राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आँकड़े बताते हैं कि 2016 से 2020 तक प्रधानमंत्री जी के गृह राज्य गुजरात में 41,621 महिलाएँ लापता हुर्इं। इसी रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि देश के अन्य राज्यों में भी हालात कुछ बेहतर नहीं हैं। महाराष्ट्र में इसी साल के मात्र शुरुआती तीन महीनों में ही 3,594 लड़कियों के लापता होने के मामले सामने आये। बीते सालों की बात करें तो साल 2021 में देशभर से तीन लाख बयालीस हजार लोग लापता हुए जिसमें लगभग दो लाख अट्ठानबे हजार वयस्क और पैंतालीस हजार बच्चे थे। इनमें अधिकांश लोग पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और दिल्ली से लापता हुए हैं।

इनके लापता होने के ठोस कारणों पर बात करते हुए हुक्करानों और नौकरशाहों के मुँह मे दही जम जाता है। शर्म और लाज–हया बेच खाये ये लोग यह बताने से मुँह चुराते हैं कि इनमें से ज्यादातर लापता लोगों से या तो बन्धुआ मजदूरी करवायी जाती है या उन्हें दूसरे राज्यों या दूसरे देशों में ले जाकर बेच दिया जाता है, जहाँ उन्हें आजीवन गुलामी की जिन्दगी बिताने पर मजबूर किया जाता है। बच्चों से बाल मजदूरी करवायी जाती है, इसके अलावा शहरों में इन बच्चों कि आँख निकाल कर या हाथ–पैर तोड़ कर इन्हें अपाहिज बनाकर, इनसे भीख तक मँगवायी जाती है।

बीते 22 मई को द टाइम्स ऑफ इंडिया में खबर आयी कि अहमदाबाद में 13 साल की एक मासूम बच्ची का अपहरण कर उसको बार–बार अलग–अलग लोगों को बेचा गया और आठ सालों तक ये घिनौना सिलसिला चलता रहा, उसके शरीर की नोच–खसोट करने वालों ने उसे किस हालत में इतने साल रखा होगा, इसका अन्दाजा लगाना मुश्किल नहीं है। दिल दहला देने वाली यह घटना सिर्फ एक लड़की के साथ नहीं हुई, बल्कि इसके अलावा आठ और लड़कियों को भी अगवा कर उनको इसी तरह सालों तक बेचा–खरीदा जाता रहा। उनके साथ लगातार बलात्कार हुआ और किसी भी तरह का विरोध करने पर या बात न मानने पर उन्हें न जाने कितनी ही मानसिक और शारीरिक यातनाएँ दी गयीं। उन्हें कई बार दो से ढाई लाख रुपयों में अलग–अलग आदमियों को बेचा गया। मानव तस्करी के इस मामले के जिम्मेदार लोगो में दो महिलाएँ भी शामिल थीं। इस गिरोह के ये काले कारनामे लगातार आठ सालों से चल रहे थे।

इस तरह की आपराधिक घटनाओं का सभ्य समाज में होना यह दिखाता है कि कैसे महिला सुरक्षा, नारी सशक्तिकरण और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी बातें सिर्फ और सिर्फ जुमला हैं। नहीं तो यह कैसे हो सकता है कि जिस देश मे मंत्रियों की भैंस खो जाने पर उनको ढूँढने के लिए पुलिस लगा दी जाती है, वहीं किसी की बेटी सालों तक लापता रही, उसके साथ इतने सालों तक ऐसा जघन्य अपराध होता रहा और केन्द्र और राज्य सरकार की पूरी मशीनरी के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी।

एण्टी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू) ने बताया कि कोरोना महामारी के दौरान साल 2020 से 2021 तक मानव तस्करी के मामलों में 27–7 प्रतिशत की बढोतरी हुई। ऐसा तब हुआ, जब देश भर में पुलिस–प्रशासन इतना मुस्तैद था कि जैसे–तैसे गाड़ियों मे छिप–छिपा कर घर पहँुचने की कोशिश मे लगे मजदूरों और आम जनता को गिरफ्तार करने से ये नहीं चूके, जब हर चैराहे, हर नुक्कड़ पर लोगों को घर से काम के लिए निकलने पर भी उठा–बैठक करवायी जा रही थी, लाठियाँ चलायी जा रही थीं। ऐसी मुस्तैदी के दौर मे हुए अपहरणों के ये आँकड़े हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या ये घटनाएँ जहाँ हुर्इं, वहाँ की पुलिस सो रही थी, उन्हें ये लोग क्यों नजर नहीं आये? या मान लेना चाहिए कि पुलिस आम जनता की सुरक्षा नहीं, बल्कि उन पर लट्ठ चलाने के लिए ही है!

एएचटीयू के अनुसार हर 100 लापता मामलों में 44 बच्चे हैं। इसके अलावा हर 200 में सिर्फ तीन मामले ऐसे हैं जिनमें आरोपी गिरफ्तार होते हैं और उन पर आरोप दर्ज होता है, अन्य 197 लोगों पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की जाती। वह अपराध मुक्त होकर गर्व से समाज में घूमते रहते हैं और नये शिकार की तलाश जारी रहती है। ये सारे तथ्य साफ दर्शाते हैं कि दुनिया भर मे सर्वाधिक जनसंख्या वाले भारत की एक बहुत बड़ी आबादी आज मानव तस्करी का शिकार हो रही है, लेकिन देश का प्रशासन और सरकारें गाँधी के बन्दरों की तरह अन्धी, गूँगी और बहरी हो कर तमाशबीन बनी बैठी हैं।

शासक वर्ग ने आज पूरे समाज को एक ऐसे रसातल में पहँुचा दिया है, जहाँ इनसान बेचे–खरीदे जा रहे हैं। ऐसे हालात बर्दाश्त से बाहर हैं। देश के किसी भी संवेदनशील इनसान के लिए ये हालात असहनीय और शर्मनाक हैं। ये किसी भयानक सपने से कम नहीं हैं। लेकिन अब सरकारों को इनसे शर्म नहीं आती। वे बेशर्मी से महिला सशक्तिकरण और बेटी बचाओ–बेटी पढ़ाओ का नारा उछालती रहती हैं। इन्हीं हालात पर फैज की एक नज्म है––

“जिस देश में माओं बहनों को अग्यार उठा कर ले जाये

जिस देश मे कातिल गुंडो को अशराफ छुड़ा कर ले जाये

उस देश के हर एक लीडर पर सवाल उठाना वाजिब है

उस देश के हर एक हाकिम को सूली पे चढ़ाना वाजिब है।”