कोविड-19 और आपदा पूंजीवाद
अन्तरराष्ट्रीय जान बलेमी फोस्टर, इंतान सुवांडीअनुवाद -- ज्ञानेंद्र
माल-श्रृंखला और आर्थिक-पर्यावरणीय-महामारी-विज्ञान संकट
कोविड-19 ने पूंजीवाद द्वारा थोपी गयी परस्पर संबद्ध दुर्बलताओं-पर्यावरण संबंधी, महामारी-विज्ञान संबंधी और आर्थिक- को अभूतपूर्व रूप से बढ़ा दिया है। दुनिया 21वीं सदी के तीसरे दशक में प्रवेश कर रही है और हम आपदा पूंजीवाद का आविर्भाव होते देख रहे हैं। व्यवस्था का ढांचागत संकट वैश्विक आयाम ग्रहण कर चुका है।
20वीं सदी के अंत से पूंजीवादी वैश्वीकरण के दौरान लगातार ऐसी परस्पर संबद्ध माल-श्रृंखलाओं को अपनाया गया है जिनका नियंत्रण बहुराष्ट्रीय निगमों के हाथ में है। ये श्रृंखलाएं मुख्य रूप से ‘दक्षिण’ में स्थित विभिन्न उत्पादक क्षेत्रों को आमतौर पर ‘उत्तर’ में स्थित वैश्विक उपभोग, वित्त और पूंजी-संचय के सर्वोच्च केंद्रों से जोड़ती हैं। ये माल-श्रृंखलाएं ही पूंजी के वैश्विक माल परिपथों का निर्माण करती हैं और एकाधिकारी-वित्तीय पूंजी के सामान्यीकृत उभार से पहचाने जाने वाले हाल के साम्राज्यवाद की मुख्य परिघटना हैं।1इस व्यवस्था में, वैश्विक उत्पादन पर नियंत्रण से प्राप्त किया गया बेशुमार साम्राज्यवादी मुनाफा, न सिर्फ वैश्विक मजदूरी-अंतरपणन का परिणाम होता है जिसके जरिए बहुराष्ट्रीय निगम व्यवस्था के केंद्र में स्थित अपने मुख्यालयों के मार्फत परिधि के देशों में स्थित औद्योगिक मजदूरों का बेइंतहा शोषण करते हैं, बल्कि वैश्विक भूमि-अंतरपणन से भी कमाया जाता है जिसमें कृषि-व्यवसाय से जुड़े बहुराष्ट्रीय-निगम दक्षिण में स्थित सस्ती जमीनों और मजदूरों का दोहन करते हैं ताकि वैश्विक उत्तर में निर्यात के लिए फसलें उगायी जा सकें।2
आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में पूंजी के इन जटिल परिपथों से निपटते हुए बहुराष्ट्रीय निगमों के मैनेजर आपूर्ति और मूल्य- दोनों श्रृंखलाओं के बारे में बात करते हैं। जहां आपूर्ति-श्रृंखलाएं भौतिक उत्पादों की आवाजाही का प्रतिनिधित्व करती हैं, वहीं मूल्य-श्रृंखलाओं का मतलब कच्चे माल से लेकर अंतिम उत्पाद तक के हर पड़ाव पर ‘जोड़े गये मूल्य’ से होता है।3 आपूर्ति और मूल्य-श्रृंखलाओं पर यह दोहरा जोर कुछ-कुछ उत्पादन और मूल्य-श्रृंखलाओं के कार्ल मार्क्स द्वारा किये गए विश्लेषण से मेल खाता है जिसमें उन्होंने उपयोग-मूल्य और विनिमय-मूल्य दोनों को समाहित किया था। पूंजी के पहले खंड में मार्क्स ने प्राकृतिक पदार्थों में मौजूद मूल्य के दोहरे यथार्थ को रेखांकित किया है- उपयोग मूल्य (प्राकृतिक रूप) और ‘‘मालों के संसार में घटित होने वाले रूपांतरणों की आम श्रृंखला’’4 की हर कड़ी में मौजूद विनिमय मूल्य (अप्राकृतिक मूल्य रूप)। अपनी किताब ‘वित्तीय पूंजी’ में ‘‘मालों की विनिमय श्रृंखला की कड़ियों’’ के बारे में लिखते समय रुडोल्फ हिल्फर्डिंग मार्क्स के ही विश्लेषण को आगे बढ़ा रहे थे।
अंग्रेजी में देखें...https://monthlyreview.org/2020/06/01/covid-19-and-catastrophe-capitalism/
1980 के दशक में वैश्विक-व्यवस्था के सिद्धांतकार हेरेंस हापकिंस और इमानुएल वालेरस्टीन ने मूल्य-श्रृंखला की अवधारणा का मार्क्सवाद में मौजूद इसी बुनियादी समझदारी के आधार पर फिर से इस्तेमाल किया।6 तथापि मूल्य-श्रृंखला के परवर्ती मार्क्सवादी (और विश्व-व्यवस्था संबंधी) विश्लेषणों में इसे पूरी तरह से आर्थिक/मूल्य संबंधी परिघटना के तौर पर देखा गया और उपयोग मूल्य के भौतिक-पर्यावरण संबंधी पहलुओं को आमतौर पर भुला दिया गया। जबकि मार्क्स ने कभी भी प्राकृतिक-पदार्थ की उन सीमाओं को आंख से ओझल नहीं होने दिया था जिनमें पूंजी चक्कर लगाती है। वह उत्पादन की वास्तविक दशाओं, इंसानों और संपूर्ण प्रकृति के दोहन के संदर्भ में पूंजीवादी मूल्य-वृद्धि के ‘‘नकारात्मक या विनाशकारी पक्ष’’ पर हमेशा जोर देते रहे।’’7 सामाजिक उपापचय की अंतर-संबंधित प्रक्रिया में आई यह अपूरणीय दरार’’ (उपापचय दरार) जो ‘‘मिट्टी की उर्वरता को नष्ट करने’’ और ब्रिटिश खेतों में मछली का खाद बनाने के लिए मजबूर करने’’ के रूप में नजर आई थी और आजकल ‘‘नियमित रूप से फूट पड़ने वाली महामारियों’’ के रूप में साफतौर पर देखी जा सकती है, प्रकृति के साथ पूंजीवाद के संबंधों को विनाशकारी बनाती है और व्यवस्था के इन्हीं जैविक अंतरविरोधों की उत्पाद है।8
मूल्य-श्रृंखला के भीतर मौजूद दोहरे विरोधाभासी रूपों पर केंद्रित यह सैद्धांतिक ढांचा- जो उपभोग मूल्य और विनिमय मूल्य दोनों को शामिल करता है, आज के साम्राज्यवाद के भीतर मौजूद आर्थिक-पर्यावरण-महामारी विज्ञान संबंधी संकट की प्रवृत्तियों को समझने का आधार प्रदान करता है। यह हमें इस बात को समझने का अवसर देता है कि आज के साम्राज्यवाद के पूंजी-परिपथ महामारी के कारणों को कृषि-व्यवसाय से जोड़कर समझने में कैसे मददगार हैं और कैसे उन्होंने कोविड-19 महामारी को जन्म दिया। माल-श्रृंखला को आधार बनाकर समझने का यही परिप्रेक्ष्य यह समझने में भी हमारी मदद करता है कि कैसे भौतिक-उत्पादों के रूप में उपयोग मूल्य के प्रवाह के अवरुद्ध होने और परिणामस्वरूप विनिमय मूल्य के अवरुद्ध होने के चलते व्यवस्था में एक गंभीर और स्थाई आर्थिक संकट का जन्म हुआ है। अंत में, इस सबके परे एक बहुत बड़ी दरार इस धरती को अपने आगोश में लेती जा रही है जिसे आज का आपदा पूंजीवाद पैदा कर रहा है। इसकी अभिव्यक्ति जलवायु परिवर्तन और बहुत से अन्य भूमंडलीय संकटों के रूप में हो रही है- वर्तमान महामारी संकट भी इसकी एक आकस्मिक अभिव्यक्ति मात्र है।
पूंजी-परिपथ और पर्यावरण-महामारी विज्ञान संकट
उल्लेखनीय है कि पिछले दशक में बीमारियों के हेतु विज्ञान को लेकर एक नया ज्यादा व्यापक दृष्टिकोण सामने आया है- ‘एक विश्व-एक स्वास्थ्य।’ यह दृष्टिकोण मुख्यतः जंगली या पालतू जानवरों से आदमियों को हाल ही में लगी सार्स, मेर्स और एच 1 एन 1 जैसी बीमारियों के खिलाफ संघर्ष के दौरान विकसित हुआ। ‘एक स्वास्थ्य’ माडल पर्यावरण विज्ञानियों, डाक्टरों, पशु-चिकित्सकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को एक मंच पर लाकर महामारी-विज्ञान के विश्लेषणों को पर्यावरणीय आधारों से जोड़कर देखता है। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसके दायरे में पूरी दुनिया आ जाती है। तथापि ‘एक स्वास्थ्य’ के इस दृष्टिकोण को जो जानवरों से फैलने वाली बीमारियों के मामले में एक नया और ज्यादा व्यापक दृष्टिकोण है, प्रोत्साहित करने वाले मूल चौखटे को हाल में विश्व बैंक, विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिका स्थित ‘बीमारी नियंत्रण और रोकथाम केंद्र’ जैसे प्रभुत्वशाली संगठनों ने हड़प लिया और अंततः नकार भी दिया। इस तरह ‘एक स्वास्थ्य’ माडल का बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण बहुत तेजी के साथ बदल डाला गया और उसके स्थान पर एक ऐसा तरीका अपनाया गया जिसमें महामारी की घटना से निपटने की प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए सार्वजनिक-स्वास्थ्य, निजी-चिकित्सा, पशु-चिकित्सा, बड़ी कृषि-व्यवसायी और बड़ी दवा कंपनियों को साथ लाया जाता है। यह दृष्टिकोण एक व्यापक निगमीकृत रणनीति को महत्व देता है जिसमें पूंजी खासकर कृषि व्यवसाय से जुड़े निगमों का वर्चस्व है। इस तरह सर्वांगीण होने का दावा करने वाले इस माडल में महामारी-विज्ञान संकट और पूंजीवादी वैश्विक अर्थव्यवस्था के बीच के संबंध को कम करके बताने का सुव्यवस्थित प्रयास किया गया है।
इसकी प्रतिक्रिया-स्वरूप बीमारियों के हेतु-विज्ञान के बारे में एक नए क्रांतिकारी दृष्टिकोण का उदय हुआ है जिसे ‘ढांचागत एक स्वास्थ्य’ के नाम से जाना जाता है। हालांकि यह माडल ‘एक स्वास्थ्य’ माडल की आलोचना के दौरान विकसित हुआ है तथापि इसकी जड़ें व्यापक ऐतिहासिक-भौतिकवादी परंपरा में गहरी पैठी हुई हैं। ‘ढांचागत एक स्वास्थ्य’ माडल के प्रस्तावकों को मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करना है कि वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था में महामारियां पूंजी के इन परिपथों से कैसे जुड़ी हुई हैं जो पर्यावरण को बहुत तेजी से बदले रहे हैं। वैज्ञानिकों की एक टीम ने, जिसमें राड्रिक्स वालेस, लुईस फर्नांडो शावेज, ल्यूक वर्गमैन, कांस्टांसिया अयरेस, लेनी हागरवर्क, रिचार्ड काक और राबर्ट जी वालेस जैसे दिग्गज शामिल थे, साथ मिलकर शोधों की एक श्रृंखला का प्रकाशन किया है: मसलन; ‘स्पष्ट बीमारी नियंत्रण: पूंजी के नेतृत्व में जंगलों का कटान, सार्वजनिक स्वास्थ्य पर व्यय में कटौती और संवाहकों से फैलने वाले रोग’ और हाल ही में ‘मंथली रिव्यू’ के मई 2020 के अंक में छपा लेख ‘कोविड-19 और पूंजी-परिपथ’ (राब वालेस, एलेक्स लिबमेन, लुईस फर्नांडो शावेज और राड्रिक्स वालेस)। ‘ढांचागत एक स्वास्थ्य’- ‘‘एक नया क्षेत्र है जो पूंजी के वैश्विक परिपथों और दूसरे बुनियादी संदर्भों के, जिनमें गहन सांस्कृतिक इतिहास भी शामिल है, क्षेत्रीय कृषि अर्थव्यवस्था और उससे जुड़ी बीमारियों के विभिन्न प्राणियों में प्रसार पर पड़ने वाले प्रभावों का परीक्षण करता है।’’10
क्रांतिकारी ऐतिहासिक-भौतिकवादी दृष्टिकोण पर आधारित- ‘ढांचागत एक स्वास्थ्य’ माडल मुख्यधारा के ‘एक स्वास्थ्य’ माडल से कई मामलों में अलग है: 1) यह माल-श्रृंखलाओं को महामारियों का मुख्य कारण मानता है। 2) आमतौर पर अपनाए जाने वाले ‘‘पूर्णतः भौगोलिक’’ दृष्टिकोण को नकारता है जो केवल उन इलाकों पर ध्यान केंद्रित करता है जिनमें नए वायरस पैदा होते हैं लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था की प्रसार-नलिकाओं को देखने से चूक जाता है। 3) यह महामारी को किसी छिट-पुट घटना या कभी-कभार हो जाने वाली ‘‘अघटनीय घटना’’ नहीं मानता बल्कि पूंजी के एक ऐसे सामान्य ढांचागत-संकट के रूप में देखता है जिसकी स्पष्ट व्याख्या इस्तवान मेसजारोस ने अपनी किताब ‘पूंजी के परे’ में की है। 4) यह हार्वर्ड के जीव-विज्ञानियों- रिचर्ड लेविस और रिचर्ड लेवेंटिन द्वारा अपनी पुस्तक ‘द्वन्द्वात्मक जीव विज्ञानी’ में प्रतिपादित द्वन्द्वात्मक दृष्टिकोण को अपनाता है। 5) समाज की क्रांतिकारी पुनर्रचना पर जोर देता है ताकि ‘‘भूमंडलीय उपापचय’’11 को टिकाऊ बनाया जा सके। अपने लेख ‘बड़े फार्म बड़ी बीमारियों को जन्म देते हैं और दूसरी रचनाओं में राबर्ट जी वालेस मार्क्स की माल-श्रृंखला और ‘उपापचय-दरार’ की अवधारणा और लाडरडोल विरोधाभास, (जिसके मुताबिक निजी मुनाफे में वृद्धि सार्वजनिक स्वास्थ्य की तबाही पर आधारित होती है) के आधार पर सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च में कटौती और निजीकरण की आलोचना को अपने विश्लेषणों का प्रस्थान बिंदु बनाते हैं। इस प्रकार आलोचना की इस नई परंपरा में चिंतक पर्यावरण की तबाही और बीमारियों के हेतुविज्ञान के बारे में एक द्वंद्वात्मक नजरिए पर भरोसा करते हैं।12
स्वाभाविक रूप से, इस नए ऐतिहासिक-भौतिकवादी महामारी विज्ञान का जन्म हवा में से नहीं हुआ, बल्कि यह समाजवादी संघर्षों और आलोचनात्मक विश्लेषणों की लंबी परंपरा में विकसित हुआ है। इसमें से कुछ ऐतिहासिक योगदान हैं: 1) एंगेल्स की किताब ‘इंग्लैंड में मजदूर वर्ग की दशा’ जो संक्रामक रोगों के वर्गीय आधार की तलाश करती है: (2) ‘पूंजी’ में खुद मार्क्स द्वारा किया गया महामारियों और सार्वजनिक स्वास्थ्य की दशा का विवेचन; (3) ब्रिटिश जंतु विज्ञानी (चार्ल्स डारविन, थामस हक्सले प्रोटेजी और मार्क्स के मित्र) ई.रे. लंकेस्टर द्वारा अपनी किताब ‘मनुष्य का साम्राज्य’ में रोगों के मानवजनित स्रोतों का विवेचन और पूंजीवादी कृषि, बाजार और वित्तीय पूंजी के भीतर उनकी जड़ों की खोज; और (4) लेविंस का लेख- ‘क्या पूंजीवाद एक बीमारी है’।13
‘ढांचागत एक स्वास्थ्य’ माडल से जुड़े नए ऐतिहासिक-भौतिकवादी महामारी-विज्ञान में खास तौर पर महत्वपूर्ण बात है कि वह इसमें वैश्विक कृषि निगमों की भूमिका को स्पष्ट तौर पर स्वीकार करता है और इसे बीमारियों के हेतु-विज्ञान से जुड़े हर पहलू पर होने वाले विस्तृत शोधों, खासकर पशुओं से फैलने वाली नई बीमारियों के साथ जोड़कर देखता है। राब वालेस अपनी किताब ‘बड़े फार्म बड़ी बीमारियों को जन्म देते हैं’ में कहते हैं कि ये बीमारियां ‘‘जंतु भ्रूण-विज्ञान और पर्यावरण का बहुराष्ट्रीय निगमों के मुनाफों के लिए दोहन करने के प्रयासों का अपरिहार्य जैविक परिणाम’’ हैं जिनसे नए और ज्यादा खूंखार रोगाणुओं का जन्म होता है।14 खुले इलाकों/समुद्रों में जीवों की खेती जिसमें अनुवांशिक तौर पर समान घरेलू जानवरों का एकल संवर्धन (जो प्रतिरक्षा की दीवारों को गिरा देता है)- विशाल सुअरबाड़े और मुर्गी-फार्म शामिल हैं; औद्योगिक रूप से उत्पादित इन जानवरों का जंगली पक्षियों और दूसरे जंगली जानवरों के साथ अराजक तरीके से होने वाला मेल- जिसमें मीट-मछली के बाजार भी शामिल हैं; और जंगलों का तेजी से कटान- इन सबने मिलकर सार्स, मेर्स, इबोला, एच 1 एन 1 और नए सार्स-कोव-2 जैसे नए-नए और ज्यादा घातक रोगाणुओं के प्रसार की परिस्थितियों को पैदा किया है। एच 1 एन 1 से 5 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी जबकि सार्स कोव-2 से होने वाली मौतें इससे कहीं ज्यादा हो सकती है।15
राब वालेस लिखते हैं ‘‘सस्ती जमीन और सस्ती मजदूरी का फायदा उठाने के लिए कृषि-व्यवसाय में लगे निगम अपनी कंपनियों को दक्षिणी देशों में ले जा रहे हैं’’ और अपनी उत्पादन श्रृंखला को पूरी दुनिया में फैला रहे हैं।’’16इस तरह, पशु-पक्षी और मनुष्यों की अंतरक्रिया नई-नई बीमारियों को पैदा कर रही है। वालेस बताते हैं ‘‘इस निगमीकृत उत्पादन और व्यापार के वैश्विक नेटवर्क के भीतर कहीं भी किसी खास रोग के लक्षण उभरें, वे इसके जरिए पूरी दुनिया में तेजी से फैल जाते हैं। इन पक्षियों के झुंडों या जानवरों के रेवड़ों को समय रहते मुनाफा कमाने के लालच में लंबी-लंबी दूरियां तेजी से तय करके एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में घुमाया जाता है। बीमारियों के प्रति अतिसंवेदनशील इन जानवरों की बड़ी संख्या वाले इलाकों में लगातार तरह-तरह के बुखार और संक्रमण पनपते रहते हैं। बड़े पैमाने के व्यवसायिक मुर्गी-पालन से जुड़ी कार्रवाइयों के दौरान यह देखा गया है कि उनमें इन जंतु-जनित घातक बीमारियों के संक्रमण की संभावना बहुत ज्यादा होती है। नए एच1 एन1 जैसे संक्रामक रोगों के हेतु वैज्ञानिक कारणों को मुर्गी उत्पादन की माल श्रृंखला से जोड़कर समझने के लिए मूल्य श्रृंखला पर आधारित विश्लेषण का प्रयोग किया गया है।18 दक्षिणी चीन में फैले संक्रामक बुखार का उद्भव ‘निकट वर्तमान’ के संदर्भ में दर्शाया गया है जिसमें विभिन्न प्रकार की कृषि-पारिस्थितिकी के समय-समय पर होने वाले पूर्व नियोजित और आकस्मिक और दोनों तरह के मेल से बहुत तरह के जहरीले गैर-अनुवांशिक जीन संयोजन तैयार होते रहते हैं। इस उदाहरण के लिए प्राचीन काल में चावल, निकट- भूत में पालतू बत्तखों और वर्तमान में सघन मुर्गी पालन के मामले में’’। इस विश्लेषण को क्रांतिकारी भूगोल-विदों ने आगे बढ़ाया है, जैसे बर्गमैन का शोध: ‘एक एकल माल-श्रृंखला से परे वैश्विक अर्थव्यवस्था के जाल में जीवविज्ञान और अर्थव्यवस्था का सम्मिलन है।’19
कृषि व्यवसाय की परस्पर संबद्ध माल-श्रृंखलाएं, जो नई-नई जंतु जनित बीमारियों के उभार के लिए आधार प्रदान करती हैं, यह भी सुनिश्चित करती हैं कि इंसानी कड़ियों और वैश्वीकरण के जरिए ये रोगाणु एक जगह से दूसरी जगह तेजी से फैल सकें- मनुष्य तो कुछ दिनों, यहां तक कि कुछ घंटों में उन्हें धरती के एक कोने से दूसरे कोने तक ले जा सकते हैं। ‘‘कोविड-19 और पूंजी के परिपथ’’ लेख में वालेस और उनके सहकर्मी लिखते हैं: ‘‘कुछ रोगाणु तो ठीक उत्पादन के केंद्रों में पैदा होते हैं... लेकिन कोविड-19 जैसे बुखार पूंजीवादी उत्पादन के सीमांत प्रदेशों में जन्म लेते हैं। दरअसल मनुष्यों को संक्रमित करने वाले कम से कम 60 प्रतिशत रोगाणु जंगली जानवरों से स्थानीय मानव-समुदायों में आते हैं (इनमें से ज्यादा कामयाब पूरी दुनिया में फैल जाते हैं)।’’ इन बीमारियों के प्रसार की अवस्थाओं का सारसंकलन प्रस्तुत करते हुए वह कहते हैं:
इसकी बुनियाद में क्रियाशील आधार यह है कि कोविड-19 और दूसरे ऐसे रोगों का कारण सिर्फ किसी एक संक्रमण-एजेंट या उसके चिकित्सकीय विकासक्रम में नहीं पाया जा सकता बल्कि उसे पारिस्थितिकी तंत्र के साथ उन संबंधों के आधार पर भी खोजना होगा, जिनका पूंजी और दूसरे ढांचागत कारकों ने अपने फायदे के लिए बेजा इस्तेमाल किया है। विभिन्न प्रकार के जीव-समूहों, बीमारी फैलाने वाले प्राथमिक वाहकों, प्रसार के तरीकों, चिकित्सकीय विकास-क्रम और महामारी-विज्ञान संबंधी परिणामों का प्रतिनिधित्व करने वाले रोगाणुओं की विभिन्न प्रजातियां ऐसे निशान छोड़ती हैं जिनके चलते हम फटी आंखों से हर महामारी के वक्त कंप्यूटर के सर्च-इंजनों से चिपक जाते हैं और भूमि-उपयोग और मूल्य-संचय के एक ही तरह के परिपथों को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में और अलग-अलग रास्तों के जरिए चिन्हित करने लगते हैं।’’20
20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी के शुरुआत में हुआ। उत्पादन का साम्राज्यवादी ढांचागत समायोजन- जिसे हम वैश्वीकरण के नाम से जानते हैं- प्राथमिक तौर पर, मुख्यतः वैश्विक पूंजी और वित्त के उत्तर स्थित केंद्रों के फायदे के लिए वैश्विक दक्षिण में स्थित मजदूरों के मजदूरी-अंतरपणन और अतिशय शोषण (और महाशोषण) का परिणाम था (जिसमें स्थानीय पर्यावरण का नारकीय हद तक प्रदूषण शामिल है)। साथ ही यह अंशतः वैश्विक भूमि-अंतरपणन द्वारा भी संचालित था जिसके पीछे कृषि-व्यवसाय में लगे बहुराष्ट्रीय निगमों का हाथ था। एरिक होल्ट जीमेनेज की ‘‘खाने के एक शौकीन की पूंजीवाद की गाइड’’ के मुताबिक वैश्विक दक्षिण के अधिकांश देशों में जमीन की कीमतें उसके लगान की तुलना में इतनी ज्यादा कम हैं (यानी जमीन की कीमत क्या है और वह कितना उत्पादन कर सकती है) कि जमीन की कम कीमतों और उनसे वसूले जाने वाले सलाना लगान के बीच के अंतर का फायदा उठाकर (अंतरपणन से) निवेशक भारी मुनाफा कम लेते हैं। इस सौदे में फसलों से होने वाला किसी भी किस्म का फायदा दोयम दर्जा रखता है... भूमि-अंतरपणन के अवसर बढ़ाने के लिए अधिक लगान वाली नयी-नयी जमीनों को वैश्विक भूमि बाजार में लाते रहना पड़ता है जहां दरअसल इन लगानों को पूंजी में बदला जा सकता है।’’21 इसे सबसे बड़ी खुराक तथाकथित पशुपालन क्रांति से मिली जिसने बड़े-बड़े बाड़ों और अनुवांशिक तौर पर एक नस्ल के पशुओं के संवर्धन के जरिए पशुपालन व्यवसाय को एक वैश्वीकृत माल बना दिया है।22
इन परिस्थितियों को विभिन्न विकास बैंकों के द्वारा बढ़ावा दिया जाता है। ऐसा ‘‘प्रादेशिक ढांचागत समायोजन’’ के मोहक नाम के तहत किया जाता है जबकि इसके तहत जीवन निर्वाह के लिए खेती करने वाले किसानों और छोटे उत्पादकों को बेदखल करके बहुराष्ट्रीय निगमों, खासकर कृषि व्यवसाय करने वाले निगमों को फायदा पहुंचाने के साथ-साथ तेजी से जंगलों का सफाया और पर्यावरण तक की तबाही भी की जाती है। इसे 21वीं सदी की जमीनों की लूट भी कहा जाता है जिसे 2008 और 2011 की बुनियादी खाने की बढ़ी हुई कीमतों और 2007-09 के दानवाकार वित्तीय संकट के दौरान अविश्वास भरे समय में मुनाफे के लिए ठोस परिसंपत्तियों की तलाश कर रहे निजी फंडों ने त्वरित गति से बढ़ाया। इसका परिणाम मानव इतिहास के सबसे बड़े प्रवासन के रूप में सामने आया- वैश्विक स्तर पर चली किसानों के उजाड़ने की इस प्रक्रिया ने लोगों को जमीनों से बेदखल कर दिया, पूरे के पूरे इलाकों की कृषि-पारिस्थितिकी को बलपूर्वक बदल डाला गया, परंपरागत खेती की जगह एकल संवर्धन को बढ़ावा दिया गया और बड़ी आबादी शहरी झुग्गी बस्तियों में धकेल दी गयी।23
राब वालेस और उनके सहकर्मियों ने पाया कि इतिहासकार और शहरी समालोचक सिद्धांतकारों, माइक डेविस और अन्य ने ‘‘यह चिन्हित कर लिया था कि ये नए शहरीकृत इलाके किस तरह से वहां से गुजरने वाली वैश्विक कृषि जिंसों के लिए स्थानीय बाजारों के साथ-साथ क्षेत्रीय उत्पादन केंद्रों (रीजनल हब्स) की भी भूमिका निभाते हैं... परिणामस्वरूप रोगाणुओं के प्राथमिक स्रोत और जंगलों से जुड़ी बीमारियों की गतिकी इन इलाकों को आपूर्ति करने वाले सुदूर प्रांतरों तक ही सीमित नहीं रह जाती। उनसे जुड़े हुए महामारी विज्ञान के क्षेत्र भी देश-काल में परस्पर संबद्ध हो चुके हैं। यही वजह है कि चमगादड़ों की गुफाओं से निकलकर कुछ ही दिनों में सार्स अचानक शहरों में इंसानी आबादी के बीच तेजी से फैल जाता है।24
माल-श्रृंखला में रुकावट और वैश्विक बुलव्हिप प्रभाव
कृषि-व्यवसायी निगमों द्वारा गैर-इरादतन पैदा किए गए ये नए-नए रोगाणु अपने आप में प्राकृतिक-भौतिक उपयोग मूल्य नहीं होते बल्कि, इसके बरक्स, पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली की जहरीली तलछट होते हैं जिनका संबंध वैश्वीकृत खाद्य-व्यवसाय के अंग के बतौर काम करने वाली कृषि-व्यवसाय से संबद्ध माल-श्रृंखलाओं से होती है।25 इस तरह जैसा कि सबसे पहले एंगेल्स और लंकेस्टर द्वारा दर्शाया गया था, प्रकृति एक तरह से ‘‘बदला’’ जैसा लेती है। जैसे पानी में कंकड़ फेंका गया हो वैसे ही मौजूदा वैश्विक माल-श्रृंखलाओं और कृषि-व्यापार निगमों के कुकर्मों द्वारा शुरू की गयी पारिस्थिकी और महामारी विज्ञान से संबंधित विभीषिकाएं, जिन्होंने कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी को जन्म दिया, फैलती जाती हैं और समूची वैश्विक उत्पादन प्रणाली को ठप्प कर देती हैं।26 आज लाकडाउन और सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) के परिणामस्वरूप दुनिया भर की अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादन ठप्प हो चुका है और इसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आपूर्ति और मूल्य श्रृंखलाओं को हिलाकर रख दिया है। इसने एक ऐसा “दानवाकार बुलव्हिप प्रभाव’’ पैदा किया है जो वैश्विक माल-श्रृंखलाओं के मांग और आपूर्ति के छोरों से शुरू होकर ऊपर की ओर आयाम में बढ़ता चला गया है।27 इसके अलावा नवउदारवादी एकाधिकारी वित्तीय पूंजी के वैश्विक साम्राज्य के संदर्भ में भी कोविड-19 महामारी को देखा जाना चाहिए, जिसके तहत दुनियाभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य सहित तमाम सार्वजनिक खर्चों में कटौती को थोपा गया है। ठीक वक्त पर उत्पादन और समय बचाने की प्रतियोगिता को वैश्विक माल-श्रृंखलाओं के नियमन में दुनिया भर में अपना लेने के परिणामस्वरूप निगमों और अस्पतालों जैसी अन्य सेवाओं के पास बुरे वक्त के लिए जरूरी साजो-समान की एक बहुत छोटी सी फेहरिस्त बाकी रह गयी है। लोगों की तरफ से कुछ बेहद जरुरी सामानों की जमाखोरी ने इस समस्या को और ज्यादा बढ़ा दिया है।28 नतीजा है- पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था का असाधारण रूप से ढह जाना।
आज की वैश्विक माल-श्रृंखलाओं को, या जिन्हें हम मजदूरी-मूल्य श्रृंखलाएं भी कहते हैं, प्राथमिक तौर पर वैश्विक दक्षिण में स्थित अपेक्षाकृत गरीब देशों में सस्ती मजदूरी के दोहन के लिए नियोजित किया गया है (मजदूरी कम करके और उत्पादकता बढ़ाकर), जहां से अब दुनिया का बहुतायत औद्योगिक उत्पादन होता है। इसकी प्रमुख वजह है दक्षिण के देशों में मजदूरी की दरों का बेहद कम होना- जो उत्तरी देशों में दी जाने वाली मजदूरी का एक बहुत छोटा हिस्सा है। एक आदमी की औसत मजदूरी भारत में अमरीका के स्तर से 2014 में 37 प्रतिशत कम थी जबकि चीन में 46 प्रतिशत और मैक्सिको में 43 प्रतिशत। इंडोनेशिया में मजदूरी की दरें सबसे निचले पायदान पर थीं- अमरीकी स्तर से 62 प्रतिशत कम।29 इस बीच बहुराष्ट्रीय निगमों के निर्देशन में होने वाले ‘हाथ भर दूरी वाले’ उत्पादन और वैश्विक दक्षिण में स्थित निर्यात के नए मंचों द्वारा अपनायी गयी अत्याधुनिक तकनीक के जरिए बहुत से क्षेत्रों में वैश्विक उत्तर के प्रतिस्पर्धी स्तर की उत्पादकता विकसित कर ली गयी है। इसका परिणाम शोषण की एक एकीकृत वैश्विक व्यवस्था के रूप में सामने है, जिसमें वैश्विक उत्तर और दक्षिण के देशों के बीच मजदूरी का अंतर दोनों के बीच उत्पादकता के अंतर से ज्यादा है। परिणामस्वरूप दक्षिण के देशों में मजदूरी की दरें बहुत कम होती गयी हैं और गरीब देशों से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के दामों पर मुनाफे या (आर्थिक अधिशेष) की संभावनाएं बहुत ज्यादा बढ़ गयी हैं।
वैश्विक दक्षिण से बटोरा गया यह प्रचुर आर्थिक अधिशेष उत्तर के सकल घरेलू-उत्पाद के बहीखातों में मूल्य-संवर्धन के नाम से दर्ज किया जाता है। हालांकि इसे बेहतर ढंग से दक्षिण से हड़पे गए मूल्य के रूप में समझा जाना चाहिए। उत्पादन के वैश्वीकरण से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय शोषण की यह नई व्यवस्था ही 21वीं सदी के बुनियादी ढांचे का निर्माण करती है। वैश्विक मजदूरी-अंतरपणन के ईर्द-गिर्द बुनी गयी अंतर्राष्ट्रीय शोषण और बेदखली की इस व्यवस्था का नतीजा गरीब देशों में पैदा होने वाले मूल्य की धनी देशों द्वारा बड़े पैमाने पर निकासी है।
इस पूरी प्रक्रिया को परिवहन और संचार क्रांतियों ने सुविधाजनक बनाया है। जहाजों में लादे जाने वाले माल के कंटेनरों का मानकीकरण बढ़ने से ढुलाई की कीमतें बहुत कम हो गयी हैं। फाइबर-आप्टिक केबल, मोबाइल फोन, इंटरनेट, ब्राडबैंड, क्लाउड कंप्यूटिंग और वीडियो कांफ्रेंसिंग जैसी संचार तकनीकों ने दुनिया को परस्पर जोड़ दिया है। हवाई यात्रा ने द्रुत गति के परिवहन को बहुत सस्ता कर दिया है। 2010 और 2019 के बीच हवाई यात्रा में औसतन सलाना 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी।30 अमरीका के निर्यात का करीब एक तिहाई हिस्सा दुनिया के किसी और हिस्से में तैयार किये जा रहे अंतिम उत्पाद का कोई मध्यवर्ती उत्पाद या पुर्जा होता है जैसे कपास, स्टील, इंजिन और सेमी कंडक्टर।31 ये तेजी से बदलती हुई परिस्थितियां, तेजी से एकीकृत होते पूंजी संचय के एक पदानुक्रमित ढांचे को तैयार कर रही हैं जिसमें वैश्विक माल-श्रृंखलाओं के जाल फैलते जा रहे हैं। लेकिन चीन के विरुद्ध अमरीका के व्यापार युद्ध और कोविड-19 महामारी के वैश्विक आर्थिक दुष्प्रभावों के चलते इस जुड़ाव में अब अस्थिरता के लक्षण भी उभरते दिख रहे हैं।
कोविड-19 महामारी, अपने लाकडाउन और सामाजिक दूरी के साथ ‘‘वैश्विक आपूर्ति-श्रृंखला का पहला वैश्विक संकट बन गयी है। इसने आर्थिक तबाही, बेतहाशा बेरोजगारी और योग्यता से निम्न स्तर के रोजगारों, निगमों की बरबादी, बढ़ते शोषण, चौतरफा भुखमरी और वंचना को जन्म दिया है। वर्तमान संकट की जटिलता और अफरा-तफरी को समझने की कुंजी यह तथ्य है कि किसी भी बहुराष्ट्रीय निगम के किसी भी सीईओ के पास अपनी कंपनी की माल-श्रृंखला का कोई संपूर्ण नक्शा नहीं है।33 आमतौर पर निगमों के खरीद अफसरों और वित्तीय केंद्रों को केवल अपने पहले दर्जे के सप्लायरों की जानकारी होती है, दूसरे दर्जे के बारे में वे ज्यादा नहीं जानते (अर्थात उनके सप्लायरों को माल मुहैया कराने वाले सप्लायरों के बारे में) और तीसरे और चौथे दर्जे के सप्लायरों के बारे में तो और भी कम जानते हैं। एलिजाबेथ ब्राड ‘फारेन पालिसी’ जर्नल में लिखती हैं, ‘‘म्यूनिख की बुन्देश्वेर युनिवर्सिटी में आपूर्ति प्रबंधन के प्रोफेसर मिखाइल एसीग ने गणना की है कि वाक्सवेगन जैसी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के तथाकथित पहले दर्जे के 5000 तक सप्लायर होते हैं जिनमें से हरेक दूसरे दर्जे के औसतन 250 सप्लायरों से माल लेता है। इसका मतलब है कंपनी के वास्तविक सप्लायरों की संख्या 1 लाख 25 हजार तक होती है- जिनमें से अधिकांश के बारे में कंपनी कुछ नहीं जानती।’’ इस गणना में तीसरे दर्जे के सप्लायर शामिल नहीं हैं। जब चीन के वुहान में कोरोना के नए वायरस का संक्रमण फैला तो यह पता चला कि दुनियाभर की 51 हजार कंपनियों का कम से कम एक सीधा सप्लायर वुहान से था, जबकि 50 लाख कंपनियां ऐसी थीं जिनका कम से कम एक दोयम दर्जे का सप्लायर वुहान का था। 27 फरवरी 2010 को, जब आपूर्ति-श्रृंखला में रुकावट अभी महज चीन तक सीमित थी, दून और ब्रेड स्ट्रीट की एक रिपोर्ट को उद्धृत करते हुए विश्व आर्थिक मंच ने घोषणा की, कि अमरीका की पत्रिका फार्चून में सूचीबद्ध 1000 बहुराष्ट्रीय निगमों के 90 प्रतिशत के पहले या दूसरे दर्जे के कम से कम एक सप्लायर वायरस से प्रभावित थे।34
सार्स-कोव-2 वायरस के चलते निगम इस बात के लिए बाध्य हो गए हैं कि जल्दी से जल्दी पूरी माल-श्रृंखला का नक्शा बनायें। लेकिन यह एक बेहद जटिल काम है। जब फुकूशिमा में परमाणु ऊर्जा केंद्र दुर्घटनाग्रस्त हुआ तो पता चला कि दुनियाभर के औद्योगिक उत्पादन के लिए बेहद महत्व रखने वाले 60 प्रतिशत आटो पार्टस, लीथियम बैटरी के रसायनों का बड़ा हिस्सा, और दुनियाभर की 500 मिमी सिलिकन चादरें फूकूशिमा इलाके में बनते हैं। उस समय कुछ एकाधिकारी वित्तीय निगमों ने अपनी आपूर्ति-श्रृंखला का नक्शा तैयार करने की कोशिश की थी। ‘हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू’ के मुताबिक ‘‘एक जापानी सेमीकंडक्टर निर्माता कंपनी के एक आला अधिकारी ने हमें बताया कि 2011 में भूकंप और सुनामी (और फूकूशिमा नाभिकीय दुर्घटना) के बाद 100 लोगों की एक टीम को कंपनी की आपूर्ति-श्रृंखला का नीचे के दर्जों तक का नक्शा बनाने में एक साल से भी ज्यादा का वक्त लग गया था।’’35
ऐसी माल-श्रृंखलाओं की मौजूदगी में जिनकी बहुत सी कड़ियां अदृश्य हों और श्रृंखलाएं बहुत जगहों से टूटी हों, निगमों की, भौतिक वस्तुओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग में ‘‘कायापलट की श्रृंखला’’ (मार्क्स के शब्दों में) को रुकावटों और अनिश्चितताओं से दो-चार होना पड़ता है। साथ ही आपूर्ति की कुल मांग में अराजकता पूर्ण परिवर्तन आते हैं। कोरोना वायरस महामारी और दुनिया के पूंजी संचय पर इसके प्रभावों की व्यापकता अभूतपूर्व है और दुनिया भर के कुछ 3 अरब लोग या तो लाकडाउन में थे या सामाजिक दूरी बनाये रखने वाले चरण में।36 अधिकांश निगमों के पास अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में जगह-जगह हुई टूट-फूट से निपटने की कोई आपातकालिक योजना नहीं है।37 इस समस्या की विकरालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2020 के शुरुआती महीनों में चीन से शुरु करके दुनियाभर के सभी हिस्सों में दसियों हजार सप्लायर आपूर्ति करने में अक्षमता की घोषणा करने को बाध्य हो गए। उन्होंने असामान्य बाह्य कारकों का हवाला देते हुए अनुबंध को पूरा करने से इंकार कर दिया। इसके साथ ही बहुत सारे मालवाहक समुद्री जहाजों को या तो ‘‘खाली ले जाना’’ पड़ा या उनकी निर्धारित समय पर यात्रा रद्द करनी पड़ी क्योंकि मांग या आपूर्ति की घटती के चलते माल फंस गया था।38 अप्रैल के शुरुआत में, अमरीका के राष्ट्रीय खुदरा संघ ने बताया कि 20 फुट साइज के कंटेनरों का मार्च के महीने में लदान पिछले 5 साल में सबसे कम रहा था और जहाजों में माल की ढुलाई में इससे भी ज्यादा तेजी से गिरावट की संभावना थी।39दुनियाभर में यात्री विमानों की उड़ानों में 90 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गयी, जिसका फायदा उठाकर प्रमुख अमरीकी एअरलाइंस ने-“अपने हवाई जहाजों के पेटों और यात्री केबिनों की सीटें हटाकर माल रखने की जगह बना ली और उन्हें मालवाहक विमानों के तौर पर इस्तेमाल करना” शुरू कर दिया।40
विश्व व्यापार संगठन द्वारा अप्रैल के शुरू में लगाये गए अनुमानों के मुताबिक अगर अपेक्षाकृत आशावादी होकर सोचा जाए तो भी कोविड-19 महामारी 2020 में विश्व व्यापार में 13 प्रतिशत की वार्षिक गिरावट के लिए जिम्मेदार होगी। जबकि एक अपेक्षाकृत निराशावादी अनुमान करें तो यह गिरावट 32 प्रतिशत तक होगी। दुनिया के व्यापार में एक साल में होने वाला यह नुकसान 1930 के दशक की महामंदी के दौरान 3 सालों में हुए नुकसान के बराबर होगा।41
वैश्विक आपूर्ति-श्रृंखला में महामारी के दौरान आई रुकावट के भयावह प्रभाव चिकित्सा उपकरणों के मामले में खास तौर पर स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। अमरीका में अस्पतालों के लिए आमतौर पर खरीददारी करने वाले संगठनों में से एक प्रमुख संगठन ‘प्रीमियर’ ने बताया कि वह अपने सदस्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और संगठनों के लिए आमतौर पर 2.4 करोड़ एन-95 मास्क खरीदता है, लेकिन केवल जनवरी और फरवरी 2020 में ही इसके सदस्यों ने 5.6 करोड़ मास्क इस्तेमाल किए हैं। मार्च के आखिर में प्रीमियर ने 11-15 करोड़ मास्क का आर्डर दिया जबकि सर्वे करने पर इसके सदस्य संगठनों- अस्पतालों और नर्सिंग होमों- का कहना है कि उनके पास मुश्किल से एक हफ्ते की जरूरत पूरी करने लायक मास्क बचे हैं। चिकित्सकीय मास्क की मांग जहां दानवाकार होती जा रही थी, वही वैश्विक आपूर्ति लगभग ठप्प थी।42 कोविड-19 की टेस्ट किट की वैश्विक आपूर्ति भी चिंताजनक रूप से कम भी जब तक कि चीन ने मार्च के अंत में अपने उत्पादन को पुनर्जीवित नहीं कर लिया।43
अभी और भी बहुत सारे साजो-समान की आपूर्ति बहुत कम हो रही है जबकि आमतौर पर फैली अराजकता की स्थिति में कुछ गोदामों से माल हटाने पड़ रहे हैं, उदाहरण के लिए फैशन के कपड़ों के गोदाम जिनकी मांग अचानक गिर गयी है। ठीक समय पर उत्पादन और समय बचाने पर आधारित प्रतिस्पर्धा वाली इस दुनिया में लागत कम करने के लिए आम तौर पर गोदामों में कम से कम माल ही भंडारित किया जाता है। किसी लचीलेपन के अभाव में मई की शुरुआत से अमरीका में बहुत सारी खुदरा आपूर्ति-श्रृंखलाएं और आटो पार्ट्स वाले आपूर्ति के गंभीर संकट का सामना करने वाले हैं। टेसला के लिए आपूर्ति-श्रृंखला रणनीति बनाने वाले और वर्तमान में इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली स्टार्टअप कंपनी लूसिड मोटर्स की खरीद के प्रमुख पीटर हासेन-कैंप ने बताया, ‘‘एक कार बनाने में 2500 पार्टस लगते हैं लेकिन एक भी कम हो तो कार तैयार नहीं होती।’’ अमरीका में कोविड-19 के टेस्ट किट की आपूर्ति का संकट इसलिए पैदा हुआ क्योंकि जांच-तीलियों (स्वैब) की कमी हो गयी थी।44 अप्रैल 2020 के मध्य तक वैश्विक विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) कंपनियों में से 81 प्रतिशत आपूर्ति की कमी की शिकार थीं। इसका प्रमाण है कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के बाद से मार्च तक, बाह्य कारणों से अनुबंध पूरा कर पाने में असमर्थता की घोषणा करने के मामलों में 44 प्रतिशत की वृद्धि और उत्पादन की तालाबंदी के मामलों में 38 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी। परिणामस्वरूप न सिर्फ माल की कमी हुई बल्कि वित्तीय प्रवाह भी संकटग्रस्त हो गया और इस तरह ‘‘वित्तीय जोखिम में भारी बढ़ोत्तरी’’ हुई।45
वर्तमान बहुर्राष्ट्रीय निगम अगर विनिमय मूल्य पैदा कर पा रहे हैं तो उपयोग मूल्य की रत्ती भर भी परवाह नहीं करते। उनके लिए आपूर्ति-श्रृंखला में रुकावट का वास्तविक आर्थिक असर होता है- मूल्य-श्रृंखला अर्थात् विनिमय मूल्य के प्रवाह में बाधा। हालांकि वैश्विक आपूर्ति में रुकावट का विनिमय मूल्य पर कुल क्या प्रभाव पड़ा, कुछ समय बाद ही इसका आकलन संभव हो पाएगा लेकिन इसने पूंजी संचय में जो संकट पैदा कर दिया है उसे निगमों के मालों के मूल्यों की गिरावट के आधार पर अनुमानित किया जा सकता है। बोइंग, नाइक, हेरशे, सन माइक्रोसिस्टम्स और सिसको जैसी सैकड़ों कंपनियों ने पिछले दो दशकों में माल-श्रृंखला में चिंताजनक रुकावटों का सामना किया है। करीब 800 मामलों पर आधारित अध्ययनों ने दर्शाया है कि आपूर्ति-श्रृंखला में आने वाली ऐसी रुकावटों का कंपनियों पर पड़ने वाला औसत प्रभाव होता है: ‘‘आय में 107 प्रतिशत की कमी, बिक्री पर मिलने वाले लाभ में 114 प्रतिशत की गिरावट, परिसंपत्तियों पर लाभ में 93 प्रतिशत की कमी, बिक्री की वृद्धि दर में 7 प्रतिशत की कमी, लागत में 14 प्रतिशत की वृद्धि और गोदाम में 14 प्रतिशत ज्यादा भंडारण।’’ और ये नकारात्मक प्रभाव अमूमन 2 साल तक जारी रहते हैं। इसी शोध के मुताबिक, ‘‘आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटों की शिकार कंपनी को अपनी जमा पूंजी पर होने वाले लाभ में 33-40 प्रतिशत की कमी का सामना करना पड़ता है। इसका हिसाब लगाते समय रुकावट की घोषणा के एक साल पहले और दो साल बाद का समय लेकर तीन साल के औसत की तुलना 3 सामान्य सालों के औसत से की गई है। इसके अलावा रुकावट के पहले के एक साल की तुलना में बाद के एक साल में शेयरों की कीमतों की नाजुकता 13.5 प्रतिशत ज्यादा होती है।’’46
यद्यपि कोई नहीं जानता कि हमारे वर्तमान पर इस सबका क्या असर होगा, यहां तक कि एक कंपनी के बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता। मूल्य-वृद्धि और पूंजी संचय को लेकर भय की हर वजह मौजूद है। हर कहीं उत्पादन गिर रहा है और योग्यता से कम के रोजगार और बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ रहे हैं क्योंकि कंपनियां मजदूरों की छंटनी कर रही हैं, और वे यहां अमरीका में किसी तरह जीने की जुगाड़ में लगे हैं। इस सर्वग्रासी संकट के समय में मजबूत होने का दिखावा करने के लिए निगम अब अपनी माल-श्रृंखलाओं को फैलने से रोकनेके लिए आपस में प्रतियोगिता कर रहे हैं। तथापि, वैश्विक मजदूरी-अंतरपणन के क्षेत्र में हो रही कायापलट की पूरी श्रृंखला के अवरुद्ध होने से विश्व अर्थव्यवस्था में वित्तीय मंदी का खतरा दरपेश है, जिसे अभी तक ठहराव, कर्ज और वित्तीयकरण ही कहा जाता रहा है।
आपूर्ति-श्रृंखलाओं को वित्त मुहैया करने के मामले में सामने आई कमजोरियां भी किसी मामले में कमतर नहीं हैं- इससे निगमों को, बैंकों द्वारा उपलब्ध करवाए गए वित्त के चलते अपने सप्लायरों का भुगतान टालने में मदद मिलती है। वालस्ट्रीट जर्नल के मुताबिक कुछ निगमों में आपूर्ति-श्रृंखला को बैंकों के जरिए वित्त मुहैया करवाना बाध्यकारी है क्योंकि इससे उनके खातों में दर्ज कर्जे कम हो जाते हैं। निगमों पर सप्लायरों के इन कर्जों को दूसरे वित्तीय हितों द्वारा छोटी अवधि के रुक्कों के रूप में वित्तीय बाजार में बेचा जाता है। क्रेडिट सुसे ने बड़ी अमरीकी निगमों जैसे केलाग और जनरल मिल्स की इस तरह की देनदारियों के रुक्के खरीदे हुए हैं। मूल्य-श्रृंखलाओं में आम रुकावट के साथ वित्त की यह जटिल श्रृंखला, जो अपने आप में सट्टेबाजी का विषय है, स्वाभाविक रूप से संकटग्रस्त और पहले से ही खस्ताहाल वित्तीय व्यवस्था को और भी दुर्बल बना रही है।47
साम्राज्यवाद, वर्ग और महामारी
हाल के वर्षों में पैदा हुए नए, या पुराने फिर से पलट कर आए अन्य खतरनाक रोगाणुओं की तरह सार्स-कोव-2 भी बहुत से कारकों के जटिल संयोग का परिणाम है: 1) वैश्विक कृषि-व्यवसायी निगमों का विकास और उनके द्वारा अनुवांशिक एकल संवर्धन तकनीक द्वारा पशु-पक्षियों इत्यादि का उत्पादन जो जंतु-जनित बीमारियों के जंगली-जानवरों से पालतू जानवरों और फिर मनुष्यों में संक्रमण की संभावना को बढ़ाता है; 2) जंगलों के विनाश के चलते जंगली जानवरों के आवास और कार्य-कलापों में बाधा; और 3) मनुष्यों का पहले की अपेक्षा ज्यादा नजदीक रहना। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वैश्विक माल-श्रृंखलाएं और उनके द्वारा दुनिया को जिस कदर जोड़ दिया गया है- यह बीमारियों के तेजी से प्रसार का जरिया बन गए हैं जो विकास के इस वैश्विक शोषणकारी पैटर्न पर सवालिया निशान खड़ा कर देता है। कोरोना वायरस के संदर्भ में लिखते हुए मार्गन स्टेनले के भूतपूर्व मुख्य अर्थशास्त्री और वैश्विक मजदूरी-अंतरपणन की अवधारणा के मूल प्रस्तोता येल स्कूल आफ मैनेजमेंट के स्टीफन कोच कहते हैं: निगमों के वित्तीय मुख्यालय बस यही चाहते हैं कि ‘‘उन्हें सस्ता माल मिले, भले ही इसके बदले में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्चों में कटौती हो, या मैं यह भी कहूंगा कि पर्यावरण सुरक्षा और साफ-सुथरे पर्यावरण के लिए निवेश कम कर दिए जाएं।’’ ‘‘लागत-दक्षता’’ (कम लागत में ज्यादा मुनाफा) को लेकर इस तरह के गैर-टिकाऊ नजरिए का ही परिणाम है वर्तमान वैश्विक पारिस्थितिकी और महामारी विज्ञान संकट, और उसके वित्तीय दुष्परिणाम, पहले से ही वित्तीय बुलबुले के जैसी ‘‘बहुत ज्यादा फूली’’ और फूटने को तैयार व्यवस्था को ज्यादा अस्थिर कर रहे हैं।’’48
आज धनी देश कोविड-19 महामारी और उसके वित्तीय दुष्प्रभावों के केंद्र बचे हुए हैं लेकिन समग्रता में यह संकट, जिसमें आर्थिक और महामारी संबंधी दुष्प्रभाव शामिल हैं, गरीब देशों पर ज्यादा भारी पड़ेगा। इस तरह के भूमंडलीय संकट से कैसे निपटा गया है- यह अंततः साम्राज्यवादी वर्ग संरचना से छनकर नीचे तक आ ही गया। मार्च 2020 में इंपीरियल कालेज लंदन की कोविड-19 रेस्पोंस टीम ने एक रिपोर्ट जारी की। इसमें दर्शाया गया था कि रोकथाम के सामाजिक दूरी और लाकडाउन जैसे उपायों के अभाव में सार्स कोव-2 दुनिया भर में 4 करोड़ लोगों की जान ले सकता है और गरीब देशों की तुलना में अमीर देशों में मृत्यु दर ज्यादा होगी क्योंकि उनकी आबादी का बड़ा हिस्सा 65 साल या इससे ज्यादा उम्र का है। लेकिन इस अनुमान में गरीब देशों में मौजूद कुपोषण, गरीबी और संक्रामक रोगों के प्रति अपेक्षाकृत अधिक संवेदनहीनता जैसे कारकों को नजरअंदाज कर दिया गया। इन मान्यताओं के बावजूद भी इंपीरियल कालेज के अनुमानों के मुताबिक रोकथाम के उपाय न किए जाने के परिदृश्य में पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 1.5 करोड़, दक्षिण एशिया में 76 लाख लाटिन अमरीका और कैरीबियाई देशों में 30 लाख, अफ्रीका के सहारा उपक्षेत्र में 25 लाख और मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका में 17 लाख मौतें हो सकती हैं- जबकि इसकी तुलना में यूरोप और केंद्रीय एशिया में 72 लाख और उत्तरी अमरीका में 30 लाख मौतों का ही अनुमान लगाया गया।49
येल युनीवर्सिटी के अहमद मुशाफिक मुबारक और जाचारी बर्नेट हावेल ने सत्ता प्रतिष्ठान के जर्नल ‘फारेन पालिसी’ के लिए लिखे अपने लेख ‘गरीब देशों को सामाजिक दूरी के मामले पर पुनर्विचार करना चाहिए’ में इंपीरियल कालेज के दृष्टिकोण के आधार पर ही अपना विश्लेषण प्रस्तुत किया है। अपने लेख में मुबारक और बर्नेट हावेल यह स्पष्ट दलील देते हैं कि ‘‘महामारी संबंधी गणितीय माडल यह स्पष्ट कर देते हैं कि अमीर देशों में हस्तक्षेप (अर्थव्यवस्था में) न करने की कीमत दसियों हजार से लेकर लाखों लोगों की जान के रूप में चुकानी होगी- यह सबसे भयानक मंदी, जिसकी हम कल्पना कर सकते हैं, से भी ज्यादा बड़ी क्षति होगी। दूसरे शब्दों में, सामाजिक दूरी का पालन करवाना और लाकडाउन को सख्ती से लागू करना- उनसे जुड़े आर्थिक नुकसान के बावजूद अमीर देशों में एक लोगों का जीवन बचाने के लिए एक बेहद युक्तिसंगत कदम होगा’’ तो भी, यही उपाय गरीब देशों के लिए सही नहीं होंगे क्योंकि उन देशों में उम्रदराज लोगों की संख्या कुल आबादी में अपेक्षाकृत बहुत कम है, और क्योंकि इंपीरियल कालेज के अनुमान के मुताबिक इन देशों में मृत्यु दर अमीर देशों की आधी होगी। वे यह स्वीकार करते हैं कि यह माडल, ‘‘गरीब देशों में ज्यादा मात्रा में पाई जाने वाली जानलेवा बीमारियों, श्वास रोगों, प्रदूषण, और कुपोषण जैसी समस्याओं को नजरअंदाज कर देता है जो कोरोना वायरस से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ा सकती हैं। इस तरह, इन समस्याओं को प्रायः नजरंदाज करते हुए अपने लेख (और येल युनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग के एक संबंधित अध्ययन) में लेखक इस बात पर जोर देते हैं कि गरीब देशों में मौजूद दरिद्रता, और भारी बेरोजगारी और योग्यता से कम के रोजगारों को देखते हुए यह बेहतर होगा कि वे सामाजिक दूरी, या बड़े पैमाने पर टेस्ट करने और सख्त लाकडाउन जैसे कदम न उठायें और इसके बजाय आर्थिक उत्पादन को बरकरार रखने की कोशिश करें- शायद इससे वैश्विक आपूर्ति-श्रृंखलाएं अबाध कायम रह सकें जो कम मजदूरी वाले देशों से शुरू होकर ऊपर तक जाती हैं।50 निस्संदेह ये लेखक पूंजी के साम्राज्य की निरंतर उन्नति के लिए वैश्विक दक्षिण के देशों में करोड़ों लोगों की मौत को एक अच्छा सौदा मानते हैं।
माइक डेविस की दलील के अनुसार 21वीं सदी का पूंजीवाद ‘‘मानवता को एक स्थाई मरणासन्नता... मानव जाति के संभावित विनाश के कयामत वाले चरण” की ओर ले जा रहा है। वे प्रश्न उठाते हैं:
“क्या होगा जब कोविड-19 का प्रसार उन इलाकों में होगा जहां चिकित्सा मुट्ठी भर लोगों के लिए उपलब्ध है और कुपोषण का स्तर बहुत ऊंचा, जहां बीमारियां इलाज न मिलने से नासूर बन चुकी हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो गयी है? अफ्रीका और दक्षिणी एशिया की झुग्गी बस्ती में रहने वाले एक गरीब नौजवान के लिए कम उम्र होने के फायदे की बात करना बेमानी है।
यह भी संभव है कि झुग्गी बस्तियों और गरीब शहरों में बड़े पैमाने पर संक्रमण का फैलाव कोरोना वायरस के संक्रमण के तरीके और बीमारी की प्रकृति को ही बदल डाले। 2003 में सार्स के आने से पहले कोरोना वायरस से जुड़ी बेहद संक्रामक महामारियां घरेलू जानवरों, सबसे ज्यादा सूअरों तक सीमित थीं। जल्दी ही शोधकर्ताओं ने संक्रमण फैलने के दो भिन्न रास्तों का पता लगाया: पहला, दूसरे के मल और गंदगी का मुंह के रास्ते पेट और आंतों में प्रवेश और दूसरा- सांस के जरिए फेफड़ों में संक्रमण का प्रवेश। पहले मामले में मृत्यु दर आमतौर पर बहुत ज्यादा होती है जबकि दूसरे में अपेक्षाकृत कम। वर्तमान में कोविड पाजीटिव पाये गए मामलों में से-बहुत थोड़े में, खासकर पानी के जहाज से जुड़े मामलों में, उल्टी-दस्त की शिकायत सामने आई है जबकि एक रिपोर्ट के मुताबिक, “सीवेज, कचरा, प्रदूषित पानी, ए.सी., खांसी, छींक और थूक के छीटों के जरिए सार्स कोव-2 के प्रसार की संभावना को कम करके नहीं आंका जा सकता।”
यह महामारी अब अफ्रीका और दक्षिण एशिया की झुग्गियों में फैल चुकी है जहां मुंह के रास्ते गंदगी पेट में जाने की संभावनाएं हर ओर मौजूद हैं: पानी में, घर में उगाई गई सब्जियों में और हवा में बहने वाली धूल में (हां, गंदगी भरे तूफान एक सच्चाई हैं)। क्या यह आंतों के रास्ते को चुनेगा? क्या जैसा कि जानवरों में होता है, यह संभवतः सभी उम्र के लोगों में और भी ज्यादा मारक संक्रमण को ही जन्म देगा?’’51
डेविस की दलील, इस अवस्थिति के पीछे की अनैतिकता को बेनकाब कर देती है। महामारी को रोकने के लिए सख्त लाकडाउन और सामाजिक दूरी जैसी उपाय धनी देशों में तो अपनाए जाने चाहिए पर गरीब देशों में नहीं। इस तरह की शातिर साम्राज्यवादी महामारी-विज्ञान संबंधी रणनीतियां वैश्विक दक्षिण के देशों की आबादी में मौजूद गरीबी को, जो साम्राज्यवाद द्वारा ही पैदा की गयी है, माल्थसवाद या सामाजिक डार्विनवाद जैसे सिद्धांतों को-सही ठहराने के लिए इस्तेमाल करती हैं; जिसके तहत वैश्विक अर्थव्यवस्था को विकासमान बनाये रखने के लिए लाखों लोगों की बलि चढ़ा दी जाती है ताकि व्यवस्था के शीर्ष पर विराजमान मुट्ठीभर लोगों का मुनाफा बढ़ता रहे। इसके बरक्स समाजवादी नेतृत्व में आगे बढ़ते वेनेजुएला द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण को देखिए, जहां क्यूबा और चीन के माडल पर सामूहिक भागीदारी से संगठित सामाजिक दूरी और सामाजिक प्रावधान की रणनीनियों को हर व्यक्ति के स्तर पर जाकर छंटाई की प्रक्रिया से मिलाया गया ताकि सबसे नाजुक लोगों को चिन्हित किए जा सके, व्यापक स्तर पर टेस्ट किए गए और अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार किया गया- परिणामस्वरूप लाटिन अमरीका के इस देश में कोविड-19 से प्रति हजार आबादी पर होने वाली मौतें सबसे कम हैं।52
आर्थिक रूप से, पूरा वैश्विक दक्षिण महामारी की-सबसे बड़ी कीमत चुकाने को अभिशप्त है जबकि यह महामारी के सीधे प्रभावों से काफी अलग बात है। वैश्विक उत्तर में रद्द किये गए सप्लाई आर्डरों के चलते वैश्विक आपूर्ति-श्रृंखला में ठहराव और (साथ में पूरे विश्व में चल रहे लाकडाउन और सामाजिक दूरी की पालना के चलते) निकट भविष्य में माल-श्रृंखलाओं में संभावित कायापालट पूरे के पूरे देशों और इलाकों को तबाह कर देगा।53
यहां इस बात को समझ लेना महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 महामारी का अवतार वैश्विक वर्चस्व के लिए डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा चीन के विरुद्ध शुरू किए गए आर्थिक व्यापार युद्ध के मध्य हुआ है। यह व्यापार 2008 के बाद से विश्व अर्थव्यवस्था के कुल विकास के 37 प्रतिशत के लिए उत्तरदायी रहा है।54 ट्रंप प्रशासन इसे अन्य साधनों से लड़े जाने वाले युद्ध की संज्ञा देता है। इस आर्थिक युद्ध के कारण बहुत सी अमरीकी कंपनियां अपनी आपूर्ति-श्रृंखलाओं को चीन से अलग कर चुकी हैं। उदाहरण के लिए लेवीज कंपनी जो 2015 में चीन से 16 प्रतिशत माल बनाती थी, 2019 में उत्पादन घटाकर केवल 1-2 प्रतिशत पर आ गयी है। अमरीका में विभिन्न कंपनियों के 160 आला अधिकारियों पर हाल में किए गए एक सर्वे के मुताबिक दो तिहाई लोगों ने माना कि इस व्यापार युद्ध और कोविड-19 के चलते वे अपनी कारोबारी गतिविधियों को चीन से हटाकर मैक्सिको ले जाने के बारे में सोच रहे हैं या योजना बना रहे हैं या ले जा चुके हैं क्योंकि वहां मजदूरी की दरें तुल्य हैं और वहां वे अमरीकी बाजारों के ज्यादा करीब होंगे।55 चीन के विरुद्ध अमरीका का आर्थिक युद्ध अब इतनी भयानक हद तक जा चुका है कि ट्रंप प्रशासन ने स्वास्थ्य कर्मियों के लिए अत्यावश्यक निजी सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) पर भी मार्च के अंत तक शुल्क में कटौती नहीं की थी।56 इस दौरान ट्रंप ने चीन के साथ वर्चस्व की अपनी आर्थिक लड़ाई के प्रमुख रहे अर्थशास्त्री पीटर नवारो को कोविड-19 संकट से निपटने के लिए बने ‘रक्षा उत्पादन कानून’ से जुड़ी कार्रवाइयों का मुखिया नियुक्त कर दिया है।
चीन के विरुद्ध व्यापार युद्ध में अमरीका को निर्देशित करने और रक्षा उत्पादन कानून के नीति संयोजक की भूमिका में नवारो ने चीन पर ‘‘व्यापारिक आघात’’ का आरोप लगाया जिसकी वजह से अमरीका को ‘‘50 लाख से ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग के रोजगारों और 70 हजार फैक्टरियों’’ से हाथ धोना पड़ा और रोजगारों के उजड़ने, परिवारों और स्वास्थ्य की तबाही की वजह से हजारों अमरीकी नागरिकों को जान गंवानी पड़ी। और अब उसने घोषणा कर दी है कि इतना काफी नहीं था कि चीन ने ‘चीनी’ वायरस का आघात किया है।57 इस कुत्सित प्रचार के आधार पर नवारो ने अमरीका की कोरोना वायरस से मुकाबला करने की नीति को तथाकथित “चीनी वायरस” से लड़ने की और अमरीकी आपूर्ति श्रृंखलाओं का चीन से अलग करने की आवश्यकता है, के ईर्द-गिर्द संयोजित करने की दिशा में कदम बढ़ाये। फिर भी, क्योंकि आज दुनिया भर के तमाम मध्यवर्ती उत्पादों का, सबसे उच्च तकनीक के क्षेत्र में एक तिहाई चीन में बनाया जाता है और क्योंकि वह आज भी वैश्विक मजदूरी-अंतरपणन की कुंजी है, इस तरह के समायोजन के प्रयास बेहद हानिकारक होंगे, और ये इसे पूरी तरह संभव करने की हद तक जा सकते हैं।58
चीन से अपना बोरिया-बिस्तर समेट चुकी कुछ बहुराष्ट्रीय निगमों को बाद में ठोकर खाकर इस बात का एहसास हुआ कि उनका यह निर्णय चीन पर उनकी निर्भरता से उन्हें ‘मुक्त’ नहीं करता। उदाहरण के लिए, सैमसंग अपने इलेक्ट्रानिक पुर्जों के उत्पादन को समेटकर वियतनाम की अपनी कंपनियों में ले गयी। वियतनाम उन कंपनियों के लिए एक शरणस्थली है जो व्यापार युद्ध की ऊंची शुल्क दरों से बचना चाहती हैं। लेकिन वियतनाम खुद भी खतरे में है क्योंकि निर्माण सामग्री और मध्यवर्ती उत्पादों के लिए वह चीन पर बुरी तरह से निर्भर है।59 पड़ोसी दक्षिण एशियाई देशों से भी इसी तरह के मामले सामने आए हैं। चीन, इंडोनेशिया का सबसे बड़ा व्यापारिक-भागीदार है और देश के औद्योगिक कच्चे माल का 20-50 प्रतिशत चीन से आता है। फरवरी में, इंडोनेशिया के बाटम इलाके में स्थित फैक्टरियां चीन से (इस इलाके में होने वाले 70 प्रतिशत उत्पादन के लिए उत्तरदायी) कच्चे माल की आपूर्ति में कमी का सामना कर रही थीं। इन कंपनियों का कहना है कि उन्होंने दूसरे देशों से कच्चा माल मंगवाने की कोशिश की पर ‘‘यह बिल्कुल भी आसान नहीं है।’’ इसके बजाय बहुत सी कंपनियों ने ‘‘अपने उत्पादन को पूरी तरह रोक देने’’ को तरजीह दी।60फुयाओ ग्लास उद्योग के अरबपति संस्थापक, काओ दिवांग जैसे चीनी पूंजीपतियों का अनुमान है कि महामारी के बाद वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में चीन की भूमिका कमजोर पड़ जाएगी। लेकिन दक्षिण एशिया के देशों में ‘‘आधारभूत ढांचे के अभाव’’, वैश्विक उत्तर में ऊंची मजदूरी दरों और उन बाधाओं के बारे में जिक्र करते हुए जिनका ‘‘अमीर देशों’’ को मुकाबला करना होगा अगर वे ‘‘अपने देश में मैन्यूफैक्चरिंग को फिर से खड़ा करने की कोशिश करते हैं”, अन्त में वे कहते हैं कि कम से कम थोड़े समय के लिए ही सही ‘‘वैश्विक औद्योगिक श्रृंखला में चीन की जगह लेने वाले देश को ढूंढ़ पाना बेहद मुश्किल होगा।’’61
कोविड-19 के संकट को बाहरी ताकतों के हस्तक्षेप का परिणाम या एक आकस्मिक ‘‘अघटनीय घटना’’ (ब्लैक स्वान इवेंट) समझना गलत होगा। बल्कि यह संकट की बहुत सी ऐसी प्रवृत्तियों का एक जटिल संयोग है जिनका आमतौर पर पूर्वानुमान संभव है, भले ही उनके होने का ठीक-ठीक समय नहीं बताया जा सके। आज पूंजीवादी व्यवस्था का केंद्र उत्पादन और निवेश के मामले में चिरस्थायी संकट से जूझ रहा है और अपने विस्तार और मुट्ठी भर लोगों के धन संचय के लिए ऐतिहासिक रूप से कम ब्याज दरों, भारी-भरकम कर्जों, बाकी दुनिया से अपनी तरफ पूंजी की निकासी, और वित्तीय सट्टेबाजी से आस लगाए है। आय और संपत्ति में असमानता अभूतपूर्व रूप से बढ़ गयी है। वैश्विक पारिस्थितिकी में मौजूद दरार भूमंडलीय आयाम तक पहुंच चुकी है और एक ऐसे भूमंडलीय वातावरण का निर्माण कर रही है जो मानवता के लिए बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है। वैश्विक एकाधिकारी वित्तीय पूंजी की व्यवस्था की बुनियाद से नयी-नयी महामारियां सर उठा रही हैं और यह अपने आप में बीमारियों के प्रसार का मुख्य जरिया बन चुकी है। राज्य व्यवस्था हर कहीं दमन के उच्च स्तरों की ओर बढ़ रही है- भले ही कहीं उसके हाथ में नवउदारवाद का झंडा हो या कहीं नवफासीवाद का।
राज्य व्यवस्था की असमान्य रूप से शोषणकारी और विनाशक प्रकृति इस बात से एकदम स्पष्ट हो जाती है कि हर जगह शारीरिक श्रम करने वाले(ब्लू-कालर) मजदूरों को महत्वपूर्ण आधारभूत ढांचे के आवश्यक मजदूर (अमरीका के घरेलू सुरक्षा विभाग द्वारा औपचारिक तौर पर प्रस्तुत अवधारणा) घोषित कर दिया गया है, जिनसे अधिकांशतः बिना सुरक्षा उपकरणों के उत्पादन के काम को अंजाम देते रहने की आशा की जाती है, जबकि ज्यादा विशेषाधिकार प्राप्त मुट्ठीभर वर्ग खुद को सामाजिक दूरी के तहत अलग करके घर बैठे हैं।62 एक सच्चा लाकडाउन ज्यादा व्यापक होगा और उसके लिए राज्य के प्रावधानों और योजनाबद्धता की दरकार होगी ताकि बड़े वित्तीय समूहों के हितों की जमानत पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय पूरी आबादी की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके। सामाजिक दूरी के ठीक इसी वर्ग चरित्र और आय के साधनों, घर, संसाधनों और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के अभाव का ही नतीजा है कि अमरीका में कोविड-19 के मामलों और मौतों का बोझ मुख्यतः वहां की कालों और दूसरी रंगतों की आबादी को उठाना पड़ रहा है जहां आर्थिक और पर्यावरण के लिहाज से सबसे बुरी अन्यायपूर्ण स्थितियां मौजूद हैं।63
सामाजिक उत्पादन और भूमंडलीय उपापचय
मार्क्स के भौतिकतवादी दृष्टिकोण की बुनियाद है- उन्हीं के शब्दों में ‘‘आवश्यकताओं का... पदानुक्रम’’।64 इसका मतलब है कि मनुष्य एक भौतिक अस्तित्व के रूप में इस प्रकृति और दुनिया का अंग है और साथ ही वह इस दुनिया के भीतर अपनी खुद की सामाजिक दुनिया का निर्माण करता है। भौतिक रूप से अस्तित्वमान होने के चलते पहले उन्हें अपनी भौतिक जरूरतों- खाना-पीना, भोजन, आवास, कपड़ा, स्वास्थ्य इत्यादि जीवन के लिए बुनियादी अवस्थाओं का निर्माण करना होता है। इसके बाद ही वे मनुष्य के भीतर मौजूद उन संभावनाओं की पूरी तरह साधना कर सकते हैं जो उन्हें विकास के उच्चतम स्तरों पर ले जाए।65 तथापि वर्गीय समाजों में हमेशा से ही वास्तविक उत्पादनकर्ताओं की अधिकांश आबादी ऐसी परिस्थितियों में धकेल दी जाती है जहां अपनी सबसे बुनियादी जरुरतों की पूर्ति के लिए ही उन्हें लगातार जूझते रहना पड़ता है। बुनियादी तौर पर इन हालात में कोई बदलाव अभी तक नहीं हुआ है। कई सदियों के विकास से जोड़ी गयी प्रचुर धन सम्पदा के बावजूद, यहां तक कि सबसे सम्पन्न पूंजीवादी समाजों में भी, करोड़ों लोग, आज भी बुनियादी सुविधाओं, जैसे भोजन की गारंटी, घर, साफ पानी, इलाज की व्यवस्था और परिवहन, के मामले में अनिश्चितता और परवशता का जीवन जीने की अभिशप्त है- जबकि अमरीका के तीन अरबपतियों की संपत्ति नीचे की आधी आबादी की कुल सम्पत्ति से ज्यादा है।
इस बीच स्थानीय और इलाकाई पर्यावरण को- दुनिया के तमाम पारिस्थितिकी तंत्रों और मानवता के लिए एक सुरक्षित स्थान के रूप में पृथ्वी के अपने तंत्र की तरह- खतरे में डाल दिया गया है। वैश्विक ‘‘लागत-दक्षता’’ (सस्ते श्रम और सस्ती जमीनों के लिए एक व्यंजनापूर्ण नामकरण) पर जोर बहुराष्ट्रीय पूंजी को वैश्विक माल श्रृंखलाओं की जटिल संरचना खड़ी करने की ओर ले गया है जो हर बिंदु पर दुनिया भर के सस्ते श्रम के आरंभिक और असीमित शोषण के हिसाब से डिजाइन की गयी हैं। साथ ही पूरी दुनिया को जमीन-जायदाद की खरीद-फरोख्त के बाजार (रीयल एस्टेट मार्केट) में बदल दिया गया है, जिसका अधिकांश कृषि-व्यवसायी निगमों की कारगुजारियों का गढ़ बन गया है। इसके परिणामस्वरूप वैश्विक व्यवस्था के परिधि देशों से अतिरिक्त श्रम की बड़े पैमाने पर निकासी, दुनिया भर की जनता और धरती की संपदा की लूट हो रही है। पूंजी द्वारा अपनायी जाने वाली रोकड़-बही की संकीर्ण व्यवस्था में अधिकांश भौतिक अस्तित्वों- पूरे पृथ्वी-तंत्र और मनुष्य के अस्तित्व की सामाजिक दशाओं को ऐसी बाहरी चीजें समझा जाता है जिन्हें जब तक कि वे बाजार में नहीं आतीं, पूंजी संचय के लिए लूटा-खसोटा जा सकता है। जिसे गलती से ‘‘लोक त्रासदी’’ समझ लिया गया है, उसके लिए बेहतर संज्ञा, गाई स्टैंडिंग के शब्दों में, दरअसल ‘‘निजीकरण त्रासदी’’ है। लाडरडेल के सामंत द्वारा 19वीं सदी की शुरूआत में प्रस्तुत सुप्रसिद्ध ‘लाडरडेल विरोधाभास’जिसके मुताबिक निजी मुनाफों और निजी फायदे के लिए सार्वजनिक संपत्ति को तबाह करना जायज है, के दायरे में आज हमारी पूरी पृथ्वी आ चुकी है।66
वर्तमान साम्राज्यवाद के पूंजी-परिपथों में यह प्रवृत्ति अपने उरुज पर पहुंच चुकी है और एक तेजी से विकसित होते भूमंडलीय परिस्थितिकी संकट को जन्म दे रही है। जैसा कि हम जानते हैं, यह संकट पूरी मानव सभ्यता को निगलने के लिए मुंह बाये खड़ा है। हम संपूर्ण विनाश के कगार पर खड़े हैं। पूंजी संचय की इस व्यवस्था के शीर्ष पर बैठे लोग, जो नकद पैसे-कौड़ी के लेन-देन से स्वतंत्र होकर सोचने की क्षमता खो चुके हैं, इसके लिए जिम्मेदार हैं। यह व्यवस्था जनता की बुनियादी जरुरतों के बारे में कोई तर्कसंगत इंतजाम करने में पूरी तरह अक्षम है।67 पूंजी संचय और धन के भंडारों के साथ-साथ आम तौर पर हर तरह के कचरे का भी उत्पादन और फैलाव तेजी से बढ़ता जाता है। इस तबाही के बीच, एक नया शीत युद्ध शुरू हो चुका है और ताप नाभिकीय तबाही की बढ़ती संभावनाएं पैदा हुई हैं। इसके अग्रिम मोर्चे पर एक ऐसा अमरीका खड़ा है जिसके भीतर अस्थिरता और आक्रोश बढ़ता जा रहा है। इसके चलते एटोमिक साइंटिस्ट बुलेटिन को अपनी प्रसिद्ध कयामत की घड़ी को आगे बढ़ाकर मध्य रात्रि से 100 सेकेंड पहले पर सेट करना पड़ा है जो 1974 में घड़ी के चालू होने के बाद मध्य रात्रि के सबसे करीब का समय है।68
कोविड-19 महामारी और दूसरी इससे भी ज्यादा खूंखार और तेजी से फैलने में सक्षम बीमारियों का खतरा हाल के इस साम्राज्यवादी विकास का ही परिणाम है। वैश्विक शोषण और लूट की श्रृंखलाओं ने न केवल परिस्थितिकी तंत्रों को बल्कि जीव-जंतुओं के पारस्परिक संबंधों को भी उथल-पुथल कर दिया है और रोगाणुयुक्त विषैले मिश्रण का निर्माण कर रही हैं। इन सब समस्याओं की जड़ में है: अनुवांशिक एकल संवर्धन के साथ कृषि-व्यवसायी निगमों का आविर्भाव, पारिस्थितिकी तंत्रों की बड़े पैमाने पर तबाही जिसमें जीव प्रजातियों के अनियंत्रित मिश्रण बन रहे हैं, और प्राकृतिक और सामाजिक सीमाओं को ताक पर रखकर जमीन, जलाशयों, जंगलों, जीव-प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्रों को ‘‘मुफ्त का माल’’ समझकर लूटने पर आधारित वैश्विक पूंजी संचय की यह व्यवस्था।
ऐसा नहीं है कि नया वायरस ही विश्व की स्वास्थ्य संबंधी एकमात्र समस्या है। कृषि व्यवसाय और आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में एंटीबायोटिक दवाओं के हद से ज्यादा इस्तेमाल ने इन दवाओं से बेअसर जीवाणुओं की नयी पीढ़ी का भयावह तेजी से विकास किया है जिसके चलते बीमारियों से होने वाली मौतों की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि वह इस सदी के मध्य तक कैंसर से होने वाली सालाना मौतों से भी ज्यादा हो सकती है और विश्व स्वास्थ्य संगठन को ‘‘वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल’’ की घोषणा करनी पड़ी है।69 पूंजीवादी वर्ग-समाज में मौजूद गैर-बराबरीपूर्ण जीवन परिस्थितियों के कारण संक्रामक बीमारियों का कहर सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग और गरीब लोगों पर और परिधि के देशों में रहने वाली जनता पर टूटता है। इसलिए वह व्यवस्था, जो पूंजी और धनसंग्रह के लिए इस तरह की बीमारियों को पैदा करती है, उसे सामाजिक हत्या के आरोप में कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए, जैसा कि एंगेल्स और चार्टिस्टों ने 19वीं सदी में किया था। परिस्थिति विज्ञान के क्षेत्र में हुए क्रांतिकारी विकास ने- जिसका प्रतिनिधित्व ‘एक स्वास्थ्य’ और ‘ढांचागत एक स्वास्थ्य’ में हुआ है- सुझाया है कि नयी महामारियों के कारकों को वैज्ञानिक तौर पर समझने के लिए जरूरी है कि इसे पूंजीवाद द्वारा खड़ी की गयी पारिस्थितिकी तंत्रों की तबाही जैसी समस्याओं के साथ जोड़कर समग्रता में समझने की कोशिश की जाए।
यहां फिर से ‘‘पूरे समाज के क्रांतिकारी पुनर्निर्माण की आवश्यकता सिर उठाती है- जैसा कि पहले भी कई बार महसूस होता रहा है।70 समकालीन ऐतिहासिक विकास का तर्क, सामाजिक उपापचय और पुनरुत्पादन की एक ज्यादा सामूहिक लोकपरक व्यवस्था की मांग करता है, जिसमें प्रकृति से सम्बद्ध उत्पादक प्रकृति के साथ अपने सामाजिक उपापचय का तर्कसंगत ढंग से नियमन करते हैं ताकि सबके मुक्त विकास की पूर्वशर्त के तौर पर हरेक के मुक्त विकास को प्रोत्साहन मिल सके और पर्यावरण और ऊर्जा भी संरक्षित रहें।71 21वीं सदी में मानवता का भविष्य आर्थिक और पारिस्थितिकी तंत्र की बढ़ती लूट-खसोट, साम्राज्यवाद और युद्ध से निर्धारित नहीं होगा बल्कि जैसा कि मार्क्स ने कहा था, ‘‘सबकी आजादी’’ और एक व्यवहारिक और टिकाऊ ‘‘भूमंडलीय उपापचय’’ के संरक्षण में निहित है जो आज मनुष्य जाति के वर्तमान और भविष्य, और यहां तक कि, उसके अस्तित्व के कायम रहने के लिए बेहद अपरिहार्य आवश्यकताएं बन चुकी हैं।
(साभार : मंथली रिव्यु)
शब्द चयन/टिप्पणियां
Catastrophe - आपदा, महाविनाश
Commodity - माल, जिंस
Ecological - पारिस्थितिक, पर्यावरणीय
Epidemiological– महामारी-विज्ञान संबंधी
Imperial rents- साम्राज्यवादी लगान
Arbitrage- अंतरपणन, हुंडी, ऋणपत्र, विदेशी मुद्रा, मजदूरी, जमीन इत्यादि का एक साथ खरीद-फरोख्त करना ताकि दोनों के बीच के अंतर से मुनाफा कमाया जा सके
Metabolism- उपापचय, पौधों और जीवों में खाने के लिए रस चूसने और पचाने की प्रक्रिया
Guano - मछली का खाद
Anticity - कठोर आर्थिक कटौतियां
Vector-borne diseases-संवाहक जनित रोग जो रोगाणुओं और परजीवियों के जरिए फैलते हैं।
Black swan event-अघटनीय घटना
Etiology of diseases- बीमारियों का हेतु-विज्ञान, जो उनके कारणों की तलाश करता है।
Valorisation -मूल्य संवर्धन
Zoonotic diseases – जंतु जनित या जानवरों से फैलने वाले रोग
Ontology - भ्रूण विज्ञान
Mono culture - एकल संवर्धन जिसके तहत एक जैसे अनुवांशिक गुणों वाले जीवों का नियंत्रित वातावरण में विकास किया जाता है।
Recombinants- माता-पिता से भिन्न जीन संयोजन
Melange- मेल, संयोग
Agri-ecology-कृषि पारिस्थितिकी
Historical present-निकट वर्तमान
Tika-जीव-समूह
Bullwhip effect- इस अवधारणा के तहत जैसे-जैसे माल-श्रृंखला में ऊपर की ओर चलेंगे, संकट की विकरालता बढ़ती जाएगी, ठीक वैसे ही जैसे पानी में कंकड़ फेंकने से तरंगों का दायरा बड़ा होता चला जाता है।
Arm’s length production- एक बहुराष्ट्रीय निगम की अपनी कंपनियों के बीच लेन-देन की कीमतें वही रखना जो खुले बाजार में अपरिचित कंपनी के साथ सौदे में होती हैं।
Force majeure - किसी बाहरी कारण की वजह से ठेके की शर्तों को पूरा कर पाना
Melt down - मंदी
Short term note - अल्पावधि रुक्का
Triage - मरणासन्नता, मरीज की गंभीरता के आधार पर इलाज के लिए छंटाई।
Fecaloral infection - दूसरे के मल/गंदगी का मुंह के रास्ते पेट/आंतों में पहुंचकर उन्हें संक्रमित करना
Lauderdale paradox - लाडरडेल के सामंत द्वारा प्रस्तुत विरोधाभास जिसके तहत निजी मुनाफे के लिए सार्वजनिक संपत्ति को लूटा-खसोटा जा सकता है।
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