हांगकांग में करीब तीन महीनों से आन्दोलन चल रहा है। आन्दोलन की वजह वहाँ की सरकार द्वारा लाया गया एक “प्रत्यर्पण विधेयक” है। इस विधेयक के कानून बनते ही चीन की सरकार को यह अधिकार मिल जायेगा कि वह हांगकांग में किसी को गिरफ्तार करके चीन में लाकर उस पर मुकदमा चला सकती है। वहाँ के लोगों को डर है कि ऐसे कानून का गलत इस्तेमाल करके लोगों को चीन की जेलों में ठूस दिया जायेगा, जिससे उनकी आजादी छिन जायेगी। हांगकांग में यह कोई पहला आन्दोलन नहीं है। साल 2014 में हांगकांग में 79 दिनों तक चले ‘उम्ब्रेला मूवमेंट’ के बाद लोकतंत्र के समर्थर्कों पर चीनी सरकार कार्रवाई करने लगी थी। विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों को जेल में डाल दिया गया था। आजादी का समर्थन करने वाली एक पार्टी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया और उस पार्टी के संस्थापक से इंटरव्यू करने पर एक पत्रकार पर कार्रवाई की गयी। आखिर हांगकांग में हमेशा आन्दोलन की लहर क्यों उठती रहती है? इसके लिए हमें हांगकांग के इतिहास की तरफ मुड़ना पड़ेगा।
चीन के भीतर हांगकांग को एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र माना जाता है, जो दुनिया की 35वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। आज यह अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय पूँजी के लिए एक प्रमुख केन्द्र के रूप में कार्य करता है लेकिन चीन की दक्षिण सीमा पर हांगकांग की भौगोलिक स्थिति ने इसे एशिया में सबसे व्यस्त स्थान बना दिया है, जहाँ बंदरगाहों से अवैध व्यापार भी होते हैं। लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए चीन में अफीम की तस्करी शुरू की। 1842 में प्रथम अफीम युद्ध के अन्त में ब्रिटेन ने हांगकांग पर कब्जा कर लिया और एशिया में दूसरे उपनिवेश बनाने के लिए उसका एक मंच की तरह इस्तेमाल किया। ब्रिटेन ने हांगकांग को 156 वर्षों तक एक उपनिवेश के रूप में रखा। हालाँकि उसका शासन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान से लड़ने में प्रभावित रहा। ब्रिटिश शासन के तहत हांगकांग एकाधिकारी पूँजी के लाभ के लिए एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। 1967 में चीन की सांस्कृतिक क्रान्ति के प्रभाव में आकर हांगकांग का श्रमिक वर्ग औपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ विरोध के लिए उठ खड़ा हुआ।
1997 में ब्रिटेन और चीन के बीच हुए समझौते से चीन को अपना यह पुराना द्वीप वापस मिल गया। समझौते में “एक देश दो व्यवस्था” की अवधारणा के साथ हांगकांग को अगले 50 वर्षों के लिए अपनी स्वतंत्रता के साथ–साथ सामाजिक, कानूनी और राजनीतिक व्यवस्था भी बनाये रखने की गारन्टी दी गयी। विदेश और रक्षा क्षेत्र को छोड़कर अन्य सारे अधिकार उसे मिल गये। इससे हांगकांग चीन का विशेष प्रशासनिक क्षेत्र बन गया। अपने विशेषाधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए हांगकांग के पास अपना एक संविधान है, इनकी अपनी मुद्रा है, हांगकांग जाने के लिए पासपोर्ट की जरूरत पड़ती है। इसी संविधान के तहत अपना मुख्य कार्यकारी अधिकारी चुनना होता है। वर्तमान स्थिति में निर्धारित चयन प्रक्रिया का ठीक से पालन नहीं हो रहा है और चीन अपने मनपसंद लोगों को इस पद पर बिठाने में सफल होता जा रहा है।
अब उस घटना पर नजर डालते है जिसको लेकर चीन अपने मंसूबो को पूरा करना चाहता है। 2018 में हांगकांग के एक छात्र ने ताइवान में छुट्टियाँ मनाते हुए अपनी 20 वर्षीय गर्भवती प्रेमिका की बेरहमी से हत्या कर दी। लड़की की माँ ने मामले को जाँच कर्ताओं तक पहँुचाया, जिन्होंने हत्या के सबूतों को उजागर करने के बाद हल्की धाराओं में छात्र को गिरफ्तार कर लिया। चूँकि हांगकांग का चीन या ताइवान के साथ कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है इसलिए छात्र की सुनवाई ताइवान में नहीं हो सकती थी। लड़की के परिवार वाले हांगकांग के विधायकों पर न्याय के लिए दवाब बनाते रहे। इधर चीन भी अपने मंसूबों को आगे बढ़ाते हुए हांगकांग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कैरी लैम पर प्रत्यर्पण करने का दबाव बनाया, जिसकी वजह से यह विधेयक लाया गया। यदि यह पारित हो जाता तो चीन, ताइवान और हांगकांग के बीच मामला–दर–मामला आपराधिक प्रत्यर्पण के लिए चैनल स्थापित हो जाता। तुरन्त ही इस विधेयक से हांगकांग के लोगों में डर बैठ गया क्योंकि चीन इस विधेयक की मदद से उसके खिलाफ बोलने वालों पर कार्रवाई कर सकता है। इससे वहाँ के लोगों की स्वतंत्रता चली जायेगी। झूठे मुकदमे में फँसाकर चीन भेजा जायेगा। चीन की गलत नीतियों के खिलाफ बोलने की आजादी खत्म हो जायेगी। लोग आने वाले दिनों में बन्दूक के साये में जीने को मजबूर हो जाएँगे। धीरे–धीरे विरोध ने आन्दोलन का रूप ले लिया। 9 जून को विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसमें लगभग 1 लाख लोगों ने भाग लिया। इसको देखते हुए हांगकांग की मुख्य कार्यकारी कैरी लैम सकते में आ गयी और आनन–फानन में इस विधेयक को रद्द कर दिया। इसके बाद भी लोगों ने आन्दोलन जारी रखा, क्योंकि आन्दोलन में पाँच माँगें थीं, जिसमें से सिर्फ एक ही माँग स्वीकार की गयी थी। ये माँगें इस तरह हैं––
1–    पूरी तरह से प्रत्यर्पण विधेयक को खत्म किया जाये।
2–    आन्दोलनकारियों पर लगे “दंगाई “ शब्द को हटाया जाये।
3–    गिरफ्तार लोगों को बिना शर्त रिहा किया जाये।
4–    एक स्वतंत्र कमेटी बनायी जाये जिसमें पुलिस कार्रवाई की निष्पक्ष जाँच हो।
5–    कैरी लैम अपने पद से इस्तीफा दे।
इस पूरे मामले में हांगकांग के लोगों का विरोध प्रदर्शन करने का तरीका बहुत दिलचस्प था। प्रदर्शनकारियों ने विरोध प्रदर्शन करने के लिए विचार–मंथन और सामूहिक फैसला लेने के लिए संदेश भेजने की विशेष तकनीक (एण्ड–टू–एण्ड एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग) का इस्तेमाल किया। पुलिस के आने पर प्रदर्शनकारी अक्सर पीछे हट जाते थे, हालाँकि वे कहीं और फिर प्रदर्शन करने लगते थे। इसके अलावा ये लोग अपनी पहचान छिपाने के लिए हमेशा अपने चेहरे पर काला मास्क पहने होते थे। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बल का मुकाबला करने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया। जैसे–– पुलिस अधिकारियों को विचलित करने के लिए उन्होंने लेजर लाइट का उपयोग किया, कैमरों पर पेन्ट का छिडकाव किया और आन्दोलन के दौरान समूह की पहचान छिपाने के लिए कैमरों पर छतरी लटका दिया।