अनियतकालीन बुलेटिन

वर्गीकृत

कॉपीराइट © देश-विदेश पत्रिका. सर्वाधिकार सुरक्षित

सामाजिक-राजनीतिक सक्रियता सिर्फ बड़ी उम्रवालों के लिए ही नहीं, बच्चों के लिए भी जरूरी है

अगर हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे बड़ा होकर चिन्तनशील और सक्रिय नागरिक बने तो हमें मौजूदा दौर के सामाजिक बदलाव का हिस्सा बनने में उनकी मदद करनी चाहिए।

मैं तेजाबी बारिस (एसिड रेन) के खौफ के बीच बड़ी हुई। यह शब्द अपने आप में ही खौफनाक था और यह मुझे नीन्द से जागते हुए चौंका देता था। क्या यह लोगों के चेहरे को गला देता है? क्या जंगली जानवर इससे बच पायेंगे? मेरे माँ-बाप राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं थे, लेकिन वे अच्छे नागरिक थे जो टीन की पन्नी का दुबारा इस्तेमाल और कँटीले जाल में फँसायी गयी टूना मछली खाने से परहेज करते थे। जब मैंने राष्ट्रपति निक्सन को चिटठी लिखने और अपने सवालों का जवाब माँगने का फैसला किया तो उन्होंने खुशी से ह्वाइट हाउस का पता दे दिया। लेकिन जो चिट्ठी वापस आई उसमें कोई समाधान नहीं था, बल्कि उसमें जागरूक बच्चों की तारीफ में घिसीपिटी बातें थी और अन्त में एक दस्तखत था जिसे मेरे नौ साल के दिमाग ने भी समझ लिया था कि ये मुहर है। न तो मेरे माँ-बाप और न ही मैं यह जानती थी कि इसके अलावा क्या कार्रवाई की जा सकती है। मैं अब भी डरी हुई थी और बड़े लोगों से बेहद निराश थी।

पीछे मुड़कर देखते हुए सोचती हूँ कि काश उन दिनों मेरे अन्दर राजनीतिक सक्रियता की थोड़ी समझ होती। और इससे भी आगे बढ़कर-- काश, मुझे उस कम उम्र में विशेषाधिकार, पूर्वाग्रह और अंतरविरोध जैसी अवधारणाएं सिखाई जातीं, बजाय इसके कि मैं अपनी शुरुआती युवावस्था में सामाजिक शक्तियों से अनभिज्ञ रहती। यही कारण है कि एक किशोर के रूप में मैं फर्ग्यूसन से पार्कलैंड तक, अपने ही लोगों के बंदूक की हिंसा से खौफ खाये, सड़कों पर उतरे लोगों के साथ उत्साह से शामिल हुई, जो सिटी हॉल और कांग्रेस की सीढ़ियों तक ले जाया गया। लेकिन छोटे बच्चों का क्या होगा? क्या हमें अपने छठी, पांचवीं, यहाँ तक कि चौथी क्लास वालों को भी कार्यकर्ता बनना नहीं सिखाना चाहिए? हाँ, बिलकुल। तुरन्त।

मैं मानती हूँ कि यह विवादास्पद मुद्दा है। "माता-पिता को राजनीतिक सक्रियता की बागडोर संभालनी चाहिये और बच्चों को बच्चा ही रहने देना चाहिए," एक व्यक्ति ने मेरी उस नवीनतम पुस्तक के जवाब में ट्विटर पर तर्क दिया, जिसमें नौ साल की उम्र के लिए प्रतिरोध की रणनीति प्रस्तुत की गयी है। उन्होंने कहा कि बच्चों को सक्रियता सिखाना, उनके ऊपर वयस्क जिम्मेदारियाँ लादना है, "उन्हें हँसी और खुशी की भावना से वंचित करना है।"

ट्विटर के जरिये मुझसे परिचित उस व्यक्ति का दिल सही जगह पर है - लेकिन फिर भी वह गलत है। अगर हम 10 साल की उम्र वालों को सक्रियता के बारे में सीखने से बचा भी लें, तो वे अन्याय से नहीं बच पायेंगे। उसने बेघर लोगों को सड़क पर देखा है। उसे शूटर से बचने वाले अभ्यास में अपने डेस्क के नीचे बतख की तरह छुपना सिखाया गया है। हो सकता है कि उसके पूरे परिवार को जलवायु परिवर्तन से संबंधित जंगल की आग / बाढ़ / तूफान में से किसी एक वजह से पिछली गर्मियों में इलाका खाली करना पड़ा हो। यदि वह अश्वेत बच्चा है, तो उसने अक्सर शिक्षकों, दुकानदारों और पुलिस के द्वारा अपने साथ किये गये बुरे बर्ताव का अनुभव किया होगा।

फिर भी अगर आपको लगता है कि आपने अपने बच्चे को ऊपर बताये गये किसी भी अनुभव से बचाकर रखा है, तो भी यह तय है कि इंटरनेट ने आपके किले की दीवारों को तोड़ दिया है। एक दोस्त का 10 साल का बेटा हाल ही में अपने स्कूल से लौटकर यह सवाल किया, "माँ, रखैल क्या होती है?" (धन्यवाद, स्टॉर्मी डेनियल्स के गुस्से को।) सक्रियता को बच्चों की पहुँच से दूर रखना उनकी सुरक्षा नहीं करता है। यह उन्हें छोटा कर देता है - उन्हें जीवन के लिए पूरी तरह तैयार न करके।

यह कोई राज की बात नहीं है-- बच्चे जानते हैं कि क्या चल रहा है।

वे इनसे बेहद परेशान हो जाने में भी समर्थ हैं। जिसे हम "सामाजिक न्याय" कह सकते हैं, उसका निचोड़ है जिसे बच्चे "निष्पक्षता" कहते हैं। जैसा कि किसी भी अभिभावक को पता होता है, बच्चे इस बात को लेकर सचेत रहते हैं कि किसको ज्यादा टॉफी-बिस्कुट मिलता है या कौन कम प्रशंसा पाता है; अध्ययनों से हमें पता चलता है कि 15 महीने के बच्चे भी समान व्यवहार को समझते हैं।

जातिभेद, नस्लभेद, लिंगभेद और वर्गभेद जैसे सामाजिक मुद्दे जटिल हैं, लेकिन उनमें निहित सरल अवधारणाओं को बच्चे व्यवहार से जोड़कर समझ सकते हैं और उनसे प्रभावित हो सकते हैं। चूँकि वे पहले से ही गैरबराबरी को महसूस करते हैं, अब जरूरत इस बात की है कि हम वयस्क लोग बच्चों को उन्हें समझने में मदद करें।

छोटे बच्चों के लिए हम जो सुरक्षा चाहते हैं, वह सामाजिक न्याय के मुद्दे को नजरअंदाज कर देने से नहीं मिलती है, बल्कि बच्चों को आश्वस्त करके हासिल होती है कि हम इस बात को समझा सकते हैं, भले ही हमारे पास अभी इसका कोई समाधान न हो। और एक कदम आगे जाना भी महत्वपूर्ण है। हमें बच्चों को यह सिखाना है कि कैसे जवाब देना है, उस रणनीति के साथ जो स्वैच्छिक कामों से लेकर चन्दा जमा करने, बहिष्कार करने और जुलूस में शामिल होने तक जाती है। ये नागरिक गतिविधियाँ न केवल सशक्त बनाती हैं, वे हँसी और खुशी की भावना भी पैदा कर सकती हैं जिसको लेकर मेरे ट्विटर मित्र चिन्तित हैं।

इसके कई अन्य लाभ भी हैं-- सक्रियता अपनाने वाले बच्चे टीम वर्क, योजना, रणनीति और वार्तालाप जैसे वास्तविक जीवन के सामाजिक कौशल सीखते हैं। वे नैतिक तर्क सुनते हैं और खुद भी तर्क करना सीखते हैं। और यह सब वास्तविक जिन्दगी में किया जाता है, क्योंकि कुछ कार्यों को तो सोशल मीडिया के जरिये पूरक के रूप में किया जा सकता है, लेकिन सक्रियता का काम एक दूसरे के साथ मिलकर आमने-सामने के समूहों के बीच पूरा होता है। यह सहभागिता महत्वपूर्ण है। इस समय, आठ साल की उम्र के बच्चे औसतन साढ़े चार घंटे स्क्रीन पर नजर गड़ाए कुछ देखते रहते हैं और बड़े होकर ऐसे किशोर बनते हैं जो कम सामाजिक, कम सहानुभूतिपूर्ण और अधिक उदास होते हैं।

यह सही है कि सामाजिक न्याय के बारे में बातचीत करना सेक्स के बारे में बात करने जैसा ही नाजुक मसाला है। हमें बातचीत में क्या शामिल करना चाहिए, और हमें क्या छोड़ना चाहिए? जब हम एक कम उम्र के व्यक्ति को समझाते हैं कि इस देश की स्थापना उन राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा की गयी थी, जिन्होंने अंग्रेजी राजा के शासन पर सवाल उठाया था, तो हमें मूल अमरीकियों और अफ्रीकियों के साथ अन्याय करने में अब और किस हद तक आगे जाना है? बातचीत में क्या विवरण शामिल किया जाए, और हमें किस हद तक उनसे हिंसात्मक बातें करना उचित है? अंतत:, यह माता-पिता के ऊपर है। लेकिन, जैसा कि सेक्स पर बातचीत के मामले में होता है, इन सीमाओं के साथ बातचीत का मतलब पूरी तरह से परिदृश्य की अनदेखी करना नहीं होता है। बच्चे हमारे बिना भी इधर-उधर से तो जानकारी प्राप्त करेंगे ही, लेकिन वह ऊटपटांग और टुकड़ों-टुकड़ों में होगा जो अधूरे या गलत होंगे।

4 जुलाई को अमरीकी आतिशबाजी और देशभक्ति के जुनून में संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थापना का जश्न मनाते हैं, आइए हम सामाजिक न्याय और नागरिक जुड़ाव के बारे में अपने नौ साल के बच्चों को शिक्षित करने की शक्ति की कल्पना करें। यह एक जीत की स्थिति है-- यह सुनिश्चित करता है कि हमारा लोकतंत्र इन कोशिशों से बच जाएगा - यहाँ तक कि फले-फूलेगा - और इसी के साथ हमारे सभी बच्चे भी।

अनुवाद-- दिगम्बर

(लेखिका के बारे में-- अमरीकी एक्टिविस्ट और रचनाकार कैरोलीन पॉल न्यूयॉर्क टाइम्स की बेस्टसेलिंग किताब "द गट्स गर्ल: एसकैप्ड्स फॉर योर लाइफ ऑफ एपिक एडवेंचर" के साथ-साथ "लॉस्ट कैट: ए ट्रू स्टोरी ऑफ लव, डेस्पेरेशन एंड जीपीएस टेक्नोलॉजी","ईस्ट विंड, रेन" और "फायर फाइटिंग" की लेखिका हैं। उनकी नवीनतम पुस्तक "यू आर माइटी: ए गाइड टू चेंजिंग द वर्ल्ड" है।)

 
 

 

 

हाल ही में

अन्य