खुदरा व्यापार के क्षेत्र में दुनिया भर में दैत्य के नाम से बदनाम वालमार्ट कम्पनी इन्टरनेट के माध्यम से कारोबार करनेवाली कम्पनी फ्लिपकार्ट से गठजोड़ कर रही है।

वालमार्ट का यह कदम भारत में ऑनलाइन व्यापार में अपनी जगह बनाने और यहाँ के बाजार पर पूरी तरह से कब्जा करने के इरादे से उठाया गया है। यह करार 1.07 लाख करोड़ रुपये का है जिसमें वालमार्ट का 77 फीसदी शेयर होगा, यानी मालिकाना वालमार्ट का होगा। वही इस नयी कम्पनी को संचालित करेगी। इस सौदे को लेकर छोटे दुकानदारों में काफी गुस्सा है। चेंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री, किसान संगठन और कुछ विपक्षी पार्टियों ने इसे जनविरोधी बताते हुए, इसके खिलाफ प्रदर्शन करने का फैसला किया है। कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव ने कहा है कि देश में ऑनलाइन व्यापार के लिए कोई नीति और नियामक नहीं है। इसके चलते खुदरा कम्पनियों द्वारा अधिक छूट देकर कम मूल्य पर माल बेचने से दुकानदार पहले से तबाह होते आये हैं और इस सौदे से उनकी तबाही में और तेजी आयेगी। पूरे भारत में ऑनलाइन व्यापार में 3500 से ज्यादा कर्मचारी लगे हुए हैं। इनका भविष्य भी अंधेर में है। वे नयी कम्पनी के व्यापार नियमों और शर्तों को लेकर चिंतित हैं।

फ्लिपकार्ट जिस वालमार्ट कम्पनी की मेजबानी कर रही है, उसका इतिहास खून से सना हुआ है। वॉलमार्ट भी अपने कर्मचारियों के शोषण और छोटे कारोबारियों, जैसे– ठेले खोमचे, किराना दुकान, खोखे आदि की तबाही के लिए बदनाम है। अपनी नृशंसता के लिए यह अपने पैतृक देश अमरीका में ही ‘वेंटोविले का दानव’ के नाम से जानी जाती है क्योंकि यह वहाँ के कई लाख छोटे कारोबारियों को निगल चुकी है। अक्टूबर 2006 में कम्पनी  फ्लोरिडा शाखा के कर्मचारियों ने बगावत कर कर दी थी। कम्पनी उन्हें 24 घंटे की शिफ्टिंग के लिए मजबूर करती थी और ड्यूटी लगाने का काम स्थानीय मैनेजर नहीं, बल्कि हेड क्वार्टर का कम्प्यूटर करता था। इंडोनेशिया में वालमार्ट द्वारा उजाड़े गये दुकानदारों ने उसके मेगा मार्ट पर ही हमला बोल दिया था। उसके बाद कम्पनी को वहाँ से अपना बोरिया–बिस्तर लपेटकर भागना पड़ा। 27 नवंबर 2006 को वालमार्ट ने सुनील मित्तल की कम्पनी भारती इंटरप्राइजेज के साथ गठजोड़ किया था और उसने देश के विभिन्न शहरों में 100 खुदरा बिक्री खोलने की योजना बनायी थी। आज वालमार्ट के भारत में 9 राज्यों के 19 शहरों में 21 होलसेल स्टोर हैं। यह कम्पनी कुछ हजार नौकरियाँ देने का दावा तो करती है लेकिन रोजी–रोटी छीन कर लाखों लोगों को सड़क पर ला देती है।

दूसरी तरफ, फ्लिपकार्ट कम्पनी भी वालमार्ट के लिए लाल कालीन बिछा रही है। कहने के लिए फ्लिपकार्ट भारतीय कम्पनी है लेकिन इसके ज्यादातर शेयर विदेशी कम्पनियों के हैं, जिसमें टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट, सॉफ्टबैंक, माइक्रोसॉफ्ट कारपोरेशन, टेनसेट लिमिटेड आदि शामिल हैं। 2007 में इस कम्पनी को सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने महज चार लाख की पूँजी के साथ शुरू किया था, जिसका मकसद किताबें बेचने के लिए बेहतरीन जगह की व्यवस्था करना था। धीरे–धीरे उन्होंने किताबों के साथ–साथ रोजमर्रा की जरूरतों का व्यापार भी शुरू किया। मुनाफे में वृद्धि के चलते विदेशी निवेशकों का ध्यान कम्पनी की ओर आकर्षित हुआ, जिसके चलते 2017 तक इस कम्पनी में लगभग 96,600 करोड़ रुपये का निवेश हो गया था। इसके साथ–साथ यह भारत की ई–कॉमर्स (ऑनलाइन व्यापार) की सबसे बड़ी कम्पनी बनकर उभरी। आज कम्पनी की कीमत लगभग 1,38,000 करोड़ रुपये तक पहुँच गयी है। देश भर में इस कम्पनी के लगभग तीन करोड़ से अधिक ग्राहक हैं, जिनको सामान भेजने के लिए इसके पास महज 6800 कर्मचारी हैं। यह कम्पनी बहुत कम कर्मचारियों को काम पर रखती है और लाखों छोटे दुकानदारों को धीरे–धीरे उजाड़कर अपना कारोबार फैलाती है।

मार्केट रिसर्च फर्म फोरेस्टर के अनुसार पिछले साल 1,42,800 करोड़ रुपये का ऑनलाइन कारोबार हुआ। रिसर्च कम्पनी मॉर्गन स्टैनली के अनुसार 2026 तक भारत में ऑनलाइन कारोबार 13,80,000 करोड़ रुपये तक पहुँच जाएगा यानी अगले 8 वर्षों में इसमें 9 से 10 गुना की बढ़ोतरी का अनुमान है। भारत में पूँजी लगाने के लिए विदेशी निवेशकों का रुझान बढ़ता ही जा रहा है। विदेशी निवेशकों ने भारत को एक नये उपभोक्ता बाजार के रूप में चिन्हित कर लिया है। भारत एक ऐसा बाजार बनता जा रहा है, जहाँ विदेशी कम्पनियाँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। यहाँ पहले से ही चीनी कम्पनी अलीबाबा ग्रुप ने अपने पेटीएम, स्नैपडील, जोमैटो के जरिये भारतीय बाजार पर कब्जा कर रखा है। इसके साथ ही वालमार्ट जैसी दैत्याकार खुदरा कम्पनी बुलाने से देश के छोटे दुकानदारों का भविष्य अंधकार में है। अपने हितों पर हुए हमले के खिलाफ उन्हें अपनी आवाज बुलन्द करनी होगी।