आज हमारा देश एक विराट जुआघर में तब्दील हो चुका है। यहाँ खुलेआम लोगों को जुआ खेलने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके चलते भारत में 36 करोड़ लोग रजिस्टर्ड जुआरी हैं। ये केवल ऐसे लोग हैं जो मोबाइल में गेमिंग एप के जरिये जुआ खेलते हैं। इनकी हर निजी जानकारी कम्पनियों के पास है। खेलने वालों में हर तबके और वर्ग के लोग शामिल हैं। नौकरी करने वाले अपनी हैसियत से बढ़कर अपनी आय का हिस्सा जुए में लगाते हैं और बेरोजगार अपनी हैसियत से बढ़कर उधार लेकर अपनी किस्मत आजमाते हैं। आपको बेहतर इलाज, बेहतर शिक्षा, बेहतर रोजगार मिले न मिले पर जुआ खेलने की बेहतर सुविधा जरूर मिल गयी है।

आज जुआ खेलाने वाले दर्जनों मोबाइल गेमिंग एप मौजूद हैं जो पिछले 3–4 वर्षों से कुकरमुत्ते की तरह बढ़ रहे हैं। बड़े–बड़े फिल्मी सितारे और क्रिकेटर इन कम्पनियों के एजेण्ट हैं। विराट कोहली कहते हैं कि ‘‘हीरो बनना है तो एमपीएल खेलो।’’ धोनी का कहना है कि ‘‘मैंने अपना गेम बदल दिया है आप भी बदलो।’’ पहले यह ड्रीम इलेवन का विज्ञापन करते थे अब विंजो गेमिंग एप का विज्ञापन करते हैं। ऋतिक रोशन, नवाजुद्दीन सिद्दकी जैसे फिल्मी जगत के सितारे भी आकर्षक विज्ञापनों के माध्यम से लोगों को जुआ खेलने के लिए उकसाते हैं।

आखिर इन कम्पनियों ने इतने कम समय में 36 करोड़ लोगों को जुआरी कैसे बना दिया ? इसके कुछ ठोस कारण हैं––

पहला, आज प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा आकर्षक विज्ञापन करवाकर सब कुछ बेचा जा रहा है। टीवी, अखबार, मोबाइल, सड़क, बाजार, जहाँ नजर घुमाओ वहाँ विज्ञापन ही विज्ञापन है। जुआ खेलाने वाली कम्पनियाँ भी इस दौड़ में किसी से पीछे नहीं हैं। अपनी बाजार नीतियों और विज्ञापन के माध्यम से ये कम्पनियाँ लोगों को जुआरी बनाने में कामयाब हो रही हैं।

दूसरा, आज अधिकतर लोग प्राइवेट जॉब या छोटा–मोटा काम–धंधा करके अपना जीवन गुजार रहे हैं। लोगों के पास बेहतर जीवन की कोई गारंटी नहीं है। इसके चलते असुरक्षा का भाव पैदा होता है और इस तरह के लालच में आने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।

तीसरा, मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था में सबसे ऊँचा स्थान पूँजी का है। इसमें हर व्यक्ति रातोंरात अमीर बनने के ख्वाब देखता है। ये कम्पनियाँ घर बैठे करोड़ों कमाने का लालच देकर लोगों को अपना शिकार बनती हैं।

एक जमाना था जब जुआ खेलने वालों को हिकारत की नजर से देखा जाता था। जुए में बर्बाद हुए लोगों के तमाम उदाहरण हमारे आस–पड़ोस में मिल जाएँगे। लेकिन आज यह सब खुलेआम चल रहा हैं। इन खेलों के जाल में फँसकर बर्बाद होते लोगों की खबरें आये दिन अखबारों की सुर्खियाँ बन रही हैं। इन कम्पनियों की नजरों में उम्र का भी कोई मायने नहीं है। ये आज छोटे–छोटे बच्चों से उनका बचपन छीनकर उन्हें अपना शिकार बना रही हैं। छतरपुर में 13 वर्षीय बच्चे ने अपनी माँ के खाते से 40 हजार रुपये इन खेलों में गवाँने के बाद खुदकुशी कर ली। सिंगरौली में एक बुजुर्ग व्यक्ति की उम्र भर की जमा पूँजी 8 लाख रुपये बैंक से गायब हो गयी। जाँच में पता चला कि किसी परिजन ने यह सारा पैसा ऑनलाइन गेम में गवाँ दिया। इतना ही नहीं, इन खेलों के चक्कर में फँसकर लोग मानसिक रोगी भी बनते जा रहे है। भोपाल में रहने वाला एक युवक 6–7 साल में अपने 40 लाख रुपये ऑनलाइन जुए में खोकर मानसिक रूप से बीमार हो चुका है।

इन जुआरी कम्पनियों का कारोबार कई हजार करोड़ का है जो दिन–रात बढ़ता जा रहा है। कोरोना काल में लॉकडाउन के चलते मेहनतकश जनता को दो वक्त की रोटी जुटानी भारी पड़ रही थी जबकि जुआरी कम्पनियों का कारोबार तब से बेतहाशा बढ़ता जा रहा है। इस क्षेत्र की कुख्यात कम्पनी एमपीएल की बाजार कीमत 200 अरब रुपये है। लोगों को जुआरी बनाकर ये कम्पनियाँ हर साल औसतन 10 हजार करोड़ रुपये का धन्धा कर रही हैं। इसमें सालाना 40 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। अर्न्स्ट एड यंग की एक रिपोर्ट बताती है कि 2023 तक यह उद्योग 150 अरब रुपये तक पहुँच सकता है।

एक तरफ जुआरी कम्पनियों की चाँदी हो रही है और दूसरी तरफ लोगों को जुए की लत लगाकर उन्हें लूटा जा रहा है। हमारे देश में इसे रोकने के लिए कोई ठोस कानून नहीं है, बल्कि भारतीय कानून स्किल गेम पर सट्टा लगाने की अनुमति देता है। इसका फायदा उठाकर जुआ खेलाने वाली गेमिंग कम्पनियों ने अपने अधिकतर खेलों को स्किल गेम ही बताया है। आज इन गेमिंग एप का कारोबार इतना बढ़ चुका है कि इस पर रोक लगाना आसान नहीं है।

हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने राज्य में जुआ खेलाने वाले ऑनलाइन गेम पर रोक लगायी। इसके बाद ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र की दर्जनों कम्पनियों ने तमिलनाडु सरकार के इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी। इसके बाद मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार का फैसला खारिज कर दिया। राज्य स्तर पर कुछ सरकारें इन पर रोक लगाने को लेकर सजग हैं, लेकिन केन्द्र की तरफ से पूरे देश भर में इनको रोकने की कोई पहल नजर नहीं आती।

पिछले दिनों चाइना के गेमिंग एप को लेकर मोदी सरकार और उसके लगुवे–भगुवों ने खूब शोर मचाया था। मोबाइल में गेम खेलने से होने वाले नुकसान पर प्रोगाम करके गोदी मीडिया ने भी खूब टीआरपी बटोरी। लेकिन आज खुलेआम मोबाइल पर सट्टा खेलाने वालों पर सब शायद इसलिए खामोश हैं क्योंकि इनके संस्थापक चाइना से नहीं हैं।

 मौजूदा मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के बड़े–बड़े वादे किये थे। सब जानते है कि उन वादों का क्या हुआ। बेरोजगारी, महँगाई, गरीबी, भुखमरी और लुढ़कती अर्थव्यवस्था का कोई समाधान हुक्मरानों के पास नहीं हैं। इन सबके खिलाफ कहीं कोई बुलन्द आवाज भी नहीं उठ रही है। ऐसे में लोगों को जुए की लत लगाने वाली कम्पनियाँ सत्ताधारियों के लिए फायदेमन्द ही हैं।