5 सितम्बर 2017 को बेंगलुरू की जानी–मानी पत्रकार गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थीं। वे बेंगलुरू से प्रकाशित होनेवाली “लंकेश” पत्रिका की सम्पादक थीं। इस पत्रिका के प्रकाशन का काम उनके पिता लंकेश ने शुरू किया था। उनकी मृत्यु के बाद इस पत्रिका के संचालन का काम गौरी लंकेश ने अपने हाथों में ले लिया। इस काम के अलावा वे कई पत्र–पत्रिकाओं में कॉलम भी लिखती थीं और सच्चाई को बेबाक तरीके से रखती थी। 55 वर्षीय यह वरिष्ठ पत्रकार हिन्दुत्वादी दक्षिणपंथी विचारधारा की कड़ी आलोचक थीं। पत्रिका का संचालन वह स्वयं करती थीं। पत्रिका का खर्च निकालने के लिए वह किसी भी तरह का विज्ञापन नहीं लेती थीं। हत्या से कुछ ही समय पहले उन्होंने राणा अय्यूब द्वारा लिखी किताब ‘गुजरात फाइल्स’ का अनुवाद कन्नड़ में किया, जो गुजरात दंगों पर केन्द्रित है। गौरी लंकेश की हत्या का एक ही कारण है, वह है उनकी बेबाक रिपोर्टिंग और देश भर में हिन्दुत्ववादी राजनीति का विरोध। इसके चलते वह काफी समय से कुछ लोगों के निशाने पर थीं। उन पर कुछ लोगों ने ऐसा न करने के लिए दबाव डालने की कोशिश भी की थी। लेकिन वह अपने विचारों पर दृढ़तापूर्वक डटी रहीं।

हत्या की जाँच–पड़ताल के लिए छह महीने बाद एक विशेष जाँच दल की नियुक्ति की गयी। जाँच की रिपोर्ट से यह बात स्पष्ट है कि गौरी की हत्या कोई मामूली घटना नहीं थी बल्कि एक सुनियोजित हत्या थी जिसकी तैयारी तकरीबन एक साल से चल रही थी। गौरी के घर के आस–पास का सन्नाटा हत्यारों के लिए फायदेमन्द साबित हुआ जिसकी वजह से घटना का एक भी प्रत्यक्षदर्शी नहीं मिला। विशेष जाँच दल ने पहले आरोपी नवीन कुमार को पिस्टल की अवैध गोलियाँ रखने के आरोप में गिरफ्तार किया। जाँच–पड़ताल के बाद उसके गौरी लंकेश हत्याकाण्ड में संलिप्त होने की पुष्टि हुई। जाँच दल ने छठे आरोपी के रूप में श्री राम सेना के सक्रिय कार्यकर्ता परशुराम वाघमरे को गोली मारने के आरोप में गिरफ्तार किया। परशुराम वाघमरे ने स्वयं कबूल किया  कि उसने ही गौरी के ऊपर गोली चलाई थी। उसका कहना है कि यह सब उसने अपने धर्म को बचाने के लिए किया। यदि उसे पता होता कि उसे लंकेश को गोली मारने को कहा जा रहा है तो वह ऐसा नहीं करता। परशुराम वाघमरे श्री राम सेना का सदस्य है इसलिए विशेष जाँच दल ने विजयपुरा जिलाध्यक्ष राकेश मथ से पूछताछ की। श्री राम सेना के संस्थापक अध्यक्ष प्रमोद मुतालिक का कहना है कि वाघमरे और श्री राम सेना का कोई सम्बन्ध नहीं है। उनका कहना है वाघमरे आरएसएस का आदमी है।

यह इस तरह की कोई पहली और आखिरी घटना नहीं थी। यदि हम इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो हम पायेंगे कि 1992 के बाद से ऐसे 48 पत्रकारों की हत्याएँ हो चुकी हैं। इनमें तीन हत्याएँ तो सिर्फ इसी साल हुई हैं। ऐसी घटनाएँ दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। जो भी इन हिन्दुत्ववादियों का विरोध करता है ये उसका यही हश्र करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि कोई भी उनकी मनमानी का विरोध न करे। जो भी उनका विरोध करे या उनके रास्ते की बाधा बने, उसके मन में डर बिठा दिया जाये।

संविधान के मुताबिक भारत एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश है। परन्तु यह कैसा लोकतंत्र है, जहाँ अपने विचारों को अभिव्यक्त करने पर गोली मार दी जाती है। कहा जाता है कि मीडिया समाज का दर्पण होता है। आज यह दर्पण बेहद भद्दा हो चुका है। गौरी लंकेश ऐसी शख्सियत थीं जिन्होंने इस बिकाऊ और बाजारू मीडिया से हटकर एक ऐसी मीडिया का संचालन किया जो समाज को गुमराह करने वाली ताकतों का विरोध कर सके। उन्होंने ऐसे कई संगठनों के खिलाफ लिखा जो अफवाह फैलाने और दंगे भड़काने का काम कर रहे थे। यह केवल गौरी लंकेश की हत्या नहीं, जनवाद की हत्या है। जब देश में ऐसे लोगों की हत्याएँ करवायी जा रही हों जो जनता के पक्ष में लिखते और बोलते हों, तब समझ लेना चाहिए कि देश की बागडोर ऐसे लोगों के हाथों में आ चुकी है जिन्हें सच से डर लगता है। उन्हें डर लगता है उन लोगों से जो उनके द्वारा अबाध लूट–खसोट का खुलासा करने के लिए जनता के बीच काम करते हैं। लेकिन देश और दुनिया का इतिहास गवाह है कि दमन और खून–खराबे से सच की आवाज नहीं दबी। आज भी सच कहने का जोखिम उठाने वाले पत्रकारों और लेखकों की कमी नहीं है।