आज के दौर में ‘डाटा माइनिंग’ किसी संस्था के सबसे महत्वपूर्ण कामों में से एक है। जिसका मतलब है–– आँकडे़ इकट्ठा करना और उनकी छानबीन करके कुछ निष्कर्ष निकालना। छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक की योजनाएँ बनाने या किसी क्षेत्र विशेष में शोध करने या किसी घटना की सही जानकारी हासिल करने में इसका बहुत महत्व है। आधुनिक तकनीक ने इस काम को बहुत आसान बना दिया है। हमारी सरकार का जोर डाटा माइनिंग के सकारात्मक इस्तेमाल के बजाय इसके नकारात्मक इस्तेमाल पर है। सरकार आधुनिक तकनीकों से अपने नागरिकों पर नजर रखती है और उनकी निजी जानकारी चुराती है। अपनी बारी आने पर सरकार तमाम तरह के आँकडे़ छिपाने की कोशिश करती है और अक्सर यह कहकर पल्ला झाड़ लेती है कि हमारे पास आँकड़े नहीं हैं।

सरकार का कहना है कि कोरोना से देश में केवल 3.5 लाख मौत हुई हैं और उसमें ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई। जबकि मुराद बनर्जी और आशीष गुप्ता की द हिन्दू अखबार में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कोरोना से लगभग 28 लाख मौतें हुई हैं। यह संख्या सरकार द्वारा दी गयी संख्या से 8 गुणा अधिक है। सरकार ने आज तक इस आँकड़े का कोई तार्किक खण्डन पेश नहीं किया है।

 मृतकों के अन्तिम संस्कार के आँकड़े पर आधारित दैनिक भास्कर की रिपोर्ट, जिसे दुनिया के जाने–माने अखबारों और न्यूज एजेन्सियों ने भी स्वीकार किया है, बताती है कि भारत में कोरोना से लगभग 42 लाख मौतें हुई हैं। यह संख्या सरकारी संख्या से लगभग 12 गुना अधिक है। सरकार ने आज तक इसका भी कोई तार्किक खण्डन जारी नहीं किया।

डब्लूएचओ के अनुसार भारत में लगभग 70 प्रतिशत लोग कोरोना का शिकार हुए। दुनिया में कोरोना से संक्रमण और मौत के अनुपात के आधार पर भारत में मरने वालों की संख्या 40 लाख तक हो सकती है। दुनिया के पास भारत के आँकड़े हैं लेकिन भारत सरकार के पास कोई सटीक आँकड़ा नहीं है। यानी भारत की जनता कभी नहीं जान पायेगी कि उनके देश के कितने लोग कोरोना की भेंट चढ गये, इनमें कितने स्वास्थ्य ढाँचे की कमी और कितने संक्रमण की गम्भीरता से मरे। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि सभी आँकड़ों की गैर मौजूदगी में न तो भविष्य में महामारी सम्बन्धी शोध सही दिशा में जा पायेंगे और ना ही महामारी से लड़ने की कोई सटीक योजना बन पायेगी।

सितम्बर 2020 में जब सरकार से पूछा गया कि कोरोना महामारी के दौरान अग्रिम पंक्ति के कितने कर्मचारी मारे गये, तब स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि उनके पास कोई आँकड़ा नहीं है। 24 मार्च 2020 के अचानक किये गये पहले लाकडाउन के बाद सारी दुनिया ने देखा कि किस तरह प्रवासी मजदूरों के अन्तहीन रेले पैदल ही अपने गाँव जा रहे थे। अप्रैल 2020 में वर्ल्ड बैंक ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत में 40 करोड़ प्रवासियों की रोजी–रोटी इससे प्रभावित होगी। इसके बारे में भी भारत सरकार ने वही रटा रटाया जबाव दिया कि कोई आँकड़ा नहीं है।

प्रभावितों की संख्या के बारे में जानकारी ना होने पर उनकी मदद करने की जिम्मेदारी से भी सरकार का पिण्ड छूट गया। भारत से कहीं बेहतर काम एक पड़ोसी देश की सरकार ने किया। उसने देश भर के नियोक्ताओं से उनके यहाँ कार्यरत मजदूरों की सूची और उनकी बैंक खाता संख्या जुटायी और सबके खातों में एक मुश्त रकम डाल दी। यह बहुत आसान काम था भारत सरकार भी कर सकती थी।

दूसरी लहर में उत्तर प्रदेश में पंचायत ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमण से मरने वाले अध्यापकों का शिक्षक संघ के पास सही आँकड़ा था लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के पास कोई सटीक आँकड़ा नहीं था। उत्तर प्रदेश सरकार और चुनाव आयोग दोनों ही इस मामले में मृतक अध्यापकों को उचित अनुकम्पा राशि देने से बच गये।

ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों को नकारना तो और भी बेशर्मी भरी हरकत है। कोरोना की पहली लहर में ही चिकित्सकीय ऑक्सीजन की कमी सामने आयी थी। इसके समाधान के लिए सरकार ने एक कमेटी गठित की थी और 150 से ज्यादा नये ऑक्सीजन प्लाण्ट लगाने का बजट भी जारी किया था। दूसरी लहर शुरू होने से पहले तक इनमें से शायद ही कोई ऑक्सीजन प्लाण्ट चालू हुआ हो। दूसरी लहर के दौरान कन्धों पर ऑक्सीजन सिलेण्डर लेकर दौड़ते और उसके लिए लम्बी–लम्बी लाइनें लगाते परिजनों की तस्वीरें महीनों तक सभी समचार माध्यमों तक छायी रही। ऑक्सीजन का संकट इतना भयावह था कि इसके लिए राज्यों और केन्द्र की सरकारों के बीच खूब झगड़े हुए और मामला सर्वोच्च न्यायलय तक भी पहुँचा। इसके बावजूद सरकार का यह दावा कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई, हद दर्जें की बेशर्मी नहीं तो और क्या है।

मसला सरकार के पास आँकड़ों के न होने तक ही सीमित नहीं है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) द्वारा 2017–2018 के दौरान किये गये उपभोक्ता खर्च की सर्वे रिपोर्ट लोकसभा चुनाव–2019 से पहले आनी थी। उसे नवम्बर 2019 में यह कहकर रोक दिया गया कि आँकड़ों की गुणवत्ता में कमी है। संस्थान ने आँकड़ों की गुणवत्ता सही होने का दावा किया तो अधिकारियों के दफ्तरों पर ताले जड़ दिये गये। रिपोर्ट के लीक हो जाने से पता चला कि उपभोक्ता खर्च में ऐतिहासिक गिरावट आयी है, यानी जनता की गरीबी में ऐतिहासिक बढ़ोतरी हुई है। इस तथ्य से सरकार को चुनाव में नुकसान हो सकता था। इसलिए आँकड़े छिपाये गये।

हाथ से नाले और सीवर साफ करने वाले मजदूरों की मौत की खबरें अक्सर अखबारों में छपती रहती हैं। इसके बारे में भी सरकार का कहना है कि उनके पास कोई आँकड़ा नहीं है। मुद्दा वही है, अगर आँकड़े जारी होंगे तो मृत मजदूरों के परिवारों की मदद की माँग जोर पकड़ेगी, साथ ही नाले और सीवर की सफाई के दौरान मजदूरों की सुरक्षा के लिए नियमावली बनानी पड़ेगी। इस तरह की नियमावली से निश्चय ही मजदूर ठेकेदारों और नियोक्ताओं का खर्च बढ़ेगा। इसके अलावा महाशक्ति और विश्वगुरू के फर्जी दावों तथा इन्हें गढ़ने वाले शासकों की पोल खुलेगी।

किसान आन्दोलन के दौरान हुई किसानों की मौत का भी सरकार के पास कोई आँकड़ा नहीं है। यह बेहद हास्यास्पद है। किसानों ने शहीद हुए अपने हर साथी की सम्पूर्ण जानकारी सुरक्षित रखी है। सरकार जब चाहे उनसे माँग सकती है, लेकिन इसके लिए सरकार को मौजूदा किसान आन्दोलन को किसानों का ही आन्दोलन स्वीकार करना पड़ेगा जिसे अब तक वह आतंकवादियों और लम्पटों का आन्दोलन कहती आयी है।

इण्टरनेट बन्द करने के मामले में भारत सरकार दुनिया में सबसे आगे है। देश के किसी न किसी हिस्से में हर रोज इण्टरनेट पर पाबन्दी रहती है। कश्मीर में तो यह लगभग दो साल से जारी है। इस पाबन्दी से हुए आर्थिक नुकसान के बारे में भी सरकार के पास कोई आँकड़ा नहीं है।

यह मात्र कुछ घटनाओं के उदाहरण हैं। पिछले सात सालों में ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिल जाएँगे जब सरकार ने आँकड़े होने से इन्कार कर दिया या हेराफेरी करके झूठे आँकड़़े दिये।

ऐसा नहीं है कि सरकार के पास आँकड़े नहीं हैं। उसके पास काफी आँकड़े हैं और अगर कोई कमी है तो उसके पास ऐसा तंत्र मौजूद है कि बहुत आसानी से उस आँकड़े को जुटा सकती है। अगर सरकार अपने नागरिकों के खाने, ओढ़ने–पहनने, आने–जाने, बात करने तक की निजी जानकारियाँ हासिल कर सकती है तो वह अपने ही शासन–प्रसाशन और व्यवस्था सम्बन्धित आँकड़े क्यों हासिल नहीं कर सकती। दरअसल, सरकार आँकड़ों के महत्व को भलीभाँति समझती है। सरकार यह भी समझती है कि अपने बारे में सही जानकारी देना विरोधियों के हाथों में हथियार दे देने के समान है। यह समझना बहुत आसान है कि सरकार आँकडों से इनकार करके या गलत आँकड़े देकर बहुत सी असुविधाजनक सवालों से बच जाती है।

आँकड़े न होने के बहाने से केन्द्र सरकार सत्ता के दूसरे केन्द्रों (जैसे राज्य सरकारों) का हक भी आसानी से मार लेती है। पिछले 5 सालों में करों में राज्यों की हिस्सेदारी में इतनी गिरावट पहले कभी नहीं रही। ऐसे में केन्द्र की सत्ता के शीर्ष पर बैठे एक व्यक्ति के जरिये ही तमाम तरह की छोटी–मोटी लोकलुभावन घोषणाओं से नागरिकों को लुभाने की सुविधा हासिल हो जाती है और नाकामियों का सारा बोझ राज्य सरकारों पर डाल दिया जाता है। इससे सत्ता के केन्द्रीकरण के पक्ष में माहौल बनता है। वास्तव में सत्ता का केन्द्रीकरण संविधान की मूलभावना के खिलाफ है बल्कि संविधान सत्ता के विकेन्द्रीकरण की बात कहता है।

आँकडे़ जाहिर न करने का एक बड़ा फायदा यह है कि आप कोई भी कहानी गढ़ सकते हैं। इस तरह की झूठी कहानियाँ गढ़कर ही 2013 में गुजरात मॉडल को एक आर्दश मॉडल और उसके तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी को एक आर्दश शासक के रूप में पेश किया गया। तब से आज तक यही खेल चल रहा है। एक सर्वाधिक असफल शासन प्रणाली और उसके सर्वाधिक असफल मुखिया को सफलता के आर्दश के रूप में पेश किया जा रहा है।

जानकारी एक ताकत है और जानकारी न होना एक कमजोरी। जनता और सरकार के बीच जानकारी का यह अन्तर बहुत बड़ा हो चुका है और बढ़ता ही जा रहा है। शासक नागरिकों की तमाम निजी जानकारियाँ चुराते हैं और अपने बारे में हर जानकारी गुप्त रखते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एनएसए जैसी संस्था में काम करने वाले एडवर्ड जॉसेफ स्नोडेन ने बताया था कि कैसे जनता की हर एक हरकत पर नजर रखी जाती है और शासकों की हर जानकारी जनता की पहुँच से दूर रखी जाती है।

शासन–प्रसाशन या व्यवस्था से सम्बन्धित कोई भी जानकारी हासिल करना किसी भी लोकतन्त्रिक देश के नागरिकों का मूलभूत अधिकार होता है। अपने बारे में अपनों को जानकारी देना एक सामान्य व्यवहार है, इतना ही सामान्य व्यवहार यह भी है कि सुरक्षा से जुड़ी दुश्मन की जानकारी चुरायी जाती है और इस बारे में दुश्मन को कोई सही जानकारी नहीं दी जाती। उससे जानकारी छिपायी जाती है। लेकिन हमारे देश की सरकार तो अपनी जनता से ही सामान्य और जरूरी जानकारी छिपा रही है, तो क्या सरकार के व्यवहार से यह माना जाये कि आज सरकार और जनता के बीच दुश्मनी से भी बदतर रिश्ता बन गया है।