अनियतकालीन बुलेटिन

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बेरोजगारों पर प्रयागराज में बरसी पुलिस की लाठियाँ

(प्रयागराज में तैयारी कर रहे छात्रों की आपबीती पर ग्राउंड रिपोर्ट)

24 जनवरी 2022 को पुलिस द्वारा बेरोजगारी का दंश झेल रहे छात्रों की बर्बर पिटाई पूरे देश ने देखी। देश भर में इसके लिए शासन–प्रशासन तंत्र की भर्त्सना की गयी। नौजवान देश के कर्णधार कहे जाते हैं। देश की प्रगति में सार्थक ऊर्जा लगा सकते हैं। वे नौकरी के लिए ही आन्दोलन कर रहे थे, जिसके लिए उनके साथ आतंकवादियों जैसा बर्ताव किया गया। उन्हें मां–बहन की गालियाँ दी गयीं। जब गालियाँ देने पर भी वे हॉस्टल से बाहर नहीं आये तो उनके हॉस्टल के दरवाजे–खिड़कियाँ तोड़कर उन्हें बाहर निकाला गया। सड़क पर दौड़ा–दौड़ा कर बेरहमी से पीटा गया। यह कोई अंग्रेजी राज की घटना नहीं, बल्कि आजादी का अमृत महोत्सव मनाने और विश्व गुरु का दावा करने वाले समय की घटना है। इस घटना की कल्पना मात्र ही सहमा देने वाली है। सोचिए, अगर उन छात्रों की जगह आप होते तो क्या करते?

छात्र आन्दोलन के पीछे की असली वजह

सरकार जरूरत के हिसाब से भर्ती निकालने के बजाय निजीकरण करके इससे अपना पल्ला झाड रही है। रिक्त पद और नये पद इतने कम कर दिये हैं कि छोटी से छोटी नौकरी के लिए लाखों– करोड़ों फार्म जाने लगे हैं और व्यवस्था इस तरीके की बना दी है कि नौकरी में भर्ती बस लोक सभा या विधान सभा के चुनाव से पहले ही निकलेंगी।

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि हम रेलवे में दो सालों में 4 लाख से अधिक नौकरी निकालेंगे। चुनाव से पहले रेलवे ने चतुर्थ श्रेणी के 1 लाख 3 हजार पद और गैर–तकनीकी लोकप्रिय श्रेणी (एनटीपीसी) के 35 हजार पदों के लिए भर्ती निकाली। इसमें कुल 2 करोड़ 40 लाख आवेदन किये गये। दोनों भर्तियों के लिए अलग–अलग परीक्षा की अलग–अलग फीस 500– 500 रुपये रखी गयी। इसमें यह भी कहा गया कि जो छात्र परीक्षा में बैठेंगे, उनके 400 रुपये वापस हो जाएँगे। 2019 का लोकसभा चुनाव खत्म हो गया। सरकार भी भूल गयी कि परीक्षा भी करवानी है। लेकिन 500– 500 रुपये का फार्म भरने वाले छात्रों को याद रहा, इसलिए समय–समय पर ट्विटर कैम्पेन चलाया गया, तब जाकर रेलवे भर्ती बोर्ड ने दो साल बाद जनवरी 2021 में एनटीपीसी की परीक्षा करवायी। फिर एक साल बाद 15 जनवरी 2022 को रिजल्ट आया। भर्ती के विज्ञापन में कहा गया था कि रिजल्ट में अभ्यार्थियों की संख्या पदों की संख्या से 20 गुना ली जाएगी। रिजल्ट में 20 गुना अभ्यार्थी नहीं लिये गये। रिजल्ट में धांधली होने के कारण छात्रों ने विरोध शुरू कर दिया। विरोध इसलिए भी तेज हो गया क्योंकि फरवरी 2022 में ही रेलवे गैर–तकनीकी लोकप्रिय श्रेणी (एनटीपीसी) की सीबीटी–2 (दूसरी परत) की परीक्षा होनी थी। यह विरोध 15 से 23 जनवरी तक धीरे धीरे बढ़ता रहा।

इसी कड़ी में 24 जनवरी को रेलवे भर्ती बोर्ड ने ग्रुप डी की परीक्षा पर एक बड़ा नोटिफिकेशन जारी किया। इसमें रेलवे बोर्ड ने बताया कि ग्रुप डी की परीक्षा अब 2 परतों (सीबीटी–1, सीबीटी–2) में पूरी होगी। विज्ञापन के समय केवल एक परत (सीबीटी–1) में परीक्षा कराने का निर्णय था। लेकिन अब चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के लिए, जिसकी योग्यता 10 वीं पास है, उसके लिए दो बार परीक्षा देनी पड़ेगी। इस घोषणा ने आग में घी की तरह काम किया। जो छात्र सालों से एक छोटी सी नौकरी के लिए समाज और परिवार के ताने सह–सहकर दुखी हो रहे थे, उनमें गुस्सा भर जाना तय था। छात्र अपने कमरों से निकलकर नजदीकी रेलवे स्टेशनों पर आन्दोलन करने लगे। छात्रों का आन्दोलन इस व्यवस्था को नहीं सुहाता। इसके बाद पुलिस ने छात्रों को दौड़ा– दौड़ाकर पीटा। 1500 अज्ञात छात्रों पर प्रशासन ने केस दर्ज किया है और कई छात्र अब भी जेल में बन्द हैं।

छात्रों की आपबीती उन्हीं की जुबानी

वैसे तो मैं भी प्रयागराज में तैयारी करने वाला एक नौजवान हूँ। तैयारी करनेवाले नौजवानों की तकलीफें पूरे देश में एक जैसी हैं। इसलिए मैंने अपना दर्द बताने के बजाय प्रयागराज में तैयारी कर रहे छात्रों की हालत समझने के लिए उनसे मिलकर रिपोर्ट तैयार की।

24 जनवरी को पुलिस ने जिन छात्रों की पिटाई की, उसमे से जीतेन्द्र (बदला हुआ नाम) एक हैं। इनकी उम्र 28 वर्ष है। ये कुंडा कस्बा, जिला प्रतापगढ़ के रहने वाले हैं। प्रयागराज के छोटा बघाड़ा इलाके में 10 गुणा 10 फिट के कमरे में एक पार्टनर के साथ रहते हैं। कमरे का किराया 2800 रुपये है। एक के हिस्से में 1400 रुपये आता है। राशन में गेहूँ और चावल घर से लाते हैं। साग–सब्जी, दाल, तेल इत्यादि का महीने का खर्च 4000 के आस–पास आ जाता है। दोनों पार्टनर ने मिलकर एक बड़े सिलिंडर का इन्तजाम कर लिया था, लेकिन पैसे की तंगी की वजह से एक साथ पूरा भरा सिलिंडर नहीं खरीद पाते। इसलिए कभी 3 किलो तो कभी 4 किलो भरवाकर काम चलाते हैं। जीतेन्द्र अभी बीएड कर रहें और एक इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की पढ़ाई पूरी करके 2 साल पहले प्रयागराज में यूपीएससी की तैयारी करने का सोचकर आये थे, लेकिन यहाँ के हालात देखकर, कोई भी नौकरी मिल जाये, यह सोचकर सभी परीक्षा देते हैं। जीतेन्द्र कहते हैं, “इस उम्र में घर–समाज का ज्यादा दबाव है, इसलिए कोई भी नौकरी मिल जाए यह मंजूर है। मेरी उम्र ज्यादा हो गयी है। इस उम्र में परिवार पर बोझ बनना सही नहीं है। इसलिए कोई भी नौकरी मिल जाए, बस!” जीतेन्द्र के ही लॉज और उसके आस पास के लॉज में पुलिस ने सबकी पिटाई की थी। इसके वे भी भुक्तभोगी हैं। उस दिन क्या हुआ था मैं उन्हीं की जुबानी लिख रहा हूँ।

जीतेन्द्र ने बताया कि “बिहार में कई दिनों से आरआरबी, एनटीपीसी के परिणाम में धाँधली को लेकर आन्दोलन चल रहा था। वैसे आरआरबी एनटीपीसी की तैयारी करने वाले छात्रों में गुस्सा पहले से ही था। लेकिन जब आरआरबी ने ग्रुप–डी की 2 टियर में परीक्षा का नोटिफिकेशन जारी किया, उसी दिन प्रयाग जंक्शन के आसपास के लड़के इकट्ठा होकर प्रोटेस्ट करने लगे– लड़के गुस्से में थे, इसलिए नारेबाजी करते हुए प्रयाग जंक्शन पर इकट्ठा हो रहे थे। हजार–दो हजार लड़के इकट्ठा हुए होंगे। एक दो ट्रेनें रोक दी। प्रशासन के किसी भी व्यक्ति ने छात्रों से सवाल नहीं किया कि क्या समस्या है? आन्दोलन क्यों हो रहा है? बस रेलवे ट्रैक खाली करने के लिए लड़कों को कहा गया। लड़के नहीं हटे तो उन पर लाठीचार्ज कर दिया गया। सभी लड़के रेलवे ट्रैक से होते हुए स्टेशन से थोड़ी दूर रोड क्रासिंग की ओर भागने लगे। भागते–भागते ही कुछ लड़कों ने पुलिस पर पत्थर फेंक दिये। पुलिस ने उनको खदेड़ दिया”।

जीतेन्द्र आगे बताते हैं कि “हम विरोध प्रदर्शन में नहीं गये थे। जब सब लड़के नारेबाजी करते हुए जा रहे थे तो हम अपनी बाल्कनी में से देख रहे थे। क्योंकि मेरा आरआरबी, एनटीपीसी पहले फेज में हो गया था। जिसका सब लड़के विरोध कर रहे है। मैं बालकनी से देखने के बाद फिर अपने कमरे में चला गया। इसके 2 घंटे बाद पुलिस पूरी तैयारी के साथ आयी। अचानक से हो हल्ला होने लगा। ग्राउंड फ्लोर पर खटपट की आवाज आने लगी। कुछ लड़कों के चिल्लाने की आवाज आ रही थी तो कुछ दरवाजे तोड़ने की। यह एकदम अचानक हो रहा था इसलिए कुछ भी समझ नहीं आया कि यह क्या हो रहा है। क्या करें दरवाजा खोले कि नहीं? दरवाजा खोलने की जरूरत भी नहीं पड़ी, तब तक वो ऊपर आ गये थे। वे दरवाजे को इतना तेज तोड़ रहे थे कि अंदर से सभी कुंडियाँ ही टूट गयी। मेरे दरवाजे की कुंडी इतनी तेज छटक के आके सीधे दीवार में लगी। अगर वहाँ कोई खड़ा होता तो उसका सर फट जाता। कुंडी सीधे भारत के नक्शे पर आकर लगी (जीतेन्द्र के कमरे में चारों तरफ अलग–अलग नक्शे चिपके हैं)”।

जीतेन्द्र ने दुखी होकर काँपती आवाज में बताया कि “एक साथ इतने पुलिस वालों की लॉज में खटपट की आवाज आती है, लड़कों की सहमी–गिडगिडाती आवाज आती है और दूसरी ओर से गाली देने की आवाज आती है– मैं सहम गया था कि आखिर हो क्या रहा है! जब पुलिस वाले मेरा दरवाजा पीटने लगे मैं दरवाजे के पीछे चला गया। इसलिए मुझे मेरे दोस्तों से कम मार पड़ी। मेरे दोस्त तखत पर थे। इसलिए उन्हें सामने पाकर पाइप वाले लाठी से इतनी ज्यादा मार मारी कि वे जमीन पर लेटने लगे। वे हाथ जोड़ रहे थे कि हमने कुछ नहीं किया लेकिन वह एक भी नहीं सुन रहे थे। वे दोनों उसी दिन घर चले गये (जीतेन्द्र की आँखों में आँसू थे वे आँसू पोछ रहे थे)। यह घटना सिर्फ मेरे कमरे या मेरे लॉज की नहीं है बल्कि आस पास के जितने लॉज हैं सब में हुई है। वीडियो में जो दिखा वो तो कुछ भी नहीं है कमरे के अंदर बहुत ज्यादा मार–मार रहे थे। कमरा बन्द करके भी पीटा गया। अब तक मैं जानता था कि सरकार और प्रशासन हमारी सुरक्षा के लिए होती है। लेकिन ऐसे बर्ताव करेगी हमें इसकी यह उम्मीद नहीं थी।”

   जीतेन्द्र के साथ जो हुआ वह अभी तक घर भी नहीं बताया। घरवालों से झूठ बोल दिया कि हमारे लॉज में नहीं हुआ है। जीतेन्द्र की आँखें भरी थी। बार–बार काँपता हाथ माथे पर, चेहरे पर ले जा रहे थे। अपने हाथ में, कंधे पर लगी चोट को दिखाकर बताया, “मैंने घर भी नहीं बताया। यहीं थोड़ी दूर दोस्तों के पास दिन बिताया– कभी मन पड़ता तो कमरे पर आ जाता। यहाँ के सभी लड़के घर चले गये थे और मुझे अकेले डर भी लग रहा था। इसलिए मैं दोस्तों के पास ही रहा। दोस्तों ने हल्दी प्याज बांधी जिसके बाद घाव ठीक हो रहा है। लेकिन मुझे कई दिनों तक डर लगता रहा।”

 छात्रों के साथ इतनी वीभत्स घटना हुई इसके लिए कोई भी बड़ा या छोटा नेता दवा इलाज की तो बात छोड़ो हाल–चाल तक लेने नहीं आया। प्रियंका गाँधी ने वीडियो कॉल पर बस बात की थी। जीतेन्द्र ने ही बताया कि कोई एक पार्षद आता था, वह भी मीडिया को लेकर। उसने भी कभी हाल–चाल नहीं पूछा। नेता तो वहाँ जाते हैं जहाँ उनको वोट मिलता है। छात्र–रोजगार उनके लिए कोई मुद्दा ही नहीं है। बस धर्म की राजनीति, जाति की राजनीति, मंदिर–मस्जिद की राजनीति यही मुद्दा है। हम लोगों की इतनी पिटाई करने के बाद 6 पुलिसवालों को एक महीने के लिए सस्पेंड किया गया। यह सिर्फ एक बहकावा है, 1 महीने बाद फिर से बहाली हो जाएगी। एक साथ इतने पुलिस वाले हर लॉज में घुसकर मार रहे थे, वो क्या बिना कप्तान के आदेश के मार रहे थे?

“सारे बड़ी मार मरनै, जान बच गइल” भोजपुरी में कहते हुए नवीन उपाध्याय (बदला हुआ नाम) कमरे में आये। जहाँ मेरी और जीतेन्द्र की बात हो रही थी। नवीन की उम्र 20 वर्ष है और चंदौली जिले के रहने वाले हैं। नवीन उसी लॉज में रहते हैं जिसमें पुलिस पिटाई की वीडियो वायरल हुई थी। नवीन को अभी प्रयागराज में आये 2 साल हुए हैं। 12वीं पास करके एयरफोर्स की तैयारी करने आये थे। 2019 से अब तक एयरफोर्स की भर्ती नहीं आयी। इसलिए अब तक कोई परीक्षा भी नहीं दे पाये है। नवीन हँसमुख हैं और भोजपुरी में बात कर रहे थे। नवीन ने आपबीती बतायी “जब नीचे हल्ला–गुल्ला होत रहै त हम छते पे रहली। तबले ढेर के पुलिस हमने के लाज में घुस गइले। घुसले के बाद सारे बड़ी मार मरले। दरवाजा–तोड़ ताड़ देहने। हमरे तो कुछ समझै मैं न आवत रहै कि का करीं? अब तूहीं सोचा क्यो सुत्तल होय और चार छै जने आई के गोजी–गोजी मारे लगै त कइसन लगी? घरवां वाले वीडियवां में खिड़की–उड़की, दरवाजा–ओजा कुल तोड़त–ताड़त देखके आउर घबराए गइले, अउर कहने कि तुरन्त बस पकड़ के घरे चलि आवा। हम पइसा भेजत हई। हम डेराइत नाय भईया लेकिन बहुत जिम्मेदारी देखै के होला।” नवीन ने बताया कि तीन चार लड़के कमरे छोड़कर भी चले गये। एक भइया थे जो 8–9 साल से तैयारी कर रहे थे। वह बहुत घबरा गये थे। मेरे भी घर फोन करके बता दिया। वह कह रहे थे 1500 लोगों पर अज्ञात में मुकदमा हुआ है और उसमें हम लोगों का नाम पहले आएगा। उन भइया को सभी पुष्पा नाम से सम्बोधित करते हैं। क्योंकि उनकी मूँछ और दाढ़ी बहुत बड़ी–बड़ी थे। अक्सर तैयारी करने वाले लड़के पैसे बचाने के लिए बहुत दिनों तक बाल दाढ़ी नहीं कटवाते।

शिवम, महेंद्र (बदले हुए नाम) तथा उनका एक और पार्टनर तीनों लोग कौशांबी के रहने वाले हैं। तीनों इंटर करके अभी चार महीनें पहले आये हैं। तीनों बचपन से एक साथ पढ़ रहे हैं। इनकी उम्र अभी 17 साल हुई है। ये इतने दुबले–पतले थे कि मैंने इनका वजन भी पूछ लिया तो बताया कि 50 किलो और दूसरे का 54 किलो। तीसरा पार्टनर अभी घर से नहीं आया है। शिवम के पिता फल की ठेली लगाते हैं और रविन्द्र के पिता सब्जी बोते है। मतलब खेती करते हैं। पैसे की तंगी के कारण तीनों लोग 10 गुणा 10 फिट के कमरे में एकसाथ रहते हैं और बड़ी मुश्किल से खर्च चला पाते हैं। शिवम और महेंद्र आईईआरटी और पॉलिटेक्निक की तैयारी कर रहे हैं। इंजीनियर बनने का सपना है। इतने मासूम बच्चों को भी पुलिस ने बेरहमी से पीटा था। रविन्द्र ने बताया पिटाई के ही दिन हम घर चले गये क्योंकि वायरल हुई वीडियो में हम दोनों आ गये थे। यह वीडियो घर वाले भी देख लिये, इसलिये हमें बुला लिया। जब हम घर पहुँचे तो गांव वाले आ गये। गांव वाले हाल–चाल पूछ रहे थे और उनमे सरकार के प्रति गुस्सा भी था। क्योकि गाँव वाले हमें जानते हैं कि हम ऐसा कुछ नहीं कर सकते। मम्मी पापा ने हम लोगों से ज्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन वे बहुत परेशान थे। हम यहाँ आए हैं तो कुछ सपने लेकर आए हैं और इसे पूरा करेंगे। बाकी जो कुछ भी हो सकता है कोशिश करेंगे भविष्य में किसी छात्र को ऐसा न झेलना पड़े।

ये तो प्रयागराज में तैयारी करने वाले वो लड़के हैं जिनकी पुलिस ने पिटाई की और भी लड़के हैं जो अभी घर से नहीं आये। जिस लॉज का वीडियो वायरल हुआ सिर्फ उसके ही बच्चे नहीं पीटे गये बल्कि आस पास के भी बहुत सारे लॉज/ होस्टल में घुसकर बेरहमी से पीटा गया। सड़क पर दौड़ा दौड़ाकर पीटा गया। इसके अलावा तैयारी करने वाले छात्रों की कैसी जिन्दगी है? वह कैसे जीते हैं? जानने के लिए अलग–अलग इलाके के कुछ छात्रों से मिलकर बात की। उनका रोजमर्रा का संघर्ष है और वह इस व्यवस्था में अभिशप्त जिन्दगी जीने को विवश हैं। जहाँ जवानी को जीवनकाल का एक महत्त्वपूर्ण समय माना गया है वहीं ना जाने कितने छात्रों की जवानी तैयारी में बर्बाद हो रही है।

“अब हो जाएगा, अब हो जाएगा करते–करते नौ साल निकल गया।” ये शब्द शिवांशु के हैं। शिवांशु की उम्र 26 वर्ष है। 2013 से प्रयागराज के छोटा बघाड़ा इलाके में कमरा लेकर तैयारी करते हैं। कमरे में एक छोटे भाई हिमांशू (उम्र–24साल, इनको भी 7 साल हो गये तैयारी करते हुए) और एक मामा के साथ रहते थे। अब मामा को प्राइमरी अध्यापक की नौकरी मिल गयी है। अब अकेले दोनों भाई रहते हैं। हिमांशु बताते हैं कि दादी की बीमारी की दवा, हम दोनों के पढ़ाई खर्च, घर के खर्च और पापा के खुद के खर्च में वेतन का कोई भी पैसा नहीं बचा पाते। शिवांशु ने बताया कि मुझे तैयारी करते हुए नौ साल लग गया इसका मतलब ये नहीं है कि वह पढ़ने में कमजोर थे बल्कि इंटर में 74 प्रतिशत थे। 2015 में आयी लेखपाल भर्ती में लिखित पेपर में पास हो गये, लेकिन उस समय इंटरव्यू में 4 लाख रुपये माँगे गये थे, वह नहीं दे पाये। इस वजह से नौकरी नहीं मिली। उसके बाद से कोई भी केखपाल की भर्ती नहीं आयी। एक बार 2019 में 1364 पदों के लिए चकबंदी लेखपाल की भर्ती आयी वह भी आयोग ने रदद् कर दी गयी।

शिवांशु कहते हैं कि चलो मैं मान लेता हूँ 2013 से 2016 तक मैं ग्रेजुएट नहीं था। मेरी कम समझदारी थी। लेकिन उसके बाद मेरे सारे विषय तैयार थे केवल अंग्रेजी कम तैयार थी। 2017 में विधानसभा के चुनाव से पहले कई भर्तियाँ आयी। मैंने लगभग सभी भारतीयों में फॉर्म डाला। वह भर्ती या तो रदद् हो गयी या  अभी तक उसका मामला लटका हुआ है। 2016 की कनिष्ठ सहायक (536 पद) के लिए भर्ती अभी तक लटकी है। 2018 में आयी मंडी परिषद की भर्ती अब कैंसिल करने की कोशिश कर रहे हैं। 2016 से इक्का दुक्का ही भर्ती स्पष्ट हो पायी। 2017 के चुनाव के बाद भर्ती का अकाल पड़ गया। ग्राम विकास अधिकारी की भर्ती 2018 रिजल्ट के बाद कैंसिल कर दी गयी। उसके बाद 2019, 2021, 2022 में फिर से भर्ती का अकाल पड़ गया। कोरोना तो बस एक बहाना है। आयोग खुद भर्ती नहीं करना चाहता। कोरोना तो मार्च से जून तक रहा उसके बाद परीक्षा क्यों नहीं करवाये? जब किसी भर्ती के लिए आयोग पर धरना दो तो आयोग कहता है 1 महीने का मौका दो परीक्षा करवा देंगे। हर बार यही करता है। पूरे भारत के अगर दो तीन आयोग को छोड़ दें तो जितनी भी भर्ती आती हैं उनकी फीस 700 रुपये, 1000 रुपये, 1200 रुपये, 1500 रुपये तक होती हैं। इतनी महँगी फीस एक साधारण परिवार का लड़का भर ही नहीं सकता।

शिवांशु ने बताया कि “एक मध्यमवर्ग और गरीब लड़के के लिए तैयारी करना कितना मुश्किल है यह मैं ही अच्छी तरह समझ सकता हूँ। शिवांशु अपनी उम्र को लेकर बताते हैं कि उनकी उम्र तो फिर भी कम है उन्हीं के लॉज में रहने वाले कुछ लोग 38 साल के हो गये हैं। भइया इलाहाबाद जवानी की कब्रगाह है और आयोग चाहे तो आपकी जिन्दगी बर्बाद करदे।”

रोहित एकदिवसीय परीक्षा और एसएससी की तैयारी कर रहे हैं। इनकी उम्र 20 साल है। अभी इंटर करके आये हैं। राजापुर के कछार (गंगा नदी का तटीय क्षेत्र) इलाके में रहते हैं। यहाँ ये इसलिए रह रहे हैं क्योंकि कमरे का किराया मात्रा 1500 रुपये है। यहाँ बाढ़ आती है और एक मंजिल तक का घर डूब जाता है। किसी भी प्रकार की कच्ची या पक्की सड़क की भी व्यवस्था नहीं है। यहाँ पानी में अजीब सी बदबू रहती है इसलिए किराया सस्ता है। फिर भी इस इलाके में रहकर हजारों छात्र तैयारी कर रहे हैं। अभी प्रयागराज में आए हुए 6 महीने हुए हैं। खाना दिन में एक टाइम बनाते हैं और रात में उसे गर्म करके खा लेते हैं। रोहित कहते हैं, “नौकरी पाना बहुत कठिन है। हर जगह घूस का बोलबाला है, हर जगह भ्रष्टाचार है। जिनके पास 15 से 20 लाख रुपए हैं उनको नौकरी मिल जाएगी। अब आप ही बताओ जिसका यूपीएसएसएससी पेट (प्री परीक्षा) में 15 नंबर आया वह यूपीएसआई परीक्षा में 160 में 150 नंबर कैसे ला सकता है (यूपीएसआई की भर्ती भी धांधली के कारण हाई कोर्ट में चली गयी है।) वो भी एक लड़का नहीं, बहुत सारे लड़के। मेरे कोचिंग से भी 10–10 रुपये चंदा लेकर केस हुआ है। अब मामला हाई कोर्ट में चला गया है। अब जो लड़के ठीक हंै वे भी लटक जाएँगे। हमारे पास तो इतने पैसे भी नहीं है कि कोई व्यवसाय या छोटी– मोटी दुकान ही कर ले। अब तो यही रास्ता बचता है, तैयारी करके और किताबें पढ़कर जो होना है होगा। अगर सरकार भर्ती ठीक से करे तो मुझे भी और इलाहाबाद में तैयारी करने वाले सभी लड़कों को नौकरी मिल जाएगी।”

रोहित के पिता खेती करते हैं। दो बीघा खेत है। बड़े भाई अलग हो गये हैं। एक छोटा भाई घर पढ़ाई कर रहा है। पैसे की दिक्कत के चलते रोहित सिविल लाइंस प्रयागराज में एक होटल में पार्ट टाइम काम करते हैं। रोज साइकिल से 5 किलोमीटर जाना और आना पड़ता है। रास्ते में कुछ खाने का मन करता है तो नहीं खाते, बस कभी कभी केला खा लेते है।

कहते हैं, नौजवानी जीवनकाल का बसन्त है। लेकिन तैयारी करने वाले नौजवानों की जिन्दगी आज सबसे ज्यादा हताश, निराश और अवसादग्रस्त है। पल–पल हार का डर, घर वालों और समाज का डर, जिन्दगी की अनिश्चितताओं का डर न जाने कितने तरह का डर हर समय दिमाग को कुंठित करता रहता है। इसकी वजह क्या है? क्या छात्र को यह कह देना की तुम्हारे अंदर टैलेंट नहीं है या यह सड़ी हुई व्यवस्था जो नौजवानों को एक नौकरी तक नहीं दे सकती? हमने बीटेक, एमटेक, बीएससी, एमएससी, बीएड, एमएड, पीएचडी कर ली। क्या फिर भी टैलेंट नहीं है? एक भर्ती पूरी करने में एक पंचवर्षीय योजना निकल जाता है। भर्ती निकलवानी है तो धरना, परीक्षा की तारीख घोषित करवानी है तो धरना, किसी तरह परीक्षा हो गयी तो परिणाम के लिए धरना, परिणाम निकल गया तो बहाली के लिए धरना। बहाली तक छात्रों के गर्दन पर तलवार लटकी रहती है। अब ऐसी परिस्थिति में छात्र जाएँ तो जाएँ कहाँ?

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