भाजपा ने अपने 2019 के घोषणापत्र में 75 संकल्पों को 15 अगस्त 2022 तक पूरा करने का वादा किया था। 15 अगस्त 2022 इसलिए क्योंकि तब देश आजादी की 75 वीं वर्षगाँठ मना रहा होगा। इसमें किसानों की आय दोगुनी करने, शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, पर्यावरण को शुद्ध करने, रेलवे को सुदृढ़ करने और गंगा को पूर्णत: साफ करने जैसे 75 संकल्पों को शामिल किया गया था। अब 15 अगस्त यानी लक्ष्य को पूरा करने में चन्द दिन ही शेष है। लेकिन भाजपा के 75 संकल्पों में महज दो–चार को छोड़कर एक भी संकल्प पूरे नहीं हुए हैं। भाजपा की हमेशा से खूबी रही है कि वह अपने दावे जिस जोर–शोर से लांच करती है, उस जोर–शोर से अपनी योजनाओं की समीक्षा नहीं करती है, क्योंकि सरकार समीक्षा तो तब करती है जब योजनाओं पर कुछ काम हुआ हो। खैर आइये आजादी के अमृत महोत्सव तक पूरे होने वाले संकल्पों की समीक्षा की जाये।

किसानों की आमदनी दोगुनी करना

किसानों की आमदनी दोगुनी करने का दावा 75 संकल्पों में   पहला संकल्प था। किसानों की आमदनी दोगुनी होने की बात तो दूर, देश के चार राज्यों की आमदनी घट गयी है। इनमें हैं–– झारखंड, मध्यप्रदेश, ओडिशा और नागालैंड। डीएफआई समिति के अनुसार–– झारखंड, नागालैंड, मध्यप्रदेश, ओडिशा की क्रमश: घटी मासिक आय 2173 रुपये, 1551 रुपये, 1400, रुपये और 162 रुपये।

2013 के बाद किसानों की आमदनी का कोई आँकड़ा जारी नहीं किया गया। किसानों की आमदनी की तुलना में लागत मूल्य में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। डीजल, खाद, बीज और पेस्टीसाइड की बड़ी कीमतों ने खेती को घाटे का सौदा बना दिया है। सिर्फ जनवरी 2021 से जनवरी 2022 में ही डीजल 15–20 रुपये प्रति लीटर महँगा हुआ तो बीज और पेस्टीसाइड की कीमतों में 20–30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अधिकांश किसानों की हालत यह है कि वह खेती से अलग मजदूरी या छोटा–मोटा धंधा न करें तो गुजारा नामुमकिन है। किसानों की जिन्दगी दिन–प्रति–दिन बदतर होती जा रही, किसान कर्ज लेकर चुकाने में असमर्थ है। यहाँ तक कि आत्महत्या करने पर मजबूर है। ऐसे समय आजादी के अमृत महोत्सव की बात करना दिखावा और ढकोसला है।       

गंगा को पूर्णत: स्वच्छ बनाना

2015 में गंगा स्वच्छता सरकार की प्राथमिकता में था। 2019 आते–आते सरकार के 75 संकल्पों में गंगा स्वच्छता 73वें स्थान पर पहुँच गयी। 2016 में गंगा सफाई के नाम पर 20 हजार करोड़ रुपये का नमामि गंगे प्रोजेक्ट शुरू हुआ था। उत्तर प्रदेश में 2022 तक  सिर्फ 10 फीसदी काम होने पर मामला हाईकोर्ट पहुँच गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा–– जब यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गंगा में हो रहे प्रदूषण की जाँच और कार्रवाई नहीं कर पा रहे तो उसके गठन का कोई औचित्य ही नहीं है। क्यों न प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को खत्म कर दिया जाये। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में जितना सीवेज हर दिन निकलता है, उसका सिर्फ 40 फीसदी ही ट्रीटमेंट होता है। बाकी का सारा कचरा सीधे गंगा में गिरता है। नेशनल ट्रिब्यूनल बोर्ड ने बताया कि आधे से भी अधिक सीवेज सीधे गंगा में गिरते हैं। 97 जगहों पर गंगा का पानी आचमन के लायक भी नहीं है। हजारों करोड़ रुपये गंगा सफाई के नाम पर खर्च होने के बावजूद गंगा 20 फीसदी भी साफ नहीं हुई है।

रेलवे

रेलवे को सुदृढ़ बनाने की बात तो दूर उल्टा रेलवे को निजी हाथों में कौड़ियों के भाव बेचा जा रहा है। नीति आयोग के अनुसार 400 रेलवे स्टेशन, 90 पैसेंजर ट्रेन, 4 पहाड़ पर मौजूद रेलवे, कोकण रेलवे, 15 स्टेडियम, 673 किलोमीटर के डेडीकेटेड फ्रेट कोरिडोर, 265 गुड शेड्स और 1400 किलोमीटर लम्बे ओवरहेड इक्विपमेंट को बेचकर सरकार की मंशा 1–50 लाख करोड रुपये जुटाने की है।

शिक्षा

देश में 1–508 करोड स्कूल हैं। इनमें लगभग 96 लाख अध्यापक हैं। 26–5 करोड़ बच्चे प्रारंभिक स्कूल में है। मोटे तौर अनुमान है कि 10 लाख से अधिक अध्यापकों के पद स्कूलों में खाली हैं। अध्यापकों को लेकर जो चुनौती स्कूलों के सामने है उससे भी जटिल चुनौती उच्च शिक्षा संस्थानों में है। दिल्ली के एम्स में डॉक्टरों के एक तिहाई पद रिक्त हैं। देश के नये एम्स की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं। यही हाल केंद्रीय विश्वविद्यालयों का भी है। राज्य सरकारों के उच्च शिक्षा संस्थानों इससे भी बड़ी मुश्किल में संचालन कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालय केवल शिक्षा ही दे रहा हो या शिक्षा और शोध दोनों पर कार्य कर रहा हो, उससे शिक्षा की गुणवत्ता की अपेक्षा व्यर्थ होगी।

 बीजेपी सरकार 75 संकल्पों पर बात न करके लोगों का ध्यान भटकाने के लिए हर घर तिरंगा अभियान चला रही है। भाजपा बुनियादी मुद्दों से कोसों दूर है। लोगों का ध्यान बुनियादी मुद्दों पर न चला जाये इसके लिए बेफिजूल के मुद्दे गढ़े जाते हैं। जब देश भुखमरी के मामले में पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका से भी खराब स्थिति में हो, गरीबी बेतहाशा बढ़ रही हो, किसान–नौजवान लगातार आत्महत्या कर रहे हों, पर्यावरण की स्थिति बेहद गम्भीर हो, अर्थव्यवस्था डाँवाडोल हो, अपराध दिन–प्रति–दिन बढ़ रहे हो, महिलाएँ सबसे ज्यादा असुरक्षित हो, महँगाई पिछले 8 सालों के उच्चतम स्तर पर हो तो आजादी का अमृत महोत्सव मनाने से बड़ा अपराध कोई नहीं। हर घर तिरंगा अभियान जख्मों पर नमक छिड़कने के अलावा और कुछ नहीं है।