आपको सरकार के नये आदेशों–अनुदेशों की जानकारी है या नहीं? नहीं है तो जान लीजिए क्योंकि यह आदेश कर्नाटक में लागू भी हो चुका है! आदेश यह है कि हमने–– आपने अब से प्रधानमंत्री की छवि बिगाड़ने की कोई भी कोशिश की तो बच्चा हो या बड़ा, उस पर देशद्रोह–राजद्रोह का केस चल जाएगा, जेल हो सकती है। यानी अब प्रधानमंत्री की छवि न बिगाड़ना भी–– मतलब उनके काम की, भाषण की आलोचना न करना भी–– हमारे नागरिक कर्तव्यों में शामिल हो चुका है। जल्दी ही यह आदेश जारी हो सकता है कि प्रधानमंत्री की छवि बनाना भी हमारा राष्ट्रीय और नागरिक कर्तव्य है। हम जो आज तक अपनी छवि ही नहीं बना पाये, प्रधानमंत्री की छवि क्या बनाएँगे? मतलब हम अपनी नागरिकता से जाएँगे। वैसे छवि बनाने के काम में मोदी जी स्वयं बहुत कुशल हैं। इस एकमात्र मोर्चे पर उनकी सफलता असंदिग्ध और अविवादित है। 
आजकल इस काम के लिए मोदी–शाह दिल्ली की प्रदूषित हवा को और प्रदूषित करके अपनी राष्ट्रवादी छवि बना रहे हैं, जिससे इन दोनों के स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो सकता है। वैसे अभी तक मोदी जी का शारीरिक स्वास्थ्य बताते हैं कि बहुत अच्छा है और शाह साहब का भी शायद बुरा नहीं होगा। उन्हें अपने स्वास्थ्य की खातिर इससे बचना चाहिए था। हम तो भई मुफ्त की सलाह ही दे सकते हैं। और मुफ्त की दूसरी चीजों को तो लोग रिस्क लेकर भी लपक लेते हैं मगर ऐसी सलाह कोई नहीं मानता। वैसे भी मोदी–शाह किसी भी तरह की सलाह मानने के लिए बने ही नहीं हैं। उन्हें बोलना खूब आता है, सुनना नहीं। इससे इन्हें एलर्जी है। 
आपने पढ़ा होगा कि कर्नाटक के एक स्कूल में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ एक नाटक खेला गया तो उस स्कूल पर देशद्रोह का केस दर्ज कर दिया गया। बच्चों तक से पूछताछ की गयी। स्कूल की प्रिंसिपल साहिबा और एक बच्चे की माँ को गिरफ्तार कर लिया गया है। कहा गया कि इससे मोदी जी की छवि बिगाड़ी जा रही थी। उधर इसी कर्नाटक के एक संघी स्कूल में बाबरी मस्जिद गिराकर राममंदिर बनाने का नाटक भी खेला गया था। उस पर न तो “देशप्रेम” का केस दर्ज हुआ, न उसे भाजपा की छवि बनाने के लिए पुरस्कृत किया गया। आप कहेंगे कि “देशप्रेम” का भी केस दर्ज होता है क्या? नहीं होता है तो अब होना चाहिए। अब शब्दों के मायने बदल चुके हैं। “देशप्रेम” का अर्थ अब देशप्रेम और  “देशद्रोह” का मतलब अब देशद्रोह नहीं रह गया है। सब उलट–पुलट चुका है। इसलिए अब “देशप्रेम” पर केस दर्ज होने का वक्त है। आजकल हर संघी, हर भाजपाई नफरत के बीज बोकर, उसकी फसल काटकर समझता है, वह देशभक्त है, “देशप्रेमी” है। आजकल गोडसे और उनके वंशज मुँह पर कपड़ा बाँधकर सिर फोड़ रहे हैं, यह “देशभक्ति” है। मंत्री “गोली मारो सालों को” के नारे लगवा रहे हैं और इससे प्रेरित युवक जामिया मिलिया में कट्टा लेकर गोली मार रहे हैं, यह “देशभक्ति” है। जो गुण्डों को जेएनयू में घुसकर सर फोड़ने की स्वतंत्रता दे, वह पुलिस कहलाने लगी है। और जो संविधान की बात करते हैं, वे गद्दार कहे जाने लगे हैं। इसलिए अर्थ अब उलट चुके हैं। अब “देशप्रेम” सेे सुुगंंध नहीं, दुर्गंध आने लगी है। 
दिल्ली में आजकल यह दुर्गंध बहुत अधिक फैली हुई है। जिनका मन इस दुर्गंध को दूर से सूँघकर मन नहीं भरा है, वे आयें दिल्ली। चुनाव होने से पहले आयें और अपनी नाक सड़ाने का कीमती अनुभव लेकर जायें। हम दिल्लीवासी तो अब भूल चुके हैं कि हमारी भी कभी एक नाक होती थी वरना अब तक हम आईसीयू में होते!
अब बताइए, ऐसे वातावरण में दुनिया का कोई भी स्कूली नाटक मोदी जी की छवि का क्या कुछ भी बिगाड़ सकता है? उनकी छवि कभी किसी चीज से नहीं बिगड़ती। 1984 के सिखों के नरसंहार से कांग्रेस की छवि बिगड़ गयी थी मगर 2002 के नरसंहार से मोदी जी की छवि बन गयी। वह मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री पद तक पहुँच गये। जब हम सोच रहे थे कि मोदी जी स्वयं अपनी छवि बिगाड़ रहे हैं तो हम क्यों यह कष्ट करें मगर पता चला कि “एण्टायर पोलिटिकल साइंस” का विश्व का यह एकमात्र प्रतिभाशाली विद्यार्थी इस तरह अपनी छवि बना रहा था! 2014 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने अच्छे दिन, 15 लाख, दो करोड़ रोजगार हर साल देने का वायदा किया, धेलाभर नहीं किया। इससे भी उनकी छवि सुधर गयी। उन्होंने नोटबन्दी की, अर्थव्यवस्था का सत्यानाश किया। छवि उज्ज्वल हो गयी। जीएसटी लाने पर उज्जवलतर हो गयी, सूरज की तेज रोशनी की तरह दमक गयी। 
ऐसे प्रधानमंत्री की छवि बच्चों के एक नाटक से बिगड़ सकती है, यह तो बच्चे भी नहीं मानेंगे मगर कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदुयुरप्पा को इतनी सी बात समझ में नहीं आयी तो कोई क्या करे? उन्हें पता होना चाहिए था कि मोदी जी की छवि बिगाड़ने से ही बनती है। बनाने से उनकी भी बिगड़ती है और बनानेवालों की भी। बनाने वाले की गत अर्णब गोस्वामी जैसी हो जाती है, जिसे कुणाल कामरा हवाई जहाज में भी नहीं छोड़ते, जबकि गरीब अर्णब हवाई जहाज में एंकरिंग नहीं कर रहा होता!
मोदी जी, केजरीवाल नहीं हैं भाई कि जहाँ अम्बेडकर, गाँधी तथा संविधान के पक्ष में नारे लग रहे हों, वहाँ जाने से वह बचेंं तो भी भाई लोग उन्हें आतंकी–नक्सली बना दें। उधर मोदी जी हैं, यूरोपियन यूनियन से लेकर किसान यूनियन तक सबने उनकी छवि बिगाड़ने की कोशिश की मगर बनती ही गयी! वाह रे गाँधी की भूमि गुजरात के सपूत! तुझे पाकर यह देश धन्य हुआ! वैसे यह देश इतना धन्य भी नहीं होना चाहता था।