–– विष्णु नागर

आप तो जी, ‘मास्टरस्ट्रोक पर मास्टरस्ट्रोक’ मार रहे थे न, फिर अचानक क्या हुआ गुरूपर्व के दिन सुबह–सुबह आपने तो तीनों काले कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी! अकड़े हुए थे तो ऐसे कि जैसे कभी झुकेंगे नहीं, झुकना जानते ही नहीं। शहीदाना मुद्रा ऐसी थी कि सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं। और झुके तो फिर ऐसे झुके कि सीधे साष्टांग दंडवत करने पर आ गये। बीच की सारी स्टेज एकदम गायब! एकदम सरदार पटेल से माफीवीर बन गये। मान गये जी, आप महान स्ट्रेटेजिस्ट हो। वाह–वाह! बलि–बलि जाऊँ आप पर! विश्व इतिहास में ऐसे रणनीतिकार हुए ही कितने हैं! एक वे चाणक्य थे, एक आप हैं। और चाणक्य भी क्या थे, जी। बस आप हैं और आप ही आप रहेंगे। आज सारी दुनिया मोदी की ओर देख रही है। ये तो चाणक्य का भी गुरू है। बिलकुल गुरूघण्टाल है।

ये किसान कल तक तो खालिस्तानी हुआ करते थे, न महाशय ? आतंकवादी थे न ये ? चीन और पाकिस्तान के हाथों में खेल रहे थे न ये! टुकड़े–टुकड़े गैंग इनके पीछे था न! फिर परम राष्ट्रवादी जी, आप इनके सामने झुक कैसे गये ? झुक गये ‘आतंकवादियों–देशद्रोहियों’ के आगे ? ये किसान तो नहीं थे न! ये तो आढ़तिये थे न! ये तो मुट्ठी भर थे न, फिर भी झुक गये इनके आगे ? जिनका दिल्ली आने का रास्ता रोकने के लिए आपने सड़कें खुदवाई थीं, बैरिकेडिंग करवाई थी। ठंड में पानी की बौछारों से जिनका ‘स्वागत’ करवाया था। जिन पर डंडे चलवाए थे। जिनका सिर फोड़ने का संकल्प था। जिन्हें रोकने के लिए सड़क पर बड़ी–बड़ी कीलें ठुकवाई थीं। तारों का जाल बिछवाया था। जिनसे बात न करने की कसम खाई और खिलवाई थी आपने। उनके आगे ही सिर नवा दिया ? अरे जब आपको अपनी नेकनीयती पर इतना भरोसा था, ये कानून जब देश के हित में है, अपने किसान हितैषी होने पर आपको पूरा विश्वास था तो पीछे क्यों हटे ? और हटना था तो किसानों के धरने के दस, पन्द्रह दिन बाद, एक महीने बाद हटते तो फायदा भी होता। चुनाव के समय अक्ल आयी तो क्या अक्ल आयी ? एक साल बाद आयी तो क्या आयी ? आप तो बड़े भारी रणनीतिकार माने जाते हो, यही थी आपकी रणनीति ? अब तो भैया आप कुएँ में गिरो या खाई में, बात एक है। गिरना आपको है। च्वाइस इनके बीच ही है। आपने अपने पर हँसने, खिल्ली उड़वाने का एक और मौका दे दिया है, इसके लिए देश की 130 करोड़ जनता का धन्यवाद, आभार।

अरे मास्टरस्ट्रोकी जी, ये फैसला लेने से पहले उन बेचारे गोदी चैनलों के एंकरों के बारे में सोचा होता, जो थूके हुए को अब चाट भी नहीं पा रहे और ये भी नहीं कह पा रहे कि हमने नहीं थूका था। पीछे हटने से पहले अपने लाखों भक्तों के बारे में भी सोचा होता, जो बेचारे सारी शर्म को ताक पर रखकर, कष्ट भोग कर भी पेट्रोल–डीजल के महँगे होने का जी जान से समर्थन कर रहे थे। कुछ नहीं तो बेचारे उन मालवीय जी के बारे में सोचा होता, जो झूठ के पिटारे में रोज कुछ नया माल लाते और बेचते हैं। अब बेचारे ये सब जाएँगे कहाँ ? करेंगे, वही जो कर रहे थे मगर आपने इनका मॉरल डाउन कर दिया है। अब रोते–रोते, खाँसते–खँखारते, लजाते–शरमाते समर्थन कर रहे हैं। फिर पीछे हटोगे, तो फिर समर्थन करेंगे। फँस गये बेचारे गरीब मास्टरस्ट्रोकी जी के चक्कर में। अभी तो और भुगतोगे अर्णबों।

अब ऐसा है मोदी जी पीछे हटे हो तो अब हटते ही चले जाओ। इसी में भला है आपका। यही अब आपका मास्टर स्ट्रोक हो सकता है। जैसे क्रिकेट के खिलाड़ी समझ जाते हैं कि अब धीरे–धीरे हटकर पूरी तरह हटने का समय आ चुका है, उसी तरह हटते जाओ। हटते–हटते इतना हट जाओ कि सीन से गायब हो जाओ। 2024 मैं नहीं लड़ूँगा, यह घोषणा कर दो। फिर मजे से रामदेव के प्रोडक्ट्स का विज्ञापन करो। योगाश्रम खोल लो। टीवी पर पाककला का कार्यक्रम करो। खिचड़ी–फाफड़ा बनाने की विधि सिखाओ। इसे खाने के फायदे बताओ। यह बताओ कि ये सब खा–खाकर ही मैं पीएम बना था। अडाणी–अम्बानी के लिए लाबिंग करना भी अच्छा धन्धा साबित हो सकता है वरना राकेश झुनझुनवाला के साथ शेयर मार्केट में हिस्सेदारी ले लो। मतलब 71 वर्ष की उम्र में भी बहुत से काम हैं, जो आप कर सकते हो। और मोदी जी ये मेरे मन की बात है। आपके प्रधानमंत्री होने का फायदा यह हुआ है कि मैं भी अब मन की बात करना सीख गया हूँ।

मोदी जी धन्यवाद

मान लीजिए देश के सौभाग्य से नरेन्दर भाई प्रधानमंत्री न हुए होते तो भारत बहुत से अनुभवों से वंचित रह जाता। हमें कैसे विश्वास होता कि कोई प्रधानमंत्री होकर भी प्रति दिन, प्रति मिनट धड़ल्ले से बिना शरमाये, डरे, झूठ बोल सकता है। इतना ही नहीं, झूठ की पोल खुलने से वह परेशान नहीं होता, क्षमा नहीं माँगता बल्कि अगला झूठ वह और अधिक ताकत से बोलता है। जरा सोचिए मई, 2014 से पहले ऐसे प्रधानमंत्री की कल्पना भी कोई कर सकता था ? हे मोदी जी, आपने प्रधानमंत्री पद की इस नयी क्षमता से भारत के जन–जन का परिचय करवाया, इसके लिए देश आपका सदैव आभारी रहेगा। आपके इस पद पर पहुँचने पर ही हमें यह अमूल्य ज्ञान प्राप्त हो सका है वरना हमारा यह जीवन अकारथ चला जाता। दूसरा जन्म मिलता नहीं और मिलता तो मोदी जी नहीं मिलते और मोदी जी मान लो, मिल भी जाते तो ये वाले मोदी जी नहीं मिलते क्योंकि ओरिजनल में जो बात होती है, वह कार्बनकॉपी में नहीं होती। इस महान प्रतिभा को यहाँ तक पहुँचाने के लिए मैं लालकृष्ण आडवाणी जी का विशेष रूप से आभार प्रकट करना नहीं भूलूँगा, जिनकी असीम कृपा से मोदी जी जैसे ‘रत्न’ हमें मिल सके हैं। इस प्रतिभा ने आडवाणी जी को भाजपा के मार्गदर्शक मंडल का सदस्य बनाकर उनका उचित सम्मान किया है। उनका सारा ऋण चुका दिया है। उनका ऐसा निर्दाेष सम्मान मोदी जी न करते तो आखिर इस देश में कौन करता और उनकी तत्परता देखिए कि उन्होंने अपना यह दायित्व प्रधानमंत्री बनते ही निभा दिया। आजकल अपने गुरु, अपने संरक्षक का कौन ऐसा सम्मान करता है ? इधर देखा किसी को ? उम्मीद है कि भविष्य में भी किसी को नहीं देख पाएँगे। मोदी है तो ही मुमकिन है।

मोदी जी आपके कारण ही हम सबको अज्ञान का इतना प्रकाश मिल सका है कि आँखें चैंधिया गयी हैं। आपके यहाँ अज्ञान के ज्ञानीजन इतने अधिक हैं कि आकाश के तारे शायद गिने जा सकते हैं, अज्ञान के मोदी ब्रांड इन ज्ञानीजनों को गिनना मुमकिन नहीं। आप उनके सूर्य हैं, योगी जी उनके शुक्ल पक्ष के चाँद और शाह जी कृष्ण पक्ष का अँधकार। ज्ञान का प्रकाश फैलाने का आकांक्षी कोई प्रधानमंत्री इतनी जल्दी ज्ञान का प्रकाश न फैला पाता, जितनी जल्दी आपने अज्ञान का अन्धकार फैला कर दुनिया को दिखा दिया है। यही नहीं आपने यह भी दिखा दिया है कि एक मूढ़ शासक चाहे तो तथाकथित पढ़े–लिखों को भी इतना जाहिल बनाकर दिखा सकता है, जितने जाहिल वे कतई नहीं होते, जिन्हें जाहिल माना जाता है। आपने दिखा दिया कि शीर्ष पर बैठा एक जाहिल कितनी तेजी से जाहिली का अखिल भारतीय स्तर पर उत्पादन करवा सकता है बल्कि वह इन जाहिलों को अपनी जाहिली पर गर्व करना भी सिखा सकता है।

आप प्रधानमंत्री न बने होते तो यह सब देखने को कहाँ मिल पाता! कौन यह बताता कि लोकतंत्र को भी राजतंत्र में बदला जा सकता है, जहाँ एक नीरो लाखों लोगों की लाशों के बीच अन्न उत्सव मना सकता है और विज्ञापन देकर कहता है कि इसके लिए मुझे धन्यवाद दो। और बड़े बड़े टीवी चैनलों के एंकर इस पर ताली बजाते हैं। वह वोटर को यह एहसास करा सकता है कि वह दाता है और बाकी सब भिखारी हैं। वह हमारे ही पैसे से अनाज और वैक्सीन खरीदकर हमें ही मुफ्त में देने के अहसान तले दबा सकता है। वह हमारे पैसों से शानदार हवाई जहाज और कार आदि खरीद सकता है, अपने लिए नया बंगला भी बना सकता है और जनता को कोरोना से मरने के लिए छोड़ सकता है। आपने दिखा दिया कि नीरो राजतंत्र में ही नहीं, वोटतंत्र में भी पैदा होता है, जो मौत के तांडव के बीच अपना महल तामीर करवाता है। जिस धन को लोगों को मौत के मुँह से निकालने के लिए खर्च करना चाहिए था, उसे उन इमारतों पर लुटा सकता है, जिसके शिलापट्ट पर उसका नाम दर्ज होगा।

आपने दिखा दिया कि विकास महज फर्जी आँकड़ों का खेल है, जो प्रधानमंत्री की इच्छा और कल्पना से पैदा किये जा सकते हैं, उसके लिए किसी दस्तावेज का होना जरूरी नहीं। आपने दिखा दिया कि संविधान और कानून को बदले बिना एक बड़े देश को हिन्दू राष्ट्र बनाया जा सकता है, जहाँ अल्पसंख्यक समुदाय दूसरे दर्जे के नागरिक होंगे, उन्हें जब चाहे, जहाँ चाहे, निशाना बनाया जा सकता है। उनके खिलाफ गोली मारने के नारे लगानेवाले को मंत्री की पदोन्नति दी जा सकती है और जो साम्प्रदायिक सौहार्द के पक्षधर हैं, उन्हें साम्प्रदायिक घोषित कर जेलों में सड़ाया जा सकता है। आपने दिखा दिया कि अच्छे भले विश्वविद्यालयों को कैसे बर्बाद किया जाता है और विरोध करनेवाले छात्रों को लाठी और डंडों से पीटा जाता है। उन पर गोली तक चलवायी जा सकती है। आपने दिखा दिया कि विरोधियों को शत्रु मानना ही सच्चा राजधर्म है।

और मोदी जी, आपने यह भी दिखा दिया कि नाथूराम गोडसे ही आज का असली नायक है। गाँधी पूजनीय हैं, नायक गोडसे है। आप 56 का और वह 112 इंच का सीना ताने भारत भू पर विचरण कर रहा है। और गाँधी जी, जो जीवित रहते कभी मौत से नहीं डरें थे, आज गोडसे के डर से छुपे–छुपे घूम रहे हैं मगर वे बचेंगे नहीं। इतने गोडसे हैं यहाँ कि जहाँ वह छिपने जाएँ हो सकता है, वह गोडसे का घर हो।