पूर्वी दिल्ली नगर निगम के सफाई कर्मचारी 27 दिन तक हड़ताल पर थे। नगर निगम में 40 हजार सफाई कर्मचारी काम करते हैं। 2015 से अब तक सफाई कर्मियों की आठ हड़तालें हो चुकी हैं। इस बार हड़ताल लम्बी चली। जिसके चलते उनकी चार माँगों में से एक माँग दिल्ली सरकार ने मान ली है। जो सफाई कर्मचारी अस्थायी तौर पर काम कर रहे हैं उनको स्थायी करने की माँग मान ली गयी है। पूर्वी दिल्ली नगर निगम के सफाई कर्मचारियों का साथ उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के सफाई कर्मचारी तथा अन्य कर्मचारी भी दे रहे थे।

जो लोग सुबह से शाम तक दिल्ली को साफ रखने का काम करते हैं उनका वेतन तीन महीने से रुका पड़ा था। जिसके चलते उनके घर की माली हालत बहुत खराब हो गयी। 2003–2004 में जिन लोगों की नौकरी स्थायी हुई थी उनका बैकलॉग एरियर अभी तक नहीं मिला। जो लोग रिटायर हो गये उनकी पेंशन नहीं मिल रही। सफाई करने वाले पेंशनभोगी लोग भुखमरी की कगार पर हैं। बच्चों के स्कूल की फीस बकाया है, दुकानदार का पैसा बकाया है। इन सब हालातों से तंग आकर कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी। हड़ताल करने वाले सफाई कर्मचारियों की मुख्य माँगें हैं–

1– 1 अप्रैल 1998 से लेकर 2017 तक के सभी सफाई कर्मचारियों को स्थायी किया जाये।

2– जो सफाई कर्मचारी 2003–2004 से स्थायी माने गये उनके एरियर और 1800 रुपये ग्रेड पे का भुगतान एक मुस्त किया जाये।

3– सभी सफाई कर्मचारियों को मेडिकल कैशलेस की सुविधा दी जाये।

4– दिल्ली की आबादी के अनुसार नये सफाई कर्मचारियों की भर्ती की जाये।

ये कोई बहुत बड़ी माँगें नहीं हैं। लेकिन न ही दिल्ली सरकार और न ही दिल्ली नगर निगम इन सफाई कर्मचारियों की सुध ले रहा है। जिसके चलते सफाई कर्मचारी सड़कों पर उतरने को मजबूर हुए। दरअसल दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है और दिल्ली के तीनों नगर निगमों और केन्द्र में भाजपा की सरकार है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल का कहना है कि 2015–16 में हमने 702 करोड़ रुपये दिये जो कांग्रेस और भाजपा से लगभग दोगुना बजट है। फिर भी वेतन नहीं दिया जा रहा है। और दिल्ली नगर निगम के चेयरमैन का कहना है कि दिल्ली सरकार ने पैसे नहीं दिये। अब सवाल ये उठता है कि सच्चाई क्या है? आखिर क्यों सफाई कर्मचारियों का वेतन नहीं मिला पा रहा है? आखिर इन सफाई कर्मचारियों का वेतन न देने का दोषी कौन है?

स्वच्छ भारत अभियान का ढिंढोरा पीटने वाले और बात–बेबात पर मन की बात करने वाले प्रधानमंत्री इस बात पर मौन है। जो दिल्ली को स्वच्छ बनाने का काम कर रहे हैं अगर उनके घर की माली हालत खराब रहेगी तो वे कैसे दिल्ली को स्वच्छ रखेंगे? क्या सफाई कर्मियों की आर्थिक हालत सही किये बिना और पर्याप्त संख्या में सफाई कर्मचारियों की भर्ती के बिना भारत स्वच्छ बन पायेगा?

 सफाई कर्मचारी गटर में नंगे बदन उतरकर गन्दगी को साफ करते हैं जिसके चलते वे कई बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। इनकी न कोई अच्छी तनख्वाह है, न स्थायी नौकरी, कोई मेडिकल कार्ड की सुविधा भी नहीं मिलती है। जबकि इस देश के सांसद की तनख्वाह 3 लाख रुपये है और हर तरीके का भत्ता है, फिर भी उनको मेडिकल कार्ड की सुविधा मिलती है। आखिर जो सरकार स्वच्छ भारत अभियान का नारा दे रही है, वह भारत को स्वच्छ बनाने वाले सफाई कर्मचारियों के साथ यह अन्याय क्यों कर रही है? दरअसल स्वच्छ भारत अभियान एक इवेंट मैनेजमेंट हो गया है, जिसमें चार लोग हाथ में झाड़ू लेकर फोटो खिचवाते हैं।

सरकार स्वच्छता अभियान केवल विज्ञापनों में चला रही है। अगर सरकार सचमुच में हिन्दुस्तान को साफ–सुथरा रखना चाहती तो इन सफाई कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति में सुधार करती और दिल्ली ही नहीं पूरे देश में सफाई कर्मचारियों की भर्ती भी करती। लेकिन सरकार की मंशा तो पहले से सफाई के काम पर लगे कर्मचारियों को भी हटाने की है।