2022 में अमरीकी कम्पनी माइक्रॉन टेक्नॉलजी ने भारत में बड़ा निवेश करने का ऐलान किया था। सेमीकण्डक्टर चिप बनाने वाली इस कम्पनी ने हाल ही में गुजरात के सानन्द औद्योगिक क्षेत्र में अपना पैकेजिंग प्लाण्ट शुरू भी कर दिया है। इस प्रोजेक्ट में करीब 23,053 करोड़ रुपये का कुल निवेश होगा, जिसका 70 प्रतिशत हिस्सा केन्द्र की मोदी सरकार और गुजरात सरकार देगी। कम्पनी सिर्फ 6,916 करोड़ रुपये खर्च करेगी। कम्पनी का यह प्लाण्ट केवल 5000 नौकरियों का ही सृजन करेगा। केन्द्र और गुजरात सरकार ने अमरीकी कम्पनी को जबरदस्त फायदा पहुँचाया है। यह बात गले से नहीं उतरती कि दोनों सरकारों ने अमरीकी कम्पनी को हरेक नौकरी के लिए 3–2 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी है।

इस निवेश को लेकर स्टील और भारी उद्योग मंत्रालय सम्भाल रहे एच डी कुमारस्वामी ने सवाल उठाया है। इतने पैसों में सरकार द्वारा रोजगार के अनेक बेहतर अवसर पैदा किये जा सकते हैं। जनता दल (सेक्युलर) केन्द्र में एनडीए की सहयोगी है, लेकिन इसके बावजूद इसके नेता कुमारस्वामी ने भारी भरकम सब्सिडी देने को लेकर केन्द्र सरकार पर निशाना साधा है।

गौरतलब है कि सरकार द्वारा केवल माइक्रॉन कम्पनी को ही नहीं, बल्कि कई अन्य कम्पनियों को भारी आर्थिक सहयोग देने का वादा किया गया है। 2021 में केन्द्र सरकार ने 76,000 करोड़ रुपये की स्कीम घोषित की थी जिसमें भारत में सेमीकण्डक्टर प्लाण्ट लगाने पर सरकार द्वारा प्रोजेक्ट की कुल लागत का 50 प्रतिशत वित्तीय सहायता देने की बात कही गयी थी। इसी स्कीम के तहत सरकार ने 2022 में माइक्रॉन को और मार्च 2024 में 1–25 लाख करोड़ रुपये के तीन सेमीकण्डक्टर प्रोजेक्ट लगाने को स्वीकृति दी जो भारतीय कम्पनियाँ टाटा और एचसीएल, ताइवान की बड़ी कम्पनियों पावरचिप (पीएसएमसी) और फॉक्सकोन तथा जापानी कम्पनी रिनीसस के साथ मिलकर लगाएँगी। सब्सिडी के अलावा राज्य सरकारें इनको सस्ती जमीन, सस्ती बिजली और अन्य कई लाभ सुनिश्चित करेंगीं।

केन्द्रीय बजट 2024–25 में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) को 21,936 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गयी है। यह 2024 में संशोधित अनुमान के तहत आवंटित की गयी 14,421 करोड़ रुपयों की राशि से 52 प्रतिशत अधिक है। इस मंत्रालय के तहत विभिन्न विभागों में राशि का सबसे अधिक हिस्सा सेमीकण्डक्टर से सम्बन्धित विभागों और योजनाओं को दिया गया है और इनकी आवंटित की गयी राशि को पिछले सालों की तुलना में बहुत बढ़ा भी दिया गया है।

यह साफ दिखाता है कि आज सरकारें गरीब जनता के हित में बनी योजनाओं के बजट में लगातार कटौती कर रही हैं। वे देशी–विदेशी पूँजीपतियों के हितों को सबसे ऊपर रखते हुए लाखों करोड़ के उनके कर्ज माफ कर रही हैं और उन्हें भारी सब्सिडी दे रही हैं।

आखिर सरकार द्वारा इन देशी–विदेशी कम्पनियों पर रहमो–करम का राज क्या है? सरकार इन्हें इतनी भारी भरकम सब्सिडी देने को क्यों तैयार रहती है? दरअसल, 1990 की नव–उदारवाद की नयी आर्थिक नीतियों के तहत विदेशी पूँजी को भारत में घुसकर यहाँ के संसाधनों के दोहन करने और अकूत मुनाफा कमाने की खुली छूट दे दी गयी थी। इसके साथ अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों में जहाँ निजी पूँजी के निवेश पर प्रतिबन्ध लगे हुए थे, उन्हें पूँजीपतियों के लिए खोल दिया गया जिससे वे अकूत मुनाफा कमा सकें। नयी आर्थिक नीतियों का नतीजा है कि हमारे देश की चुनी हुई सरकारें देशी–विदेशी पूँजीपतियों के आगे नाक रगड़ती रहती हैं।

भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्वनी वैष्णव का दावा है कि इन निवेशों से भारत में जरूरी तकनीक का विकास होगा और जल्द ही भारत सेमीकण्डक्टर क्षेत्र में विश्व में अपनी लोहा मनवाएगा। हकीकत तो यह है कि अभी भारत अपनी जरूरतों की लगभग सभी चिपों का आयात करता है। अगर वह विश्व में अपनी लोहा मनवाना चाहता है तो उसे देश में ही अपने दम पर सेमीकण्डक्टर चिप बनाने होंगे। भारत में जो सेमीकन्डक्टर प्रोजेक्ट लगायें जाएँगे वह सेमीकण्डक्टरों के अवयवों को हमारे देश में केवल जोड़ने, परीक्षण करने और पैकिंग से ही सम्बन्धित हैं। यानी ये मुख्यत: असेम्बलिंग प्लाण्ट होंगें न कि फैब्रिकैशन प्लाण्ट। हम जानतें है कि कच्चे माल से सेमीकण्डक्टर चिप बनाने की प्रक्रिया को फैब्रिकेशन कहा जाता है। फैब्रिकेशन प्लाण्ट लगाना भारी–भरकम पूँजी और बेहद आधुनिक तकनीक की माँग करता है। इसके साथ यह बात भी ध्यान रखने वाली है कि सेमीकण्डक्टर चिप बनाने की तकनीक पर अमरीका जैसे साम्राज्यवादी देशों ने अपना एकाधिकार कायम कर रखा है। इन सभी बातों पर गौर किया जाये तो अश्वनी वैष्णव के दावों की पोल आसानी से खुल जाती है।

आज के दौर में सेमीकण्डक्टर चिप लगभग हर इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद में इस्तेमाल होते हैं। लैपटॉप, समार्टफोन, गाड़ियों से लेकर रक्षा क्षेत्र के हथियारों–उपकरणों, उद्योगों में मशीनों और दूरसंचार के क्षेत्र में, हर जगह सेमीकण्डक्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह निश्चित है कि जिस भी देश के पास सेमीकण्डक्टर बनाने की उन्नत तकनीक होगी, उसी का विश्व व्यापार के बड़े हिस्से पर कब्जा होगा और वह देश ही वैश्विक राजनीति में अपना पलड़ा भारी रखने में ज्यादा सक्षम होगा।

चिप फैब्रिकेशन प्रक्रिया के अलग–अलग हिस्से का काम अलग–अलग देश पूरा करते हैं। अमरीका मुख्यत: चिपों के सर्किट को सॉफ्टवेयर द्वारा डिजाइन करता है। इसके बाद कच्चे माल से (शुद्ध सिलिकॉन धातु की वेफर) छोटी–छोटी चिपों का उत्पादन किया जाता है। यह दूसरी प्रक्रिया बेहद महँगी और विशिष्ट उपकरणों द्वारा पूरी की जाती है। जो मुख्यत: ताइवान, कोरिया, चीन में संकेंद्रित है। इसके बाद असेम्बलिंग, परीक्षण और पैकेजिंग का काम एशिया के देशों में होता है।

वैश्विक सेमीकण्डक्टर चिप उद्योग पर कुछ देशों और कुछ मुट्ठी भर कम्पनियों का वर्चस्व है। जैसे अमरीकी कम्पनियों की चिप बनाने वाले कुछ महत्वपूर्ण उपकरणों और सॉफ्टवेयर पर इजारेदारी है। इसी प्रकार नीदरलैण्ड्स में स्थित एएसएमएल कम्पनी दुनिया की ऐसी एकमात्र कम्पनी है जो ऐसे उपकरण बनाती है, जिसके बिना उन्नत चिप बनाना सम्भव नहीं है। चीन ने भी इस क्षेत्र में तेजी से अपने कदम बढ़ाये हैं और आगे वह बड़े निवेश करने की योजना बना रहा है।

यही कारण है कि अमरीका और चीन के बीच पिछले कुछ सालों से सेमीकण्डक्टर तकनीक के क्षेत्र में वर्चस्व कायम करने को लेकर घमासान मचा हुआ है। दोनों देशों के बीच अन्तर्विरोध बढ़ते–बढ़ते अपने चरम पर पहुँच रहे हैं। ताइवान को लेकर दोनों देशों के बीच लगातार बढ़तीं झड़पें इसकी स्पष्ट अभिव्यक्ति हैं।

अगस्त 2022 में अमरीका ने चीन में आधुनिक चिपों और चिप बनाने के उपकरणों के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा दिया। अमरीका के दबाव में जापान और नीदरलैण्ड, जहाँ मुख्य चिप उपकरण बनाने वाली कम्पनी एएसएमएल स्थापित है, उसने भी चीन में चिप तकनीक के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा दिया।

होना तो यह चाहिए था कि दुनिया भर में जनता के फायदे के लिए विभिन्न देश अपने–अपने मौजूदा संसाधनों और विकसित तकनीक और ज्ञान–विज्ञान को एक दूसरे के साथ साझा करके सामूहिक हितों को आगे बढ़ाते। वहीं आज अमरीकी चैधराहट वाली नवउदारवादी वैश्विक व्यवस्था ने लूट का साम्राज्य खड़ा किया है। इसके लिए साम्राज्यवादी देशों ने तीसरी दुनिया के देशों को तकनीक और जरूरी संसाधनों से महरूम करने का काम किया है तथा उन पर अपनी शोषणकारी नीतियाँ लागू करके उनकी आत्मनिर्भरता खत्म करने का काम किया है। इन देशों की सरकारें भी देशी–विदेशी पूँजी की अपार सेवा करने के लिए इन नीतियों को लागू करने में जुटी हैं और जनता की खून पसीने की कमाई को इन लुटेरों की झोली में डालने में लगी पड़ी है। जब तक यह लूट–अन्याय पर आधारित साम्राज्यवादी व्यवस्था रहेगी, तब तक अधिक मुनाफे के लिए युद्ध, उन्नत तकनीक पर इजारेदारी जारी रहेगी। इससे छुटकारे के लिए इस साम्राज्यवादी व्यवस्था के खिलाफ एकजुट होना जरूरी है।

–– समर्थ बंसल