पेट्रोलियम और कोयला संकट के पीछे का खेल
विचार-विमर्श विशालजून के महीने में देश के कई राज्यों से पेट्रोल की कमी की खबरें आयीं। निजी कम्पनियों ने अपने सभी पेट्रोल पम्प पर आपूर्ति बन्द कर दी और सरकारी कम्पनियों ने आपूर्ति घटा दी। ऐसे समय में, जब कम्पनियाँ रूस से सस्ते कच्चे तेल का भरपूर आयात कर रही हों, तो देश में पेट्रोल का संकट अचरज में डालने वाला है।
भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी से अधिक कच्चा तेल आयात करता है। भारत में पेट्रोलियम उद्योग में निजी और सरकारी दोनों कम्पनियाँ शामिल हैं। जब रूस ने भारत को 25 फीसदी छूट पर कच्चा तेल खरीदने का अवसर दिया तो निजी कम्पनियों ने तुरन्त ही यह मौका लपक लिया। 24 फरवरी को रूस के यूक्रेन पर हमले से लेकर मई के आखिरी सप्ताह तक भारत ने रूस से 625 लाख बैरल कच्चा तेल आयात किया था जिसमें आधे से अधिक हिस्सेदारी दो निजी कम्पनियों नयारा एनर्जी और रिलायंस की है। यह मात्रा पिछले साल की इसी अवधि में किये गये आयात से 3 गुना अधिक है।
दरअसल, सरकारी कम्पनियाँ “सालाना अवधि आपूर्ति समझौता” के तहत एक निश्चित मात्रा ही खरीद सकती हैं जबकि निजी कम्पनियों पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती। इसलिए इस मौके का फायदा भारत की निजी तेल कम्पनियाँ उठा रही हैं। चूँकि रूस पर प्रतिबन्ध लगाते हुए यूरोप ने रूसी तेल खरीदना बन्द कर दिया है इसलिए भारत की निजी कम्पनियाँ रूस के सस्ते कच्चे तेल को रिफाइन करके यूरोप में बेच रही हैं और खूब मुनाफा बटोर रही हैं। इसीलिए उन्होंने घरेलू बाजार में अपनी आपूर्ति बन्द कर दी है जबकि सरकारी कम्पनियों, जैसे इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम आदि को पहली प्राथमिकता घरेलू बाजार को देनी पड़ रही है।
सरकारी कम्पनियाँ अभी भी अधिकतर कच्चा तेल ओपेक के देशों से बढ़े हुए दाम पर खरीद रही हैं। गौरतलब है कि घरेलू बाजार में तेल के दाम पर सरकारी नियंत्रण रहता है। इसलिए सरकारी कम्पनियों को अपनी ऊँची लागत के चलते प्रति लीटर पेट्रोल पर 17 रुपये और प्रति लीटर डीजल पर 20 रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है। पेट्रोल, डीजल के आसमान छूते दामों से सरकारी कम्पनियों को कोई फायदा नहीं हो रहा है क्योंकि तेल की ऊँची कीमत में से 70 फीसदी से अधिक राशि टैक्स के रूप में सरकार ले लेती है। इसलिए अपने घाटे को कम रखने के लिए सरकारी कम्पनियों ने तेल की आपूर्ति घटा दी है। निजी कम्पनियों द्वारा ऊँचे मुनाफे के लालच में तेल निर्यात कर देने और सरकारी कम्पनियों के अपने घाटे को कम करने की कम्पनियों की मजबूरी के चलते तेल की आपूर्ति घटा देने से जनता पेट्रोल, डीजल के संकट से जूझ रही है।
सरकारी कम्पनियों को तो सरकार घरेलू बाजार में तेल आपूर्ति के लिए मजबूर करती है जबकि निजी कम्पनियों पर ऐसा कोई अंकुश नहीं लगाती। सरकार के इसी दोहरे रवैये के चलते सरकारी तेल कम्पनियाँ भारी घाटा उठा रही हैं। कल को इसी घाटे का बहाना बनाकर सरकार इन कम्पनियों को भी बेच देगी।
कोयले की आपूर्ति का संकट भी ऐसे ही जान–बूझकर खड़ा किया गया है। पिछले दो महीने से सारा देश बिजली कटौती का सामना कर रहा है। इसकी बड़ी वजह बिजली उत्पादन कम्पनियों को पर्याप्त कोयला न मिलना बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि कोयले खरीद का भुगतान नहीं मिलने से कोल इंडिया लिमिटेड ने कोयले की आपूर्ति घटा दी है। ऊपरी तौर पर यह बात सच है लेकिन असल खेल कुछ और है।
भारत सरकार ने वर्ष 2020 में पहली बार निजी क्षेत्र को कोयला खनन करने की मंजूरी दी थी। इस क्षेत्र में उतरने वाली सबसे पहली दो कम्पनियाँ ‘अदानी एण्टरप्राइजेज’ और ‘वेदांता’ है। इन कम्पनियों की नजर कोयला खनन के उन इलाकों पर है जो पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील है। अब अगर सरकार अपने चहेतों को मनचाही खदान कौड़ियों के दाम पर देना चाहती है तो उसे एक ऐसा संकट खड़ा करना पड़ेगा जिसका बहाना बनाकर वह यह काम कर सके। मौजूदा संकट से सरकार को यह मौका मिल गया है। हर संकट की तरह इस संकट से भी किस तरह निजी कम्पनियाँ मुनाफा बटोर रही है इसकी एक मिसाल यह है कि मौजूदा बिजली संकट का समाधान करने के लिए सरकार ने निजी बिजली कम्पनियों से बेहद महँगी दर पर बिजली खरीदने का फैसला किया है। इसका भुगतान सरकारी बिजली कम्पनियों के खाते से किया जाएगा जिससे उनका घाटा और अधिक बढ़ेगा। फिर इसी घाटे के नाम पर सरकार बचे हुए बिजली सेक्टर का भी निजीकरण कर देगी और कोयला उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक बिजली वितरण की पूरी Üाृंखला को पूँजीपतियों के हवाले कर दिया जाएगा। यही वह खेल है जो पर्दे के पीछे जारी है।
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