बचाव करना चाहिए (अडोर्नो और होर्खाइमर, पत्राचार: 1927-1969, खण्ड 4, पृष्ठ 395)। दूसरे उदाहरण की बात करें तो 1968 में उन्होंने काफी बेझिझक होकर अपनी प्रति-क्रान्तिकारी रुझान को सबके सामने रखा था – “मुझे लगता है कि सच्चाई की खातिर आज खुलेआम घोषणा करनी चाहिए कि एक संदिग्ध लोकतंत्र भी अपनी कमियों के साथ हमेशा ही किसी तानाशाही से बेहतर है जो आज एक क्रान्ति का अनिवार्य परिणाम होगा” (होर्खाइमर, क्रिटिकल थ्योरी, भूमिका)। “आदिम बर्बर पूरब” के बारे में होर्खाइमर की तिरस्कार को याद करते हुए स्टेफन म्युलर-दुहम ने अडोर्नो की 700 पन्ने की जीवनी में लिखा “तथाकथित ईस्टर्न ब्लॉक यानी सोवियत संघ ही नहीं बल्कि साम्यवादी चीन के मूल्यांकन के मामले में भी अडोर्नो और होर्खाइमर सहमत थे” (पृष्ठ 415)। उपनिवेशवाद के मुद्दे पर होर्खाइमर ने अडोर्नो को लिखा कि “उपनिवेशवादी जमाने में स्थायी श्रेष्ठता का यूरोपीय सपना” अगर “घिनौना” था भी, कमोबेश इसके कुछ “अच्छे पहलू भी” थे (अडोर्नो और होर्खाइमर पत्राचार: खण्ड 4, पृष्ठ 466)।
[65] मैक्स होर्खाइमर, “द ऑथरिटेरियन स्टेट,” टेलोस 15 (बसन्त 1973):16।
[66] देखें दोमिनिको लुसर्दो, एल मार्क्सिज्मो ऑक्सीदेन्ताल: कोमो नासियो, कोमो मुरियो यि कोमो पुएदे रेसिऊसितर, अनुवाद अलेहांद्रो गार्सिया मायो (मद्रीद: एडिटोरियल त्रोत्ता, 2019)। यह किताब इतालवी भाषा में लिखी गयी है जिसका अंग्रेजी अनुवाद 1804 बुक्स प्रकाशन के लिए स्टीवन कोलात्रेला कर रहे हैं।
[67] मैक्स होर्खाइमर, गेसामेलते श्रीफ्तेन, सम्पादक अल्फ्रेड श्मिड्ट और गुन्ज़ेलिन श्मिड नोयर, खण्ड 18 (फ़्रंकफ़र्ट मेन: एस। फिशर, 1985), पृष्ठ 73। म्युलर-दुहम, अडोर्नो, पृष्ठ 334 भी देखें। अडोर्नो जुझारू कम्युनिस्ट-विरोधी और सीआईए सहयोगी आर्थर कोएस्टलर की राय से भी खुलेआम सहमति जताने तक भी पहुँच गये और लिखा “साम्यवाद एक “दक्षिणपन्थी पार्टी” बन गया है (जो कोस्टलर ने चिन्हित किया था) और ...... यह खुद को रूसी साम्राज्यवाद के साथ एकीकृत कर चुका है” (अडोर्नो और होर्खाइमर, पत्राचार, खण्ड 4, पृष्ठ 655)।
[68] सीआईए की ऍफ़ओआईए इलेक्ट्रॉनिक रीडिंग रूम में यह दस्तावेज देखिये। www।cia।gov इस दस्तावेज पर ध्यान आकर्षित करने के लिए मैं कॉलिन बॉडयेल का शुक्रिया अदा करना चाहूँगा।
[69] थियोडोर अडोर्नो, क्रिटिकल मॉडल्स: इंटरवेंशन्स एंड कैचवर्ड्स, अनुवाद हेनरी डब्ल्यू। पिकवुड (न्यू यॉर्क: कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रेस, 2005), पृष्ठ 94।
[70] अडोर्नो, क्रिटिकल मॉडल्स, पृष्ठ 94।
[71] अडोर्नो, क्रिटिकल मॉडल्स, पृष्ठ 94।
[72] म्युलर-दुहम, अडोर्नो, पृष्ठ 438।
[73] म्युलर-दुहम, अडोर्नो, पृष्ठ 438।
[74] म्युलर-दुहम, अडोर्नो, पृष्ठ 438।
[75] वी। आई। लेनिन, रचना समग्र, खण्ड 16 (मास्को: प्रोग्रेस पब्लिशर्स, 1977), पृष्ठ 332।
[76] वी। आई। लेनिन, रचना समग्र, पृष्ठ 332।
[77] जैसा कि मैंने “क्रिटिकल एंड रेवोलुशनरी थ्योरी” में तर्क दिया है कि छात्रों की तरफ से किया गया यह मूल्यांकन बिलकुल सही था।
[78] अडोर्नो, क्रिटिकल मॉडल्स, पृष्ठ 297। अडोर्नो की निष्क्रियता का कार्रवाई के सबसे बेहतर रूप होने के बारे में चतुराई भरी द्वंदात्मक प्रशंसा छात्रों के विरोध के बारे में मार्कुज के साथ उनके पत्राचार में बार-बार सामने आया है – “हमने अपने समय की परेशानियों को झेला है। तुम्हे तो, मुझसे कहीं कम नहीं, बल्कि उससे भी खतरनाक हालत झेलनी पड़ी है कि यहूदियों का कत्ल, बिना कार्रवाई में उतरे ही। चूँकि तब कार्रवाई में उतरने का रास्ता हमारे लिए बंद था ...। सीधे शब्दों में कहा जाये तो मुझे लगता है कि तुम वियतनाम या बिअफ्रा में जो भी हो रहा है उसके विरोध में इन छात्रों की खिलवाड़बाजी में शिरकत न कर पाने की सोच से खुद को भ्रमित कर रहे हो। अगर तुम्हारी असली प्रतिक्रिया यही है तो फिर तुम्हे सिर्फ नापाम बमों की त्रासदी का विरोध नहीं बल्कि स्थायी रूप से जारी वियतकांग की चीनी तरीके का अकथ्य अत्याचार का भी विरोध करना चाहिए।” (अडोर्नो और मार्कुज, “कोरेस्पोंडैन्स ऑन द जर्मन स्टूडेंट मूवमेंट,” न्यू लेफ्ट रिव्यु 233 (जनवरी-फरवरी 1999), पृष्ठ 127)। दूसरी जगहों में भी उन्होंने इसी तरह की बात रखी जैसा कि 1969 में लिखी उनकी “रेजिग्नेशन” जहाँ उन्होंने किसी भी तरह की कार्रवाई के किसी भी रूप के बजाय “सोच में काल्पनिक पल” का जश्न मनाया – “वास्तव में एक समझौता न करने वाला आलोचनात्मक चिन्तक वह है जो न अपना होश खोता है और न ही कार्रवाई के लिए बेचैन होता है, बल्कि वह किसी के सामने खुद को समर्पित नहीं करता है...।। चिंतन दरअसल प्रतिरोध की ताकत है” (अडोर्नो, क्रिटिकल मॉडल्स, पृष्ठ 293)।
[79] अडोर्नो, क्रिटिकल मॉडल्स, पृष्ठ 268।
[80] अडोर्नो, क्रिटिकल मॉडल्स, पृष्ठ 268।
[81] सीआईए की कांग्रेस फॉर कल्चरल फ्रीडम और एमआई6 की इनफार्मेशन रिसर्च डिपार्टमेंट के गिरोहों में कोस्टलर एक बड़ी हस्ती था।
[82] एस्तेर लेस्ली, “इंट्रोडक्शन टू अडोर्नो/मार्कुज कोरसपोंडैन्स ऑन द जर्मन स्टूडेंट्स मूवमेंट,” न्यू लेफ्ट रिव्यु 233 (जनवरी-फरवरी 1999), पृष्ठ 119 और क्राऊशार, फ्रैंकफुर्टर शुले उन्द स्तुदेंतेबिवेगंग, खण्ड 1, पृष्ठ 374।
[83] क्राऊशार, फ्रैंकफुर्टर शुले उन्द स्तुदेंतेबिवेगंग, खण्ड 1, पृष्ठ 398। क्राह्ल ही उसी रात जेल से न रिहा होने वाले एक मात्र आन्दोलनकारी थे और अडोर्नो ने शिकायत वापस लेने का दबाव रहने के बावजूद उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करने का फैसला किया था, जैसा उन्होंने 1964 में छात्रों के एक समूह स्तुदेंत ऐकतिओन के खिलाफ किया था।
[84] बर्तोल्त ब्रेख्त, नाटक समग्र: छः, सम्पादक जॉन विल्लेट और राल्फ मैनहाईम (लन्दन: रैंडम हाउस, 1998), पृष्ठ 189।
[85] ब्रेख्त, नाटक समग्र: छः, पृष्ठ 145।
मूल रूप से प्रकाशित: द फिलॉसॉफिकल सैलून, 27 जून, 2022 को गेब्रियल रॉकहिल द्वारा ( द फिलॉसॉफिकल सैलून द्वारा) ( 06 जुलाई, 2022 को पोस्ट किया गया)
अनुवाद : अमित इकबाल
साभार: https://mronline।org/2022/07/06/the-cia-the-frankfurt-schools-anti-communism/
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