2014 से अब तक नरेन्द्र मोदी की राजनीति हिन्दुत्व की पैकेजिंग और विकास के ढोल, अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत और साथ ही इन सबको सही ठहराने के लिए इतिहास की विकृति पर टिकी है। 2024 का चुनाव नजदीक आते ही सरकार का प्रयास है कि देश के हर आदमी की जुबान पर नरेन्द्र मोदी का नाम रहे। इसलिए सरकारी बजट को विज्ञापनों की तरफ मोड़ दिया गया है। न केवल टेलीविजन और अखबार में मोदी के पक्ष में खबरों की बाढ़ है, बल्कि पैसा झोंककर गूगल और फेसबुक पर लाखों पेज बना दिये गये हैं। इससे नरेन्द्र मोदी के प्रति एक आस्था और विश्वास पैदा किया जा रहा है जो निहायत झूठ की बुनियाद पर टिका हुआ है। इस तरह के सन्देश बार–बार प्रसारित किये जा रहे हैं।

हम सभी जानते हैं कि अब तक मोदी सरकार ने सार्वजनिक संस्थाओं का बेतहासा निजीकरण किया है तथा कर्मचारियों और मजदूरों के हितों पर हमला किया है। 2024 में अगर फिर से मोदी सत्ता में आये तो वह और तेजी से निजीकरण करेंगे। स्थाई रोजगार खत्म करके ठेका प्रथा और दैनिक वेतन की व्यवस्था को सब जगह ला देंगे। सेठों, साहूकारों, सूदखोरों, उद्योगपतियों, निजी उद्यमों के मालिकों और कॉपोरेट कम्पनियों के हित में आगे भी काम करेंगे तथा उनके हित में नये–नये कानून बनायेंगे। इसलिए हर हाल में नरेन्द्र मोदी को सत्ता चाहिए।

भाजपा ने विपक्ष को हराने की एक नायाब रणनीति बनायी है। पहले कानून बनाकर मनी लांड्रिंग के केस में जमानत मिलना लगभग असम्भव बना दिया गया। अब उसका इस्तेमाल करके ईडी और सीबीआई जैसी केन्द्रीय जाँच एजेंसियों के जरिये विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है। उन्हें इतना अधिक डरा दिया जाये कि वह भाजपा की वाशिंग मशीन में खुद ही आ जायें।

इण्डियन एक्सपे्रस अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे 25 विपक्षी नेताओं में से 23 को तब सरकारी एजेंसियों के आतंक से राहत मिली जब वे भाजपा में शामिल हो गये। “संविधान और लोकतंत्र खतरे में है” यह बात विपक्षी नेता बार–बार दुहरा रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि 21वीं सदी में नरेन्द्र मोदी हिटलर के दूसरे संस्करण हो सकते हैं। सवाय यह उठता है कि क्या मोदी वैचारिक तौर पर ऐसा कर पाने में सक्षम हैं? हम जानते हैं कि उनकी शिक्षा–दीक्षा आरएसएस के जिस स्वयंसेवक के तौर पर हुई है, उसके विचार हिटलर–मुसोलिनी से काफी मिलते–जुलते हैं। जैसे–– अल्पसंख्यक समुदाय से नफरत, तानाशाही राज्य का समर्थन और पड़ोसी देशों के खिलाफ नफरत या अन्धराष्ट्रवाद को बढ़ावा देना। लेकिन विचारधारा हिटलरी शासन का एक पहलू है। दूसरा पहलू है कि क्या जमीनी हकीकत इस बात की इजाजत देती है कि भारत में तानाशाही कायम हो जाये। मुझे लगता है कि यह बात ज्यादा मायने रखती है। इस मामले में आम जनता की लोकतांत्रिक चेतना भी एक महत्वपूर्ण कारक है जिसे पिछले 30 सालों में सुनियोजित तरीके से कम किया गया है। भारत का संविधान भी लोकतांत्रिक मूल्यों को सुरक्षा देता है। अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करता है। लेकिन संविधान की इस मूल भावना के साथ भी खिलवाड़ किया गया। पिछले कुछ सालों में अल्पसंख्यक समुदायों पर भाजपा नेताओं की नफरती बयानबाजी और कानून के हाथ से उनका बच निकलना इस बात की गवाही देते हैं। हालाँकि एक स्वस्थ्य लोकतंत्र में अल्पसंख्यक समुदाय की आवाज सुनी जाने की जरूरत होती है। लेकिन वक्त बहुत बदल चुका है। हालत और खराब हो जायेगी अगर इस साल के चुनाव में नरेन्द्र मोदी की पार्टी को प्रचण्ड बहुमत मिलता है। उनके कई नेता संविधान बदलने की बात करने लगे हैं। साथ ही वे अनुशासन और विकास को गति देने के नाम पर लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों में और कटौती करेंगे। यह तय है।

“हिन्दू धर्म खतरे में है” “कांग्रेस मुसलमान का पक्ष लेती है” ऐसा झूठा नरेटिव गढ़कर जनता में नफरत के बीज बोये गये। इतना ही नहीं उसके बीच अन्धविश्वास, ढोंग और पाखण्ड को बढ़ावा देकर उसकी चेतना को कुन्द किया गया। दरअसल, 2014 से पहले, कांग्रेस सरकार भी पूँजीपतियों के पक्ष में खड़ी थी। लेकिन पूँजीपति उसके काम से खुश नहीं थे। इसलिए उन्होंने उसे कमजोर किया क्योंकि कांग्रेस तेजी के साथ सरकारी सम्पत्तियों का निजीकरण नहीं कर रही थी। आरटीआई और आरटीई के द्वारा जनता को कुछ छोटे–मोटे अधिकार दिये जा रहे थे। जमीन अधिग्रहण कानून में बदलाव के जरिये किसान को ज्यादा मुआवजा मिलना था। यह सब पूँजीपतियों को पसन्द नहीं आया। उनके पास भाजपा और मोदी जैसा विकल्प भी मौजूद था। लिहाजा, उन्होंने 2014 में मोदी को खुला समर्थन दिया और मोदी के लोकतंत्र विरोधी अभियान को भी हरी झण्डी दिखा दी। देशी–विदेशी पूँजीपति भी लोकतंत्र की बाधाओं से तंग आ गये थे। वे तानाशाही के जरिये मजदूरों और किसानों पर अंकुश लगाना चाहते थे। इस मामले में भी मोदी से बेहतर शायद ही कोई उन्हें मिलता। उन्होंने कांग्रेस के ऊपर से अपना हाथ हटा लिया। नतीजा, 130 साल से ज्यादा पुरानी कांग्रेस पार्टी सबसे ज्यादा कमजोर हालत में पहुँच गयी। कांग्रेस कुछ उबर रही है। चुनाव में विपक्ष के इण्डिया गठबन्धन को जन समर्थन मिल रहा है। अब यह देखना बाकी है कि मौजूदा चुनाव के जरिये क्या वह मोदी को सत्ता से बेदखल कर पायेगी।              

–– संजीव घिल्डियाल