2018 में तमिलनाडु के तूतुकुड़ी में स्टरलाइट कम्पनी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस ने बेरहमी से गोलियाँ चला दी थीं, जिसमें 13 लोग मारे गये थे। मद्रास हाई कोर्ट ने इस घटना में उद्योगपतियों की जवाबदेही तय की। मद्रास हाई कोर्ट ने छह साल पुराने इस मामले में सुनवाई करते हुए स्थानीय अधिकारी, सीबीआई और कम्पनी के मालिक की भूमिका को रेखांकित किया और जाँच के आदेश दिये। न्यायमूर्ति अरुणा जगदीशन की अध्यक्षता में एक आयोग ने इस मामले की जाँच कर अपनी रिपोर्ट पेश की थी। रिपोर्ट में 21 अधिकारियों के नाम लिये गये थे और हाई कोर्ट ने अब इन अधिकारियों की सम्पत्ति की जाँच के आदेश दिये हैं।

2018 में तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब 600 किलोमीटर दूर तूतुकुड़ी में स्टरलाइट कम्पनी के ताम्बा पिघलाने के संयंत्र के विस्तार के खिलाफ कई लोगों ने 100 दिनों तक प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि जब से वहाँ संयंत्र बना है, तब से वहाँ की हवा, मिट्टी और पानी प्रदूषित हो रहे हैं।

साल 2018 के फरवरी महीने में प्रदर्शन शुरू हुए और मार्च आते–आते प्रदर्शनकारी संयंत्र को बन्द करने की ही माँग करने लगे। प्रदर्शनों के सौवें दिन 22 मई को जब हजारों प्रदर्शनकारी कलेक्टरेट की तरफ बढ़ रहे थे, तब पुलिस ने उन्हें रास्ते में रोका। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई और पुलिस ने गोलियाँ चला दीं, जिसमें 12 प्रदर्शनकारी मारे गये और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गये। 23 मई को भी हिंसा हुई और पुलिस की गोली से एक और प्रदर्शनकारी की जान चली गयी।

इस घटना की भारत में ही नहीं, बल्कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई। संयुक्त राष्ट्र ने भी आलोचना की और ब्रिटेन में तो विपक्षी लेबर पार्टी ने स्टरलाइट की मालिक कम्पनी वेदान्ता को लन्दन स्टॉक एक्सचेंज से हटा देने की भी माँग की।

इस घटना की जाँच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने की। नवम्बर 2018 में एजेंसी ने 13 लोगों की मौत के लिए तमिलनाडु पुलिस और राजस्व विभाग के अधिकारियों के खिलाफ मामला तो दर्ज किया, लेकिन किसी भी अधिकारी का नाम नहीं लिया।

अरुणा जगदीशन आयोग ने अगस्त 2022 में अपनी रिपोर्ट सौंपी और उसमें स्पष्ट रूप से वापस जाते हुए प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आरोप पुलिस पर लगाया। 3,000 पन्नों की इस रिपोर्ट में तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर जनरल, डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल, पुलिस अधीक्षक समेत कई शीर्ष पुलिस अधिकारियों को हिंसा का जिम्मेदार ठहराया गया। आयोग ने यह भी कहा कि पुलिसकर्मियों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली नजदीक से नहीं, बल्कि दूर से चलायी और गोली चलाने से पहले कोई चेतावनी भी नहीं दी, जबकि पुलिसकर्मियों की जान को कोई खतरा नहीं था। आयोग के मुताबिक, पुलिस ने कमर और घुटने के नीचे निशाना लगाने के नियम का भी पालन नहीं किया और “बेतरतीब” गोलियाँ चलायीं। आयोग ने उस समय के जिला कलेक्टर की भूमिका की भी आलोचना की और कहा कि उन्होंने “अपनी जिम्मेदारी त्याग दी, घोर लापरवाही की और गलत फैसले लिये।”

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने भी इस मामले में स्वत: जाँच शुरू की थी, लेकिन बाद में इसे बन्द कर दिया था। ‘पीपल्स वॉच’ नाम के एक एनजीओ के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हेनरी टिफने ने मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर अदालत से अपील की कि वह एनएचआरसी को अपनी जाँच दोबारा शुरू करने का आदेश दे।

इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस एस सुन्दर और न्यायमूर्ति एन सेंथिलकुमार की पीठ ने तमिलनाडु डायरेक्टरेट ऑफ विजिलेंस एण्ड एण्टी–करप्शन (डीवीएसी) को आदेश दिया कि वह अरुणा जगदीशन आयोग की रिपोर्ट में नामित सभी अधिकारियों की सम्पत्ति की जाँच करे। पीठ ने आदेश दिया कि इन सभी अधिकारियों, उनके पति–पत्नी और करीबी रिश्तेदारों की उस घटना के दो साल पहले से लेकर दो साल बाद तक अर्जित की गयी सम्पत्ति की जाँच की जाये। साथ ही, अदालत ने इस पूरे प्रकरण में स्टरलाइट कम्पनी के मालिक की भूमिका को भी रेखांकित किया। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, पीठ ने कहा कि उसका मानना है कि फायरिंग एक “पूर्वनिर्धारित कदम” था, जिसे “एक उद्योगपति के आदेश” पर अंजाम दिया गया।

पीठ ने बिना किसी का नाम लेते हुए आगे कहा, “एक विशेष उद्योगपति––– प्रदर्शनकारियों को सबक सिखाना चाहता था और अधिकारियों ने इसे सुसाध्य बनाया।”

स्टरलाइट कॉपर, भारतीय बहुराष्ट्रीय समूह वेदान्ता की कम्पनी है। वेदान्ता के गैर–कार्यपालक अध्यक्ष अनिल अग्रवाल हैं और कार्यपालक अध्यक्ष उनके भाई नवीन अग्रवाल हैं। वेदान्ता समूह इसके अलावा भी कई विवादों में शामिल रहा है।

2023 में सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा सरकार द्वारा वेदान्ता के लिए 6,000 एकड़ भूमि के अधिग्रहण को रद्द कर दिया था और अधिग्रहण के लिए कम्पनी को दुर्भावनापूर्ण इरादों और सरकार को पक्षपात का दोषी ठहराया था।

–– शैलेन्द्र चैहान