एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर आईटी सेक्टर की एमएनसी कम्पनी में नोएडा में काम करता है जिसमें करीब सौ कर्मचारी हैं। एक शाम उसके पास ईमेल आया कि “आज कम्पनी के हवाले से मैं टेक्निकल हेड अपने दिल पर पत्थर रखकर यह बात कह रहा हूँ कि हमारी कम्पनी की कम ग्रोथ के चलते हम सभी कर्मचारियों के साथ आगे काम नहीं कर सकते।” रात भर वह सोचता रहा कि कहीं वह भी उन कर्मचारियों में से तो नहीं है जिन्हें कम्पनी निकालने की सोच रही है। नौकरी नहीं रही तो आगे क्या होगा? यह सब सोचते हुए उसे रात भर नींद नहीं आयी। अगले ही दिन कम्पनी ने 40 प्रतिशत कर्मचारियों को निकाल बाहर कर दिया। वे सड़क पर आ गये। उनमें से कई तनावग्रस्त जिन्दगी गुजार रहे हैं जिनमें वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी शामिल है।

कमोवेश यही हालात आज की सभी आईटी सेक्टर की कम्पनियों की है जिसमें गूगल, विप्रो, टीसीएस, फ्लिपकार्ट, अमेजॉन आदि शामिल हैं। इन कम्पनियों में काम करने वाले कर्मचारियों की तेजी से छँटनी की जा रही है। अचानक ही खबर आती है कि कम्पनी की ग्रोथ रुक गयी है, मार्केट डाउन है, फण्ड की कमी है और कहा जाता है कि अब हम आपके साथ काम नहीं कर सकते। देश की सबसे बड़ी कम्पनी रिलायंस का भी यही हाल है। जिसने वित्तीय वर्ष 2023–24 में 42,000 से अधिक नौकरियों में कटौती की है। इतना ही नहीं कम्पनी ने नये कर्मचारियों की भर्ती में भी एक तिहाई से ज्यादा की कमी कर दी। कम्पनी की इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि सबसे ज्यादा छँटनी रिटेल बिजनेस में हुई है। रिलायंस की अगुवाई करने वाली कम्पनी रिलायंस जिओ भी बीते वर्ष पाँच हजार से ज्यादा कर्मचारियों की छँटनी कर चुकी है।

एमएसएमई क्षेत्र की फैक्ट्रियों का भी यही हाल है। अभी हाल की बिजनेस स्टैण्डर्ड की रिपोर्ट में जुलाई 2015 से सितम्बर 2023 के बीच सिर्फ मैनुफैक्चरिंग सेक्टर की ही अट्ठारह लाख फैक्ट्रियाँ बन्द हो गयीं। इसकी वजह से इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले 54 लाख मजदूरों और कर्मचारियों की नौकरी चली गयी। इसमें आम तौर पर छोटे व्यवसाय, अकेले आदमी की कम्पनी, पार्टनरशिप और अनौपचारिक क्षेत्र के व्यवसाय आदि शामिल थे।

कोरोना महामारी के बाद छोटी–छोटी मैनुफैक्चरिंग कम्पनियाँ, छोटे दुकानदार, दो–तीन लोगों से मिलकर बनी छोटी कम्पनी आदि सभी कारोबार तेजी से बन्द होते जा रहे हैं या कुछ में बड़े पैमाने पर छँटनी हो रही है। वहीं दूसरी ओर देखा जाये तो भारत के अलावा दुनिया भर की मैनुफैक्चरिंग कम्पनियाँ, आईटी कम्पनियाँ और स्टार्टअप कम्पनियाँ भी बड़े पैमाने पर छँटनी करती जा रही हैं।

2015 से दुनिया भर के अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में मोदी जी देश को सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था बताने में जुटे हैं। वहीं बीते दिनों आईएमएफ की उप प्रबन्ध निदेशक गीता गोपीनाथ भारत आयी थीं और इस बात पर जोर दिया था कि भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण सुधारों की जरूरत है। इस वर्ष अनुमानित सात फीसदी विकास दर के साथ, निवेश आकर्षित करने के लिए रोजगार सृजन और व्यापार  सरलता पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इसके उलट नोटबन्दी, जीएसटी और कोरोना की आड़ में लिये गये नीतिगत फैसलों का यह नतीजा हुआ है कि कम्पनियाँ कोई वजह बताये बिना मनमाने ढंग से अपने कर्मचारियों की अचानक छँटनी कर रही हैं और यह काम बदस्तूर जारी है। इससे रोजगार का भयावह संकट पैदा हो रहा है।

करोड़ों परिवार आर्थिक संकट की चपेट में हैं। सरकारी आँकड़े के हिसाब से 11 करोड़ युवा बेरोजगार हैं। जबकि हम सभी जानते हैं कि हालात इससे अधिक भयावह हैं। युवा आत्महत्या तक करने को मजबूर हो रहे हैं। भारत की अर्थव्यवस्था एक ऐसी बीमारी से ग्रस्त है जिसका कोई इलाज इस लूट–खसोट की व्यवस्था के रहते सम्भव नहीं हैं। इस व्यवस्था का पुर्जा–पुर्जा सड़ रहा है।

कई देशों में बड़े पैमाने पर छात्र और नौजवान सड़कों पर अपनी माँगों को लेकर आन्दोलन कर रहे हैं। लेकिन सही समझ के अभाव में ये आन्दोलन जीत हासिल नहीं कर पा रहे हैं। आज सभी देशों की अर्थव्यवस्था एक दूसरे से नत्थी है। हम देख रहे हैं कि आर्थिक संकट की गिरफ्त में लगभग सभी देश हैं। यह सब अमरीकी चैधराहट वाली नवउदारवादी व्यवस्था का लाजमी नतीजा है जो लूट–खसोट, शोषण और मुनाफे पर आधारित है। जब तक यह व्यवस्था कायम रहेगी तब तक सभी जरूरत मन्द हाथों को रोजगार नहीं दिया जा सकता।

–– उत्कर्ष