विष्णु नागर के दो व्यंग्य
व्यंग्य विष्णु नागर(1) देशद्रोही
हम यह सार्वजनिक घोषणा करते हैं कि हम भी बहुतों की तरह आजकल ‘देशद्रोही’ हैं। हमारे वश में श्मोदीछाप देशभक्त’ होना नहीं है, इसलिए ‘देशभक्ति’ इनके और ‘देशद्रोह’ हमारे हवाले है। ‘देशभक्त’ ही ऐसे मोदी जी की जयजयकार कर सकते हैं,जो पुलवामा के आतंकवादी हमले की खबर सुनकर भी कोरबेट पार्क में फिल्म की शूटिंग जारी रखते हैं। ये ही ऐसे राज्यपाल जी के श्राष्ट्रवाद’ के भार को चुपचाप वहन कर सकते हैं,जो पूरे देश में कश्मीरियों के बहिष्कार का आह्वान करते हैं। 40 से अधिक जवानों की शहादत को भुनाना इन ‘देशप्रेमियों’ को ही आता है। मारे जाएँ जवान, ‘देशभक्ति’ की दुकान चलाना इन्हें ही शोभा देता है! उनके परिवारजन रोएँ और ये देशभक्ति का भांगड़ा नाचें कि वाह मोदी वीर,तूने फिर बढ़िया कमाल किया कि देशभक्ति का मैदान मारकर,विपक्ष को चारों खाने चित कर दिया!ऐसे देशभगतो को हम जैसे समस्त लोगों की ओर से दूर से ही प्रणाम।
हे ‘देशभगतो’, हम तुम्हारा मुकाबला कर ही नहीं सकते, तुम जगह– जगह से कश्मीरी छात्रों को भगा सकते हो, उन्हें आतंकित कर सकते हो, जान से मारने की धमकी दे सकते हो, हम इस जन्म में यह सब नहीं कर सकते। हम मुसलमानों को गाली देनेवाले, मस्जिद पर केसरिया झंडा फहराकर देशभक्ति का प्रदर्शन करनेवाले देशभक्त नहीं हो सकते। जो लेखक–पत्रकार आज इस ‘देशभक्ति’ की पोल खोल रहे हैं,जिन्हें माँ–बहन की गालियाँ देने से लेकर मार डालने तक की धमकियाँ ये देशभगत दे रहे हैं, हम भी तो उन्हीं की जाति के, उनके ही छोटेमोटे भाईबन्द हैं, इसलिए हम ‘देशद्रोही’ हैं। हम वे ‘द्रोही’ हैं, जिन्होंने 2014 में भी मोदी को वोट नहीं दिया था और 2019 में भी नहीं देंगे। तो ‘देशभक्तों’ को तुम्हें, तुम्हारी यह ‘देशभक्ति’ और हमें हमारा ‘देशद्रोह’ मुबारक।एक बार नहीं, सौ और हजार बार मुबारक।
‘देशभगतोश्, जिस दिन से तुम ‘देशभगत’ हो गये, उस दिन,उस समय,उस घड़ी से हमने यह समझ लिया कि अब हमारे देशभक्त होने का समय जा चुका, कुछ समय के लिए इनका आ चुका है! हमने जान लिया कि हम अब ‘देशद्रोही’ हो चुके हैं क्योंकि हममें तो किसी का भक्त होने की प्राथमिक योग्यता तक नहीं है। अरे, जब हम ईश्वर भक्त तक नहीं हो पाए तो बताओ, किसी मोदी,किसी शाह के भक्त कैसे हों? हम लेखकों के पूर्वज तो रवींद्रनाथ टैगोर जैसे लेखक थे,जो महात्मा गाँधी के राष्ट्रवाद तक पर ऊँगली उठाते थे। अब बताओ किस विधि हम तुम्हारे ओछे, छूँछे, नकली, ढोंगी और चुनावी राष्ट्रवाद को स्वीकार करें!
और हे राष्ट्रवादियो, हम इसलिए भी ‘देशद्रोही’ हैं कि हम संघ की विचारधारा को देशभक्ति की विचारधारा नहीं मान पाए। हम ‘देशद्रोही’ हैं कि तुम्हारे अंधाधुंध प्रचार के बावजूद हम अरुंधति राय, प्रशांत भूषण, कन्हैया कुमार,शेहला रशीद, उमर खालिद आदि को देशद्रोही नहीं मान पाए! इनके प्रति हमारे मन में जो सम्मान है, उसे तुम ‘देशभक्ति’ के हजारों शस्त्र पूजाओं से पैदा नहीं कर पाए! हे ‘देशभगतो’ हम वे हैं, जो जवाहरलाल नेहरू को भी बहुत मानते हैं और उनके नाम पर दिल्ली में जो विश्वविद्यालय है, उसे ‘देशद्रोहियों’ का अड्डा नहीं, देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में मानते हैं। और भगतसिंह की हम अगरबत्ती लगाकर आरती नहीं उतारते, उन्हें फाँसी के फंदे पर झूल जानेवाले देशभक्त के रूप में इस्तेमाल नहीं करते।हम उनके बारे में,उनके लिखे को पढ़ते हैं और 24 साल के इस नौजवान की क्रांतिकारिता और उसकी अध्ययनशीलता और समझ के कायल हैं। हमारे प्रिय निबंधों में भगत सिंह का निबंध है– ‘मैं नास्तिक क्यों बना’ , जो तुमने नहीं पढ़ा होगा। पढ़ने की आदत और धीरज हो तो ऐ ‘देशभक्तों’ इसे पढ़ लेना। इससे तुम्हें पता चल जाएगा कि भगत सिंह संघी नहीं, वामपंथी थे।वह तुम जैसे ‘देशभगतों’ की नफरत की सौदागरी के समर्थक नहीं, सख्त विरोधी थे। पढ़ लोगे तो या तो दीवार से सिर फोड़ लोगे या मोदीभक्त–देशभक्त नहीं रहोगे।
हम ‘देशद्रोही’ हैं क्योंकि हम गाय या भैंस का दूध चाय के साथ पीते हैं मगर न गाय हमारी माता है, न भैंस हमारी मौसी। हमें गाय एक प्यारा जानवर लगती है और भैंस भी एक सीधासादा जानवर लगती है। हम जैसे लोग भैंसपालक हुए होते तो शायद गाय की बजाए भैंस का पक्ष लेनेवाली पार्टी को वोट देते, हालांकि गोमाता ने भैंस मौसी की पार्टी नहीं बनने दी! वैसे भी शायद हममें से ज्यादातर ने गाय की बजाय भैंस का दूध अधिक पिया है बल्कि गाय के नाम पर भी पानी मिला भैंस का दूध ही पिया है।
हम ‘देशद्रोही’ हैं क्योंकि हम उस भीड़ के साथ कभी खड़े नहीं हुए, जिसने अखलाक की जान ली और न हमने खूनी रथयात्रा में भाग लिया। हिंदुस्तान में इतने राम और इतने हनुमान मन्दिर हैं कि एक और मन्दिर की जरूरत हमने महसूस नहीं की, इसलिए अयोध्या में राममन्दिर न बने,इससे हम जैसों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। इस देश में इतने मन्दिर हैं कि जितने आकाश में तारे हैं। आकाश में एक तारा कम है, देश में एक मन्दिर कम है,ऐसा हमें नहीं लगता। और हम इसलिए भी ‘देशद्रोही’ हैं क्योंकि हम किसी भी बलात्कारी का–वह हिंदू हो या किसी और धर्म का– धर्म के नाम पर समर्थन करने खड़े नहीं हो सकते, उसका झंडा उठाकर गर्व से सिर नहीं उठा सकते। जिन्होंने कठुआ की आठ साल की बच्ची आसिफा के साथ सामूहिक बलात्कार किया और जो वकील इन बलात्कारियों के साथ खड़े थे, हम उनके साथी, उनके हमदर्द, उनके हमप्याला, हम निवाला नहीं हो सकते।
हम ‘देशद्रोही’ हैं क्योंकि हम इस देश में रहकर ऐसी बातें करते हैं,जबकि देश भी आजकल तुम्हारा है, सरकार भी तुम्हारी है और लोकतंत्र भी तुमने अपने नाम करवा रखा है,जिसमें सवाल पूछना अपराध है। हम ऐसे ‘देशप्रेमी’ न थे, न हैं, जो पुलवामा मामले में खून का बदला खून का नारा लगाते, चाहे हमें तुम कायर कहो। हमें कायर होना मंजूर है, हत्यारा और बलात्कारी होना नहीं। दूसरों की नहीं जानता, मैंने कई बार नापकर देखा, मेरा सीना छप्पन इंच का नहीं है, इसलिए भी मैं ‘देशद्रोही’ हूँ। हालांकि सीने के नाप और देशभक्ति का क्या संबंध है, यह मुझे नहीं पता और यह जानने की इच्छा भी नहीं कि छप्पन इंचवाले का सीना कितने इंच या कितने सेंटीमीटर का है।
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(2) देशभक्त और देशद्रोही
पहले हम सब ‘देशभक्त’ और ‘देशद्रोही’ बाँटे गये।फिर उनमें से हिंदू– हिंदू ‘देशभक्त’ और मुसलमान–मुसलमान ‘देशद्रोही’ हो गये। फिर श्गोरक्षक’ उर्फ मोदीभक्त ‘देशभक्त’ हो गये और हिंदुओं में भी जो सेकुलर हैं, वे ‘देशद्रोही’ हो गये। फिर पूरा कश्मीर ‘देशद्रोही’ हो गया और पूरा जम्मू ‘देशभक्तश्। फिर जम्मू और कश्मीर के सभी हिंदू ‘देशभक्त’ हुए और सभी मुसलमानों का तो कहना ही क्या, वे तो ‘देशद्रोही’ होने का जन्मसिद्ध अधिकार लेकर ही इस धरती पर पैदा हुए हैं। फिर कारपोरेट का विरोध करना,अडाणी–अम्बानी का विरोध करना, ‘देशद्रोह’ हुआ और जंगल,समुद्र, नदी पर कारपोरेट का कब्जा करके आदिवासियों–दलितों आदि को उजाड़ना ‘देशभक्ति’ हुआ।सरकारी कम्पनी एचएएल से राफेल का सौदा छीनना ‘देशभक्ति’ हुआ, अनिल अम्बानी जैसे दिवालिया उद्योगपति को राफेल बनाने का ठेका दिला देना ‘देशभक्ति’ हुआ। फिर रक्षा मंत्रालय से राफेल की फाइलें गायब करवाना ‘देशभक्ति’ हुआ और एन–राम, प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी ‘देशद्रोही’ हुए।ये ‘देशद्रोही हुए श्तो अर्णव गोस्वामी, सुधीर चैधरी, अंजना ओम कश्यप ‘देशभक्त’ हुए।
इस तरह ‘देशभक्ति’ और ‘देशद्रोह’ की विभाजन रेखाएँ खिंचती चली गर्इं। 1947 के बाद एक और विभाजन हुआ और होता चला जा रहा है। मोदी जी चूँकि श्न्यू इंडिया’ बनाना चाहते हैं,इसलिए उन्होंने भारतीय संविधान में एक अघोषित संशोधन कर दिया है। अब उनसे सवाल पूछना ‘देशद्रोह’ है और वे और उनके भक्त जिनसे भी, जब भी, जहाँ भी, जो भी चाहें, सवाल पूछें ‘देशभक्ति’ है। यहाँ तक भाजपा सांसद और विधायक का जूतमपैजार देशभक्ति है और पाकिस्तान के लिए जासूसी करना तक ‘देशभक्ति’ है।
अगर 2019 के चुनाव के बाद मोदी जी का श्न्यू इंडिया’ बनता रहा–जिसका खतरा कम है– तो सवाल ही नहीं और भी बहुत कुछ भी ‘देशभक्ति’ या ‘देशद्रोह’ हो जाएगा। अक्ल का इस्तेमाल करना तो अभी से ‘देशद्रोह’ है,कल से मोदी जी की तरह दाढ़ी–मूँछ न रखना, उनकी तरह कोचीन को कराची न कहना, तक्षशिला को हिंदुस्तान में न बताना, मोदी जी की डिग्री पर सवाल करना ‘देशद्रोह’ हो जाएगा। थोड़ा इंतजार कीजिए, आपके मुँह से मोदीविरोधी एक वाक्य तक निकला तो आपका मुँह और आपके कान ने ऐसी बात सुनी तो कान ‘देशद्रोही’ हो जाएगा! आपका रंग,आपकी भाषा भी ‘देशद्रोही’ अथवा ‘देशभक्त’ होने के लिए विवश हो जाएगी। अभी ‘न्यू इंडिया’ ठीक से बना कहाँ है ,बन गया, तब देखिएगा आज जो फैंटेसी लग रहा है, कल सिर्फ वही सच होगा। निश्चिंत रहिए आधार कार्ड भी दो तरह के होंगे–केसरिया और हरा।कौनसा आधार कार्ड ‘देशभक्ति’ और कौनसा ‘देशद्रोह’ का सबूत होगा,यह आप समझ गये होंगे।हम और आप बांग्लादेशी या पाकिस्तानी हो जानेवाले हैं।
मोदी जी का फंडा एकदम सीधा है – उनसे सवाल मत पूछो। वे पूछें सवाल तो उसका वह जवाब दो और वह भी ऐसा,जो वह सुनना चाहते हैं। ‘देशद्रोही’ बनने के लिए अब अधिक मेहनत करने की जरूरत नहीं, बस मोदी एंड ब्रदर्स से सवाल पूछ लें। जैसे अभी ‘इंडिया टुडे टीवी’ के राहुल कंवल ने बालाकोट पर वायुसेना के हमले में मरनेवाले आतंकवादियों की विवादित संख्या के बारे में मंत्री पीयूष गोयल से सवाल पूछ दिया तो उस ‘देशभक्त’ अविलम्ब ‘देशद्रोही’ बना दिया गया।
हम तो उस दिन का इंतजार कर रहे हैं,जब हम न देशद्रोही होंगे, न देशभक्त। विष्णु नागर हैं, विष्णु नागर रहेंगे।
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