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टाइम्स नाउ के अपमानित और मोहभंग कर्मचारियों का खुला खत

सेवा में,

राहुल शिवशंकर, नविका कुमार, पद्मजा जोशी

द्वारा,

टाइम्स नाउ के अपमानित और मोहभंग कर्मचारी

आदरणीय सर / मैडम

हम, टाइम्स नाउ के पूर्व और वर्तमान कर्मचारियों ने कभी नहीं सोचा था कि हम ऐसी स्थिति में खड़े होंगे जहाँ हमें चैनल के सम्पादकों को पत्रकारिता के बुनियादी मूल्यों और मान्यताओं की याद दिलाने के लिए एक खुला पत्र लिखना पड़ेगा। हमारे चारों तरफ जो हो रहा है उसे देख कर हम थक चुके हैं, निराश, परेशान, गुस्सा हैं और हमारा मोहभंग हुआ है। हमने कभी खुद को इतना असहाय महसूस नहीं किया है। बतौर पत्रकार हमें एक बात सिखाई गई थी : हमेशा जनता के पक्ष में खड़ा होना। हमेशा मानवता के पक्ष में रहना। ताकतवर लोगों की उनके किये—धरे के लिए जवाबदेही सामने लाना। लेकिन टाइम्स नाउ इन दिनों "पत्रकारिता" के नाम पर जो कुछ कर रहा है, वह एक ऐसी सरकार का बेशर्मी के साथ प्रचार के अलावा कुछ नहीं है, जो हर मायने में नाकाम रही है और इस देश की जनता को निराश कर रही है।

जब हम आपको यह पत्र लिख रहे हैं तब हमारे कुछ सहकर्मी और उनके परिजन कोविड 19 की हालत से निपटने में सरकार के नाकाबिल होने की कीमत चुका रहे हैं।

हमारे आस पास जो कुछ हो रहा है बतौर पत्रकार उसके बारे में हमें पूरी जानकारी है। अस्पताल में एक बिस्तर पाने के लिए लोग एंबुलेंस में या सड़कों पर इंतजार कर रहे हैं। इससे भी बदतर हालत यह है कि गंभीर रोगियों को आक्सीजन मिलने से पहले घंटों तक हांफना पड़ रहा है। कुछ तो इंतजार करते हुए मर जा रहे हैं। जीवन रक्षक दवाइयाँ उपलब्ध नहीं हैं और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर अच्छे मददगार इन सुविधाओं को खोजने में रोगियों की मदद करने में सरकार की तुलना में अधिक कर रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी के एक प्रमुख अस्पताल को अपने मरीजों को जिंदा रखने के लिए सरकार से ऑक्सीजन सिलेंडर पाने के लिए उच्च न्यायालय का रुख करना पड़ा। अस्पताल यह बताने के लिए अधिकारियों को ट्विटर पर टैग कर रहे हैं कि वह किस तरह ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे हैं। राज्य एक दूसरे के साथ "अपने" लिए आक्सीजन होने का दावा करते हुए लड़ रहे हैं। आज की हकीकत यही है।

पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। हमें इस पर कोई संदेह नहीं। चिकित्सा आपातकाल से अधिक, यह एक मानवीय संकट है जो हमारी आंखों के ठीक सामने है। और टाइम्स नाउ जैसे शक्तिशाली ब्रांड के पत्रकार के रूप में हम इस देश की जनता के लिए क्या कर रहे हैं?

हम अभी भी विपक्ष पर आरोप मढ़ते हैं। हम असली मुद्दों से ध्यान हटाते हैं। हम साम्प्रदायिक हिंदू-मुस्लिम स्टोरियों पर बहुत ज्यादा चर्चा करते हैं। हम हर उस स्टोरी को घुमा देते हैं जो सरकार के पक्ष में नहीं होती है। जब अयोग्य केंद्र सरकार से सवाल करने की बारी आती है तो हम चुप्पी साध लेते हैं। नरेन्द्र मोदी का नाम लेने और हम जिस मौजूदा गड़बड़झाले में हैं, उसकी आलोचना करने की भी हममें हिम्मत नहीं है। हम अन्य विपक्षी दलों की तस्वीर दिखाते हुए अमित शाह की तस्वीर नहीं दिखा सकते, जो चुनावी राज्य में बड़ी—बड़ी चुनावी रैलियों का आयोजन करके कोविड 19 के दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं। हम कितने रीढ़विहीन हो गए हैं।

याद कीजिए कि यूपीए शासन के दौरान आप सभी किस तरह "नीतिगत पक्षाघात" का रोना रोते थे? अब पूरी व्यवस्था जर्जर होने के बावजूद, क्या हमने एक बार भी अपनी नाकाबीलियत के लिए केंद्र सरकार पर सवाल उठाया?

यह साफ जाहिर होता है कि टाइम्स नाउ के सम्पादक कोविड 19 महामारी की बदइंतजामी के लिए बीजेपी सरकार को जवाबदेह ठहराने को तैयार नहीं हैं। जब पूरे देश में हजारों भारतीय मर रहे हैं, तो हमसे कम से कम यह उम्मीद की जाती है कि हम सरकार से कठिन सवाल पूछें और जमीनी हकीकत को दिखाएं। इसके बजाय हम आसान शिकार चुनते हैं, गैर-भाजपा सरकारों और नेताओं पर चुन चुन कर हमला करने लगते हैं और बीजेपी आईटी सेल के एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं।

जो बेस कीमती वक्त जनता की पीढ़ा को सरकार की नजरों में ला सकता है वह किसानों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, जो साफ तौर पर भाजपा के एजेंडे के मुताबिक ही है। यह इस बात का नायाब उदाहरण है कि कैसे मीडिया असली मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहा है।

प्रधान मंत्री मोदी से उनके उदासीन रवैये और गलत व्यवहार के लिए सवाल पूछने के बजाय, संपादक उनकी छवि बचाने और उन्हें बदनामी से बचाने के लिए गर्त तक झुक चुके हैं।

यह देखना भी निराशाजनक है कि भाजपा आईटी सेल के सदस्यों द्वारा भेजे गए संदेशों को चैनल द्वारा कैसे काटा, कॉपी और पेस्ट किया जाता है और यह कैसे प्राइम टाइम बहस बन जाता है, जिससे देश का समाचार एजेंडा तय होता है। एक ट्रोल और सरकार के पैरवीकार दलबदलू शहजाद पूनावाला द्वारा पोस्ट किए गए संदेश सुर्खियां बन जाते हैं और चैनल के अपने पत्रकारों और संपादकों की तुलना में उन्हें अधिक समय मिल जाता है।

हमने खुद को किस हद तक गिरा दिया है? एक चैनल जो लगातार बेआवात जनता की आवाज बनता था, अब पूरी तरह से सरकार का प्रचार—प्रसार तंत्र बन गया है। देश सबसे पहले का दावा करने वाला चैनल अपने ही नागरिकों की पीड़ा से बेखबर है।

आप जनता की आवाज कब उठाएंगे? आप अपनी पूरी संपादकीय टीम को भाजपा के एजेंडे के लिए काम करने से कब रोकेंगे? सरकार को जवाबदेह ठहराने से पहले आप कितनी और लाशों को देखना चाहते हैं? क्या आपका विशेषाधिकार आपको यह देखने से रोक रहा है कि जमीन पर लोग किस तरह से तकलीफ झेल रहे हैं? आप अपने हाथों पर कितना अधिक खून चाहते हैं?

सम्मानित सम्पादकों, चुनना बहुत साफ है: या तो मानवता के पक्ष में हों या भाजपा के। अगर आप भाजपा चुनते हैं, तो आप न केवल इस पेशे को कमजोर कर रहे हैं, बल्कि इस देश और इसके लोगों को भी कमजोर कर रहे हैं।

अन्य राष्ट्रीय चैनलों के अपने सहकर्मियों से कहते हैं कि वह उठ खड़े हों और इसकी मुखालफत करें। अगर हम अभी ऐसा नहीं करते हैं, तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा।

शुक्रिया

टाइम्स नॉउ के पूर्व और वर्तमान कर्मचारी

अनुवाद-- पारिजात

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