शहजाद का परिवार लोनी में रहता है। वहाँ उसका अपना मकान है, पर उसे काम के लिए देहरादून आना पड़ता है। वह देहरादून और आस–पास के बाजारों में लोवर–टी शर्ट थोक में बेचने का काम करता है। यहाँ उसके बँधे ग्राहक हैं जो उससे माल मँगाते हैं। शहजाद ने देहरादून में एक दुकान किराये पर ली है, जहाँ वह दिल्ली से माल लाकर रखता है और बाजारों में सप्लाई करता है।

पिछले साल लॉकडाउन के दौरान सभी स्कूल कॉलेज और दफ्तर बन्द हो गये थे, दुकानंे भी बन्द थी, जिससे शहजाद के सामने लोवर–टी शर्ट सप्लाई का काम बन्द हो गया था। शहजाद लॉकडउन में अपने घर चला गया था, पर बढ़ती माँग के चलते उसके पास देहरादून से बार–बार फोन आ रहे थे। शहजाद को अपना घर चलाने की फिक्र भी थी। इसलिए लोगों के अनुरोध पर वह माल लेकर देहरादून आ गया। यहीं से उसकी परेशानियाँ बढ़ती गयीं। उस समय तबलीगी जमात के नाम पर मुस्लिमों के खिलाफ बेइन्तहा नफरत फैलायी जा रही थी। जहाँ तक माल की बात है तो यहाँ लोगों के लिए शहजाद का धर्म आड़े नहीं आया, माल की माँग थी, इसलिए उस पर होने वाले मुनाफे ने धर्म को पीछे छोड़ दिया।

पर शहजाद के पास घर वापस जाने के लिए कोई साधन नहीं था तो शहजाद ने उन्हीं लोगों (जिन्होंने उसे फोन करके बुलाया था) से उनके यहाँ रुकने के लिए मदद माँगी, लेकिन सभी ने मना कर दिया। यहाँ तक कि जिस आदमी के साथ उसकी गहरी दोस्ती थी, जिसके घर से उसके लिए रोज दोपहर का खाना आता था, उसने भी यह कहकर मना कर दिया कि तुम मुसलमान हो, इसलिए घर नहीं बुला सकता। बिकाऊ मीडिया और सरकार में बैठे जहरीली सोच वाले मंत्रियों ने लोगों के मन में तबलीगी जमात को लेकर जो जहर भर दिया था, अपने दोस्त के मना करने पर शहजाद उस जहर के बुरे असर को समझ गया।

वह थक–हार कर अपनी दुकान की तरफ गया, लेकिन एक गार्ड ने उसे मार्केट में अन्दर जाने से रोक दिया और गार्ड के सुपरवाइजर ने शहजाद से कहा, अगर तुम यहाँ से हटोगे नहीं तो मैं पुलिस को बता दूँगा। यह सुनते ही शहजाद घबरा गया, लेकिन बाद में गार्ड ने कुछ पैसे लेकर एक–दो घण्टे के लिए दुकान में रुकने दिया और समय पूरा होते ही उसे वहाँ से भगा दिया। शहजाद पूरा दिन शहर की सड़कों पर भूखा–प्यासा भटकता रहा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अनजान शहर में वह कहाँ आसरा ढूँढने जाये। उसे यह भी डर था कि मुस्लिम होने के कारण पुलिस उसे तबलीगी जमात का घोषित करके जेल में डाल देगी।

शहर की गलियों की खाक छानने और कई दिनों तक भूख–प्यास से बेहाल होने पर आखिर में उसे अपने घर जाने का एक रास्ता मिल ही गया। किसी ने उसे बताया कि रात में बस अड्डे से सहारनपुर के लिए बस जाती है। इसी उम्मीद में शहजाद पैदल ही बस अड्डे पहुँच गया और रात में उसे बस भी मिल गयी।

शहजाद को उस गुनाह की सजा मिली, जो उसने कभी किया भी नहीं था और कोई कभी जान ही नहीं पायेगा कि क्यों एक निर्दोष व्यक्ति को, जो लोवर–टी शर्ट बेचकर अपने परिवार का गुजारा करता है, उसे अपने ही देश ने नकार दिया। किसी शहरवासी ने उसे पनाह नहीं दी और प्रशासन की ओर से भी कोई मदद नहीं मिली। इस पूरे घटनाक्रम ने उसका इनसानियत पर से विश्वास खत्म करने का काम किया। वह अपने ही देश में अपने ही लोगों के बीच खुद को पराया महसूस कर रहा था।

दरअसल मुस्लिमों, दलितों और महिलाओं के प्रति यह नफरत लोगों के मन में अपने आप नहीं पनपी, बल्कि इसे सत्ता द्वारा प्रायोजित किया जा रहा है। जब सरकारें जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ ले तो अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए वह जनता को हिन्दू–मुसलमान के नाम पर लड़ाकर अपना वोट बैंक बढ़ाती हैं और अपना राजनीतिक स्वार्थ पूरा करती हैं। हमें इससे सावधान रहना होगा और आपसी भाईचारा कायम करके अपनी समस्याओं से निपटना होगा।