बहुमंजिली इमारत से गिरकर मरते मजदूर
समाचार-विचार कोमलक्या आपने कभी शहतूत देखा है
जहाँ गिरता है, उतनी जमीन पर
उसके लाल रस का धब्बा पड़ जाता है,
गिरने से ज्यादा पीड़ादायी कुछ नहीं,
मैंने कितने मजदूरों को देखा है
इमारतों से गिरते हुए,
गिर कर शहतूत बन जाते हुए।
––सबीर हका (ईरान के मजदूर कवि)
हाल ही में नोएडा सेक्टर–94 में एक निर्माणाधीन बहुमंजिली इमारत ढह गयी। इस हादसे में चार मजदूरों की मौत हो गयी और पाँच मजदूर घायल हो गये। वहाँ काम करने वाले मजदूरों ने बताया कि उन्हंे काम करते समय न ही कोई सुरक्षा उपकरण दिये जाते हैं और न ही कोई अन्य सुविधा। मजदूरों ने बताया कि यह घटना शटिरिंग को जोड़ने वाली सेफ्टी पिन के ढीली रहने की वजह से हुई। जिसमें रेत से भरे एक ट्रैक्टर ने टक्कर मारदी और इमारत गिर गयी।
यह निर्माण कार्य 2010 में शुरू हुआ था। ओखला चैकी प्रभारी गिरिश चन्द की शिकायत पर इसका निर्माण रोकने की बात हुई तब राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने भवन निर्माण का काम बीच में ही रुकवा दिया। उसके बाद 2017 में अनुमति मिलने के बाद निर्माण कार्य बिना किसी जाँच के दुबारा शुरू कर दिया गया। दुर्घटना की तमाम सम्भावनाओं के बावजूद भी मजदूरों को कोई सुरक्षा उपकरण नहीं दिये गये। निर्माण कार्य के मालिकों ने मजदूरों की जान की कोई परवाह नहीं की।
ऐसी ही दूसरी घटना 30 अक्टूबर की नोएडा के दून इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल की है। वहाँ भी बिल्डिंग गिरने से 5 मजदूरों की मौत हो गयी और 14 मजदूर घायल हो गये। वहाँ काम कर रहे मजदूरों ने बताया कि यह घटना एक बड़े सभागार में लिंटर डालने के लिए बीम का इस्तेमाल न करने से हुई।
सरकार मजदूर कानूनों में फेर–बदल करके मजदूरों को मिलने वाले कानूनी हकों को भी छीन चुकी है। मजदूरों की सुरक्षा का ध्यान रखे बिना लगातार शोषण किया जाता है। उन्हें बुरे से बुरे हालात में 14 से 16 घण्टे काम करना पड़ता है, काम का सही दाम नहीं दिया जाता। अगर कोई मजदूर हादसे का शिकार होता है तो मालिक मुआवजा तो दूर मजदूरों को पहचानने से भी इनकार कर देते हैं। मजदूरों के साथ–साथ उसके परिवार की हालात भी दयनीय होती है। मजदूर अपने बच्चों को पढ़ा–लिखा नहीं सकता क्योंकि उसे तो पेट भरने तक की मजदूरी भी मुश्किल से मिलती है। महिला मजदूरों की स्थिति तो और भी बदतर है। आर्थिक शोषण के साथ ही मालिक उनका यौन शोषण भी करते हैं।
एक आँकड़े के अनुसार हर 2 घण्टे में 3 मजदूर मौत का शिकार हो जाते हैं। यानी हर साल इस तरह के निर्माण में लगे 11,614 मजदूर बेमौत मारे जाते हैं। जबकि ज्यादातर मौतों को महज चन्द सुरक्षा उपकरणों का इन्तजाम करके रोका जा सकता है। मालिक अपने मुनाफे की हवस को पूरा करने के लिए मजदूरों की जिन्दगी निगल लेता है। लूट–खसोट पर टिकी इस व्यवस्था के चलते आज मजदूर गुलामों जैसी जिन्दगी जीने के लिए मजबूर हैं। इन अत्याचारों के खिलाफ मजदूरों को संगठित और एकजुट होकर संघर्ष करना होगा।
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