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पृथ्वी का दुरुपयोग और अगली महामारी

चित्र: प्रीति गुलाटी कॉक्स द्वारा "ह्यूमन मिस्मा": खादी कपड़े पर कढ़ाई और ग्रेफाइट
 

 

मानवता के द्वारा पर्यावरणीय सीमाओं के अतिक्रमण ने बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचाया है, जिसमें जलवायु संकटकाल, जैव विविधता की विनाशकारी तबाही और दुनियाभर में बड़े पैमाने पर मिट्टी का व्यापक क्षरण शामिल है। कोविड-19 महामारी की वजह भी पृथ्वी का दुरुपयोग ही है और गंभीर संभावना है कि नए रोगजनकों (बीमारी पैदा करनेवाले) का अन्य जानवरों की प्रजातियों से मनुष्यों तक संक्रमण आगे भी जारी रहेगा।

खेती, जंगल की कटाई, खनन, पशु-पालन और अन्य गतिविधियाँ वन्यजीवों के आवास को दूषित और तबाह कर देती हैं, जिससे जानवरों के आगे मनुष्यों के करीब आने के सिवा कोई विकल्प नहीं रह जाता और पूरी सम्भावना होती है कि वे अपने साथ रोगजनकों को भी ले आयें। शहरी इलाके का फैलाव और पर्यटन (विशेष रूप से "इको-पर्यटन") भी मनुष्यों और वन्यजीवों को एक दूसरे के करीब लाते हैं। शिकार करने के दौरान जंगली जानवरों के साथ इनसानों का अंतरंग संपर्क लाजिमी  है; वास्तव में, प्रचलित परिकल्पना यह है कि हॉर्स-शू चमगादड़ के शिकार ने ही संभवतः उन घटनाओं की श्रृंखला को शुरू किया था, जो मौजूदा कोरोनो वायरस महामारी का कारण बनीं।

हजारों वर्षों से मनुष्य घरेलू जानवरों के साथ रहता आ रहा है, और शायद हमारे शरीर ने सीख लिया है कि हम अपने आस-पास से गुजरने वाले रोगजनकों से कैसे निपटें। लेकिन जब पारिस्थितिक तंत्र में गड़बड़ी पैदा होती है या उसका अतिक्रमण किया जाता है, तो नॉवेल जूनोटिक वायरस वन्यजीवों से घरेलू पशुओं में और वहां से मनुष्यों में स्थानांतरित हो सकते हैं। इस बात के पुख्ता परिस्थितिजन्य प्रमाण हैं कि 1918-19 की इन्फ्लूएंजा महामारी, जिसने 6,75,000 से अधिक अमेरिकियों की और दुनिया भर में 5 करोड़ लोगों की जान ली थी, वह एक फ्लू वायरस से फैला था, जो कि कान्सास के हास्केल काउंटी में सूअर से मनुष्यों में आया था. वहाँ से वह फोर्ट रिले में सेना के नये रंगरूटों को लगा और फिर उनके जरिये प्रथम विश्व युद्ध के मैदान में पहुँचा।

1997-98 में खेती की जमीन तैयार करने के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया के जंगलों में जो भयावह आग लगायी गयी, उसने इलाकाई सूखे के साथ-साथ, मलेशिया के जंगलों के कई फलदार वृक्षों को ख़त्म कर दिया। मृत वनों से भागते, फलों पर निर्भर चमगादड़ों ने घरेलू बागों में पनाह ली और अपने साथ निप्पा वायरस ले आये। उन बागों के भीतर पाले जानेवाले सूअर वायरस से भरी चमगादड़ की बूंदों से संक्रमित हो गये और वायरस को उन लोगों तक पहुँचा दिया, जो उन्हें पालते थे। निप्पा के कारण सूअर और मानव आबादी दोनों में ही बहुत ज्यादा मौतें होती हैं, क्योंकि इससे संक्रमित लोगों में से लगभग 50 प्रतिशत लोग मर जाते हैं।

हमने पिछले वर्ष के दौरान देखा कि एक बार जब नये कोरोना वायरस ने हमारी मानव जाति के भीतर अपना पैर जमा लिया, तो लंबी दूरी की यात्रा के प्रति आधुनिक इनसान की ललक ने उस वायरस के स्थानीय प्रकोप को एक विश्वव्यापी महामारी में बदल दिया। गंभीर जलवायु प्रभाव वाली एक अन्य तकनीक, एयर कंडीशनिंग ने भी कोविड-19 के प्रकोप को फैलाने में भी भूमिका निभायी। गर्मी का मौसम, एक ऐसा मौसम है जिसमें सांस की बीमारी फैलानेवाले वायरस आमतौर पर बेअसर हो जाते हैं, इसके बजाय पूरे गर्म इलाकों में संक्रमण काफी तेजी से बढ़ा, क्योंकि लोग गर्मी से बचने के लिए वातानुकूलित कमरों में एक साथ इकट्ठा होकर रहते थे।

छुट्टी में समुद्री यात्रा, जो दशकों पहले प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए था, खास कर इससे जुड़े श्रमिकों के शोषण तथा समुद्र और पर्यावरण पर बुरे प्रभाव को देखते हुए, उसके चलते शुरुआत में  सबसे खतरनाक प्रकोपों को बढ़ावा मिला। विराट मांस उद्योग, जिसमें मिट्टी और पानी की बेपनाह लूट होती है, ग्रीनहाउस गैसों का बेहिसाब मात्रा में उत्सर्जन होता है, वह भी वायरस का एक जबरदस्त प्रसारक साबित हुआ।

कुछ मामलों में, ग्रीनहाउस वार्मिंग खुद ही जूनोटिक संक्रमण के प्रसार की परिस्थिति तैयार करती  है। उदाहरण के लिए, पूर्वी और उत्तरी अफ्रीका में, जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा पड़ना पहले से ज्यादा बारम्बार और तीव्र हो गया है। कई पशुपालकों ने सूखे का मुकाबला करने के लिए अपने विविध मवेशियों के झुंडों की जगह ऊंट पाल लिये, जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि वे पानी के बिना लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं। नतीजतन, उस क्षेत्र में अब बड़ी संख्या में ऊंट भी मनुष्यों के साथ निकट संपर्क में हैं। चिंताजनक स्थिति यह कि कोरोना वायरस जो मध्य पूर्व में सांस की बीमारी का कारण बनता है, इस क्षेत्र के कई देशों में कूबड़वाले ऊँटों के झुण्ड में विचरण कर रहा है।

चमगादड़ में पैदा हुआ मध्य पूर्व रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (एम्ईआरएस), ऊँटों में स्थानिक महामारी हो गया है, और उसके बाद पिछले एक दशक के दौरान इसने बार-बार ऊँटों से मनुष्यों में छलांग लगायी है। यह कोविड-19 वायरस की तरह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से नहीं फैलता है, लेकिन इसका बड़े पैमाने पर फैलाने वाला तरतीब कहीं अधिक घातक है। 2012 से अब तक एम्ईआरएस वायरस से संक्रमित लगभग 2,500 लोगों में से एक-तिहाई की मौत हो गयी है। जैसे-जैसे सूखे की स्थिति बदतर होती जा रही है, किसान और चरवाहे दिनोंदिन अपने ऊंटों के लिए चारे की तलाश में लंबी यात्रा कर रहे हैं। यात्राएं अक्सर कई दिनों तक लम्बी होती हैं, और चूँकि उनके पास आग जलाने के लिए ईंधन नहीं होता, इसलिए चरवाहे अक्सर गर्माहट के लिए ऊंटों के करीब ही सो जाते हैं। आग और पानी के अभाव में, वे बिना गरम किये ही ऊँट का दूध पीकर खुद को टिकाये रखते हैं। यह सब वायरस के शिकार होने के जोखिम को बढ़ाता है।

शायद हम कोविड-19 महामारी से साल के अंत तक बाहर निकल जायें, लेकिन स्पष्ट रूप से ऐसा नहीं कहा जा सकता। संभावना यही है कि आगे भी हम नॉवेल कोरोन वायरस का सामना करते रहेंगे। वर्ष 2000 से पहले कभी भी कोरोना वायरस को चमगादड़ों से मानव आबादी में फैलने और मनुष्यों के लिए अत्यंत घातक बीमारी का कारण नहीं माना जाता था। हालांकि, उसके बाद दो दशकों में, सार्स-कोव-1 को शामिल करते हुए तीन ऐसी घटनाएं हुई हैं, जो 2002-2004 में "गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम" (सार्स) महामारी का कारण बना; मर्स-कोव, जो एम्ईआरएस का कारण है; और सार्स-कोव -2, जो कोविड-19 का कारण।

2020 में, डेविड मोरेंस और एंथोनी फौसी ने सेल जर्नल में लिखा है कि जैसे-जैसे हम पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचा रहे हैं, रोगजनक बढ़ती बारम्बारता के साथ मानव आबादी में अपना रास्ता तलाश रहे हैं: "कोविड-19 महामारी हमें एक बार फिर याद दिलाती है, जो तेजी से बढ़ते ऐतिहासिक अभिलेखागार में दर्ज हो गया है, कि मानव-प्रभुत्व वाली दुनिया में, जिसमें हमारी इनसानी गतिविधियां प्रकृति पर आक्रामक, नुकसानदायक और असंतुलित व्यवहार का प्रतिनिधित्व करती हैं, हम तेजी से नई बीमारी के पनपने को बढ़ावा देंगे। हम खुद भविष्य के लिए खतरा हैं। एक सदी के दौरान कोविड-19 सबसे ज्वलंत चेतावनियों में से एक है। यह हमें निष्कपट और सामूहिक रूप से सोचना शुरू करने के लिए मजबूर करती है कि हम प्रकृति के साथ कहीं ज्यादा विवेक और रचनात्मक सद्भाव से जीने के बारे में सोचें। भले ही हम प्रकृति की अपरिहार्य और हमेशा अप्रत्याशित, अचरज का मुकाबला करने की योजना ही क्यों न बना रहे हों।”

पारिस्थितिक क्षेत्र पर हमारे अतिक्रमण ने एक भानमती का पिटारा खोल दिया है। सार्स, एम्ईआरएस, और कोविड-19 पैदा करने वाले वायरस के अलावा, अब तक अध्ययन किए गए कुछ अन्य चमगादड़ कोरोना वायरसों में मनुष्यों पर हमला करने के लिए सभी जरूरी रोगजनक हथियार मौजूद हैं, और उन्हें प्रयोगशाला के चूहों को संक्रमित और बीमार करते हुए दिखाया भी गया है। इस क्षेत्र में दस शोधकर्ताओं ने अपने शोध-पत्र द ओरिजिन ऑफ कोविड-19 एंड वाइ इट मैटर्स” में लिखा कि, "विश्व स्तर पर फैले बैट कोरोना वायरसों के अनेकानेक समूह हैं" और कई, जैसे-- सार्स-सीओवी-2, मनुष्यों को संक्रमित करने के लिए "कार्यात्मक रूप से पहले से ही अनुकूलित" हैं। यह पूर्व-अनुकूलन चमगादड़, उदबिलाव, बिल्लियों, मनुष्यों और कुछ अन्य स्तनधारी प्रजातियों के मामले में एक समान हो सकता है, इस समानता का कारण है-- वायरस का वह समूह जिसके लिए हमारे फेफड़ों की कोशिका झिल्ली संवेदनशील होती है।

अभी और भी हैं। 2017 के बाद से एक और कोरोना वायरस कोविड-19 और सार्स वायरस की तरह ही हॉर्स-शू चमगादड़ से उत्पन्न हो रहा है-- जो चीन में कबूतरों के बीच घातक प्रकोप फैला रहा है। प्रयोगशाला में, एक नया जीवाणु सामने आया जिसमें मानव की श्वसन तंत्र और आंतों की कोशिकाओं को संक्रमित करने की आनुवंशिक क्षमता दिखाई देती है। मवेशियों, घोड़ों और सूअर में गंभीर बीमारी पैदा करने वाले तीन अलग-अलग कोरोना वायरस एक अन्य वायरस से काफी मिलते-जुलते हैं जो लंबे समय से मनुष्यों में आम सर्दी-जुकाम पैदा कर रहे हैं। ये पशुधन वायरस आनुवंशिक आदान-प्रदान के माध्यम से, हमें संक्रमित करने की क्षमता हासिल कर सकते हैं।

कोरोना  वायरस की विभिन्न किस्मों की एक-दूसरे से संयोजन की प्रवृत्ति, यानी एक दूसरे के साथ आनुवंशिक कोड के अंशों की अदला-बदली करने की रुझान को लेकर वैज्ञानिक काफी चिंतित हो रहे हैं। जैसाकि पता चला है, "कील" प्रोटीन को आकार देनेवाला कोड जिससे वायरस को संक्रमित व्यक्ति की कोशिकाओं में प्रवेश करने में आसानी होती है, विशेष रूप से पुनर्संयोजन के लिए व्याकुल होता है, यह इस चिंता को बढ़ाता है कि कील के रूपांतर वाले ऐसे कोड संक्रमण के लिए मानव कोशिकाओं को खोलने में "कुंजी" का काम कर सकते हैं और इसके जरिये कोविड-19 या सामान्य सर्दी-जुकाम वायरस जैसे मानव रोगजनक पशुधन वायरस में प्रवेश कर सकते हैं। इसके चलते पशुधन वायरस उन लोगों को संक्रमित करने की क्षमता हासिल कर सकते हैं जो उनके आसपास काम करते हैं। शोधकर्ताओं के शब्दों में, "कोरोना वायरस ज्ञात और अज्ञात दोनों प्रकार की प्रजातियों के साथ पुनर्संयोजन करके, बहुत ही तेजी से और अप्रत्याशित ढंग से रूप बदल सकते हैं।"

जिन दस वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि कोरोना वायरस मानव शरीर के लिए कार्यात्मक रूप से पूर्व-अनुकूलित हैं, उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि उनका डेटा--

"इस लंबे समय से स्पष्ट तथ्य की पुन: पुष्टि करता है: कि भविष्य में इनसान में होनेवाला कोरोना वायरस संक्रमण न केवल संभव  है, बल्कि उसकी प्रबल संभावना भी है। वर्षों पहले से वैज्ञानिक इस बात को जानते थे और उचित चेतावनी भी दी थी। लंबे समय तक उसकी अनसुनी करना आज हमसे एक त्रासद कीमत वसूल रहा है।"

जो कुछ भी पारिस्थितिक क्षेत्र के लिए अच्छा है, वह मानव स्वस्थ के लिए भी अच्छा है, और हम असहाय शिकार नहीं हैं। पारिस्थितिक तबाही से बचना और आने वाले दशकों में बारबार महामारियों के फैलाव को कम करना पूरी तरह हमारी क्षमता के भीतर है, लेकिन इसके लिए प्रकृति के साथ हमारी परस्पर क्रिया के मामले में हमें पारिस्थितिक सीमाओं का निष्ठापूर्वक सम्मान करना और काफी संयम बरतना जरूरी होगा।

(यह लेख मूल रूप से द लैंड इंस्टीट्यूट की लैंड रिपोर्ट द्वारा प्रकाशित किया गया था। “द ग्रीन न्यू डील एंड बियॉन्ड: द क्लाइमेट इमरजेंसी ह्वाइल वी स्टिल कैन” (सिटी लाइट्स, मई, 2020) पुस्तक के लेखक स्टेन कॉक्स हैं और ग्रीन सोशल थॉट के संपादकों में से एक हैं, जहां यह लेख पहली बार प्रकाशित हुआ। काउन्टरपंच से साभार। अनुवाद—दिगम्बर)

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