2 जुलाई 2018 को दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र में एक ही परिवार के ग्यारह लोगों की सामूहिक आत्महत्या की घटना ने सबको स्तब्ध कर दिया। मोक्ष या स्वर्ग प्राप्ति के लिए ये कोई पहली या आखिरी घटना नहीं है। इससे पहले राजस्थान के कोटा में एक ही परिवार के तीन सदस्यों ने ट्रेन के सामने कूदकर जान दे दी। मार्च 2013 को सवाई माधोपुर गंगानगर में सायनायड के लड्डू खाकर एक परिवार ने सामूहिक आत्महत्या की। 22 जून 2017 को नयी दिल्ली में अंधविश्वास के चलते पिता ने अपनी मासूम बेटी के कान काट लिए। तांत्रिकों द्वारा नर–बलि की घटनाएँ अक्सर खबरों की सुर्खी बनती हैं। घटनाओं का यह अन्तहीन सिलसिला झकझोर देने वाला है।

स्वर्ग प्राप्ति, मोक्ष या भौतिक जीवन के दुखों से मुक्ति के लिए होने वाली ये आत्महत्याएँ एक ही दिन में घटित नहीं होती, बल्कि सालों–साल ब्रेन वाश किये जाने का परिणाम होती हैं।

ऐसी घटना की किसी दोस्त, रिश्तेदार या पड़ोसी को जानकारी न होना भी हमारे समाज के सामूहिक ढाँचे के बिखरने का सूचक है। सूचना तकनीक ने एक ऐसा आभासी समाज बना दिया, जहाँ इनसान भीड़ में भी अकेला रहता है।

विडम्बना यह है कि विज्ञान द्वारा चलाई जा रही ट्रेनों, बसों और हवाई अड्डों में साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर तांत्रिक बाबाओं के असंख्य इश्तहार चिपके नजर आते हैं जिनमें वे तंत्र–मन्त्र और काले जादू से कर्ज–मर्ज, शिक्षा–रोजगार, शादी–विवाह और भूत–प्रेत जैसी समस्त समस्याओं का समाधान करने का दावा करते हैं, जो सम्भव ही नहीं है। समाज में रूढ़िवादी अंधविश्वास का प्रचलन अभी तक जारी है। भूत–प्रेत का साया या अशुभ ग्रहों को दूर करने के लिए बच्चियों की शादी कुत्तों से करना, चर्म रोगों को ठीक करने के नाम पर भोजन की झूठन पर लेटना जैसी अनगिनत कुप्रथाओं का चलन है।

इतना ही नहीं अस्पताल, जहाँ पूरी वैज्ञानिक पद्धति से मरीजों का इलाज होता है, उसमें भी मन्नत मानने के लिए एक मन्दिर, पुलिस थाने जहाँ अपराधियों के साथ–साथ निर्दोष लोगों को भी टार्चर किया जाता है वहाँ भी भगवान का मन्दिर, पर्यावरण शुद्धि के लिए यज्ञ–हवन करना, क्या विज्ञान सम्मत है। मुख्यधारा की मीडिया चैनलों पर दिन–रात हनुमान–शिव लौकेटों और अल्लाह लौकेटों को पहनने से मानव जीवन के तमाम दुखों के स्वत: दूर हो जाने का दावा किया जाता है। खास बात यह है कि इनके अंधविश्वासी दावों को प्रमाणित करने वाले समझदार पढ़े–लिखे लोग, हीरो–हिरोइने और क्रिकेटर होते हैं जिन्हें युवा पीढ़ी अपना आदर्श मानती है। कितने ही बाबा आस्था–अंधविश्वास के सहारे बड़े–बड़े उद्योगपति बन गये हैं। अनेकों हाइटैक बाबाओं को इन्हीं चैनलों के जरिये अंधविश्वास और तर्कहीनता को स्थापित करने की खुली छूट है। इच्छाधारी नाग–नागिन और देवी–देवताओं के चमत्कारों से ओत–प्रोत तथ्यहीन टीवी सीरियलों के द्वारा जन मानस में अंधविश्वास के प्रति आस्था पैदा की जा रही है। यानी घर से लेकर गाँव, शहर, समाज, सरकार और शमशान तक अंधविश्वास और पाखंड का साम्राज्य कायम है।

सबसे बड़ा सवाल है कि आज जब विज्ञान ने ऊँचाइयों के शिखर पर पहुँचकर अंधविश्वास की जमीन को खत्म कर दिया है, फिर भी नित–नये भगवान कैसे पैदा होते जा रहे हैं? ये भगवान लोगों को तर्कहीनता, अंधविश्वास और आस्था के जाल में कैसे फँसा ले रहे हैं?

सीधा सा जवाब है, पूँजीवादी शोषण को बढ़ाने और कायम रखने के लिए पूँजीवादी व्यवस्था के संचालक जनता को कूपमंडूकता, अंधविश्वास और आस्था की दलदल से नहीं निकलने देना चाहते। यदि वे चाहते तो सभी तरह की पाखंडपूर्ण गतिविधियों पर सख्ती से रोक लगाते। इन्हें बढ़ावा देने वाले सभी तांत्रिकों, बाबाओं, सैलिब्रिटी पर कार्रवाई करते जबकि ऐसे सभी लोगों को सरकार सम्मानित करती है। मध्यप्रदेश की सरकार ने वोटों की फसल काटने के लिए पाँच साधुओं को राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया है। काल्पनिक स्वर्ग व मोक्ष को पाने के लिए घर–परिवार और सांसारिक सुख को त्यागकर साधना करने वाले योगी महात्मा अब मंत्री, मुख्यमंत्री बनकर राजनीति के सांसारिक स्वर्ग में डूबकर स्वर्ग का सुख भोग रहे हैं।

तर्कशीलता और वैज्ञानिकता लोकतंत्र का आधार है। हमारे संविधान में इन्हीं मूल्यों को स्थापित करने की और अंधविश्वास को देश के विकास में बाधक मानते हुए इसे समाप्त करने की संकल्पना है। जिस देश में लोकतंत्र के प्रहरी वर्षा कराने के लिए मेढक–मेढकी की शादी कराते हों, पर्यावरण की शुद्धि के लिए यज्ञ कराते हों रामायण की सीता को टेस्ट ट्यूब बेबी बताते हों लाखों वर्ष पहले भारत में इंटरनेट और सेटेलाइट की उपलब्धता का दावा करते हों, तो क्या इसे संविधान सम्मत माना जा सकता है। इतना ही नहीं, देश के बड़े वैज्ञानिकों की सभा में देश के प्रधानमंत्री ने बताया कि हमारे देश में इतने महान प्लास्टिक सर्जन थे, जिन्होंने आदमी के धड़ पर हाथी का सिर रखकर उसे जोड़ दिया। इतने बड़े मिथक को विज्ञान सम्मत सुनकर सारे वैज्ञानिकों की सभा सिर झुकाये फर्श कुरेदती रही। एक भी वैज्ञानिक में इतना साहस नहीं था, जो खड़ा होकर प्रधानमंत्री की इस अवैज्ञानिकता का विरोध कर सके। ऐसे में वैज्ञानिक चिन्तन और लोकतंत्र का क्या होगा, यह चिन्ता का विषय है।

भारत से भी पिछड़े, मध्ययुगीन यूरोप में चर्च के अंधविश्वासों के खिलाफ महान वैज्ञानिक ब्रुनों ने आवाज बुलन्द की थी। उन्हें जिन्दा जला दिया गया था। गैलेलियो को धर्म विरुद्ध, विज्ञान सम्मत बात कहने के लिए आजीवन प्रताड़ित किया गया। लेकिन वहाँ आस्था और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई जारी रही। इसीलिए यूरोप का कायाकल्प हुआ, विज्ञान का प्रकाश फैला और वहाँ वैचारिक क्रान्ति शुरू हुई।

सच्चाई यह है कि हमारे देश में विज्ञान तो आया, लेकिन 70 वर्षों बाद भी वैज्ञानिक नजरिया विकसित नहीं हो सका। यहाँ विज्ञान सिर्फ रटा जाता है। हमारी सोच को तर्कशील, वैज्ञानिक नहीं बनाया जाता। इसी का परिणाम है कि हमारे सैटेलाइट दागने वाले वैज्ञानिक भी उसे छोड़ने से पहले नारियल फोड़ते हैं। एक विज्ञान का प्रोफेसर जो कक्षा में चन्द्रग्रहण और सूर्य ग्रहण को एक विज्ञान सम्मत खगोलीय घटना पर बताता है, वही वास्तविक ग्रहण होने पर हवन, पूजा, दान, दक्षिणा देकर ग्रह दोष से मुक्त होता है।

आज राष्ट्रवाद के नाम पर आस्था और अंधविश्वास के मुद्दे उछाले जा रहे हैं। जो समाज को पीछे की ओर ले जा रहे हैं। इस बुराई को मिटाने के लिए हर चीज पर प्रश्न उठाने, आलोचना करने और तथ्य के आधार पर गलत बातों को चुनौती देने के लिए तैयार रहना होगा। क्योंकि आस्था और अंधविश्वास के सहारे अपने देश और समाज की तरक्की करना असम्भव है। दुर्भाग्य से हमारे देश की शासन व्यवस्था तर्कहीन और अवैज्ञानिकता की बैसाखी पर चल रही है।

अंधश्रद्धा, भाग्यवाद और विवेकहीन समर्पण की भावना लोगों की कर्मठता और सपनों को समाप्त कर देती है। जिस समाज के सपने नहीं होते, उसका वर्तमान भी उससे रूठने लगता है। 70 सालों बाद भी आज हमारा समाज इसी दयनीय हालात में खड़ा है।

इस तरह की अंधविश्वासी और अविवेकपूर्ण घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी है कि तार्किक–लोगों में वैज्ञानिक चिन्तन का प्रचार–प्रसार किया जाए। जनता के सामने बड़े सपनों को रखा जाए, युवा उन सपनों को साकार करने के लिए साझी कोशिशें करंे। लोगों के विवेक सम्मत स्वतंत्र चिन्तन को विकसित करके, सड़ी–गली मूल्य–मान्यताओं और अंधविश्वास पर निर्णायक प्रहार करके ही इन बुरी हवाओं को रोका जा सकता है।