द वाशिगंटन पोस्ट और 16 मीडिया संस्थानों ने एक बड़ा खुलासा किया है–– जिसका नाम है पेगासस स्पायवेयर। जाँच में सामने आया है कि दुनियाभर से 50,000 मोबाइल नम्बरों की एक सूची निकली, इस सूची के कुछ नम्बरों की जासूसी की जा रही थी तथा नम्बरों की जासूसी की जानी थी। भारत में 300 से अधिक, जिनमें 40 से अधिक पत्रकार, उच्चतम न्यायलय के न्यायधीश, चुनाव आयुक्त, शिक्षाविदों, सत्ता पक्ष तथा विपक्ष के बड़े नेताओं की जासूसी की जा रही थी। लेकिन भारत संचार व तकनीकी मंत्री, अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में कहा कि इस लीक डेटा से जासूसी साबित नहीं होती, अवैध निगरानी, हमारे सिस्टम में सम्भव ही नहीं है, यह सरकार को बदनाम करने की एक साजिश है। जबकि खुद अश्विनी वैष्णव का नाम इस जासूसी सूची में है।

पेगासस ऐसा सॉफ्टवेयर है जो, आप क्या कर रहे हैं, किन लोगों से मिल रहे हैं, क्या बातचीत कर रहे हंै, आप किस समय क्या काम कर रहे हैं, आपकी हर एक गतिविधि की निगरानी रखता है। यहाँ तक की आप के सिस्टम में कुछ भी गैरकानूनी चीजें प्लान्ट कर सकता है।

इस जासूसी खुलासे के बाद पूरी दुनिया में हलचल मची हुई है। अमरीका ने एनएसओ को ब्लैक लिस्ट कर दिया। साउदी अरब, हंगरी, अल्जीरिया व फ्रांस ने भी इसकी जाँच के आदेश दे दिये है। एप्पल कम्पनी ने तो सेंधमारी के बाद एनएसओ कम्पनी पर मुकदमा ही दायर कर दिया। खुद इजरायल ने जाँच के लिए मंत्री स्तरीय दल का गठन किया है। पोलैंड की सरकार ने तो माना भी है कि हमने पेगासस खरीदा है, लेकिन यह बात मानने से मुकर गये कि उन्होंने इसका इस्तेमाल जासूसी करने के लिए किया था। जबकि पोलैंड के नेता करजिस्तोफ ब्रेजा के फोन को 33 बार हैक किया गया।

जहाँ एक ओर पूरी दुनिया की सरकारें इस मामले को लेकर गम्भीर है, कुछ मीडिया संस्थान, बुद्धिजीवी तथा विपक्ष लगातार सरकारों से इसे खरीदनें व इसके उपयोग को लेकर सवाल पूछ रहे है, वहीं भारत सरकार मुहँ में दही जमाकर बैठी है। सरकार की चुप्पी खुद उसे संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर देती है।

गौरतलब है कि एनएसओ कम्पनी यह जासूसी सॉफ्टवेयर सिर्फ सरकारों को बेचती है। सवाल यह है कि सरकारें ऐसा क्यों कर रही हैं ? दरअसल इसका जवाब इस व्यवस्था के चरमराते ढाँचे में ही निहित है। पूरी दुनिया में रोजाना भुखमरी, बेरोजगारी, स्वास्थ्य संकट, शिक्षा संकट के नये–नये आँकडे़ं सामने आ रहे हैं। बेरोजगारों की एक फौज इकट्ठी होती जा रही है। भुखमरी दिन–ब–दिन बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य संकट लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसकी सच्चाई हमने कोरोनाकाल में भी देखी है। बेरोजगारी का आलम तो यह है कि पिछले पाँच सालों में सिर्फ उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी दर 6 प्रतिशत बढ़ी है। गोवा में 16 प्रतिशत बढ़ी है। सरकारें जहाँ अपने लोगों को रोजगार नहीं दे पा रही है, वहीं इतने महँगे–महँगे सॉफ्टवेयर के जरिये अपने देश के लोगों की निगरानी कर रही है। ऐसे में जनता का सरकारों के प्रति अविश्वास बढ़ता जा रहा है। आये दिन सरकारों के खिलाफ जनता का प्रदर्शन जोर पकड़ता जा रहा है। सरकार आन्दोलनों को खत्म करने और उनकी आवाज दबाने के लिए जनता पर निगरानी रख रही है और उन्हें फर्जी तरीके से फँसा रही है।

अब सवाल उठता है कि आखिर जासूसी किन लोगों की करायी जाती है ? दरअसल जासूसी हमेशा दुशमनों की करायी जाती है। अभी तक जितने भी नम्बरों की जाँच हुई है, वे सभी संस्थाएँ या लोग इस व्यवस्था को चलाने वाले हैं। इससे साफ जाहिर है कि सरकारे अपने अलावा, यहाँ तक की अपनी बनायी हुई संस्थाओं को, अपने लोगों को दुश्मन समझती है। सरकारें नहीं चाहती कि कोई भी आवाज उनके खिलाफ उठे। यह मसला अब निजता अथवा लोकतंत्र से कहीं ज्यादा बड़ा है, लोकतंत्र अब जासूसी तंत्र में तब्दील हो गया है क्योंकि लोकतंत्र अब तानाशाही की ओर बढ़ रहा है। ऐसी कोई भी संस्था नहीं बची हैं जो इन पर लगाम लगा सके। पूरा राज्य लम्पट हो चुका है। सवाल उठाने वालों को अपना दुश्मन समझता है, उन पर निगरानी रखता है, उन्हें गैर कानूनी तरीकों से फँसाता है। अब मसला सिर्फ लोकतंत्र को बचाने का नहीं है, बल्कि इस लम्पट हो चुकी व्यवस्था को बदलने का है।

–– जोनिश कुमार