1992 ब्राजील के रियो दी जनेरियो में हुए पृथ्वी सम्मेलन में फिदेल कास्त्रो ने कहा था कि “कल बहुत देर हो जायेगी” जो कि हो गयी है। अब गलतियाँ दोहराने का वक्त नहीं है। बल्कि दुनिया के सभी देशों की सरकारों को और वहाँ की जागरूक जनता को जलवायु परिवर्तन को यानी पृथ्वी बचाने वाले मुद्दे को अपने सबसे प्राथमिक मुद्दों में शामिल करना होगा। इसमें देरी करना अब विनाश को निमन्त्रण देने जैसा होगा।

जलवायु परिवर्तन का असर दुनिया के हर क्षेत्र पर है। जल, जंगल, जमीन, ग्लेशियर, कृषि, पशु, स्वास्थ, रोजगार, अपराध, भुखमरी, जीव–जन्तु, वनस्पति कुछ भी इससे अछूता नहीं है। हम मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन हमारी ऊर्जा की माँग का परिणाम है, लेकिन वास्तव में यह मुख्यत: साम्राज्यवाद के मुनाफे की हवस का परिणाम है। जीवाश्म र्इंधन, कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के जलने और अन्य उपयोग के साधनों से निकलने वाली खतरनाक गैसों के उत्सर्जन की वजह से आज दुनिया विनाश के कगार पर खड़ी है। इण्टर गवर्नमेण्टल पैनल ऑफ क्लाइमेट चेंज (आईपीपीसी) की 2022 की रिपोर्ट ने एक बार फिर से आगाह किया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव विनाशकारी होंगे।

लेकिन यहाँ हम हीट वेव (गर्म लू) के चलते पृथ्वी किस तरह से विनाश की तरफ बढ़ रही है, इस पर और दुनिया के अलग–अलग हिस्सों में हो रहे इसके दुष्परिणामों पर बात करेंगे।

आखिर, हीट वेव क्या है? जब किसी जगह का तापमान पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री, तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री और मैदानी क्षेत्रों में 40 डिग्री सेल्सियस पार कर जाये जहाँ सामान्य तापमान की तुलना में 4.5 डिग्री से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान बढ़ जाता है, उसे हीट वेव कहते हैं। तापमान 47 डिग्री से अधिक हो जाने पर गम्भीर हीट वेव की घोषणा की जाती है।

इस साल 21 मार्च को अण्टार्कटिका और आर्कटिक दोनों ही जगह दिन–रात बराबर थे। बस अन्तर मौसम बदलने का था, अण्टार्कटिका में सर्दी का मौसम आ रहा था और आर्कटिक में गर्मी का मौसम आ रहा था। लेकिन इस समय दोनों ही जगह पर रिकार्ड तोड़ हीट वेव (गर्म हवा/लू ) चली जो अधिकतम तापमान से 30 डिग्री ज्यादा थी। अण्टार्कटिका में हीट वेव चलने की वजह से अस्ट्रेलिया के दक्षिण–पूर्व में बर्फ के पठार के बीच वोस्तोक में पारा –17.7 डिग्री तक पहुँच गया, यानी वहाँ –32.6 डिग्री सेल्सियस के पिछले रिकॉर्ड से 15 डिग्री अधिक तापमान दर्ज किया गया। इटैलियन–फ्रैंच रिसर्च स्टेशन कॉनकॉर्डिया जो ऊँचे बर्फीले पठार पर मौजूद है, यहाँ भी मार्च में औसत से 40 डिग्री अधिक तापमान दर्ज किया गया। इसी तरह नार्वे के स्वालबार्ड का तापमान भी रिकॉर्ड तोड़ 21.7 डिग्री हो गया, जिसकी 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुँचने की आशंका है।

बर्फीले साइबेरिया के जोवोरोवो जहाँ जून के महीने में तापमान 16 डिग्री सेल्सियस रहता है, वहाँ तापमान 43 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया है। यहाँ काफी वक्त से हीट वेव बनी हुई है, वैज्ञानिक इस पर हैरान हैं। इस तरह अण्टार्कटिका, आर्कटिका और अलास्का से लेकर बर्फीली साइबेरिया और दूसरे भागों में तापमान की बढ़ोतरी ने खतरा पैदा कर दिया है जिसका असर दुनिया पर पड़ रहा है।

अमरीका, कनाडा से लेकर अफ्रीका, यूरोप, रूस, चीन, भारत और पाकिस्तान तक हीट वेव के चलते लोग भीषण गर्मी, जगलों में आग और सूखे से बेहाल हैं।

अमरीका के अलास्का और कैलीफोर्निया समेत कई हिस्सों में भीषण गर्मी पड़ रही है। इस गर्मी के चलते ही जंगलों का 7 लाख एकड़ क्षेत्र आग की चपेट में आ गया है। इस आग के कारण ही 11 करोड़ लोग भीषण गर्मी का सामना कर रहे हैं। कनाडा में भी रिकार्ड तोड़ 35 डिग्री तापमान पहुँच गया है। दूसरी तरफ यूरोप में भी गर्मी का कहर जारी है। ब्रिटेन और फ्रांस में रेड अलर्ट जारी कर लेवल चार वार्निंग दी गयी है। यह तभी जारी की जाती है जब अधिक हीट वेव (लू) के चलते मानसिक और शरीरिक स्वास्थ्य को बड़ा नुकसान होने का खतरा बढ़ जाता है।

पुर्तगाल में गर्मी से लगी आग ने 12–15 हजार हेक्टेयर जमीन को नुकसान पहुँचाया है तथा कई लोग मारे गये हैं और घायल हुए हैं। इसी तरह स्पेन में 22 हजार हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं तो इटली में हीट वेव के चलते इसकी सबसे बड़ी पो नदी में 85 फीसदी पानी सूख गया है। यहाँ सूखे के चलते आपातकाल लागू है जो एक साल तक जारी रह सकता है। यही स्थिति जर्मनी और चेक गणराज्य की है। इस तरह एक–तिहाई यूरोप अब तक के सबसे भीषण सूखे से जूझ रहा है।

चीन में भी हीट वेव के चलते तापमान 40–42 डिग्री सेल्सियस पहुँच गया है जिसके कारण चीन को अपने यहाँ 68 जिलों में रेड अलर्ट जारी करना पड़ा। दक्षिण एशिया के दो सबसे बड़े देश भारत और पाकिस्तान में भी हीट वेव के चलते भीषण गर्मी ने 122 साल पुराने रिकार्ड को तोड़ दिया है। पाकिस्तान के कई इलाकों में तो तापमान 50 डिग्री से भी ऊपर चला गया था। इसके चलते मार्च–अप्रैल 2022 के इन दो महीनों में भारत–पाकिस्तान में 90 लोगों की जानें चली गयीं। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आँकड़ों का सीएसई ने विश्लेषण किया और बताया कि भारत में 11 मार्च 2022 से शुरू हुई हीट वेव ने 15 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को 24 अप्रैल तक प्रभावित किया। इस अवधि के दौरान 25 दिन भीषण हीट वेव (गर्म लू) चली, जो मई और जून में भी चलती है। इसका सीधा असर भारत के कृषि उत्पादन और स्वास्थ्य पर पड़ा है।

भारत में हीट वेव के चलते मार्च–अप्रैल के महीने में गेहूँ, चना, सरसों, इसबगोल, जीरा और अरण्डी जैसी फसलों के लिए जहाँ तापमान 30 से 32 डिग्री सेल्सियस होता था, वहाँ इस बार 38 से 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया। इसके चलते फसलों को भारी नुकसान पहुँचा। जहाँ गेहूँ, चना और सरसों की फसलें तेज गर्मी के चलते फसल चक्र पूरा नहीं होने के कारण समय से पहले पक गयीं। नतीजा दाने छोटे रहे और उत्पादन कम रहा, जबकि इसबगोल, जीरा और अरण्डी की फसल भीषण तेज गर्म लू के चलते झुलस गयी। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान का संकट स्थिति को और विकराल बना सकता है। यह वनस्पति क्षरण, जल अपरदन, वायु अपरदन और भूक्षरण का सबसे बड़ा कारण है, जो हमारे देश में बहुत तेजी से हो रहा है। जंगलों का कटना, बारिश के कारण बाढ़ से मिट्टी का कटकर बहना, कृषि योग्य भूमि का बंजर होना, हीट वेव के चलते मिट्टी का क्षरण होना, जबरदस्त खनन के जरिये पहाड़ों का गायब होना जिसके चलते राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात में देश की करीब 50 प्रतिशत भूमि मरुस्थलीकरण से गुजर रही है। झारखण्ड में सर्वाधिक 68–77 प्रतिशत भूमि क्षरित हो चुकी है, जबकि 62 प्रतिशत क्षरित भूमि के साथ राजस्थान दूसरे नम्बर पर है।

कॉर्नेल विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार तापमान में वृद्धि के चलते यानी हीट वेव के चलते सदी के अन्त तक दुनियाँ में मवेशियों के दुग्ध उत्पादन, वजन और प्रजनन क्षमता में 25 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। वही भारत में डेयरी व मीट उत्पादन में 45 प्रतिशत की गिरावट आ जायेगी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हीट वेव ने 1998 से 2017 तक 1 लाख 66 हजार से अधिक लोगों की जान ली है, इसके कारण हृदय से सम्बन्धित रोगों में बढ़ोतरी होती है। रोगों के जीवाणु बढ़ते हैं और साथ ही इन रोग के जीवाणुओं की अलग प्रजातियाँ भी जन्म लेती हैं। यूनान के एथेंस शहर की हीट वेव की प्रमुख एलेनि मायरिविली का मानना है कि “उच्च तापमान पर ब्लड सर्कुलेशन निष्क्रिय हो जाता है और वह विभिन्न अंगों के कामकाजों को प्रभावित करता है। रात के समय उच्च तापमान का मतलब नींद की कमी और थकान है जिससे कार्यस्थल पर दुर्घटनाएँ होती हैं।”

 ‘क्लाइमेट चेंज 2011: द फिजिकल साइंस बेसिस’ के अनुसार दुनिया की 33 प्रतिशत आबादी पहले से ही अत्यधिक गर्मी का सामना कर रही है। 2100 तक यह आँकड़ा 48 से 76 प्रतिशत आबादी तक बढ़ सकता है।

इस तरह हम देख सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से हीट वेव ने आज दुनिया को एक गम्भीर संकट में डाल दिया है। वजह साफ है–– वैश्विक तापमान में इजाफे को औद्योगीकरण के पूर्व के स्तर पर लाने यानी 1.5 या 2 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जिस स्तर पर ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी लाना है, उसके मुकाबले जो प्रयास हो रहे है वे बहुत कम हैं। अगर साल 2022 में लागू की गयी मौजूदा नीति को मजबूत नहीं किया गया तो साल 2100 तक वैश्विक तापमान में 3.2 डिग्री सेल्सियस तक इजाफा तय है। मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेस (पृथ्वी विज्ञान मन्त्रालय) की एक रिपोर्ट में हीट वेव को लेकर बताया गया है कि 2040 से 2069 के बीच हीट वेव की घटनाएँ ढाई गुना बढ़ जायेंगी और 2070 से 2099 तक ये तीन गुना बढ़ जायेंगी।

 वैज्ञानिकों की इन रिपोर्टों से हम अन्दाजा लगा सकते है कि जब 1–9 डिग्री सेल्सियस तापमान पर हीट वेव के चलते दुनिया इतने बड़े संकट से गुजर रही है। एक–एक साल तक हीट वेव के चलते रेड अलर्ट जारी करना पड़ रहा है, जंगलों की आग बुझ नहीं रही है, नदियों का पानी सूख रहा है, ग्लेशियर असामान्य तरीके से पिघल रहे हैं, फसलें झुलस रही हैं, खाने का संकट बढ़ रहा है। हीट वेव अगर इससे तीन गुना बढ़ जायेगी, तब हमारा और हमारी पृथ्वी का क्या होगा? क्या जीवन बच पायेगा? आज सभी प्रकृति और मानवता प्रेमी, जागरूक और जिम्मेदार लोगों के लिए यह एक बड़ा सवाल है।