मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्लाह यामेन अपने राष्ट्र से भारत को भगाने के लिए आजकल एक अभियान का नेतृत्व कर रहे हंै। पिछले कई महीनों से “भारत भगाओं” आन्दोलन मालदीव में जोर पकड़ता जा रहा है। भारत में मुस्लिमों के खिलाफ होने वाली घटनाएँ और बयानबाजी इस अभियान में र्इंधन का काम कर रही हैं।

मालदीप की आबादी मुख्यत: सुन्नी मुसलमानों की है। प्राचीन काल से भारत और मालदीव एक दूसरे के बेहद महत्त्वपूर्ण मित्र रहे हैं। नेपाल की तरह मालदीव भी अपनी अधिकांश घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत पर निर्भर है। भारत और मालदीव के सम्बन्धों की स्थिति भी भारत–नेपाल सम्बन्धों जैसी है। नेपाल की तरह ही यहाँ भी चीन भारत को पीछे धकेलकर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। भारतीय शासकों की मूर्खता ने उनके काम को और आसान कर दिया है।

यामेन और उनकी राजनीतिक पार्टी पीपीएम के नेतृत्व में चल रहे “इण्डिया ऑउट” अभियान का दिखावटी लोकप्रिय उद्देश्य भारतीय सैन्य कर्मियों और उनके उपकरणों को मालदीव से बाहर निकालना है। 2018 में राष्ट्रपति अबदुल्लाह यामेन ने तौहफे के रूप में भारत से मिले दो हेलीकॉप्टर और एक डोर्नियर विमान वापस लेने के लिए कहा था और प्रचारित किया था कि यह मालदीव की स्वायत्ता के खिलाफ है।

इस साजो–सामान को बचाव और जीवन रक्षक मिशन के लिए मालदीव में लगाया गया था। पीपीएम का दृष्टिकोण यह है कि अगर वह भारत से उपहार में दिये गये थे तो मालदीव के पायलटों को विमान का संचालन करना चाहिए ना कि भारतीयों को। राजधानी माले की सड़कों पर भारत विरोधी प्रर्दशन अब आम बात हो गयी है। हालत यहाँ तक बिगड़ चुकी है कि मालदीव के कई महत्त्वपूर्ण व्यक्ति खुलकर भारत के खिलाफ बयान दे चुके हैं।

 इस साल 5 दिसम्बर को आईलैंड एविएशन सर्विस लिमिटेड के पूर्व निदेशक ने ट्वीट किया कि “एक डोर्नियर लेना कोई मुद्दा नहीं है लेकिन डोर्नियर के साथ भारतीय सैनिकों की तैनाती के हम खिलाफ हैं।–––”

मालदीव की पूर्व मंत्री लुवाना जाहीर ने 6 दिसम्बर को ट्वीट किया कि “मैं भारतीय व्यजनों, भारतीय दवाईयों को बेहद पसन्द करती हूँ लेकिन हमारी धरती पर भारतीय सेना नहीं होनी चाहिए।” एक अन्य पूर्व मंत्री अहमद तौफीक ने 21 नवम्बर को ट्वीट किया कि “पूरे मालदीव के लोग अपने देश में भारतीय सैनिकों की उपस्थिति से गुस्सा और निराशा जाहिर कर रहे हैं।”

20 नवम्बर को पीपीएम के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्विट से कहा गया कि भारतीय सैनिक फुवहमुलाह शहर से चले जायें। फुवहमुलाह शहर में “इंडिया मिलिट्री ऑउट” के नारे के साथ लोगों ने सड़कों पर बड़ी सख्या में विरोध प्रदर्शन किया।

भारत में सत्तारूढ़ भाजपा ने इंटरनेट और दूसरे संचार साधनों का इस्तेमाल करके मुस्लिमों के खिलाफ एक आम घृणा को जन्म दिया है। इसका इस्तेमाल यामेन और उनके समर्थक मालदीव के आम नागरिकों के मन में भारत के खिलाफ जहर भरने के लिए कर रहे हैं। इसका फायदा उठाकर चीन समर्थक यामेन द्वारा मालदीव को निर्णायक रूप से चीन की और झुका देने की सम्भावनाएँ बहुत ज्यादा बढ़ गयी हंै। इसका प्रमाण इस तथ्य से भी मिलता है कि 2018 में एक समझौता उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति चुने जाने के तुरन्त वाद इब्राहिम सालेह की नीति “इंडिया फर्स्ट” की थी। लेकिन भारत का दबाब था कि वह “इंडिया ओनली” की नीति अपनाये। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सालेह के शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल हुए थे और कई समझौतों पर हस्ताक्षर भी किये थे। सालेह ने अपनी चालाकी से “इंडिया फर्स्ट” पॉलिसी का प्रस्ताव रखा जिसके तहत सालेह की नयी नीतियों से चीन की पूरी तरह से रूकावट नहीं हो सकी। उसने रक्षा सहयोग समझौते के माध्यम से भारत को अधिक स्थान का समझौता तो किया लेकिन इसे अभी तक संसद से मंजूर नहीं कराया। सालेह की सरकार भारत और चीन के कारण काफी दबाब में है लेकिन वह अपनी जमीन पर किसी दूसरे देश की मौजूदगी नहीं चाहेगी। इसके साथ ही सालेह की कोई ऐसी नीति नहीं है जिसके जरिये चीन को रोकने की मंशा झलकती हो मालदीव ने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया है। इससे साफ जाहिर होता है कि मालदीव भारत से कितना दूर हुआ है और चीन के कितना करीब जा चुका है।

जिस मालदीव में आज भारत के डोर्नियर और उसकी संचालक टीम को भगाने के लिए आन्दोलन हो रहा है उसी मालदीव ने 2016 में चीनी कम्पनी को एक द्वीप 50 सालों के लिए कुल 40 लाख डॉलर में लीज पर दे रखा है। स्वयत्तता के मामले में कहीं ज्यादा गम्भीर इस घटना को लेकर मालदीव में कहीं भी चीन विरोधी अभियान नहीं चल रहा है।

भारत को सालेह सरकार ने रक्षा समझौते में प्राथमिकता दी है लेकिन विकास की परियोजनाओं में चीन काफी आगे है। भारत ने मालदीव को बड़े पैमाने पर आर्थिक मदद दी है लेकिन इसका कोई विशेष लाभ भारत को मिलता नजर नहीं आ रहा है। मालदीव के विदेशी सम्बन्धों की सूई धीरे–धीरे चीन की ओर झुकती जा रही है। अगर मालदीव निर्णायक रूप से चीन की ओर चला गया तो यह भारत के लिए बहुत बड़ा झटका होगा।