हिन्दुत्ववादियों पर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का नशा सवार हो गया है। ये नशा देश को सिर्फ और सिर्फ तबाही और बर्बादी की तरफ ले जायेगा। हिन्दुत्ववादी संगठनों और उनके नेताओं द्वारा अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के प्रति लगातार नफरत परोसी जा रही है। आइए, हिन्दुत्ववादी संगठनों की गतिविधियों और सरकार की चुप्पी का विश्लेषण किया जाये।

पिछले साल 12 जुलाई को हरियाणा के पतोधी में हिन्दू राष्ट्र के लिए महापंचायत का आयोजन किया गया। इस आयोजन में मुसलमानों के खिलाफ खुलेआम भड़काऊ भाषण दिये और नारे भी लगाये गये। संविधान की धारा 51 साझी विरसत को सम्भाल कर रखने की बात करता है। और इसकी अवहेलना करने वाले को सजा का भी प्रावधान है। फिर भी महापंचायत की गतिविधियों से किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई। 9 अगस्त को दिल्ली के जन्तर मन्तर पर भारत जोड़ों के नाम पर रैली का आयोजन हुआ। अश्वनी उपाध्याय (बीजेपी पूर्व प्रवक्ता) और आरएसएस के कई सारे नेताओं ने देश के अल्पसंख्यक गिरफ्तार किये गये और छोड़ भी दिये गये। 19 दिसम्बर 2021 को तो हरिद्वार में 2 दिन की धर्मसंसद चलायी गयी। धर्मसंसद में यति नरसिंहानन्द नौजवानों को आधुनिक हथियार उठाने का आह्वान करते हुए कहते हैं कि लड़ाई बड़ी है तो बेहतरीन हथियार से ही जीती जा सकती है। अश्वनी उपाध्याय का रंग भगवा ही होना चाहिए था। साध्वी अन्नपूर्णा कहती हैं कि हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए अगर 20 लाख मुसलमानों को मारकर 100 हिन्दू भी शहीद हो जाते हैं तो समझो हमारी विजय हुई है। धर्मसंसद की कार्यवाहियों से साफ पता चलता है कि ये धर्म के ठेकेदार हमारे नौजवानों और आने वाली पीढ़ियों के हाथ से कलम छीनकर हथियार थमा देना चाहते हैं।

जेनोसाइड वॉच दुनिया में धर्म, जाति, नस्ल आदि के आधार पर किये जाने वाली सामूहिक हत्याओं या नरसंहार और गृहयुद्ध पर अध्ययन करने वाली एक संस्था है। प्रो– स्टैंटन इस संस्था के संस्थापक हैं प्रो– ग्रेगोरी एच स्टैंटन “नरसंहार के 10 चरण” के सिद्धान्तकार हैं। प्रो– स्टैंटन ने जस्टिन फॉर ऑल (सबके लिए न्याय) संगठन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि, “भारत, नरसंहार के आठवें चरण में पहुँच गया है, जो ‘विनाश’ के चरण में पहुँचने से केवल एक कदम दूर है।” यानी भारत मुस्लिमों के नरसंहार और गृह युद्ध के कगार पर खड़ा है। उन्होंने भारत सरकार की चुप्पी पर भी हैरानी जतायी है। प्रो– स्टैंटन ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को हिन्दू चरमपंथी समूह के रूप में सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना भी की है। प्रो– स्टैंटन ने 1989 में अफ्रीकी देश रवांडा के बारे में भी नरसंहार की चेतावनी दी थी, जो सच साबित हुई। उस समय रवांडा की सत्ताधारी पार्टी ने संचार के प्रमुख साधन रेडियो के माध्यम से रवांडा के अल्पसंख्यक समुदाय “तुत्सी” के खिलाफ नरफरत का प्रचार किया था। उन्हें कॉकरोच की संज्ञा दी गयी थी। 1994 आते–आते नफरत से भर चुके बहुसंख्य हुतु समुदाय के लम्पटों ने महज 100 दिनों में 10 लाखों तुत्सियों का नरसंहार किया था। उनकी महिलाओं को बन्दी बनाकर सरेआम बलात्कार किया। तुत्सी परिवारों की जीविका उजाड़ दी गयी और उनकी सम्पत्ति पर कब्जा कर लिया गया। लाखों परिवार विस्थापित हुए। रवांडा में तुत्सियों के प्रति उदार हुतु समुदाय के लोगों को भी नहीं बख्शा गया, जिसने भी तुत्सियों की मदद करने की कोशिश की उसके साथ भी वैसा ही सुलूक किया गया। नरसंहार के इस पूरे अभियान में सैन्य बलों ने खुलकर हत्यारों का साथ दिया और खुद भी हत्याओं में शामिल हुए। अब पिछले 10 साल में संचार के प्रमुख साधनों टीवी और सोशल मीडिया पर मुस्लिमों के खिलाफ किये जा रहे प्रचार को याद कीजिये। साथ ही गुजरात, मुजफ्फरनगर और दिल्ली दंगों में पुलिस की भूमिका पर भी गौर करिये। प्रो– स्टैंटन का आकलन हवाई नहीं है। उनके बताये दस चरणों को भारत में पिछले आठ साल से हो रही घटनाओें के साथ जोड़कर देखिये––

(1) “हम बनाम उनके” का “वर्गीकरण” था। यानी इस चरण में समाज में दो पाले बँटने शुरू हो जाते हैं, यह पहचान, धर्म के आधार पर भी हो सकती है और नस्ल के आधार पर भी।

(2) “प्रतीकात्मकता” ने पीड़ितों को “विदेशी” नाम दिया। जो पीड़ित पक्ष है, उसे विदेशी कह कर उसे अलग पहचान देने की यह स्टेज होती है।

(3) “भेदभाव” “नागरिकता के लिए स्वीकार किये गये समूह से पीड़ितों को वर्गीकृत किया गया” ताकि उनके पास “नागरिकता के लिए मानवाधिकार या नागरिक अधिकार न हों ताकि, उनके साथ कानूनी रूप से भेदभाव किया जा सके। इस चरण में, पीड़ितों के नागरिक होने पर ही सवाल खड़ा कर दिया जाता है और उनसे नागरिक होने के सबूत माँगे जाते हैं।

(4) अमानवीकरण “जब नरसंहार सर्पिल रूप में नीचे की ओर जाने लगता है। आप दूसरों को अपने से बदतर रूप में वर्गीकृत करते हैं। आप उन्हें ‘आतंकवादियों’ या जानवरों जैसे नाम देने लगते हैं। उन्हें राजनीतिक शरीर में कैंसर के रूप में सन्दर्भित करना शुरू कर देते हैं। आप उनके बारे में एक ऐसी बीमारी के रूप में बात करते हैं जिससे किसी तरह निपटा जाना चाहिए।

(5) नरसंहार करने के लिए एक “संगठन” का होना जरूरी होता है। अलग–थलग कर देने के बाद, नरसंहार को अंजाम देने के लिए एक कोर संगठन की जरूरत होती है। पहले चार चरण, पीड़ितों या नरसंहार के लिए लक्षित या टारगेटेड समूह पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल कर उन्हें हतोत्साहित करते हैं।

(6) “ध्रुवीकरण” का भी महत्त्व होता है। मनोवैज्ञानिक रूप से नरसंहार की अपरिहार्यता बनाये जाने के बाद, दुष्प्रचार की भूमिका और महत्त्वपूर्ण हो जाती है।

(7) नरसंहार के लिए “तैयारी” की जाती है।

(8) “उत्पीड़न” शुरू कर दिया जाता है। जहाँ ऐसे टारगेटेड धार्मिक या नस्ली समूह, जिनका नरसंहार या खात्मा किया जाना है, उनका लगातार, जानबूझकर उत्पीड़न किया जाता है और उत्पीड़न के नये बहाने ढूँढे जाते हैं।

(9) विनाश लीला शुरू हो जाती है।

(10) पीड़ितों की किसी भी मदद से “इनकार” किया जाता है। जब नरसंहार को रोकने के लिए उठने वाली हर आवाज नकार दी जाती है।

इन चरणों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि हमारा समाज धार्मिक रूप से असहिष्णु होता जा रहा है जो इस बात का संकेत है कि आनेवाले समय में दंगे, नरसंहार या गृह युद्ध भड़क सकते हैं। दुनिया में किसी भी देश की जन पक्षधर सरकार यह कतई नहीं चाहेगी कि उसके देश की शान्ति व्यवस्था भंग हो। लेकिन भारत की सत्ताधारी पार्टी को इन बातों की कोई फिक्र नहीं है। उनके पास देश की तरक्की की कोई भी योजना नहीं है। पूँजीपतियों की लूट–खसोट जारी रहे, इसके लिए वे उनके नेता समाज को हिन्दू–मुसलिम में बाँटकर गुमराह कर रहे हैं और देश को रवांडा जैसी स्थिति में धकेल रहे हैं।