केरल की राजधानी तिरुअनन्तपुरम के विझिन्जम में अडानी ग्रुप भारत का सबसे बड़ा ट्रांसशिपिंग पोर्ट (बन्दरगाह) बना रहा है। इस बन्दरगाह के निर्माण के लिए हजारों मछुआरों की जीविका और घर उजाड़े जा रहे हैं। अपनी आजीविका और घरों को बचाने के लिए यहाँ रहने वाले मछुआरों के 1000 परिवारों ने लेटिन कैथोलिक चर्च के नेतृत्व में इस परियोजना के खिलाफ 130 दिनों तक जबरदस्त आन्दोलन चलाया। उनकी मुख्य माँग परियोजना को तुरन्त बन्द किये जाने की थी। कमाल की बात यह है कि अडानी के इस बन्दरगाह को बचाने के लिए एक दूसरे की धुर–विरोधी माकपा और भाजपा आन्दोलनकारियों के खिलाफ एक हो गयी। दोनों ने ही आन्दोलनकारियों को विकास विरोधी, देश विरोधी, उग्रवादी कहकर खूब बदनाम किया। इसके बावजूद आन्दोलनकारियों ने हार नहीं मानी और आखिरकार सरकार को उनकी मुख्य माँग के अलावा अन्य माँग माननी पड़ी।

  अडानी ग्रुप के “विझिन्जम इंटरनेशनल ट्रांशिपमेंट डीपवाटर मल्टीपरपज सीपोर्ट प्रोजेक्ट” कि नींव 2015 में रखी गयी थी। तब केरल में कांग्रेस की सरकार थी और ओमान चाण्डी मुख्यमंत्री थे। यह परियोजना पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर बननी थी और इसके पहले चरण का खर्च 7525 करोड़ रुपये आँका गया था। तब केन्द्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने बताया था कि 7525 करोड़ रुपये में से अडानी समूह को केवल 2454 करोड़ रुपये का ही निवेश करना है बाकी का खर्च राज्य और केन्द्र सरकार वहन करेगी। अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी और तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमन चण्डी के बीच इस परियोजना पर 17 अगस्त 2015 को हस्ताक्षर हुए थे। उस समय विपक्षी पार्टी माकपा ने परियोजना का पुरजोर विरोध किया था। माकपा ने तथ्यों के साथ यह भी बताया था कि सरकार अडानी समूह को 600 करोड़ की जमीन मुफ्त में देने जा रही है।

मई 2016 में राज्य में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्व वाली लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) की सरकार बनी। सरकार बनने के बाद परियोजना को लेकर जतायी गयी माकपा की आपत्तियाँ छूमन्तर हो गयीं और मुफ्त में दी गयी 600 करोड़ की जमीन अडानी की कड़ी मेहनत का फल बन गयी। 2016 के अन्त में आयी कैग की रिपोर्ट में कहा गया था कि इस परियोजना में केरल के हितों का ध्यान नहीं रखा गया है।

केरल की विझिन्जम तटीय रेखा समुद्री कटाव की द्रष्टि से बहुत संवेदनशील है। तटीय क्षेत्र संरक्षण फोरम 2015 से ही इस परियोजना का पुरजोर विरोध कर रहा है। इसके सदस्य एजे विजयन ने कई समाचार माध्यमों के जरिये बताया है कि इस परियोजना के निर्माण से होने वाले भयानक प्रभावों को स्थानीय लोग और खासकर मछुआरे अपनी जिन्दगी में रोज–ब–रोज महसूस कर रहे हैं। परियोजना के निर्माण से समुद्री कटाव में बहुत तेजी आयी है। कटाव के चलते पिछले एक साल में 100 से ज्यादा परिवार बेघर हो चुके हैं और 300 से ज्यादा परिवार अपने घर छोड़कर कैम्पों में रहने को मजबूर हैं।

समुद्र तटीय जीवन का अध्ययन करनेवाले प्रोफेसर जॉन कुरियन ने कहा है कि “विझिन्जम तेजी से खत्म होने वाली तटीय रेखा है।––– जहाँ समुद्री कटाव होते हैं वहाँ बन्दरगाह नहीं बनाये जाते, जहाँ यह तटीय रेखा है वह अनछुई खूबसूरत जगह है। रेत ऊपर से नीचे की और चलती है। अगर आप समुद्र में टी के आकार की कोई संरचना बनायेंगे तो इससे तट के रेत की हरकत पर असर पड़ेगा। रेत एक दिशा में इकट्ठा होने लगेगी और यह दिख रहा है। रेत उत्तर की ओर से कटकर दक्षिण की ओर इकट्ठा होने लगी है।”

केन्द्र सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के ही एक विभाग, नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च (एनसीसीआर) द्वारा इस वर्ष जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 1990 से 2016 के बीच किये गये अध्ययन के मुताबिक पिछले 26 वर्षों में भारत की लगभग एक तिहाई तट रेखा का क्षरण हुआ है।

अगस्त में रिपोर्ट जारी करते हुए एनसीसीआर के निदेशक एम वी रमन मूर्ति ने तटीय कटाव को तट पर और आसपास रहने वाली आबादी के लिए एक “भयावह खतरा” करार दिया है। उन्होंने तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि समुद्र में और अधिक भूमि और बुनियादी ढाँचे के नुकसान से बचा जा सके। मूर्ति ने कहा है कि यह “अपूरणीय क्षति होगी। तटीय आबादी, विशेष रूप से गाँवों और इमारतों, होटलों और रिसॉर्ट्स सहित हाल में बसी बस्तियों को सबसे अधिक नुकसान होगा, वे जोखिम में हैं।”

इन तमाम तथ्यों के बावजूद अडानी पोटर््स एण्ड स्पेशल इकोनोमिक जोन (एपीएसइजेड) के प्रवक्ता ने पूरे भरोसे के साथ कहा है कि विझिन्जम बन्दरगाह परियोजना कानूनों और नियमों के तहत है और इसकी निगरानी खुद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) कर रहा है। यानी, एपीएसइजेड से सम्बन्धित सभी कानून पर्यावरण और जनता के खिलाफ तथा पूँजीपतियों के पक्ष में बनाये गये हैं।

आन्दोलन की शुरुआत में सरकार ने मछुआरों की माँगों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। धीरे–धीरे जब आन्दोलन बढ़ता चला गया और मछुआरों ने निर्माण कार्य ठप कर दिया तब जाकर सरकार मछुआरों के साथ बात करने को राजी हुई। मुख्यमंत्री ने परियोजना को विकास का सर्वाेच्च मानक बताते हुए कहा कि इस परियोजना का तटीय कटाव से कोई लेना–देना नहीं है। एक तरफ सरकार मछुवारों की माँगों को जल्द पूरा करने का आश्वासन देती रही और दूसरी तरफ आन्दोलन को हर सम्भव तरीके से कुचलने का कुचक्र रचती रही। आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार किया गया और आन्दोलन के पीछे चरमपन्थियों का हाथ बता कर उसे बदनाम किया गया। यहाँ तक की इस परियोजना के लिए माकपा और भाजपा ने अपनी राजनीतिक लड़ाई को भुलाकर आपस में हाथ मिला लिया और परियोजना के समर्थन में रैली करके जनता को ही जनता के सामने खड़ा कर दिया।

इस आन्दोलन के खिलाफ हिन्दुत्ववादी समूहों को खड़ा होने के लिए जमीन तैयार की और आन्दोलन को साम्प्रदायिक रंग देने की घृणित चाल चली गयी। केरल सरकार ने आन्दोलन की मुख्य माँग के अलावा बाकी माँग मानकर आन्दोलनकारियों पर दबाव बढ़ा दिया। इन चैतरफा हमलों और सप्ताह भर की हिंसक घटनाओं ने मछुआरों को अपना आन्दोलन वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। वर्तमान व्यवस्था के चरित्र के अनुरूप पर्यावरण और सामाजिक हित की लड़ाई एक पूँजीपति के आर्थिक हित के आगे हार गयी।

हालाँकि, यह बिलकुल साफ हो गया कि पर्यावरण और सामाजिक हित की लड़ाई में सारी चुनावबाज पार्टियाँ जनता के खिलाफ पूँजीपतियों के पाले में खड़ी हैं। आज कोई चुनावबाज पार्टी ऐसी नहीं है जो जनता के हित को पूँजी की दलाली से बढ़कर मानती हो। और यह भी कि अपने जायज अधिकार हासिल करने के लिए मेहनतकश जनता को संसद और चुनाव से आगे सोचना पड़ेगा।

–– विकास अदम