9 जुलाई 2024 को ‘कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग’ ने केन्द्र सरकार के कर्मचारियों पर आरएसएस के कार्यक्रमों में शामिल होने पर लगे प्रतिबन्ध को हटा दिया है। भाजपा शासित राज्यों ने यह रोक पहले ही हटा दी थी। यह प्रतिबन्ध महात्मा गाँधी की हत्या के बाद देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने 4 फरवरी 1948 को लगाया था। आरएसएस पर महात्मा गाँधी की हत्या का षड़यंत्र रचने का आरोप लगा था। नाथूराम गोडसे आरएसएस का ही कार्यकर्ता था। एक तरफ जब देशवासी अंग्रेजी शासन के खिलाफ एकजुट होकर लड़ रहे थे, उस समय आरएसएस देशवासियों की एकता को तोड़ने का काम कर रही थी। नाजीवादी हिटलर के कदमों पर चलते हुए आरएसएस मुस्लिम के खिलाफ हिंसात्मक कार्रवाइयों का समर्थक बन गया था। धर्म के आधार पर देश को बाँटने की अनेक नाकाम कोशिशें आरएसएस ने कीं। आरएसएस की विचारधारा आजाद भारत के नवनिर्मित संविधान के मूल उद्देश्य के खिलाफ थी। संविधान में धर्मनिरपेक्षता की बात कही गयी थी, वहीं आरएसएस धर्मनिरपेक्षता का कट्टर विरोधी था। एक तरफ आजादी के बाद सभी धर्मों, सम्प्रदायों के लोग एक साथ मिलकर देश निर्माण में बढ़–चढ़कर हिस्सा ले रहे थे वहीं दूसरी तरफ आरएसएस इस एकता को तोड़ने का काम कर रहा था। देश के ढाँचे का स्वरूप धर्मनिरपेक्ष बनाये रखने के लिए सभी सरकारी कर्मचारी के लिए इनके कार्यक्रम में जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था, ताकि धार्मिक और जातिगत भेदभाव किये बिना वह अपनी तय जिम्मेदारियों को पूरा कर सकें।

यह बात जगजाहिर है कि आरएसएस भाजपा का ही वैचारिक संगठन है। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी लम्बे समय तक बतौर आरएसएस कार्यकर्ता काम कर चुके हैं। इसी तरह भाजपा के अधिकतर शीर्ष नेता आरएसएस से सम्बन्धित हैं। 2014 में भाजपा सत्ता में आने के बाद से आरएसएस के एजेण्डे पर काम कर रही है। पाठ्यक्रम में धार्मिक चीजों को जोड़ना हो या फिर शैक्षिक संस्थानों के उच्च पदों पर आरएसएस विचारधारा वाले लोगों को नियुक्त करना हो, यह सभी भाजपा की इसी नीति का हिस्सा है। संविधान और सरकार का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप भाजपा के इस एजेण्डे में बड़ी रुकावट बना हुआ है। लेकिन अब भाजपा इसे भी तोड़ने का काम कर रही है। आरएसएस के कार्यक्रम में सरकारी कर्मचारियों की हिस्सेदारी यह संकेत देती है कि आने वाले समय में न्यायपालिका, कार्यपालिका अपने मूल सिद्धान्तों को तिलांजलि देकर हिन्दुत्व के एजेण्डे पर काम करेगी। पिछले दिनों मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बढ़ती हिंसा में इसे साफ देखा जा सकता है। इनमें पुलिस मूकदर्शक बनकर खड़ी रही। यह काफी खतरनाक है। इसे रोका जाना चाहिए।

–– आकाश