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औपनिवेशिक जनता यूक्रेन संकट को कैसे समझे

ब्लैक अलायंस फॉर पीस (बीएपी) जोर देकर यह घोषणा करता है कि दुनिया पर राजनीतिक और आर्थिक प्रभुत्व के लिए यूरोपिय संघ, नाटो और अमरीका के निरन्तर और एकतरफा अभियान के चलते ही यूक्रेन में टकराव के हालात पैदा हुए हैं। जैसा कि बीएपी ने पहले ही जोर देकर कहा है कि मौजूदा संकट की जड़ें 2014 में यूक्रेन की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गयी सरकार के अमरीकी समर्थन से हुए तख्तापलट में हैं और यूरोपिय संघ, नाटो और अमरीका, जो “प्रभुत्व की धुरी” हैं, उनका दृढ़ संकल्प है कि यूक्रेन एक जबरदस्त जंगी अमले वाले नाटो सदस्य देश में बदल जाये, जो हमेशा रूस की सीमा पर घात लगाये बैठा रहे। 1999 से ही, जब बिल क्लिन्टन ने वारसा सन्धि के भूतपूर्व देशों को शामिल करने के लिए नाटों की सदस्यता बढ़ाने की आधिकारिक प्रक्रिया की शुरुआत की थी, तभी से नाटो का विस्तार रूस के लिए एक जानी पहचानी सुरक्षा सम्बन्धी चिन्ता का मामला रहा है। आज, जब टकराव बढ़ गया है तो नाटो का विस्तार अफ्रीकी जनता और दुनियाभर की तमाम दमित तथा औपनिवेशिक जनता के लिए वास्तविक खतरा बन गया है। इस क्षेत्र में और पूरी दुनिया में शान्ति के लिए इस “प्रभुत्व की धुरी” का विस्तार रोका जाना चाहिए और नाटो को निश्चय की खत्म किया जाना चाहिए।

लेकिन शान्ति क्या है? बीएपी के लिए शान्ति केवल टकराव का अन्त नहीं है। शान्ति का मतलब जनसंघर्षों और आत्म रक्षा के जरिये एक ऐसी दुनिया हासिल करना है जो सैन्यवाद और नाभिकीय प्रसार से, साम्राज्यवाद और अन्यायी युद्ध से, पितृसत्ता से, गौरों की श्रेष्ठता से मुक्त हो। वास्तव में, यूक्रेन में और उसी तरह अमरीका, कनाडा और सभी जगह नाजीवाद का पुनरुत्थान और बोलबाला साम्राज्यवाद की परियोजना के एक हिस्से के रूप में गौरों की श्रेष्ठता के एक वैश्विक सुदृढ़ीकरण का प्रतीक है। यह सुदृढ़ीकरण गौरों के आह्वानों और अपीलों में झलकता है। यह “सभ्य” राष्ट्रों और वहाँ के निवासियों तथा पक्के तौर पर नस्लवादी यूरोपीय देशों में भी दिखायी देता है। शान्ति का अर्थ अन्तहीन युद्धों और हस्तक्षेपों से साफ तौर पर मुनाफा कमाने वाले सैन्य उद्योग का खात्मा तथा भारी–भरकम “रक्षा” बजटों को शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बाल संरक्षण, गृह निर्माण और ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ संघर्ष में निवेश करना भी है। जिस वजह से हमें पुलिस का उन्मूलन करने की जरूरत है ठीक उसी वजह से हमें नाटो को खत्म करने की जरूरत है–– दोनों ही दुनिया के मेहनतकश वर्गों के खर्च पर पूँजी और साम्राज्य के हितों की सेवा करते हैं।

ब्लैक अलायंस फॉर पीस यूक्रेन में जनहानि से चिन्तित है लेकिन वह सोमालिया, यमन और नाटो के प्रभुत्वकारी युद्धों से पीड़ित सभी देशों में हो रही जनहानि से भी चिन्तित है। इन जगहों की जनता के साथ हम अपनी अटूट एकजुटता जाहिर करते हैं। जैसा कि बीएपी समन्वय समिति के सदस्य रफीकी मोरिस कहते हैं––

यूक्रेन की जनता के प्रति हमारी चिन्ता निश्चय ही इराक, अफगानिस्तान, सीरिया, लीबिया, यमन की जनताय मिस्र, होंडुरस, यूक्रेन, ब्राजील, बोलीविया में तख्तापलटय वेनेजुवेला, निकारगुआ, क्यूबा में विनाशय अफ्रिकोम द्वारा प्रशिक्षित सैनिकों के जरिये पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में तख्तापलट के प्रति हमारी व्यापक चिन्ता से जुड़ी होनी चाहिए। उदाहरण के रूप में, हम दर्ज करते हैं कि जिस तरह अमरीका ने यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाइयों की भर्त्सना की है उसी तरह सोमालिया पर अपने हथियारबंद ड्रोन विमानों की बमबारी की भी भर्त्सना करे। इसके अलावा, अफ्रीकी और कैरेबियाई ब्लैक शरणार्थियों को यूक्रेन में जिस तरह बेसहारा छोड़ दिया गया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया उसी तरह बाइडेन प्रशासन ने 129 हैती शरणार्थियों को 200वीं निर्वासन उड़ान से पोर्ट–ओ–प्रिंस में छोड़ा है जहाँ पिछले एक साल में 21,000 शरणार्थियों को पहले ही छोड़ा जा चुका है।

रूसी और यूक्रेनी जनता के हितों को सुरक्षित करने के लिए निश्चय ही रूस और दोनबास की जनता के प्रतिनिधियों और अमरीका के बीच नेक–नीयत से बातचीत होनी चाहिए। यूरोपीय संघ और अमरीका द्वारा यूक्रेन को लगातार भेजी जाने वाली हथियारों की अपनी खेप और दूसरी “प्राणघातक सहायता” को निश्चित रूप से तुरन्त रोक देना चाहिए। यूक्रेन और रूस को दोनबास की जनता के साथ निश्चय ही गम्भीर बातचीत की शुरुआत करनी चाहिए, यह सुनिश्चित करने के लिए कि अगर मिंस्क समझौता जो 2015 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया था क्या अभी भी उपयुक्त है। और नाटो को निश्चय ही तोड़ दिया जाना चाहिए।

बहुत से लोगों पर भ्रम का बादल छाया हुआ है, रूस के साथ युद्ध के वहसी आह्वान और देशभक्ति की प्रचारवादी अपीलों के तेज हो जाने के साथ ही, नस्लीय राष्ट्रवाद और “गौरी सभ्यता” की रक्षा घनीभूत हो गयी है। बीएपी को कोई भ्रम नहीं है। यूक्रेन में टकराव ने केवल साम्राज्यवाद, युद्ध और सैन्यवाद के अन्तर्विरोधों और दोगलेपन को जगजाहिर किया है और शान्ति की माँग का मतलब है अमरीकी साम्राज्यवाद तथा अमरीका, यूरोपीय संघ, नाटो की प्रभुत्व की धुरी के खिलाफ संघर्ष।

रणनीतिक सवाल पर बीएपी फिर से कहता है कि कोई समझौता नहीं होगा और कोई पलायन नहीं होगा!

(मंथली रिव्यु से साभार)

अनुवाद–– प्रवीण कुमार

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