मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में खुले में शौच के चलते दो बच्चों की पीट–पीटकर हत्या कर दी गयी। इससे स्वच्छ भारत अभियान की कलई खुल गयी। अपराधी व्यक्ति को निश्चित रूप से सजा मिलनी चाहिए, लेकिन इस घटना ने व्यवस्था के ऊपर ढेरों सवालों को जन्म दे दिया है। इंडिया टुडे को दिये अपने बयान में सफाई कर्मचारी आन्दोलन के मैगसेसे पुरस्कार विजेता बिजयार्ड विल्सन ने इस अभियान के चरित्र को गरीब–विरोधी बताया है। अपने बयान में उन्होंने कहा कि “भारत में लगभग 90 लाख बेघर लोग हैं। उनके पास घर कैसे होगा? और इसके बिना भारत खुले में शौच मुक्त कैसे हो सकता है?” ऐसा लगता है कि सरकार की घोषणाएँ महज खोखले दावें हैं जो सच्चाई से कोसों दूर हैं। अगर ऐसा है तो क्या दुनिया के सामने देश की झूठी तस्वीर पेश करने से देश का सम्मान नीचे नहीं गिर रहा है?
महात्मा गाँधी के 150वें जन्म दिवस पर 2 अक्टूबर को अहमदाबाद के साबरमती रीवरफोर्ट में आयोजित स्वच्छ भारत दिवस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के खुले में शौच मुक्त हो जाने की घोषणा की। 2014 में प्रधानमंत्री बनने पर मोदी ने घोषणा की थी कि 2019 तक भारत खुले में शौच मुक्त हो जायेगा। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि “दुनिया खुले में शौच मुक्त मोर्चे पर हासिल की गयी हमारी सफलता से प्रभावित है और हमें पुरस्कृत कर रही है।” उन्होंने बताया कि “60 महीनों में 60 करोड़ लोगों को शौचालय की सुविधा उपलब्ध करायी गयी। और 11 करोड़ शौचालय बनाये गये।” इस दौरान प्रधानमंत्री ने रिमोट से खुले में शौच मुक्त देश के नक्शे का लोकार्पण भी किया। इस कार्यक्रम में देशभर से आये 10,000 ग्राम प्रधानों और गुजरात के 10,000 ग्राम प्रधानों तथा दुनिया के कई देशों के सम्मानित प्रतिनिधियों के सामने प्रधानमंत्री ने यह घोषणा की। 
इससे पहले गुजरात के उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने 25 सितम्बर को गाँधी जयन्ती पर आयोजित हुए स्वच्छ भारत दिवस कार्यक्रम की जानकारी दी थी। जिस दिन नितिन पटेल यह बयान दे रहे थे ठीक उसी दिन मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले से एक दिल दहला देने वाली खबर भी आयी। जिला मुख्यालय से महज 25 किलोमीटर दूर भावखेड़ी गाँव में खुले में शौच कर रहे दो बच्चों को गाँव के ही दो उच्च जाति के लोगों ने लाठियों और पत्थरों से पीट–पीटकर मार डाला। रोशनी बाल्मिकी की उम्र 12 साल थी और अविनाश बाल्मिकी की उम्र 10 साल थी। रोशनी रिश्ते में अविनाश की बुआ थी। इतनी छोटी उम्र के अबोध बच्चों को शायद इसकी जानकारी नहीं थी कि प्रधानमंत्री देश की स्वच्छता के लिए कमर कस चुके हैं और जगह–जगह तैनात उनके स्वयंसेवक प्रधानमंत्री के मिशन को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। 
सरकारी दस्तावेजों की मानें तो इस गाँव को 4 अप्रैल 2018 को ही खुले में शौच मुक्त घोषित किया जा चुका है। लेकिन 27 सितम्बर 2019 को इंइिया टुडे में प्रकाशित एक जमीनी रिपोर्ट के मुताबिक गाँव की सच्चाई सरकारी दावों से एकदम जुदा है। मारे गये बच्चे मनोज के पिता ने बताया कि हमारे पास शौचालय नहीं है, एक शौचालय उनके पिता के नाम पर आवंटित किया गया था लेकिन बाकी सभी गाँव की उच्च जाति के यादवों को ही दिया गया। उन्होंने बताया कि “एक बार पंचायत ने हमारे लिए शौचालय स्वीकृत किया था, लेकिन आरोपी के परिवार के एक सदस्य पंचायत सरपंच सदस्य थे, उन्होंने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।”
गाँव में कई लोगों के पास शौचालय तो हैं लेकिन वे उसका इस्तेमाल नहीं करते। गाँव की ही एक महिला ने इंडिया टुडे को बताया कि “केवल महिलाएँ ही शौचालय का इस्तेमाल करती हैं और पुरुषों को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है, क्योंकि शौचालय को साफ रखने में बहुत ज्यादा पानी खर्च होता है और हमें बहुत दूर से पानी लाना पड़ता है।” एक व्यक्ति ने बताया कि उनके घर में शौचालय तो है लेकिन वह आधा ही बन पाया क्योंकि शौचालय निर्माण के लिए उन्हें मुआवजा नहीं दिया गया। कई लोगों ने इंडिया टुडे टीवी पर स्वीकार किया कि वे खुले में शौच जाते हैं क्योंकि उनके पास शौचालय नहीं है।
आँकड़ों की बाजीगरी
स्वच्छ भारत अभियान की 100 प्रतिशत सफलता की घोषणा करने में सरकार इतनी तत्पर दिखी कि आँकड़ों और तथ्यों को देख भर लेना भी जरूरी नहीं समझा गया। इस अभियान के दिशानिर्देशों के अनुसार खुले में शौच मुक्त होने की प्रक्रिया में पहली शर्त है कि गाँव में प्रत्येक घर में एक शौचालय होना चाहिए। तथा दूसरी, कि गाँव में खुले में कहीं भी मानव मल दिखाई नहीं देना चाहिए। खुले में शौच मुक्त की इस सर्वमान्य परिभाषा के आधार पर सरकार यह तो दावा कर सकती है कि सभी घरों में शौचालय हैं। लेकिन यह दावा करना कि गाँव में मानव मल का एक भी प्रमाण नहीं पाया, असम्भव है।
इस अभियान के दिशानिर्देशों के अनुसार कोई भी गाँव ग्राम सभा के जरिये खुले में शौच मुक्त होने का प्रस्ताव करता है। इस प्रस्ताव को फिर स्वच्छ भारत अभियान के डेटाबेस में दर्ज कर लिया जाता है। इसके बाद गाँव को “खुले में शौच मुक्त” के रूप में चिन्हित कर दिया जाता है। इस घोषणा की सत्यता की जाँच के लिए दिशानिर्देश बताते हैं कि कम से कम दो स्तरों पर सत्यापन किया जाना चाहिए। पहले स्तर पर सत्यापन घोषणा किये जाने के तीन महीने के भीतर होना चाहिए और दूसरे स्तर का सत्यापन पहले स्तर के 6 महीने के भीतर होना चाहिए।
सजे हुए मंच से देशी विदेशी प्रतिनिधियों के सामने सरकार की तत्पर्ता को, इस अभियान की गम्भीरता को इसी से समझा जा सकता है, अभियान के डेटाबेस में 26 सितम्बर 2019 तक ओडिसा में पहले स्तर पर खुले में शौच मुक्त सत्यापित गाँवों की संख्या 23902 थी। लेकिन 4 दिन बाद ही 30 सितम्बर को इसमें अचानक 55 प्रतिशत की जबरदस्त वृद्धि दर्ज हुई और यह संख्या 37008 पहुँच गयी। इसका अर्थ हुआ कि मात्र 4 दिनों में 13000 गाँवों में पहले स्तर का सत्यापन हुआ यानी प्रतिदिन 3200 गाँव। जो काम साल भर तक घोंघे की रफ्तार से किया जा रहा था वह प्रधानमंत्री द्वारा घोषणा किये जाने के हफ्ते भर पहले खरगोश की सी गति से कुंलाचे भर–भर कर होने लगा। 
इन्हीं चार दिनों में बाढ़ से बुरी तरह पीढ़ित बिहार भी 3202 गाँवों को सत्यापित करने का रिकॉर्ड कायम कर सका। इस दिशा में सबसे चतुराई भरा काम उत्तर प्रदेश सरकार ने किया। अभियान के भूतपूर्व और वर्तमान अधिकारियों ने द वायर वेबसाइट को बताया कि उत्तर प्रदेश में पिछले साल भर में 1,58,051 घरों को ही सूची से गायब कर दिया गया। न रहेगा घर और न होगी हर घर शौचलय दर्ज करने की मजबूरी।