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पहलगाम के आतंकी हमले और साम्प्रदायिक राजनीति की मुखालफत के लिए आगे आओ!

22 अप्रैल को दोपहर बाद कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों ने 28 सैलानियों की गोली मारकर हत्या कर दी। शाम तक सोशल मीडिया पर इस दुखद घटना के दिल दहला देने वाले वीडियो चलने लगे। जब सारा देश इस हत्याकांड के शोक में डूबा था, लोग कश्मीर घूमने गये अपनो की खैरियत जानने को बेचैन थे। लेकिन गिद्ध की तरह लाशें गिरने के इन्तजार में बैठे गोदी टीवी चैनलों और भाजपा के आईटी सेल ने सोशल मीडिया पर इस दुखदायी घटना का इस्तेमाल मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने में करना शुरू कर दिया। सरकार की नाकामी पर पर्दा डालने के लिए ‘नेरेटिव’ गढ़ा गया कि “धर्म पूछकर हिन्दुओं का कत्लेआम” किया गया है। जबकि जान गँवाने वालों में ईसाई और मुस्लिम भी थे।

रातों-रात मुसलमानों के खिलाफ दर्जनों भड़काऊ सांप्रदायिक कविताएं और पोस्टर सोशल मीडिया में भर गये। सुबह तक इंटरनेट की दुनिया मुस्लिम विरोधी सांप्रदायिक रंग में रंग दी गयी। जब रात में भाजपा की प्रचार मशीन देश में नफरत का जहर फैला रही थी उसी समय कश्मीर के सैंकड़ों नौजवान, खच्चर वाले, दुकानदार, नर्सें, डॉक्टर आदि सैलानियों को जंगलों से निकालने, सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाने, अपनों से मिलवाने, घायलों का इलाज करने, उन्हें खून देने और आतंकवाद तथा धर्मांधता के खिलाफ जुलूस निकालने में लगे थे। सैंकड़ों मस्जिदों से आतंकवाद और आतंकवादियों के खिलाफ खुले एलान किये जा रहे थे।

नोटबंदी, धारा 370 में बदलाव और कश्मीर को तीन हिस्सों में तोड़कर भाजपा सरकार ने दावा किया था कि इससे कश्मीर में आतंकवाद की कमर टूट जाएगी। अभी, 12 दिन पहले, गृह मंत्री अमित शाह कश्मीर में बैठकर आतंकवाद के खत्म होने के दावे कर रहे रहा थे। 19 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी जम्मू दौरे पर आने वाले थे, जिसे अचानक रद्द करके वह विदेश चले गये।

जाहिर है प्रधानमंत्री के दौरे से पहले तमाम गुप्तचर और सुरक्षा एजेंसियाँ बहुत सक्रिय और चौकस रहती हैं। फिर अचानक इतनी बड़ी आतंकवादी घटना कैसे हो गयी? यह सरकार की नाकामी है, या उसकी गुप्तचर और सुरक्षा एजेंसियों की भारी चूक, या इस सब से बढ़कर, कोई गम्भीर साजिश?

गौरतलब है कि कुछ साल पहले हुए पुलवामा हमले के समय कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने बहुत से तथ्य सामने रखे थे जिनसे उस हमले में सरकार की घोर नाकामी उजागर होती है, इसके साथ ही किसी मिलीभगत से रची गयी साजिश की बू आती है। सरकार के किसी सक्षम अधिकारी ने आज तक सत्यपाल मलिक के आरोपों का जवाब नहीं दिया है। आज तक यह स्पष्ट नहीं है कि पुलवामा कांड हुआ, होने दिया गया या करवाया गया। जाँच एजेंसियाँ आज तक यह भी नहीं बता पायी हैं कि सुरक्षाबलों पर हमले में इस्तेमाल किये गये आरडीएक्स की इतनी बड़ी खेप कश्मीर कैसे पहुँची।

पुलवामा हमले के समय सरकार कई मुद्दों पर घिरी हुई थी और चुनाव सर पर था। हमले का इस्तेमाल करके मोदी सरकार के टीवी चैनलों और आईटी सैल ने ऐसा माहौल बनाया कि न केवल मोदी सरकार की सभी नाकामियों पर पर्दा पड़ गया बल्कि उसे चुनाव में जबरदस्त लाभ भी हुआ। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीति की सारी मर्यादा भंग करते हुए इस हमले का चुनाव जीतने में इस्तेमाल किया और लोगों से बीजेपी को वोट देने की अपील की। विपक्ष ने इस घिनौने काम के लिए श्री मोदी पर निशाना भी साधा था, लेकिन श्री मोदी पर कोई फर्क नहीं पडा।

अभी भी बिहार तथा बंगाल के चुनाव सिर पर हैं और सरकार कई मुद्दों पर घिरी हुई है जैसे वक्फ बिल में संविधान विरोधी संशोधन, सुप्रीम कोर्ट द्वारा कई मामलों मे सरकार को फटकार, पूरे देश में किसान अमरीका के साथ होने जा रहे तटकर सम्बन्धी समझौते का विरोध कर रहे हैं और भारत दौरे पर आये अमरीकी उपराष्ट्रपति के पुतले फूँक रहे हैं, इसी महीने सरकार मजदूर विरोधी चार श्रम-संहिताएं लागू करना चाहती थी जिसके खिलाफ मजदूरों में भारी आक्रोश है, मणिपुर के हालात सरकार के काबू से बाहर हो चुके हैं, परिसीमन के मुद्दे पर दक्षिण के राज्य बगावती तेवर अपनाये हुए हैं, अमरीका हर रोज भारत को अपमानित कर रहा है, महँगाई और बेरोजगारी सारी सीमाएं तोड़ चुकी है। इन सबके खिलाफ मोदी सरकार लाचार नजर आ रही है। बिहार तथा बंगाल का चुनाव जीतने के लिए उसे पुलवामा जैसे हमले से फायदा होना तय था। पहलगाम हमले से उसे यह मौक़ा मिलता दिखायी दे रहा है।

पुलवामा की तरह पहलगाम में भी सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया गया। सरकार ने सेना को इस इलाके की सुरक्षा से हटा रखा था। लगभग दो हजार सैलानियों की सुरक्षा के लिए एक भी सिपाही नहीं दिया गया। ऐसे में कोई ताज्जुब की बात नहीं कि पहलगाम में पुलवामा को दोहरा दिया गया। 24 अप्रैल को सर्वदलीय बैठक में चारों ओर से घिरी सरकार को स्वीकार करना पड़ा कि सुरक्षा में चूक हो गयी थी।         

पुलवामा की तरह पहलगाम में भी घटना के तुरन्त बाद भाजपा की प्रचार मशीन मोदी सरकार की नाकामी को ढंकने और मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने में लग गयी। कमाल की बात यह है कि आतंकवादियों और भाजपाई हिंदुवादियों के मकसद में गजब की समानता है। ऐसा लगता है कि धर्म पूछकर गोली मारने के पीछे आतंकवादियों का मकसद देश में नफरत फैलाना था जिससे हिन्दू-मुस्लिम की एकता कमजोर हो जाए और देश की एकता-अखण्डता खतरे में पड़ जाए। हिंदुवादी इसे अपना नेरेटिव बनाकर आतंकवादियों का मकसद ही तो पूरा कर रहे हैं। जो लोग अपने पति की लाश के पास बदहवास बैठी नवविवाहिता का कार्टून बनाकर अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, उन मुर्दाखोरों से और क्या उम्मीद की जा सकती है।

हिंदुवादियों के निशाने पर आतंकवादी नहीं, बल्कि मुसलमान हैं। ये अच्छी तरह जानते हैं कि वे खच्चर वाले भी मुसलमान हैं जिन्होंने सैंकड़ों सैलानियों की जान बचायी, जिनमें से एक मुसलमान सैलानियों को बचाने के लिए आतंकवादियों से भिड़ गया और अपनी जान गवां दी। सैंकड़ों वीडियो में स्थानीय मुस्लिम लोग सैलानियों की मदद कर रहे हैं, उन्हें खाना खिला रहे हैं, सुरक्षित जगह पहुँचा रहे हैं, अस्पतालों में सेवा कर रहे हैं, घायलों को खून दे रहे हैं और सैलानी दिल से उनकी तारीफ कर रहे हैं, उनका शुक्रिया अदा कर रहे हैं। लेकिन हिंदुवादियों ने समाज में एकता पैदा करने वाली इन शानदार मिसालों पर जानबूझकर पर्दा डाला।

अगले दिन, 23 अप्रैल को इस आतंकवादी घटना के विरोध में पूरा कश्मीर बन्द रहा और श्रीनगर के लाल चौक पर एक विशाल रैली हुई। इसके बावजूद भाजपा का प्रचार तंत्र सरकार की नाकामी को छिपाता रहा और उन्हीं मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगलता रहा जो अपनी जान की परवाह किये बिना आतंकवाद के खिलाफ तनकर खड़े थे।

पहलगाम के आतंकवादी हमले में मारे गये लोगों में 6 नवविवाहित जोड़े थे जिन्होंने अभी साझी जिन्दगी की शुरुआत ही की थी। वे भारत के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री द्वारा किये गये आतंकवाद की कमर तोड़ देने के दावे पर भरोसा करके कश्मीर घूमने आये थे। लेकिन ये दावे झूठे निकले। इन 6 नव विवाहित जोड़ों समेत ने 28 मासूमों की हत्या की जिम्मेदार झूठी और नाकाम मोदी सरकार है। इस सच्चाई पर पर्दा डालकर गोदी मीडिया मुसलमानों को खलनायक बना रहा है।  

इस आतंकवादी हमले से मृतकों के बाद सबसे ज्यादा नुकसान कश्मीरियों को हुआ है। उनका पर्यटन का कारोबार उजड़ गया। उन्होंने अपनी जान पर खेलकर सैलानियों की हर सम्भव मदद की और उन्हीं पर हिंदुत्ववादियों द्वारा कीचड़ उछला जा रहा है। उन्हें बेगैरत लोगों के आगे अपनी बेगुनाही और देशभक्ति साबित करनी पड़ रही है। हिन्दू सैलानियों की मजबूरी का फायदा उठाकर श्रीनगर से दिल्ली का 65 हजार रूपये किराया वसूलने वाली एयरलाइन हिंदुत्ववादियों को गद्दार नहीं लगती।

आतंकवाद के खिलाफ और मृतकों के गम में कश्मीरियों ने एक दिन के लिए अपना सारा कारोबार बन्द रखा। इसके लिए उन्हें ढोंगी कहा जा रहा है। लेकिन अय्याशी और सट्टेबाजी के लिए हो रहे आईपीएल के मैच अपनी पूरी रंगीनीयत के साथ खेले जा रहे हैं। इसी दौरान बिहार में भाजपा के मंत्री एयर शो का लुत्फ उठा रहे। क्या हिंदुओं पर आतंकवादी हमले से आईपीएल की कम्पनियों और भाजपाई मंत्रियों को कोई सदमा नहीं पहुँचा था। लेकिन इनसे कौन पूछे, ये मुसलमान थोड़े ही हैं।

मोदी सरकार की हर नाकामी को उसके फायदे में बदल देने वाला विराट प्रचार-तंत्र इस आतंकवादी हमले को भी सरकार के पक्ष में मोड़ देने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रहा है। लगता है बिहार और बंगाल में भाजपा के हिंदु वोटों की संख्या खूब बढ़ेगी। पुलवामा हमले की तरह ही इस आतंकवादी हमले की निष्पक्ष जाँच की फिलहाल कोई सम्भावना नहीं है, कभी होगी तो पता चलेगा कि यह हमला, हो गया, होने दिया गया या करवाया गया।

आज इस बात की बहुत जरूरत है कि संकट की इस घड़ी में हम अपने विवेक से काम लें और नफरत फैलाने वालों के एजेंडे में न फंसें। हमें अफवाहों से सावधान रहने की जरूरत है। हमारी आप सबसे गुजारिश है कि पहलगाम के आतंकी हमले और साम्प्रदायिक राजनीति की मुखालफत के लिए आगे आयें। इसके साथ ही मांग करें कि इस इनसानियत विरोधी घटना की सच्ची-निष्पक्ष जांच हो और अपराधियों को न्याय के कटघरे में खड़ा किया जाये।

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