कोविड–19 की दूसरी लहर भारत की जनता पर कहर बनकर टूटी है। इस वक्त देश में चारों ओर जो नजारे दिखायी दे रहे हैं, वे दिल दहलाने वाले हैं। ऑक्सीजन की कमी से जान गँवाते मरीज, अस्पतालों के बाहर स्टेªचर पर, एम्बुलेंस में, निजी गाड़ियों में या सड़कों पर ही बिना इलाज के दम तोड़ते लोग। अपनो को बचाने की हर मुमकिन कोशिश में अस्पताल दर अस्पताल भटकते असहाय, हताश, रोते कलपते लोगों के दृश्य आम हो गये हैं। शमशानों में एक साथ जलती दर्जनों चिताएँ पत्थर दिल इनसान की चेतना को भी झकझोर सकती हैं। ये भयावह दृश्य दुनिया भर के टीवी चैनलों की स्क्रीनों पर लोग देख रहे हैं। भारतीयों की दुर्दशा पर आहें भर रहे हैंं और भारत में अपने परिचितोें व दोस्तों की जान के लिए दुआ माँग रहे हैंं। पिछले कुछ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया भर में घूम–घूमकर अपने शासन काल के दौरान भारत में हुए कथित विकास का ढिंढोरा पीटा था। लेकिन अब दुनिया भर के लोग भारत की दम तोड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल देख रहे हैं।

आखिर इन भयावह हालात के लिए जिम्मेदार कौन है ? पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से वैज्ञानिक चेता रहे थे कि कोरोना की दूसरी लहर आएगी, जो बहुत घातक होगी। लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार ने इन सब चेतावनियों को अनसुना कर दिया, क्योंकि जनता की सेहत और उसकी जिन्दगी इनकी प्राथमिकताओं में शामिल ही नहीं है। जब सरकार को कोरोना से बचाव की तैयारी करनी थी, तब वह चुनावों की तैयारियों में व्यस्त थी और जीतने के लिए साम–दाम–दण्ड–भेद हर तरीका अपना रही थी। अन्यथा तमाम तरह के संसाधनों से भरपूर इस विशाल देश में क्या कोरोना की दूसरी लहर से निपटने की तैयारियाँ नहीं की जा सकती थीं ? क्या यह देश इतनी ऑक्सीजन का उत्पादन नहीं कर सकता था कि इसके एक भी नागरिक की मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं होती ? अब हम देख रहे हैंं कि ऑक्सीजन उत्पादन कोई रॉकेट साइंस नहीं है, बल्कि पहले से ही मौजूद कई तरह की प्रचलित तकनीकों के जरिये ऑक्सीजन का उत्पादन किया जा सकता है। लेकिन केन्द्र सरकार और ज्यादातर राज्य सरकारों ने इस तरफ ध्यान देना गैर जरूरी समझा।

शासकों की क्रूरता क्या होती है, इसकी मिसाल उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने दी। स्वास्थ्य की चरमराती और दम तोड़ती व्यवस्था को छिपाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने यह फरमान जारी कर दिया कि यदि ऑक्सीजन या ऐसी ही कमियों को दिखाती कोई पोस्ट सोशल मीडिया पर डाली गयी या अस्पतालों ने इन कमियों को जाहिर किया गया तो सम्बन्धित व्यक्ति के खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई की जाएगी। शायद इसी को कहते हैं कि “जबरा मारे और रोने न दे”। अब इस फरमान के तहत कार्रवाइयाँ भी की जा रही है। लखनऊ के ‘सन’ नाम के एक अस्पताल के खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया है। इस अस्पताल की नाफरमानी यह थी कि उसने 3 मई को अस्पताल में नोटिस लगा दिया था कि लोग अपने मरीजों को कहीं और ले जायें, क्योंकि ऑक्सीजन की कमी के कारण अस्पताल इलाज करने में सक्षम नहीं है। बस, इसी बात पर यूपी पुलिस ने अस्पताल के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया। यह मामला फिलहाल यूपी हाईकोर्ट में चल रहा है।

उधर क्रूर शासक इस भीषण संकट के दौर में अपनी कमियों को छुपाने की भरसक कोशिश कर रहा है। इधर कोरोना वायरस की यह महामारी हर तरफ अपने पाँव पसार रही है और बहुत तेजी से हर वर्ग के लोगों को अपनी चपेट में ले रही है। बात करें आईआईटी रूड़की की, 25 मार्च से 30 अप्रैल तक यहाँ करीब 250 छात्र–छात्राएँ कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके थे। वायरस के तेजी से बढ़ते मामलों के कारण यहाँ के 5 हॉस्टलों को सील कर दिया गया था, जिसमें दो गर्ल्स हॉस्टल भी थे। हालाँकि बाद में आईआईटी प्रशासन ने बाकी बचे स्टूडेंट्स को घर भेजने का फैसला लिया। वैसे उस वक्त कुल संख्या के एक चैथाई से भी कम स्टूडेंट्स संस्थान में मौजूद थे। इसी बीच एक बेहद दुखद घटना हुई, एमटेक अन्तिम वर्ष के एक छात्र की मौत हो गयी। स्वास्थ्य सम्बन्धी उसे कुछ परेशानी हुई थी, हालाँकि उसकी कोरोना जाँच रिपोर्ट निगेटिव आयी थी। लेकिन लक्षण कोरोना के ही थे, इसलिए उसे हॉस्टल में ही आइसोलेट कर दिया गया और इसी दौरान उसकी मौत हो गयी। आईआईटी रूड़की के फैकल्टी मेम्बर्स, मेस कर्मचारियों, परिजनों और आईआईटी के कुछ घरों के साथ बने आउट हाउस में रहने वाले लोगों को भी कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया। 8 मई तक आईआईटी में 150 से ज्यादा फैकल्टी मेम्बर्स, कर्मचारी और इनके परिजन कोरोना संक्रमित हो चुके थे।

इनमें से संस्थान के आउट हाउस में रहने वाले और ई रिक्शा चलाने वाले कोरोना संक्रमित एक व्यक्ति की हालत काफी सीरियस थी। इस मरीज को ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया था, जिसका इलाज आईसीयू में चल रहा था। जानकार लोग बताते हैं कि इसी दौरान ऑक्सीजन की कमी के चलते इस व्यक्ति की जान चली गयी। मेहनत मजदूरी करने वाले इस व्यक्ति के परिवार को जो क्षति पहुँची है, उसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। इसी दौरान एक अन्य फैकल्टी मेम्बर के माता–पिता की जान कोरोना ने ले ली, जबकि उनका पूरा परिवार कोरोना संक्रमित है। एक अन्य फैकल्टी मेम्बर की माँ की जान भी कोरोना के कारण चली गयी। आईआईटी में हर रोज क्वारंटीन किये गये कोरोना संक्रमित लोगों की लिस्ट जारी होती है, जिसमें अक्सर परिवार के सभी सदस्यों के भी कोरोना की चपेट में आ जाने की जानकारी होती है। आईआईटी रूड़की का जिक्र इसलिए किया है ताकि इस बात का सहजता से अनुमान लगाया जा सके कि इस अति सुरक्षित परिसर में भी किस तेजी से कोरोना वायरस अपने पाँव पसार रहा है, जबकि यहाँ रहने वाले ज्यादातर लोग साधन सम्पन्न हैं और कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हैं। मास्क लगाते हैं, सेनेटाइजर का इस्तेमाल करते हैं, एक दूसरे से बहुत कम मिलते हैं, बाजार में भी लोगों से दूरी बरतते हैं और इम्युनिटी बढ़ाने के लिए हर सम्भव उपाय करते हैंं। बावजूद इसके कोरोना ने सामाजिक हैसियत, पद, सुविधाओं, उम्र आदि किसी भी बात का भेद किये बगैर यहाँ हर तबके को अपना शिकार बनाया है।

कुछ ऐसा ही हाल रूड़की शहर का है। हर तबके के लोग कोरोना के शिकार हो रहे हैं और पूरे देश की तरह ये छोटा सा शहर भी चरमराती और दम तोड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था से जूझ रहा है। एम्बुलेंस के सायरन की आवाजें आम दिनों के मुकाबले बहुत ज्यादा सुनाई देने लगी हैं। देश के अन्य शहरों, कस्बों और इलाकों की तरह यह शहर भी ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा है। शहर में एकमात्र निजी अस्पताल ‘विनय विशाल’ में कोविड मरीजों का इलाज किया जा रहा है। 4 मई को इस अस्पताल में भी 5 लोगों को ऑक्सीजन की कमी से जान गँवानी पड़ी। यहाँ कोरोना मरीजों के लिए 85 बेड उपलब्ध हैंं। ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के बाद अस्पताल प्रशासन ने कोविड मरीजों का इलाज करने से हाथ खड़े कर दिये। हालाँकि लोगों ने अस्पताल प्रशासन की प्रशंसा करते हुए उससे कोविड मरीजों का इलाज जारी रखने को कहा। लोगों का कहना है कि यदि यह अस्पताल भी इलाज नहीं करेगा तो वे कहाँ जाएँगे।

देश के अन्य हिस्सों से भी ऐसी ही खबरें आ रही हैं कि ऑक्सीजन की कमी के कारण अस्पतालों ने कोविड मरीजों को भर्ती करने से मना कर दिया या अस्पताल पहले से ही भर्ती कोविड मरीजों को कहीं और ले जाने की बात कह रहे हैं। सिलेण्डर लिए तीमारदार हर उस जगह दौड़ रहे हैं जहाँ से ऑक्सीजन मिलने की थोड़ी सी भी उम्मीद होती है। 7 मई को प्रकाशित लोकल अखबार रूड़की में ऑक्सीजन की किल्लत से होने वाली दिक्कतों के समाचारों से भरे पड़े थे। खासकर ‘हिन्दुस्तान’ अखबार में हऱिद्वार जिले के हर हिस्से से ऐसी खबरें आयी, जब ऑक्सीजन के खाली सिलेण्डर लिए लोग हर ऐसी जगहों पर लाइनों में लगे नजर आये, जहाँ से ऑक्सीजन मिल सकती थी। तीमारदार सीधे ऑक्सीजन प्लांटों में पहुँच रहे हैं। कई तीमारदारोें ने बताया कि कोरोना संक्रमित उनके परिजनों को अस्पताल में बेड नहीं मिला, इसलिए घर में ही इलाज किया जा रहा है। कई अन्य लोगों का कहना था कि निजी अस्पताल में ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं है, इसलिए अस्पताल ने ऑक्सीजन का इन्तजाम करने को कहा। एक नौजवान ने बताया कि उसके पिता का ऑक्सीजन लेवल कम हो रहा है, बेड न मिलने पर घर पर ही इलाज चल रहा है। ऑक्सीजन मिल जाये तो पिता की जान बचे। हरिद्वार जिले में मंगलौर और बहादराबाद में ऑक्सीजन प्लांट हैं जहाँ सुबह चार बजे से ही ऑक्सीजन लेने वालों की लाइन लग जाती है। आसपास के राज्यों से भी लोग यहाँ पहुँच रहे हैंं। यहाँ से अस्पतालों तथा आसपास के राज्यों को भी ऑक्सीजन सप्लाई की जाती है। रूड़की का जिक्र इसलिए कर रही हूँ क्योंकि मैं रूड़की में रहती हूँ, लेकिन खबरों से जाहिर है कि कमोबेश हर जगह ऐसे ही हालात हैं।

कोरोना के इस कदर फैलाव के लिए अक्सर आम जनता को ही कसूरवार ठहराया जा रहा है। लोग मास्क नहीं पहन रहे हैं, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं। अक्सर इस तरह की खबरें अखबारों में प्रकाशित हो रही हैं, चैनलों में दिखायी जाती हैं, जिसमें भीड़ भरे बाजारों का जिक्र करते हुए लोगों की लापरवाहियों को उजागर किया जाता है। इसमें सच्चाई भी हो सकती है। लेकिन क्या लॉकडाउन या कर्फ्यू लगाने में सरकारें व्यावहारिक पहलुओं का ध्यान रख रही हैं। मसलन उत्तराखण्ड में लगाये गये लॉकडाउन में जरूरी सामानों की दुकानें खुलने का समय दोपहर 12 बजे तक तय किया गया है। मुश्किल से लोगों को 2 घण्टे ही खरीददारी को मिल रहे हैं। यदि जरूरी सामान लेने के लिए शहर की 5 फीसदी आबादी भी सामान लेने के लिए निकलती है तो बाजारों में भीड़ लगना स्वाभाविक है। ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग के पालन की उम्मीद करना भी बेमानी है। पुलिस भी ठीक 12 बजे दुकानें बन्द कराने पर आमादा रहती हैं, ऐसे में बाजारों में अफरातरफी फैल जाती है। अब तो उत्तराखण्ड सरकार ने बेहद सख्त लॉकडाउन लागू कर दिया है, जिसने लोगों की मुश्किलों को और ज्यादा बढ़ा दिया है। दरअसल सरकारें ये दिखाने के लिए कि वे कोरोना से बचाव के लिए बहुत कुछ कर रही हैं, अव्यावहारिक फैसलें लागू कर रही हैं, जिसका खामियाजा अन्तत: जनता को ही भुगतना पड़ रहा है। जबकि सरकारें अपनी उन जिम्मेदारियों को निभाने में नाकाम रही हैं, जहाँ उन्हें मरीजों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं का बेहतर इन्तजाम करना था।

कोरोना से बचाव के लिए सरकारों द्वारा लॉकडाउन लगाना सबसे आसान कदम हैं। कोरोना की पहली लहर में केन्द्र सरकार द्वारा लगाये गये कई महीनों के बेहद सख्त लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रख दी। ये लॉकडाउन किस तरह ब्लण्डर साबित हुआ, ये दोहराने की जरूरत नहीं है। पूरी दुनिया ने देखा कि इस लॉकडाउन के दौरान किस तरह इनसानी हुकूक और उसकी गरिमा को ताक पर रख दिया गया था। करोड़ों लोगों को अपनी रोजी–रोटी से हाथ धोना पड़ा था। अब भी लॉकडाउन की मार जनता पर ही पड़ रही है। दिहाड़ी मजदूरों, रिक्शाचालकों और रोजमर्रा काम करके अपनी जिन्दगी चलाने वालों के सामने रोजी–रोटी का संकट पैदा हो गया है। भारी संख्या में लोग भुखमरी की कगार पर पहुँचने लगे हैं, जिन्हें राहत पहुँचाने के लिए सरकारों के पास कोई ठोस योजना नहीं है। ये बदहाल लोग, लोगों द्वारा अपने स्तर से की जाने वाली मदद पर ही निर्भर हैं। वह भी कितने लोगोें तक पहुँच पाती है, कहना मुश्किल है।

कोरोना महामारी के इस संकट की चैतरफा मार आम जनता पर पड़ रही है। हर रोज हजारों लोग इसके कारण जान गंवा रहे हैं। लॉकडाउन के कारण भारी बेरोजगारी और भयावह आर्थिक संकट का सामना इस देश की जनता कर रही है। कथित तौर पर कोरोना प्रोटोकॉल का पालन न करने पर भारी भरकम जुर्माने भी उसे भरने पड़ रहे हैं। कई बार तो पुलिस अमानवीयता की हद तक जाकर कोरोना प्रोटोकॉल का पालन लोगों से करा रही है। आज जिस स्थिति में देश पहुँच गया है, क्या इससे बचा जा सकता था ? जबाव यही है स्थिति को काफी हद तक काबू किया जा सकता था। चेतावनियों को मद्देनजर रखते हुए अगर सरकार ने पहले से ही तैयारी की होती, स्वास्थ्य सुविधा के व्यापक इन्तजाम किये होते तो ऐसे मंजर न देखने पड़ते। यूरोप और अमरीका के उदाहरण बता रहे हैं कि वैक्सीनेशन का काम कोरोना के फैलाव को रोकने में कामयाब रहा। भारत में भी वैक्सीनेशन कार्यक्रम को तेजी के साथ पूरे देश में चलाया जाता तो कोरोना के फैलाव को रोकने में मदद मिलती। विशेषज्ञ कोरोना की तीसरी लहर आने की भी चेतावनी दे रहे हैं। इससे कैसे निपटा जायेगा, ये केन्द्र और राज्य सरकारों की दूरदर्शिता और स्वास्थ्य के बेहतर इन्तजामों पर निर्भर करेगा। देश के नागरिकों को भी इसके लिए सरकारों पर दबाव बनाना होगा।