फ्रांस का येलो–वेस्ट आन्दोलन
अन्तरराष्ट्रीय विशाल जुनूनीफ्रांस में ईंधन–शुल्क में बढ़ोतरी के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन की शुरुआत 17 नवम्बर 2018 को अलग–अलग शहरों में हुई, जो कुछ महीनों तक जारी रहा। हालाँकि पेट्रोल व डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी अन्य देशों में भी हुई है, लेकिन वहाँ की जनता ने फ्रांस जितना व्यापक विरोध नहीं किया। फ्रांस में लोगों ने पीली जैकेट पहनकर अपना रोष जताया, जिसे येलो–वेस्ट आन्दोलन का नाम दिया गया। लोगों ने आरोप लगाया कि सरकार के इस फैसले से उनका जीवन स्तर गिर जायेगा। पेट्रोल व डीजल की कीमतों में वृद्धि के लिए सरकार ऐसे–ऐसे बहाने कर रही है, जिनका जमीनी धरातल पर सच्चाई से दूर–दूर का वास्ता नहीं, जैसे–– इससे प्रदूषण कम होगा, अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, जबकि सरकार ने साल 2007–08 में डीजल से चलने वाली गाड़ियों को खरीदने के लिए प्रोत्साहन दिया था और कहा था कि देश में प्रदूषण विरोधी डीजल उपलब्ध है, जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा।
इस आन्दोलन के माध्यम से फ्रांस की जनता ने इमैनुएल मैक्रोन के इस्तीफे की माँग की, जो 19 महीने से फ्रांस के राष्ट्रपति हैं। मैक्रोन की नीतियाँ बहुसंख्यक जनता के हित में नहीं हैं। शुरू में मैक्रोन ने जनता को गुमराह करने के लिए कहा था कि इस फैसले से कॉरपोरेट के अन्दर की गन्दगी को साफ करने में मदद मिलेगी, जिससे देश की मूलभूत संरचनात्मक समस्या हल हो जायेगी। मैक्रोन के अनुसार र्इंधन की कीमतों में वृद्धि देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगी। यह लोगों को कार्बन–डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी के लिए बाध्य करेगी। लेकिन सच यह है कि कार्बन–डाई ऑक्साइड का अधिक मात्रा में उत्सर्जन बड़ी कम्पनियाँ ही करती हैं, जो अपने मुनाफे के लिए पर्यावरण का विनाश करती हैं, जिससे पृथ्वी के अस्तित्व पर खतरों के बादल मंडरा रहे हैं।
इस आन्दोलन में भाग लेने वाले अधिकांश लोग देहात और छोटे शहरों से थे। प्रदर्शनकारियों ने शहरों की बड़ी इमारतों, शॉपिंग मॉलों में तोड़फोड़ की। ये वे स्थान हैं, जहाँ पर मध्यम वर्ग के लोगों का आना–जाना लगा रहता है। उन्होंने फ्रांस की प्रतिष्ठित जगहों को अपने निशाने पर लिया, ताकि वे सरकार को इस बात का एहसास दिला सकें कि निम्न और गरीब तबके के लोगों के शोषण की नीति को बढ़वा देने पर वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। उन्होंने राजधानी पेरिस में स्थापित मरियम की मूर्ति को क्षति पहुँचायी। साथ ही ऐतिहासिक धरोहर वाले स्थानों पर भी तोड़–फोड़ करके अपने गुस्से को प्रकट किया। ये सिलसिला यहीं नहीं रुका, प्रदर्शनकारियों ने शहरों की मुख्य सड़कों को पूरी तरह से बाधित किया। उन्होंने रेल लाइनों और ट्रामों के रास्तों को भी अपने कब्जे में ले लिया। इस आन्दोलन का असर इतना व्यापक था कि इसके समर्थन में बेल्जियम के ब्रुसेल्स और कनाडा के कई शहरों में भी लोगों ने पीली जैकेट पहनकर प्रदर्शन किया।
प्रदर्शनकारियों द्वारा विरोध जताने का तरीका इतना उग्र और हिंसक था कि लोगों ने कई गाड़ियों में आग लगा दी। पुलिस द्वारा किये गये हमले का भी प्रदर्शनकारियों ने डटकर मुकाबला किया। प्रदर्शनकारियों ने बर्फ पर फिसलने के दौरान प्रयोग किये जाने वाले मास्क और चश्में का भी उपयोग किया, ताकि वे पुलिस द्वारा छोड़ी जा रही गैसों का सामना कर सकें। प्रदर्शन के चलते अन्य देशों से आने वाले पर्यटकों की संख्या भी घट गयी। दूसरे देशों की सरकारों ने पर्यटकों के फ्रांस जाने पर भी रोक लगा दी। मैक्रोन की सरकार ने व्यापार सुधार के लिए भी कदम उठाये थे, जिसके तहत श्रम कानून में बदलाव करना जरूरी था। निवेश के लिए देश में बेहतर माहौल बनाने के नाम पर मजदूरों के अधिकारों में कटौती की गयी, जिसके खिलाफ मजदूरों ने भी विरोध में हिस्सा लिया।
प्रदर्शनकारियों की माँगों पर गौर करें तो पता चलता है कि उनकी माँगें केवल र्इंधन–शुल्क में कमी की ही नहीं, बल्कि सरकार द्वारा व्यापार सुधार के लिए उठाये गये कदम के खिलाफ भी हैं। सरकार ने अमीरों और व्यापारियों कोे करों में छूट दी थी, जिसको वापस लेना उनकी माँगों में शामिल है। प्रदर्शनकारियों की माँग में ईधन शुल्क को घटाने के साथ–साथ सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करना, पेंशन की राशि को बढाना, महँगाई को कम करना और न्यूनतम वेतन को बढ़ाना आदि भी शामिल थे।
इस आन्दोलन में फ्रांस के अलग–अलग शहरों से लगभग 2,82,000 लोगों ने हिस्सा लिया। येलो वेस्ट आन्दोलन को फ्रांस की लगभग 70–75 प्रतिशत जनता का समर्थन प्राप्त था। आन्दोलन को दबाने के लिए फ्रांस की सरकार ने देशभर में लगभग 89,000 पुलिस बल तैनात कर दिया। लगभग 8,000 पुलिस बल केवल पेरिस में तैनात किया, ताकि आन्दोलन में शामिल होने वाले लोगों को हिरासत में लिया जा सके। पुलिस बल ने आन्दोलन को कुचलने के लिए प्रर्दशनकारियों पर लाठीचार्ज,आँसू गैस के गोले और पानी की तेज धार का प्रयोग किया। आन्दोलन के दौरान पुलिस द्वारा 1723 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच सघर्ष में लगभग 1320 प्रदर्शनकारी और 300 पुलिसकर्मी घायल हुए। सरकार द्वारा भारी दमन के बावजूद प्रदर्शनकारियों ने अपना इरादा नहीं बदला। उन्होंने पूरे जोश के साथ आन्दोलन जारी रखा। सरकार द्वारा आपातकाल लागू करने की भी धमकी दी गयी, लेकिन इसका लोगों पर कोई असर नहीं हुआ।
प्रदर्शन में शामिल लोगों ने सरकार की नीतियों के विरोध में प्लेकार्ड, तख्तियों और सड़कों के किनारे बनी दीवारों पर नारे लिखकर सरकार को चेताया और अपने विचारों को प्रकट किया। प्रदर्शनकारियों के नारे थे–– कम्युनिज्म का इन्तजार करने तक, कुछ नगदी के लिए लड़ोय जनता की सबसे खतरनाक दुश्मन–– उनकी सरकारय जब वे कहें शान्ति और सुरक्षा, समझो दुनिया लूट गयीय तुमको गोबर चाहिए, मिलेगा, बुर्जुआ को नचाओय अमीरों! खबरदार, गरीब विद्रोह शुरू कर चुके हैंय बुर्जुआ के लिए क्रिसमस नहींय योजना–– प्रथम चरण : राष्ट्रपति भवन, दूसरा चरण : पूरी दुनियाय सत्ता पुलिस के बल पर टिकी है, आदि।
ये नारे स्पष्ट करते हैं कि प्रदर्शनकारियों के सपने और आदर्श क्या हैं तथा वे अपने संघर्ष में कितने दृढ़ हैं। वे सरकार के आगे घुटने टेकने वाले नहीं हैं। फ्रांस की सरकार इस आन्दोलन के विस्तार को देखकर दंग रह गयी। इस आन्दोलन को संचालित करने वाला कोई नेता नहीं था। यह आन्दोलन पूरी तरह से स्वत:स्फूर्त आन्दोलन था। इस स्वत:स्फूर्त आन्दोलन ने सरकार को अपने फैसले वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। सरकार ने र्इंधन पर लगाये गये शुल्क को वापस ले लिया, साथ ही प्रदर्शनकारियों द्वारा रखी गयी कुछ दूसरी माँगों को भी मान लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि फ्रांस की सरकार को साम्राज्यवादी मीडिया की आलोचना का शिकार होना पड़ा। फ्रांस के इस आन्दोलन ने यह बात फिर से सिद्ध कर दी कि जब–जब मजदूर वर्ग के अधिकारों को छीनने और शोषण की हदों को पार करने का प्रयास किया जायेगा, तब–तब यह वर्ग उठ खड़ा होगा। जिस देश की जनता अपने इतिहास के संघर्षों को याद रखती है और उस राह पर चलने से जरा भी नहीं कतराती, उस देश की जनता का ज्यादा समय तक शोषण नहीं किया जा सकता। फ्रांस की जनता ने इस आन्दोलन से यह स्पष्ट कर दिया है। हम जानते हैं कि फ्रांस की क्रान्ति में शोषित लोगों ने पुरानी सड़ी–गली व्यवस्था को उखाड़ कर नयी व्यवस्था लागू की थी।
आज अलग–अलग देशों में वहाँ की जनता अपने हक के लिए आन्दोलन कर रही है। सरकारों द्वारा आन्दोलनों को कुचलने का प्रयत्न किया जा रहा है, लेकिन जनता के आगे उन्हें झुकना ही पड़ता है। दुनियाभर में बढ़ रहे आन्दोलन यह दर्शाते हैं कि किसी देश में लागू होने वाली नीतियाँ व्यापक जनता के पक्ष में न होकर चन्द लोगों की खिदमत करने के लिए बनायी जा रही हैं। इन नीतियों से देश के अमीर और अमीर हो रहे हैं तथा गरीब और अधिक गरीब। लोगों का धैर्य जवाब दे रहा है। वे संघर्ष की राह पर उतर रहे हैं। यह एक सकारात्मक शुरुआत है।
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