अक्टूबर 2022 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गैर संचारी रोगों से होने वाली असमय मृत्यु के बारे में एक रिपोर्ट जारी की है। इसमंे खासतौर पर निम्न और मध्यम आय वाले देशों की सरकारों को इस तरह की मौत में तेज बढ़ोतरी पर चेतावनी दी गयी है। गैर संचारी रोगों से दुनिया मंे हर दो सेकण्ड में एक व्यक्ति की मौत होती है। इनमें से 86 फीसदी मौत निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती है। भारत के बारे में अपनी रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने बताया है कि 2019 में यहाँ हुई कुल मौतों में से 66 फीसदी मौतें गैर संचारी रोगों (एनसीडी) से हुई हैं और ये बीमारियाँ गरीब लोगों में ज्यादा बढ़ रही हैं। खराब स्वास्थ्य सेवाएँ, खराब भोजन और खराब जीवनशैली इन रोगों के बढ़ने के प्रमुख कारण हैं।

गैर संचारी रोगों में वे बीमारियाँ शामिल हैं, जो लम्बे समय में धीरे धीरे बढती हैं। ये एक से दूसरे को लगने वाले, संक्रामक रोग नहीं हैं। इनमें वैसे तो बहुत से रोग आते हैं, लेकिन चार तरह के रोग प्रमुख हैं जो सबसे ज्यादा लोगों की जान लेते हैं–– हृदय रोग, कैंसर, साँस सम्बन्धी रोग और मधुमेह (शुगर)। हर साल हृदय रोग से 1 करोड़ 79 लाख, कैंसर से 93 लाख, साँस सम्बन्धी रोग से 41 लाख और मधुमेह से 15 लाख लोग असमय मौत के मुँह में चले जाते हैं। इस तरह दुनिया में गैर संचारी रोगों से हर साल 4 करोड़ 10 लाख लोगों की जान चली जाती है।

हमारे देश में जिस गति से ये रोग बढ़ रहे हैं उससे 23 फीसदी लोगों पर समय से पहले मौत का खतरा मँडरा रहा है। पहले ये बीमारियाँ अमीर लोगों की मानी जाती थीं, लेकिन अब गरीब लोगों में भी बढ़ रही हैं। इन गरीब लोगों के पास सही ढंग से इनका इलाज करवाने की आर्थिक क्षमता नहीं होती है। गैर संचारी रोगों से सबसे ज्यादा मौत भारत में होती है, 2019 में इनसे भारत में 60 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। आज हर चैथे भारतीय पर इन रोगों से असमय मृत्यु का खतरा मँडरा रहा है।

गैर संचारी रोगों के बढ़ने के मुख्य कारण

गैर संचारी रोगों के बढ़ने का सबसे प्रमुख कारण अस्वस्थकर भोजन–– पर्याप्त मात्रा में भोजन की कमी, भोजन में पोषक तत्वों की कमी और साफ–सुथरे भोजन का अभाव है। भारत की 80 फीसदी आबादी इतनी गरीब है कि आधा पेट खाकर गुजारा करती है। इनमें से अधिकांश लोग कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन अच्छी सेहत के लिए जरूरी मात्रा में फल, सब्जी, दूध, अण्डा, माँस, मेवे आदि पौष्टिक भोजन उनकी हैसियत से बाहर है। इन्हें जो भोजन हासिल होता है वह केवल मात्रा में ही कम नहीं होता, बल्कि उसमें पोषक तत्वों की भारी कमी होती है और वह बहुत सी अशुद्धियों से भरा होता है। 80 फीसदी जनता के लिए हर वक्त गैर संचारी रोगों की चपेट में आने का खतरा रहता है। देश में मुट्ठीभर लोग ऐसे भी हैं जो नाम मात्र का श्रम करते हैं, जरूरत से ज्यादा खाना भकोसते हैं। मोटापे के चलते इनके गैर संचारी रोगों से ग्रस्त होने की सम्भावना रहती हैं। इस तरह अमीरी–गरीबी की गहरी खाई ने दोहरी समस्या पैदा की है।

गैर संचारी रोगों को बढ़ाने वाले सामाजिक कारकों में आवास की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है। भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद खतरनाक जगहों पर रहता है। यह आर्थिक रूप से कमजोर हिस्सा झुग्गियों या दड़बेनुमा घरों में जीवन बिताने के लिए मजबूर है। इन घनी बसावट वाले रिहायशों में खुली जगह, साफ सफाई, हवा और सूरज की रोशनी का भी पर्याप्त इन्तजाम नहीं होता। इस तरह के आवास व्यक्ति की रोगरोधी क्षमता को बुरी तरह कम कर देते हैं जिससे यहाँ के निवासियों के गैर संचारी रोगों की चपेट में आने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है।

पर्यावरण की तबाही ने भी गैर संचारी रोगों की बढ़ाया है। हवा और पानी के दूषित हो जाने से साँस सम्बन्धी, पेट सम्बन्धी और कैंसर जैसी घातक बीमारियों का तेजी से प्रसार हो रहा है। जिन देशों का पर्यावरण तुलनात्मक रूप से स्वच्छ है वहाँ गैर संचारी रोगों से ग्रस्त लोगों की संख्या कम है। दुनिया के 100 सबसे गन्दे शहरों में 63 शहर भारत के हैं और भारत में ही गैर संचारी रोगों से ग्रस्त लोगों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है।

मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था ने लोगों की जीवनशैली को बुरी तरह से प्रभावित किया है, इसने भी गैर संचारी रोगों को बढ़ाने का काम किया है। संख्या की दृष्टि से मजदूर वर्ग आज समाज का सबसे बड़ा वर्ग है। मजदूरों से 12–14 घंटे काम लिया जाता है। इससे काम, आराम और मनोरंजन का सन्तुलन बिगड़ गया है। पालियों का काम उनके जागने और सोने के समय को निरन्तर बदलता रहता है। लम्बे समय तक थकाऊ और उबाऊ काम, जीनेभर का भोजन, अमानवीय आवास, गन्दा पर्यावरण ये सब मिलकर ऐसा माहौल तैयार करते हैं जिसमंे किसी भी व्यक्ति का रोग–ग्रस्त होना लाजमी है।

खराब सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ गैर संचारी रोगों के फैलाव को कई गुणा बढ़ा देती हैं।

डब्ल्यूएचओ की ‘सेविंग लाइफ, स्पेंडिंग लेस’ रिपोर्ट के मुताबिक, अगर हर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर सालाना एक डॉलर (82 रुपये) खर्च बढ़ा दिया जाये तो सन 2030 तक 70 लाख लोगों की जान बचायी जा सकती है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि अगर निम्न आय वाले भारत जैसे देश गैर संचारी रोगों की रोकथाम पर एक रुपया अतिरिक्त खर्च करते हैं तो उससे वह आने वाले दिनों में नागरिकों के बेहतर स्वास्थ्य के दाम पर 7 रुपये वापस ले सकते हैं। हमारे देश की सरकार रकम बढ़ाना तो दूर उल्टा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च लगातार कम करती जा रही है। आज हमारा देश स्वास्थ्य पर खर्च करने के मामले में 195 देशो में 154वें स्थान पर है। यहाँ तक कि हम अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश, नेपाल और दिवालिया हो चुके श्रीलंका से भी बदतर हालात में हैं।

भारत सरकार ने 2013 में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर 69 डॉलर खर्च किये थे, 2017 में यह रकम घटाकर 58 डॉलर प्रति व्यक्ति कर दी गयी है। जिस चीन से भारत के शासक होड़ करते हैं वह प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर 322 डॉलर सालाना यानी भारत से लगभग पाँच गुना ज्यादा खर्च करता है।

 2013 में भारत सरकार ने अपनी जीडीपी का 3–97 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च किया था जो 2017 में घटाकर जीडीपी का 1–15 प्रतिशत कर दिया गया। इसकी तुलना में अमरीका स्वास्थ्य पर अपनी जीडीपी का 18 फीसदी, मलेशिया 4–2, इण्डोनेशिया 2–8, चीन 6, श्रीलंका 3–5, भूटान 2–65 और पाकिस्तान 2–6 फीसदी खर्च करते हैं।

नेशनल हेल्थ एकाउंट्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2018–19 में केन्द्र और राज्य सरकारों ने मिलकर स्वस्थ्य पर 2–42 लाख करोड़ खर्च किये थे जो प्रति व्यक्ति केवल 1815 रुपये सालाना बैठता है। जबकि स्वास्थ्य पर 5–96 लाख करोड़ रुपये का खर्च जनता को खुद उठाना पड़ा। इसके चलते भारत मंे हर साल 6 करोड़ 30 लाख लोग कंगाल होकर गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। इस तरह भारत सरकार अपने आम नागरिकों के स्वास्थ्य पर प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति 5 रुपये से भी कम खर्च करती है, जबकि मानक के अनुसार केन्द्र और राज्य सरकार अपने कर्मचारियों पर प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति 172 रुपये से ज्यादा खर्च करती है। इतना भेदभाव शायद ही दुनिया के किसी दूसरे देश में हो।

सवाल यह है कि जिस देश की जनता इतनी भयानक बीमारियों और भेदभाव की शिकार हो तो क्या वह बीमार देश विश्व गुरु बन सकता है ? जिस सरकार के पास अपनी मेहनतकश जनता के इलाज के लिए पैसा नहीं है, (हालाँकि पैसा न होने का रोना सरकार खुद रोती है, जबकि उसके पास अकूत पैसा है।) जो सरकार सिर्फ मुठ्ठी भर पूँजीपतियों के हित के बारे में ही सोचती है, क्या ऐसी सरकार अपनी जनता को स्वास्थ्य भोजन, साफ पर्यावरण, अच्छा आवास, अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ, सम्मानजनक रोजगार, सामाजिक सुरक्षा, बेहतर जीवन शैली की गारन्टी कर सकती है और बीमारियों के इस नरक से जनता को बाहर निकाल सकती है ? सच्चाई यह है कि गैर संचारी रोगों का भयावह फैलाव सरकार की जन विरोधी नीतियों का परिणाम और उसके गाल पर तमाचा है। क्या ऐसी सरकारों से अभी भी हमें बेहतर भविष्य की उम्मीद रखनी चाहिए ?