आधार की ‘संवैधानिकता और अनिवार्यता’ पर सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ा फैसला सुनाया है। आखिरकार आधार को संवैधानिक घोषित करते हुए उसमें कई फेर–बदल किये गये हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आधार को पैन से जोड़ने का फैसला बरकरार रहेगा, परन्तु अब बैंक खाते को आधार से जोड़ना जरूरी नहीं होगा। साथ ही मोबाइल को भी आधार से जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है।

इस मामले में सुनवाई करने वाली सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित पीठ का फैसला एक सुर में नहीं था। एक ओर जस्टिस ए के सीकरी, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर का फैसला एक मत में सामने आया। वहीं जस्टिस चन्द्रचूढ़ और ए भूषण की अपनी व्यक्तिगत राय थी। लेकिन जस्टिस ए भूषण ने स्पष्ट किया कि वह बहुमत के फैसले से सहमत हैं। जस्टिस चन्द्रचूढ़ ने पूरे मामले पर अपनी असहमति जताते हुए कहा, आधार का मामला 2009 से ही संवैधानिक तौर पर गलत है और यह संविधान के अनुच्छेद 110 का उल्लंघन है। जस्टिस चन्द्रचूढ़ ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति की आजादी को अल्गोरिथम या फॉर्मूले के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता है। आज जब मोबाइल हमारे जीवान का अहम हिस्सा है तो आधार को उससे जोड़ना किसी की भी स्वन्तत्रता और स्वायत्तता के साथ खिलवाड़ करना है। जस्टिस चन्द्रचूढ़ ने ‘प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग’ एक्ट के सम्बन्ध तक में कहा कि हर खाताधारी को धाँधली करने वाला मान लेना अपने आप में ही गलत बात है। सभी आधार डेटा के संग्रह से व्यक्तिगत प्रोफाइलिंग का भी खतरा है।

जस्टिस चन्द्रचूढ़ ने इसके साथ यह भी कहा कि आधार नंबर से संवेदनशील डेटा का दुरुपयोग हो सकता है। इस डेटा का निजी कम्पनियों द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है। यूआईडीएआई के पास डेटा को सुरक्षित रखने का कोई तरीका नहीं है। उनका कहना था कि आधार की बुनियाद पर यह तय करना कि देश के नागरिकों को कल्याणकारी नीतियों में भागीदारी मिलेगी या नहीं, यह अपने आप में नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करना है। डेटा को सुरक्षित रखने के लिए किसी न किसी तंत्र का होना आवश्यक होता है। जो आज देश में मौजूद नहीं है। इसीलिए देश में आधार के बिना न रह पाने का सरकार का पुराना फरमान अनुच्छेद 14 का उल्लंघन था।