अब भूल जाइये रेलवे की नौकरियों को! रेलवे में केन्द्र सरकार की अब कोई नयी नियुक्ति नहीं निकलने वाली! रेलवे की नौकरियों में आरक्षण का प्रश्न भी एक झटके में साफ हो जाएगा क्योंकि न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी। मोदी सरकार भारतीय रेलवे को निगमीकरण की पटरियों पर दौड़ाने वाली है जिसका आखिरी स्टेशन निजीकरण है।

निगमीकरण का मतलब है–– किसी संस्था को निगम का रूप देना। सरकारी नियंत्रण के तहत उसके कार्यों को धीरे–धीरे निजी संस्थानों को सौंपते जाना ताकि आगे चलकर जब वह निगम लाभ बनाने लगेगा तो उसे किसी निजी बोलीदाता को बेचा जा सकेगा।

आप कहेंगे कि रेलवे में यह निगमीकरण शब्द कहाँ से आया? दरअसल, जितना हम रेलवे को देखते हैं वह उससे कहीं बड़ा संस्थान है। हमें सिर्फ दौड़ती–भागती ट्रेनें दिखायी देती हैं लेकिन सुचारू ढंग से यह ट्रेनें दौड़ती रहंे, इसके लिए बड़े–बड़े कारखाने हैं, वर्कशॉप हैं, मेंटनेंस की वृहद व्यवस्था है।

मोदी सरकार के दुबारा आते ही इन सारी व्यवस्थाओं को जो कई सालों से काम करती आयी हैं, उन्हें हिला डाला है। दरअसल रेल मंत्रालय ने 100 दिन का एक एक्शन प्लान तैयार किया है। इस प्लान के तहत रेलवे बोर्ड ने एक आदेश जारी कर कहा है कि

चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स आसनसोल

इंटीग्रल कोच फैक्ट्री चेन्नई

डीजल रेल इंजन कारखाना वाराणसी

डीजल माडर्नाइजेशन वर्क्स पटियाला

ह्वील एंड एक्सल प्लांट बेंगलुरु

रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला

माडर्न कोच फैक्ट्री रायबरेली

सहित कुछ अन्य उत्पादक इकाइयाँ अब प्राइवेट कम्पनी की तरह काम करेंगी। इस आदेश से यहाँ तैनात सभी रेल कर्मचारी सरकारी सेवा में न होकर निजी कम्पनी के कर्मचारी बन जाएँगे। यही नहीं, अब यहाँ भारतीय रेल के महाप्रबन्धक की जगह प्राइवेट कम्पनी के सीएमडी बैठेंगे।

रेलवे बोर्ड ने अगले 100 दिन के एक्शन प्लान में अपनी सभी उत्पादक इकाइयों को एक कम्पनी के अधीन करने का प्रस्ताव दिया है। प्रस्ताव के मुताबिक सभी उत्पादक इकाइयाँ व्यक्तिगत लाभ केन्द्र के रूप में काम करेंगी और भारतीय रेलवे की नयी इकाई के सीएमडी को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगी। इस तरह से रेलवे बोर्ड ने इन सात उत्पादक इकाइयों को भारतीय रेलवे की नयी इकाई इंडियन रेलवे रोलिंग स्टॉक (रेल के डिब्बे एवं इंजन) कम्पनी के अधीन लाने का फैसला कर लिया है।

अभी तक इन उत्पादक इकाइयों के सभी कर्मचारी भारतीय रेलवे के कर्मचारी माने जाते हैं। इन पर रेल सेवा अधिनियम लागू होता है। इन सभी कर्मचारियों को केन्द्रीय कर्मचारी माना जाता है। उत्पादक इकाइयों का सर्वेसर्वा जीएम (महाप्रबन्धक) होता है और रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को जीएम रिपोर्ट करता है।

लेकिन निगमीकरण के बाद जीएम की जगह सीईओ की तैनाती होगी, वह सीएमडी को रिपोर्ट करेगा। ग्रुप सी और डी का कोई भी कर्मचारी भारतीय रेलवे का हिस्सा नहीं होगा बल्कि वह निगम के कर्मचारी कहलाएँगे। उन पर रेल सेवा अधिनियम लागू नहीं होगा बल्कि रेल निगम जो नियम बनायेगा वह लागू होगा। कर्मचारियों के लिए अलग से पे–कमीशन आएगा। ठेके (कान्ट्रैक्ट) पर काम होगा। इन कर्मचारियों को केन्द्रीय सरकार की सुविधाएँ नहीं मिलेंगी। सेवा शर्तें भी बदल जाएँगी। नये आने वाले कर्मचारियों के लिए पे–स्केल और पे–स्ट्रक्चर भी बदल जाएगा।

साफ दिख रहा है कि जल्द ही रेलवे को भी बीएसएनएल की तर्ज पर निगम बनाने की केन्द्र सरकार की मंशा है। कहीं कुछ सालों बाद वेतन बाँटने को मोहताज बीएसएनएल की हालत में रेलवे भी न आ जाए! बीएसएनएल पिछले दिनों अपने कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं दे पाने के लिए चर्चा में रहा है। आपको ध्यान देना चाहिए कि केन्द्र सरकार के दूरसंचार विभाग को निगम का रूप देकर बीएसएनएल बनाया गया था लेकिन वहाँ तो सिर्फ एक लाख 70 हजार कर्मचारियों का प्रश्न था। यहाँ रेलवे में तो उससे दस गुना यानी 17 लाख कर्मचारी काम करते हैं।

पहले ही निजीकरण के कार्यक्रम के परिणाम स्वरूप अब तक भारतीय रेल में लाखों नौकरियाँ खत्म की जा चुकी हैं। अगर निगमीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ा गया तो रेलवे में नौकरी तो मिलेगी लेकिन उसे सरकार नहीं देगी, ठेकेदार देंगे।

(गिरीश मालवीय की फेसबुक वॉल से)