अनियतकालीन बुलेटिन

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आर्थिक हत्यारे या इकनोमिक हिटमैन

अमरीकी शासक अपनी साम्राज्यवादी लूट को निर्बाध रूप से जारी रखने के लिए पूरी दुनिया पर अधिकार कर लेना चाहते हैं। इसी मंसूबे को पूरा करने के लिए अमरीका ने कई देशों के खिलाफ युद्ध छेड़ने का जघन्य अपराध किया और लाखों की संख्या में लोगों का कत्लेआम किया। इन खुले कुकृत्यों के अलावा अमरीका ने पर्दे के पीछे भी कूटनीतिक चालों, राजनीतिक षड्यन्त्रों और अन्य कई तरह के घृणित अपराधों को अंजाम दिया जिनके बारे में लोग अभी भी अनजान हैं। ऐसे अपराधों का खुलासा एक भूतपूर्व आर्थिक हत्यारे यइकोनौमिक हिटमैनद्ध जॉन परकिन्स ने अपनी पुस्तक ‘‘एक आर्थिक हत्यारे की स्वीकारोक्ति’’ में किया है। इसे अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा ऐजेन्सी ने 1968 में भर्ती किया था, जब वह स्कूल ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन यबोस्टन विश्वविद्यालयद्ध में अन्तिम वर्ष का छात्र था। तीन साल तक वह दक्षिण अमरीकी शान्ति दल में तैनात रहा। वहाँ से उसे एक अन्तरराष्ट्रीय परामर्शदाता कम्पनी में निदेशक के पद पर लगा दिया गया, जहाँ उसका काम गरीब देशों को विश्व बैंक मुद्राकोष से कर्ज लेने और उस पैसे से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को निर्माण कार्यों का ठेका देने के लिए छल–बल से तैयार करना था। 1981 में उसने आर्थिक हत्यारे के पेशे से इस्तीफा दे दिया था।

कौन हैं ये आर्थिक हत्यारे?

अपने घृणित मंसूबों को पूरा करने के लिए अमरीकी साम्राज्यवादी कुछ व्यक्तियों को बहुत ही गुप्त मिशन के लिए नियुक्त करते हैं। ऐसे लोग आर्थिक तौर से पिछड़े देशों, खास कर लातिन अमरीकी देशों में जाकर वहाँ के नेतृत्व से मिलते हैं, और उन्हें आर्थिक प्रलोभन देकर अपने देश में अमरीकी साम्राज्यवादी नीति लागू करवाते हैं, ताकि वे उस गरीब देश की जनता को लूट सकें। इसके लिए वे साम–दाम–दण्ड–भेद की नीति अपनाते हैं।  जो राजनेता आर्थिक प्रलोभनों के आगे नहीं झुकते, उन्हें मौत की धमकी दी जाती है और जरूरत पड़ने पर सी–आई–ए– द्वारा हत्या भी करवा दी जाती है।

पिछले 30–40 सालों के दौरान अमरीका को दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्यवादी देश बनाने में इन आर्थिक हत्यारों की बड़ी भूमिका रही है। शुरू में ये अपना काम शान्तिपूर्ण तरीके से, जैसे पिछड़े देश के योजनाकार, राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री आदि को प्रलोभन देकर करते हैं। अन्तिम रूप में, कभी–कभी वे सेना के शीर्ष अधिकारियों का प्रयोग भी करते हैं। इसलिए ऐसे काम बेहद गोपनीय तरीके से करवाये जाते हैं। पुराने उपनिवेशवादी काल में अपनी लूट कायम रखने के लिए साम्राज्यवादियों द्वारा इससे भिन्न तरीके अपनाये जाते थे। तब सैनिक हमले और प्रत्यक्ष युद्ध के जरिये किसी देश पर कब्जा करके उस पर प्रत्यक्षत: गुलामी थोपी जाती थी। बाद में यह रास्ता बहुत कारगर नहीं रह गया। इसके अलावा अमरीका खुद ही ब्रिटेन का उपनिवेश रह चुका था, इसलिए किसी देश को उपनिवेश बनाना खुद अमरीकी जनता को भी स्वीकार्य नहीं होता जिसने आजादी की लड़ाई लड़ी थी। इसलिए अमरीका ने नवौपनिवेशिक नीति के तहत साम्राज्यवादी लूट–खसोट के अप्रत्यक्ष तरीके आजमाये। लेकिन आज जनता की बढ़ती चेतना के साथ यह तरीका भी कारगर नहीं रहा। जनता अब समझने लगी है कि साम्राज्यवाद को चलाने वाले दैत्याकार निगमों यबड़ी कम्पनियोंद्ध ने दुनिया की मेहनतकश जनता को बहुत ही निर्ममता से लूटा है। जनता में अमरीकी साम्राज्यवाद के प्रति भारी आक्रोश है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि अपने–अपने देशों में भारी बहुमत से लातिन अमरीकी जनता ने अमरीका विरोधी राष्ट्रपति चुने हैं। विश्व व्यापार संगठन (डब्लू–टी–ओ) का विश्वव्यापी विरोध, पानी, बिजली, स्वास्थ्य सेवाओं और सार्वजनिक उद्यमों के निजीकरण के नाम पर बहुराष्ट्रीय निगमों को बेचे जाने के खिलाफ जुझारू आन्दोलन, और दुनिया के कोने–कोने में उठ रहे साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष भी जनता की बढ़ती चेतना को दिखाते हैं।

आर्थिक हत्यारे क्या करते हैं?

विश्व जनगण की इस बढ़ती साम्राज्यवाद विरोधी चेतना को देखते हुए साम्राज्यवाद सीधे किसी देश को गुलाम बनाने की जगह अब ज्यादा शातिराना तरीके ईजाद करने लगा है। आर्थिक हत्यारे कई तरह के तौर–तरीके अपनाते हैं। इनमें सबसे सरल तरीका है, बड़े निगमों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों  जैसे तेल, प्राकृतिक गैस आदि पर कब्जा करना। इसके लिए आर्थिक हत्यारे प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों वाले देशों को विकास के नाम पर विश्व बैंक या दूसरी साम्राज्यवादी संस्थाओं से ऋण उपलब्ध  कराने के लिए साजिश रचते हैं। उपलब्ध कराये गये ऋण का बड़ा हिस्सा वापस अमरीकी निगमों की तिजोरी में चला जाता है क्योंकि इसी धन से बड़े निगमों, जैसे– बेकटेल, हैलीबर्टन, जनरल मोटर्स और जनरल इलेक्ट्रिक, ऋण लेने वाले देश में ढाँचागत उद्योग खड़ा करते हैं। इन उद्योगों में ऊर्जा संयन्त्र, बड़ी सड़कें, बन्दरगाह, औद्योगिक पार्क आदि शामिल हैं, जो केवल धनी व्यक्तियों की ही पहुँच में रहते हैं। गरीबों का उनसे कोई वास्ता नहीं होता। विकास के नाम पर आज हमारे भी देश में यही कुछ हो रहा है। नतीजा यह होता है कि गरीबों को हमेशा परेशानी झेलनी पड़ती है। स्थिति तब और भी भयावह होती है जब इन ऋणों को चुकाना पड़ता है। इसके लिए सरकार निजीकरण के नाम पर देश की सम्पत्ति विदेशी कम्पनियों को बेचना शुरू करती है। शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरे सामाजिक कार्यों में खर्च होने वाले धन में कटौती करके ब्याज चुकाये जाते हैं। इससे गरीबों के बीमार बच्चों का इलाज नहीं हो पाता, उनके बच्चे पढ़ाई से भी वंचित हो जाते हैं। इस तरह देश को एक अन्यायपूर्ण अन्धकार में छोड़ दिया जाता है। तब एक बार फिर ये आर्थिक हत्यारे उन देशों में जाते हैं और कहते हैं--‘‘देखो तुम हमारे बड़े कर्जदार हो। तुम ये कर्ज अदा नहीं कर पाओगे इसलिए तुम्हें हमारी शर्तें माननी पड़ेंगी। अपने तेल और खनिज भण्डारों को सस्ते दामों में हमारी कम्पनियों को बेच दो। संयुक्त राष्ट्र संघ के चुनाव में अमरीका का समर्थन करो। इराक और अफगानिस्तान में हमारी सहायता के लिए अपनी सेना भेज दो।’’ इसी तरीके से ये दुनिया की मेहनतकश जनता के दुश्मन-- साम्राज्यवाद का विस्तार और सुदृढ़ीकरण करते हैं।

इनकी भर्ती कैसे और कौन करता है?

आर्थिक हत्यारों की भर्ती अमरीकी संस्था राष्ट्रीय सुरक्षा ऐजेन्सी (एन–एस–ए) करती है। यह उच्च शिक्षित और बड़े निगमों में बड़ी नौकरी करने वालों को बड़े ही गोपनीय तरीके से चुनती है। व्यक्तित्व परीक्षण, झूठ परीक्षण आदि अनेक परीक्षाओं से गुजारकर पता लगाया जाता है कि वह व्यक्ति आर्थिक हत्यारा बनने के योग्य है या नहीं। यह संस्था उनकी कमजोरियों को भी नोट करती है ताकि समय पड़ने पर इन आर्थिक हत्यारों को अपने शिकंजे में रखा जा सके और गद्दारी करने पर उन्हें ब्लैकमेल किया जा सके।

सी–आई–ए की तरह भाड़े के हत्यारों, सफेदपोश अपराधियों और 007 टाइप जासूसों की भर्ती करने के बजाय एन–एस–ए इन आर्थिक हत्यारों की भर्ती करती है। इसके बाद उन्हें किसी निजी कम्पनी में नौकरी करने के लिए भेज दिया जाता है। ऐसे में यदि वे पकड़े भी जाते हैं तो इसका इल्जाम अमरीकी सरकार पर नहीं बल्कि उस कम्पनी पर आता है जहाँ वे काम करते हैं। इस तरह कोई इस बात का पता नहीं लगा पाता कि उनके तार कहाँ से जुड़े हैं।

इन हत्यारों के अधीन कई दर्जन कर्मचारी काम करते हैं। ये गरीब देशों में जाकर ऋण स्वीकृत करते हैं और वहाँ की आर्थिक नीतियों में साम्राज्यवादी फेरबदल करवाते हैं। इसके अलावा जैसा आजकल लातिन अमरीका में हो रहा है वैसे काम भी करते हैं। मतलब यह कि जब किसी देश में अमरीका विरोधी राष्ट्रपति चुना जाता है तो वे वहाँ जाकर कहते हैं-- ‘‘ बधाई हो श्रीमान् राष्ट्रपति! अब आप राष्ट्रपति हैं और मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि अब लक्ष्मी आप पर मेहरबान होने वाली हैं। आपके परिवार वाले भी मालामाल हो सकते हैं। यदि आप अपने देश में हमारी नीतियों को लागू करें, हमारी कम्पनियों को आने का मौका दें तो आपके लिए हमारी इस जेब में लाखों–करोड़ों डालर हैं। हमारी बात न मानने पर हमारी दूसरी जेब में आपके लिए पिस्तौल भी है। मर्जी है आपकी, जो चुन लीजिए।’’

 जेबों में डालर और पिस्तौल

इसका मतलब है विभिन्न ठेकों के माध्यम से, छल–बल के तरीकों से, ये राष्ट्रपति की जेबें गर्म करते हैं। यदि नहीं मानें तो उनका भी वही हाल होगा जो इक्वाडोर के जैमे रोल्डोस का, पनामा के ओमार टोरीजोज का और चिली के अलेन्दे का हुआ। आज वेनेजुएला के ह्यूगो शावेज के साथ भी ऐसा ही करने की कोशिश चल रही है। अमरीका लोगों को उकसाकर, उन्हें भड़काकर शावेज को सत्ता से उखाड़ फेंकना चाहता है। जिसे वे सत्ता से हटा नहीं पाते, उसकी हत्या करवा देते हैं जैसा कि कुछ साल पहले इक्वाडोर के राष्ट्रपति के साथ हुआ।

टोरिजोज के साथ क्या हुआ?

सातवें दशक में टोरिजोज का नाम दुनिया के समाचारों की सुर्खियों में था। उसकी माँग थी कि पनामा नहर वापस पनामा के लोगों को दे दी जाये। एक आर्थिक हत्यारा उन्हें राजी करने के लिए पनामा भेजा जाता है ताकि वह अमरीकी साम्राज्यवाद के पक्ष में आ जायें और पनामा नहर के राष्ट्रीयकरण की बात भूल जायें। लेकिन उन्होंने उस आर्थिक हत्यारे से कहा-- ‘‘ देखो, तुम जानते हो और मैं भी जानता हूँ मुझे क्या करना है। मैं जानता हूँ कि यदि तुम्हारी नीतियाँ मैं मान लूँ तो मैं बहुत धनी बन जाउफँगा। मेरे लिए और मेरे देशवासियों के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है। जो महत्वपूर्ण है वह यह कि मैं अपने गरीब देशवासियों की सहायता करना चाहता हूँ।’’ टोरिजोज कोई देवता नहीं थे। वे अपनी गरीब जनता के प्रति समर्पित व्यक्ति थे। इसलिए उन्होंने आर्थिक हत्यारे से कहा ‘‘या तो तुम मेरी बात मान लो या इस देश से निकल जाओ।’’ एन–एस–ए– के अधिकारियों ने उस हत्यारे को वहाँ रुकने के लिए कहा। दुनिया की निगाह टोरिजोज पर लगी हुई थी। टोरिजोज वास्तव में अमरीका के चंगुल से पनामा नहर को ही नहीं आजाद करा रहे थे बल्कि दुनिया के सामने ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कर रहे थे, जिसका अनुसरण और लोग भी करते।

उनके अपने ही सुरक्षा बलों ने टोरिजोज के वायुयान में जाते समय बम से भरा टेप रिकार्डर पकड़ा दिया और वायुयान में बीच हवा में विस्पफोट हो गया। इस तरह उनकी हत्या कर दी गयी। राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय खबरों में आया कि उनका वायुयान उड़ा और पहाड़ से टकरा गया, जबकि बाद में एन–एस–ए– के एक अधिकारी ने ही यह स्वीकार किया था कि उनकी हत्या करायी गयी थी।

इस घटना से तीन महीने पहले इक्वाडोर के राष्ट्रपति जैमे रोल्डोस ने अमरीकी तेल कम्पनी का तीखा विरोध करते हुए कहा-- ‘‘ इक्वाडोर का तेल इक्वाडोर की जनता का है। यहाँ अमरीकी तेल कम्पनियों को लूट–खसोट नहीं करने दी जायेगी। अब या तो ये तेल कम्पनियाँ इक्वाडोर की जनता के लिए ज्यादा धन दें वरना हम उनका राष्ट्रीयकरण कर देंगे।’’ इस तरह रोल्डोस ने बहुत ही तीखा अमरीका विरोधी अभियान चलाया। आर्थिक हत्यारों ने उन्हें तरह–तरह के प्रलोभन दिये, डराया–धमकाया, लेकिन रोल्डोस अपनी जगह अडिग रहे। टोरिजोज की हत्या के तीन महीने पहले ही उनके वायुयान में भी विस्पफोट करा दिया गया था।

अच्छी तरह हथियारबन्द सुरक्षाबलों से हमेशा घिरे रहने वाले रोल्डोस और टोरिजोज जैसे राष्ट्रपतियों की हत्या भला इतनी आसानी से कैसे हो सकती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके सुरक्षाबलों की ट्रेनिंग अमरीका में हुई थी। इस तरह के सुरक्षाबल अपने प्रशिक्षक के प्रति बहुत वफादार होते हैं। इन्हीं प्रशिक्षकों में से किसी ने रोल्डोस के वायुयान में उन्हीं के सुरक्षाबलों के हाथों बम रखवाया था। ये सुरक्षाबल बिक जाते हैं क्योंकि इन सुरक्षाबलों की आमदनी बहुत कम होती है और उन्हें बरगलाना आसान है। यदि यह उपाय कारगर नहीं हुआ तब दूसरे उपाय आजमाये जाते हैं।

यह आसान तरीका है और यही तरीका सद्दाम हुसैन के ऊपर भी आजमाया गया था। जब उन्होंने पूरी तरह अमरीका का साथ नहीं दिया तो आर्थिक हत्यारों ने उन्हें रास्ते पर लाने की कोशिश की। हत्या के असफल प्रयास भी हुए। सद्दाम हुसैन के मामले में आर्थिक हत्यारे बिल्कुल बेकार साबित हुए और अन्त में हारकर अमरीका ने इराक में सैनिक हस्तक्षेप किया।

सद्दाम हुसैन तो अमरीका के वफादार थे फिर उनके साथ ऐसा क्यों किया गया?

वे वफादार थे, लेकिन अमरीका चाहता था कि वे पूरी तरह अमरीकी शर्तों को मान लें और सऊदी अरब की तरह वे भी अमरीकी विश्व व्यवस्था में फिट हो जायें। लेकिन सद्दाम ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। इराक ने अमरीका से फाइटर जेट वायुयान और टैंक खरीद लिये। अमरीका ने इराक पर यह आरोप भी लगाया कि वह अपने रासायनिक संयन्त्रों से रासायनिक हथियार बना रहा है, जो बाद में सफेद झूठ साबित हुआ। असली कारण था कि वे इराक से अमरीका को बेरोकटोक तेल नहीं ले जाने देना चाहते थे। सद्दाम का मानना था कि अमरीकी तेल कम्पनियाँ कुवैत में कुएँ खोदकर वहाँ से इराक का तेल चुराया करती हैं। इन्हीं कारणों से वे अमरीका से खफा थे अमरीका की कोशिश थी कि वे यूरो के बजाय अमरीकी डालर में व्यापार करें और अमरीका द्वारा स्वीकृत मूल्य पर ही  अपना तेल बेचें। सद्दाम ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।

सातवें दशक में ओपेक ने अमरीकी तेल कम्पनियों के ऊपर शिकंजा कसना शुरू किया और तेल की सप्लाई बन्द कर दी। ओपेक इजराइल के प्रति अमरीकी नीति का विरोधी था। तेल सप्लाई बन्द करते ही अमरीका में पेट्रोल पम्पों पर कारों की लम्बी लाइन लग गयी। अमरीकी सरकार डर गयी कि कहीं 1929 जैसी महामन्दी फिर न शुरू हो जाये। तब आर्थिक हत्यारों को सक्रिय करते हुए ट्रेजरी विभाग ने कहा ‘‘देखो, ओपेक की यह नीति अमरीकी साम्राज्यवादी हितों के खिलाफ है। यह सुनिश्चित करो कि ओपेक टूट जाये और स्थिति फिर सुधर जाये।’’ आर्थिक हत्यारों को पता था कि इसे रोकने का एकमात्र साधन सऊदी अरब है क्योंकि उसके पास किसी भी अन्य देश से ज्यादा तेल है और सऊदी अरब का शाही घराना पतित और भ्रष्ट है।

आर्थिक हत्यारों ने सऊदी अरब के शाही घराने को राजी कर लिया। यह तय किया गया कि शाही घराना दुनिया भर में बेचे गये तेल से होने वाली अपनी आमदनी अमरीका की सरकारी सिक्योरिटी में निवेश करेगा। इसके ब्याज से ही अमरीकी कम्पनी सऊदी अरब में निर्माण कार्य करेंगी। वहाँ ऊर्जा संयन्त्र, नमक–पानी अलग करने का संयन्त्र लगाया जायेगा। साथ ही सऊदी अरब के रेगिस्तान में आधुनिक शहर बसाया जायेगा, जिसमें शाही परिवार के लिए ऐयाशी के सभी साधन होंगे। व्यापार का दूसरा पहलू यह होगा कि अमरीका द्वारा तय दाम पर ही शाही घराना तेल बेचेगा। अमरीका शाही घराने की सत्ता बनाये रखेगा। यह समझौता आज तक जारी है। कई उतार–चढ़ाव आने के बावजूद भी आर्थिक हत्यारों की दृष्टि से यह समझौता अत्यन्त सफल रहा और इराक में सद्दाम हुसैन के साथ भी वे अपनी इसी चाल को दुहराना चाहते थे जो हो नहीं पाया।

एक अन्य घटना। कुछ सालों पहले इक्वाडोर में एक प्रबल अमरीका विरोधी राष्ट्रपति गुटीरेज चुना गया। गुटीरेज ने इक्वाडोर के तेल पर अमरीकी कम्पनियों के कब्जे का तीव्र विरोध किया। आर्थिक हत्यारों ने उससे कहा ‘‘मेरे पास तुम्हारे लिए धन है अथवा पिस्तौल की गोली।’’ एक महीने के अन्दर गुटीरेज वाशिंगटन गया। वहाँ बुश के साथ हाथ मिलाते हुए, उसके साथ बैठे हुए उसकी तस्वीर ली गयी जिसे पूरे इक्वाडोर में दिखाया गया। कुछ समय बाद वह अपने चुनावी वादों से मुकर गया। उसने तेल कम्पनियों के पुराने करार समाप्त कर दिये। वह वापस अपने देशवासियों के पास गया, जिनकी अमेजन क्षेत्र की जमीन को संरक्षित करने का उसने वादा किया था। इक्वाडोर की जनता क्रोधोन्मत्त हो गयी और सड़कों पर उतर आयी। उन्होंने विरोध और प्रदर्शन किये और अन्तत: उसे सत्ता से बाहर फेंक दिया। इक्वाडोर की जनता ने दिखा दिया कि वह वादा खिलापफी करने पर अपने चुने हुए नेता को उठाकर सत्ता से बाहर फेंक सकती है।

बोलीविया की पिछली सरकार भी अपनी ही जनता के खिलाफ सालों से आई–एम–एफ– की नीतियाँ लागू करती चली आ रही थी। वहाँ के कच्चे मालों को लगभग मुफ्रत में लूटकर वहाँ की जनता को भूखों मारा जा रहा था। इसके विरोध में चुनाव लड़कर इवो मोरालेस सत्ता में आ गये। अमरीकी सरकार ने उन्हें बदनाम करना शुरू कर दिया। उनको कोकीन उत्पादक किसान, फिदेल कास्त्रो का पक्षधर, समाजवादी और साम्यवादी बताकर बदनाम करने का प्रयास किया गया। यह सही है कि बोलीविया में कोका उगाया जाता है, जो वहाँ वैधानिक फसल है और कई तरह की दवाइयाँ बनाने में इसका प्रयोग होता है। लेकिन इवो मोरालेस के चुने जाने के पीछे असली कारण वह नहीं था जिसका अमरीकियों ने प्रचार किया। असली कारण कुछ और था। पहले आई–एम–एफ– और विश्व बैंक के जरिये विदेशी निगमों को बोलिविया के संसाधनों  को लूटने की खुली छूट थी, जिसके कारण वहाँ की जनता अत्यधिक पीड़ित थी। नतीजा यह कि केवल बोलीविया में ही नहीं बल्कि लातिन अमरीका के कई देशों में 36 करोड़ दक्षिण अमरीकियों में से 30 करोड़ यलगभग 80 पफीसदी जनताद्ध ने चुनाव में अमरीका विरोधी राष्ट्रपति चुना।

अमरीका अपने साम्राज्यवादी मंसूबे लातिन अमरीका में स्थापित करने में क्यों असफल हो रहा है?

जार्ज बुश का कहना है कि अफगानिस्तान और इराक में बुरी तरह पफँसे होने के कारण अमरीका अपनी पूरी ताकत के साथ लातिन अमरीकी देशों में अपनी साम्राज्यवादी नीतियों को थोपने में असफल रहा है। हो सकता है कि यह कुछ हद तक सही हो लेकिन असली कारण लातिन अमरीकी जनता और दुनिया की जनता का जनान्दोलन और जनसमर्थन है। कुछ साल पहले आर्थिक हत्यारों ने शावेज को सत्ता से उखाड़ फेंकने की कोशिश की और 48 घण्टे के लिए वे इसमें सफल भी रहे। लेकिन वहाँ की जनता के भारी दबाव ने और शावेज के वफादार सुरक्षा बलों ने पुन: शावेज की सत्ता बहाल कर दी। शावेज ने तेल कम्पनियों के बेहिसाब मुनाफे पर लगाम कसकर उसकी आय को जनता की सुविधाओं शिक्षा, स्वास्थ्य, सस्ता अनाज और आवास के विकास में लगाया। इसीलिए उन्हें जनता का प्रबल समर्थन मिला है। शावेज की जनता की हिमायती सरकार ने लातिन अमरीका के दूसरे देशों के आन्दोलनों को भी बहुत सहारा दिया। इवो मोरालेस जैसे नेता भी ह्यूगो शावेज को उदाहरण के रूप में देखने लगे।

इवो मोरालेस के साथ क्या हुआ?

जब इवो मोरालेस राष्ट्रपति बने तो बोलीविया में आर्थिक हत्यारों के कई दौरे हुए। अनेक तौर–तरीके आजमाने के बावजूद मोरालेस ने दृढ़ता से कहा-- ‘‘मेरे लोगों ने मुझे किसी मकसद से चुना है, और मैं उसका सम्मान करता हूँ।’’ यह उनकी शुरुआती प्रतिक्रिया थी। मोरालेस के समान व्यक्तियों पर कितना दबाव होता है, इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। वे जानते हैं कि उनसे पहले के राष्ट्रपति का क्या हुआ था। उनके ऊपर साम्राज्यवादी दबाव कसता चला जाता है। सर्वाधिक 54 पफीसदी मत प्राप्त करके मोरालेस सत्ता में आये। चुनाव में वे अपने कई विरोधियों से बहुत ऊपर थे। वे अपनी नीति लागू करना चाहते थे कि फिर कुछ आर्थिक हत्यारे उनके ऑफिस में गये और चेतावनी दी कि सोचो, तुमसे पहले वाले राष्ट्रपतियों का क्या हुआ था, लेकिन फिर भी वे डटे रहे।

ब्राजील दुनिया की एक शक्ति है। यह अत्याधिक संख्या में सैनिक हथियारों का उत्पादन करता है, जिसका प्रयोग दुनियाभर में होता है। वहाँ कुछ सालों पहले अमरीका विरोधी राष्ट्रपति लूला चुने गये। आर्थिक हत्यारों के प्रयास से उन्होंने अमरीकी नीतियों को लागू करना शुरू कर दिया। मगर कुछ समय से लग रहा है कि लूला फिर रास्ते पर आ रहे हैं। लूला ने शावेज, अर्जेण्टीना के किर्चनेर और बोलीविया के मोरालेस के साथ सन्धि की है। उनमें सहमति है कि यदि अमरीका उनके विरुद्ध कोई उग्र कार्रवाई करता है तो वे साथ रहकर उसका विरोध करेंगे। कमजोर होने के बावजूद यह सन्धि कापफी कारगर है।

लूला के एक प्रमुख परामर्शदाता ने अपनी आपबीती सुनायी ‘‘अभी तक आप लोगों ने जिन आर्थिक हत्यारों के बारे में सुना है वे तो कुछ भी नहीं हैं। मैं जब नवयुवक था, बहुत ही प्रगतिशील और तार्किक था। विश्वविद्यालय की पार्टियों में खूब मौजमस्ती और शराब उपलब्ध थी। मैं भी आमन्त्रित रहता था। अब मैं सत्ता में इस जगह पर हूँ। मुझे पता चला है कि किसी ने उन पुराने दिनों की तस्वीर ले रखी है।’’ उसने आगे कहा ‘‘आप विश्वास नहीं करेंगे, अमरीका की यह गोपनीय सेवा कितनी दूर–दूर तक फैली है। वह अपने तरीके से इन सेवाओं के लिए युवकों की भरती करता है। चाहे वे समाजवादी या साम्यवादी विचारों वाले ही क्यों न हों। इसके लोग हमारे दोस्तों से मिले होंगे और अधिक से अधिक जानकारियाँ हासिल कर ली होंगी। जब सरकार में हम उच्च पदों पर होंगे तो ये हमें ब्लैकमेल करेंगे। मैं समझता हूँ इसे ब्लैकमेल करना नहीं बल्कि अमरीका की वर्तमान कूटनीति कहना चाहिए।’’ लूला के बारे में पूछे जाने पर संकोच के साथ उसने कूटनीतिक जवाब दिया ‘‘इन अमरीकी निगमों से समझौते के बिना कोई भी ब्राजील में सत्तासीन नहीं हो सकता।’’

इक्वाडोर के गुटीरेज के खिलाफ काम करने वाले आर्थिक हत्यारे से मिली जानकारी के अनुसार अमरीका के जॉन केनेडी, राबर्ट केनेडी, मार्टिन लूथर किंग और जॉन लेनन की हत्याओं के पीछे भी इन्हीं आर्थिक हत्यारों का हाथ रहा है। ये केवल दूसरे देशों में ही नहीं बल्कि अपनी ही जन्मभूमि अमरीका में भी सक्रिय हैं।

सबसे त्रासद घटना जनरल नोरिएगा के साथ हुई जो पहले पूरी तरह अमरीका परस्त था। उसकी हत्या नहीं की गयी। उसके निर्दोष पनामावासियों पर बम गिराये गये, हजारों लोगों का कत्लेआम किया गया, जिन्दा जलाया गया। इसके बाद उसे अमरीका की जेल में ले जाकर कैद कर दिया गया।

आज दुनिया में लोगों के नजरिये में जबरदस्त बदलाव हो रहा है। पुरानी बेड़ियों के खिलाफ लोग विद्रोह करने लगे हैं। वे समझ रहे हैं कि अमरीका क्या चाहता है? आर्थिक हत्यारों की असलियत, अमरीका के साम्राज्यवादी मंसूबों और अपने ही देश के नेताओं के धोखेबाजी भरे कारनामों को लोग ज्यादा से ज्यादा जानने लगे हैं। वैश्वीकरण और उदारीकरण के लुभावने नारे के पीछे की सच्चाई-- गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी के साथ–साथ गरीब जनता के प्रति धोखे–फरेब और लूट की सच्चाई, अधिकाधिक लोगों के सामने आने लगी है। लोग अधिकाधिक इन अन्यायों के खिलाफ विद्रोह करने लगे हैं। इसलिए वे अब आर्थिक हत्यारों की चाल भी नहीं चलने दे रहे हैं। साम्राज्यवादी हमलों से अपनी हिफाजत के लिए लोग अब जनान्दोलन का रास्ता अपना रहे हैं। दुनिया हमेशा साम्राज्यवादियों की मनमर्जी से नहीं चलती रहेगी। इतिहास जहाँ है वहाँ से आगे जायेगा।

(देश-विदेश अंक-5, 2007 से)

 
 

 

 

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