झूठी खबर फैलाने की शुरूआत भले ही भाजपा आइटी सेल ने की हो लेकिन अब इस मामले में कोई पार्टी किसी से पीछे नहीं है। कुछ घटनाएँ देखिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शिक्षा को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने कई बार सवाल उठाया है। इसी से जुड़ी खबर को कांगे्रस ने विकृत किया–– यह काम कांगे्रस के आईटी सेल ने प्रधानमंत्री के दो दशक पुराने साक्षात्कार के वीडियो को तोड़–मरोड़ कर किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा एक छोटी लड़की से राहुल गाँधी को पप्पू कहलवाया गया, कर्नाटक में मस्जिद तोड़ने पर मन्दिर निकाला गया। आम आदमी पार्टी द्वारा नीदरलैंड के ब्रिज को दिल्ली का सिग्नेचर ब्रिज बता कर शेयर किया गया, भाजपा सरकार द्वारा वर्ष 2015 से 2017 के बीच विश्व बैंक से एक रुपये भी कर्ज न लेने की खबर फैलायी गयी, भोजपुरी फिल्म के दृश्य को बीएसपी नेता द्वारा दलित महिला के साथ बदसुलूकी बता कर फैलाया गया। ऐसी ही सैकड़ों झूठी खबरें रोज हमें इन्टरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से देखने–सुनने को मिल जाती हैं। बच्चा चोरी और गौ–तस्करी जैसी अफवाहों के चलते कई जानलेवा घटनाएँ भी हुर्इं हैं।

आज हमारे पास इन्टरनेट जैसे शक्तिशाली साधन हैं। शिक्षण–प्रशिक्षण, खरीद–फरोख्त और बैंकिंग जैसे तमाम महत्त्वपूर्ण काम इन्टरनेट के माध्यम से किये जा रहे हैं, वहीं आम आदमी तक खबरें पहुँचाने का काम भी इन्टरनेट के जिम्मे आ गया है। इन्टरनेट के प्रचलन से हजारों न्यूज वेबसाइट कुकुरमुत्ते की तरह उग आयीं हैं और हमारे सामने सही–गलत खबरों का अम्बार लगा दे रही हैं। एक सामान्य पढ़े–लिखे व्यक्ति के लिए यह पता लगा पाना कठिन हो गया है कि कौन सी खबर सही है और कौन सी गलत। पहले जो खबरें समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों तक पहुँचती थीं वे कई माध्यमों से छन कर आयी होती थीं और उसकी जबावदेही उस अखबार या पत्रिका की होती थी। लेकिन आज जब खबरें इन्टरनेट के माध्यम से लोगों तक पहुँचती हैं तो उनकी सत्यता का कोई प्रमाण नहीं होता। इन्टरनेट पर रोज लाखों लोगों द्वारा झूठी खबरें साझा की जाती हैं, शेयर, ट्विट और रि–ट्विट की जाती हैं, जिन्हें अन्तत: इन्टरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों के बहुत बडे़ वर्ग द्वारा सही मान लिया जाता है और वह बहस का मुद्दा बन जाती हैं। सवाल यह है कि जब हम तक बड़ी संख्या में झूठी खबरें ही पहुँचती हैं तो हम जिस समाज, देश और दुनिया के बारे में जानते–समझते हैं, वह जानकारी झूठ पर टिकी होती है। हम चाहे–अनचाहे इस झूठ केे खेल में शामिल हो जाते हैं।

जातिवाद और साम्प्रदायिकता फैलाने वाले गिरोहों द्वारा अपनी वेबसाइटों पर झूठी खबरें जारी करना और उसका सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार–प्रसार पूरे देश के लिए खतरा बन गया है। आज देश की मुख्य धारा का मीडिया भी फेक न्यूज की गिरफ्त में है। पूरी दुनिया के साथ–साथ भारत में भी फेक न्यूज का मकड़जाल फैला हुआ है। इससे पहले कि लोग अपनी मूलभूत आवश्यकताओं (रोटी, कपड़ा और मकान) और उससे जुड़ी समस्याओं (शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सुरक्षा) के बारे में सोचें, फेक न्यूज साइटों और सोशल मीडिया के द्वारा झूठी खबरें फैलाकर उन्हें गुमराह करने की भरपूर कोशिश की जा रही हैं। आज सत्ताधारी वर्ग इन झूठी खबरों के माध्यम से राष्ट्रवाद, धर्म और गौरक्षा जैसे तमाम मुद्दे उछालकर, इतिहास की गलत तस्वीर पेशकर के और देश में विकास के झूठे आँकड़े परोसकर नौजवानों को भटकाने का काम कर रहा है। राजनीतिक दल एक–दूसरे पर आरोप–प्रत्यारोप का खेल खेल रहे हैं और अपने आप को देश और समाज की जिम्मेदारियों से दूर रखे हुए हैं।

बीबीसी न्यूज के अनुसार एक स्वतंत्र अध्ययन में पाया गया कि 60 फीसदी से अधिक पत्रकार सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल खबरों के स्रोत के तौर पर करते हैं। फेक न्यूज के प्रचार–प्रसार के लिए सरकार और उसके नुमाइन्दे सोशल मीडिया साइटों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि इन झूठी खबरों और अफवाहों का स्रोत कहीं और है। दरअसल इसके पीछे राजनितिक पार्टियों और पूँजीपतियों के कारिन्दे हैं। उनका एक बड़ा गिरोह है जिनका काम झूठी खबरों और अफवाहों को जन्म देना और फैलाना है। बेरोजगारी और महँगाई की मार झेल रहे नौजवान आसानी से उनके हत्थे चढ़ जाते हैं और अपने जैसे दूसरे नौजवानों तक झूठी खबर फैलाने का प्लेटफार्म बन जाते हैं।

फेक न्यूज का पर्दाफाश करने वाली वेबसाइट ऑल्ट–न्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा के अनुसार फेक न्यूज एक प्रकार का कारोबार, राजनीतिक प्रोपगैंडा फैलाने का माध्यम और लोकतंत्र के लिए खतरा बन गयी है। फेक न्यूज लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करने लगी है। आज सच्ची खबरें झूठी खबरों के बीच दबायी जा रही हैं। भारत में फेक न्यूज जंगल की आग की तरह फैल जाती हैं जिससे विभिन्न समुदायों, जातियों और धर्मों के बीच कलह पैदा हो रही है। एक धर्म के लोगों के मन में दूसरे धर्म के प्रति डर और नफरत पैदा की जा रही है।

देश में सभी राजनितिक दलों के अपने आईटी सेल हैं जो झूठी खबरों को गढ़ने और फैलाने का काम कर रहे हैं। मौजूदा भाजपा सरकार इस काम को बहुत बड़े पैमाने पर कर रही है और हिन्दुत्व तथा झूठे राष्ट्रवाद के नाम पर जनता के बहुत बड़े हिस्से का धु्रवीकरण करने में लगी है ताकि आने वाले चुनाव में उसका वर्चस्व कायम रहे और वह सत्तासीन बनी रहे। ये पुराने वीडियो को तोड़–मरोड़कर तात्कालिक घटनाओं के तौर पर पेश करते हैं और दंगा भड़काने का काम करते हैं। फेसबुक, व्हाट्सअप और ट्विटर के जरिये यह काम धड़ल्ले से चल रहा है। फेसबुक और ट्विटर पर लाखों फेक अकाउंट बने हुए हैं जिन्हें संचालित करने के लिए भाड़े के टट्टू रखे जाते हैं। ट्विटर पर एक फेक न्यूज को ट्विट करने के लिए 50 से 70 रुपये दिये जाते हैं।

भाजपा आईटी सेल में 2012 से 2015 तक काम कर चुके महावीर ने एक इंटरव्यू में बताया कि वे कैसे झूठी खबरों को फैलाते थे और भाजपा के खिलाफ बोलने वाले लोगों को कैसे ट्रोल करके (डराकर) परेशान करते थे। वह किसी भी खबर को किसी जाति या धर्म से जोड़कर फेसबुक पर पोस्ट करते थे। महावीर ने बताया कि ऐसी सैकड़ों फर्जी न्यूज वेबसाइट हैं जो फेक न्यूज को फैलाती हैं और इन वेबसाइटों पर अन्य विश्वसनीय न्यूज वेबसाइटों की अपेक्षा अधिक लोग पहुँचाते हैं। इन फर्जी न्यूज वेबसाइटों में “न्यूजट्रेन्डडॉटन्यूज”, “इन्सिस्टपोस्टडॉटकॉम”और “वायरल इन इंडियाडॉटइन” आदि प्रमुख हैं। फेक न्यूज गढ़ने और फैलाने के मामले में भाजपा के साथ–साथ कांग्रेस, आप और अन्य राजनितिक पार्टियाँ भी पीछे नहीं हैं।

झूठी खबरों और अफवाहों से भीड़ की हिंसा जैसी गम्भीर समस्याएँ उभर कर सामने आयीं हैं जिसमें गौ–तस्करी और बच्चा चोरी जैसी अफवाहों का सहारा लेकर दलित और मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है और उनकी हत्या कर दी जा रही है। इण्डिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के अनुसार 2010 से अब तक गौ–तस्करी के नाम पर भीड़ द्वारा 86 हमले किये गये जिसमें 98 फीसदी घटनाएँ 2014 के बाद भाजपा सरकार में हुई हैं। केवल 2017–18 में बच्चा चोरी और गौ–तस्करी की अफवाहों को लेकर भीड़ द्वारा हिंसा के 69 मामले देखे गये जिसमें 33 बेगुनाह लोगों की हत्या कर दी गयी।

दिन–प्रतिदिन इन घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है और सैकड़ों बेगुनाह लोगों की हत्या कर दी जा रही है। जिस तरह सत्ताधारी पार्टी द्वारा झूठी खबरें फैलायी जा रही हैं और सत्ताधारी पार्टी के मन्त्री और नेता इन घटनाओं के आरोपियों के समर्थन में खड़े होते हैं, इससे तो यही पता चलता है कि यह उनकी सोची–समझी चाल है। इन सभी अफवाहों और घटनाओं के आगे देश की कानून व्यवस्था बेबस नजर आ रही है और पूरी दुनिया भारत की तरफ देख रही है कि आखिर भारत में चल क्या रहा है।

आज जब शिक्षा व्यवस्था भ्रष्ट होती जा रही है, स्वास्थ्य सेवाएँ जर्जर होती जा रही हैं, जनता महँगाई के बोझ से कराह रही है, नौजवान नौकरी के लिए भटक रहे हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, देश की अर्थव्यवस्था ढहती जा रही है और पूरा देश वित्तीय पूँजी की गिरफ्त में है तब ऐसे दौर में कोई सत्ता के खिलाफ आवाज न उठाये, इसलिए सत्ताधारी वर्ग झूठी खबरों और अफवाहों का जाल बिछाकर लोगों को उलझाने का काम कर रहा है।

भारत जैसे देश में शिक्षा और जागरूकता की बेहद कमी है, लोग अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर पाते और सच को झूठ और झूठ को सच मान लेते हैं। वे न कुछ सोचते हैं और न ही सवाल करते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर ने कहा था कि वह सरकार कितनी खुशनसीब होगी जिसकी जनता सोचना बन्द कर दे। कुछ ऐसी ही हालत आज भारत की है।

आज भारत में राजनीतिक पार्टियों के बीच गलाकाट होड़ चल रही है, पक्ष और विपक्ष के मंत्री और नेता ऐसी बयानबाजी में लगे हुए हैं जिसका कोई सिर–पैर नहीं होता। इनके द्वारा फैलाया गया यह भ्रमजाल भले ही आज उनके लिए फायदे का सौदा हो लेकिन आने वाले दिनों में जब जनता जागेगी तब इनसे पाई–पाई का हिसाब लेगी।