17 अप्रैल 2019 को 26 साल पुरानी निजी विमानन कम्पनी जेट एयरवेज अस्थायी रूप से बन्द कर दी गयी, जिसके लगभग बीस हजार कर्मचारी बेरोजगार हो गये। इससे पहले ही आर्थिक रूप से जेट एयरवेज तबाही के कगार पर पहुँच गयी थी। यह सवाल लोगों के बीच उठना लाजमी था कि यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ने के बावजूद कम्पनी को अचानक क्यों बन्द करना पड़ा ? बताया जा रहा है कि कम्पनी पर बैंकों का 8500 करोड़ रुपये बकाया था, जिसमें बैंकों के पास कम्पनी की पचास फीसदी हिस्सेदारी भी है। कम्पनी ने बैंकों से और कर्ज की माँग की थी ताकि इसकी खस्ता हालत को ठीक किया जा सके, लेकिन बैंकों ने कर्ज देने से मना कर दिया। जेट एयरवेज में 24 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली एतियाद एयरवेज ने भी आर्थिक मदद देने से मना कर दिया। 25 मार्च 2019 को जेट एयरवेज के चेयरमैन नरेश गोयल ने अपने पद से इस्तीफा देकर अपना पल्ला झाड़ लिया। कम्पनी के कर्मचारियों ने उनके पासपोर्ट को जब्त करने की माँग की ताकि वह भी माल्या की तरह देश छोड़कर न भाग जाये।

जेट एयरवेज की तबाही से जुड़ी एक खास बात यह भी है कि उसके बन्द होने के पहले ही उसमें काम कर रहे कर्मचारियों के चार माह के वेतन को रोक दिया गया था। इसके चलते वे बहुत अधिक तनाव और निराशा के दौर से गुजर रहे थे, जो विमान उड़ाने के लिहाज से किसी भी पायलट के लिए आदर्श स्थिति नहीं थी। वहीं दूसरी तरफ जेट एयरक्राफ्ट मैंटेनेंस इंजीनियर्स वेलफेयर एसोसिएशन (जेएएमईडब्ल्यूए) ने डाइरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) को एक पत्र के माध्यम से कहा, “हमारे लिए अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो गया है। इसके परिणामस्वरूप विमान इंजीनियरों की मनोवैज्ञानिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ा है और यह उनके काम को भी प्रभावित करता है। ऐसे में देश और विदेश में उड़ान भरने वाले जेट एयरवेज के विमानों की सुरक्षा जोखिम में है।”

वेतन न मिलने से जेट एयरवेज के कर्मचारियों की मानसिक हालत पर कितना असर पड़ा है, यह हम उनके द्वारा लिखे गये पत्रों और कही गयी बातों से समझ सकते हैं। इस दशा को नकारा नहीं जा सकता कि अगर कोई कम्पनी बन्द होती है तो उसका सबसे खराब असर उसमें काम कर रहे कर्मियों पर पड़ता है। इस मानसिक तनाव के चलते जेट एयरवेज के एक कर्मचारी ने चार मंजिला इमारत के ऊपर से कूदकर आत्महत्या कर ली थी। सरकार चाहती तो कम्पनी को अपने नियन्त्रण में लेकर उसे चला सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। बीस हजार परिवारों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया।

जेट एयरवेज के कर्मचारियों ने पीएमओ ऑफिस में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। उन्होंने पत्र के माध्यम से जेट एयरवेज को सुचारू रूप से चलाने और अपनी तंग हालत के बारे में लिखा। लेकिन सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। सरकार की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं किये जाने पर कर्मियों ने वोट न डालने की बात कही या नोटा के चयन का फैसला किया। इतना सब होने के बाद भी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा और तमाम पार्टियों ने भी इस बात को नजरअन्दाज किया।

अस्थायी तौर पर बन्द होते ही कम्पनी के सारे रूट दूसरी एयरलाइन्स को दे दिये गये। विमान का रंग बदलकर स्पाइसजेट को भेज दिया गया। स्पाइसजेट के मालिक अजय सिंह भाजपा से जुड़े हुए हैं। उन्होंने 2014 के चुनाव में भाजपा के लिए “अबकी बार मोदी सरकार” नारा दिया था। इससे पता चलता है कि जेट एयरवेज को तबाह करने की योजना पहले से ही चल रही थी। कम्पनी की अचानक से आर्थिक हालत खराब होना इस योजना को अमली जामा पहना देता है।

व्यवस्था के कलम घसीट बुद्धिजीवी कम्पनी की तबाही का कारण बताते हैं कि रुपये का डॉलर के मुकाबले कमजोर होना  विमानन कम्पनियों के लिए खासा नुकसानदायक है। ऐसा इसलिए है कि विमान का परिचालन करने के लिए कम्पनियों को लगभग तीस प्रतिशत भुगतान डॉलर के रूप में करना पड़ता है, जिसमें विमान के लीज का किराया, विमान के रखरखाव, विदेशों में जाने वाले विमानों की पार्किंग का खर्च आदि शामिल है। ये सभी संकट को उभारने में तात्कालिक कारण हो सकते हैं। लेकिन असली कारण कुछ और ही है। भारत जैसे देश की बहुसंख्यक आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करती है। लिहाजा उच्च वर्ग के मुट्ठी भर लोग और मध्यम वर्ग का ऊपरी तबका ही हवाई यात्रा का सुख भोगता है। जबकि विमानन के क्षेत्र में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की ढेरों कम्पनियाँ हैं, इनके बीच तीखी होड़ चलती है। किराया सस्ता करना और तरह–तरह के ऑफर देकर ग्राहकों को लुभाना इनकी मजबूरी है। इसके साथ ही मालिक और इसके शेयर धारक भी इससे काफी कमाई करते हैं। पूरी तस्वीर को मिलाकर देखने से साफ समझ में आ जाता है कि तीखी होड़ की घुड़दौड़ में जो गिर जाएगा, बाकी उसे रौंदते हुए आगे बढ़ जायेंगे। जेट एयरवेज को इसी घुड़दौड़ ने अर्श से फर्श पर ला दिया।