हाल ही में सरकार फोर्टिफाइड चावल को लेकर फिर से विवादों में घिरने लगी है। विपक्ष ने सरकार पर यह आरोप लगाया कि सरकार फोर्टिफाइड चावल के रूप में देश के 80 करोड़ लोगों को जहर बाँट रही है। दरअसल 15 अगस्त 2021 को आजादी के अमृत महोत्सव पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की थी कि 2024 तक देश में गरीब परिवारों को विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत दिये जाने वाले चावल को शत–प्रतिशत फोर्टिफाइड किया जाएगा। चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि आयरन, फॉलिक एसिड, विटामिन बी 12 और अन्य पोषक तत्व मानव शरीर के लिए जरूरी हैं और कुपोषण और एनीमिया यानी खून की कमी से लड़ने में मददगार हैं। फोर्टिफाइड चावल फैक्ट्री में निर्मित ऐसा चावल है जिसमें ये तत्व कृत्रिम तरीके से मिलाये जाते हैं।

लेकिन ये दावे गलत साबित होते नजर आ रहे हैं। कई जगहों पर इस चावल के दुष्परिणाम सामने आये हैं। झारखण्ड में थैलीसिमिया और सिकलसेल एनीमिया ग्रस्त लोगों पर इसका काफी बुरा असर दिखाई दे रहा है। थैलीसिमिया और सिकलसेल एनीमिया रक्त से जुड़ी आनुवांशिक बीमारियाँ हैं जो आदिवासी इलाके में ज्यादातर पायी जाती है। अकेले झारखण्ड में इसके 60 से 70 हजार मामले दर्ज हैं।

दुनिया में सबसे ज्यादा थैलीसिमिया से पीड़ित बच्चों की संख्या भारत में है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन 2016 के अनुसार देश भर में 1 से 1.5 लाख बच्चे थैलीसिमिया से पीड़ित हैं और लगभग 4.2 करोड़ लोगों में बीटा थैलीसिमिया के लक्षण मौजूद हैं। हर साल 10 से 15 हजार बच्चे थैलीसिमिया के साथ पैदा होते हैं। वहीं सिकलसेल एनीमिया के मामले में भी भारत सबसे ऊपर है। यहाँ सिकलसेल एनीमिया के 2 करोड़ से भी जायदा मामले दर्ज हैं। यह दुनिया भर में सामान्यत: पाया जाने वाला सबसे गम्भीर रक्त विकार है। भारत सहित दुनिया के गरीब देशों में इस रोग से ग्रसित 50–80 फीसदी बच्चे 5 साल की उम्र तक पहुँचने से पहले ही मर जाते हैं। इसके इलाज के लिए खून बदलवाना या चढ़ाना ही एक मात्र उपाय है जो काफी खर्चीला है।

भारत में कुपोषण गम्भीर समस्या बन गयी है। वैश्विक भूख सूचकांक 2022 के अनुसार कुपोषण के मामले में 121 देशों में भारत 107वें पायदान पर है। राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ्य सर्वेक्षण 2019–21 के अनुसार भारत में 15 से 49 उम्र की हर दूसरी महिला को एनीमिया है और हर पाँच में से एक माँ की मृत्यु पोषण की कमी के कारण होती है। पिछले कुछ सालों में बच्चों में एनीमिया के आँकड़े बढ़कर 68.3 फीसदी हो गये हैं।

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में पोषण युक्त चावल यानी फोर्टिफाइड चावल देने की बात कहकर खूब वाहवाही लूटी। मिड डे मिल, आंँनबाड़ी केन्द्र और सरकारी राशन की दुकानों से अब तक यह चावल बच्चों सहित लगभग 80 करोड़ लोगों तक पहुँच चुका है और उनके द्वारा ग्रहण किया जा रहा है। लेकिन सर्वेक्षण में पता चला कि यह चावल थैलीसिमिया और सिकलसेल एनीमिया जैसे रक्त विकार को और ज्यादा बुरा बना रही है। आयरन की अधिकता इन बीमारियों से पीड़ित लोगों पर प्रतिकूल असर डाल सकती है। भोजन का अधिकार अभियान और नीति समर्थन समूह एलायंस फॉर सस्टेनेबल एण्ड होलिस्टिक एग्रीकल्चर के अनुसार, “आयरन फोर्टिफाइड फूड को अन्य बीमारियों मसलन तीव्र संक्रमण, तीव्र कुपोषण, मलेरिया और तपेदिक और यहाँ तक कि डायबिटीज में भी न लेने कि सलाह दी जाती है”। जानकारों के मुताबिक डायबिटीज और हाईपर टेनसन जैसे बीमारियों में शरीर में आयरन की अधिकता नुकसानदेह है।

आम तौर पर शरीर में आयरन की अधिकता होने पर लीवर से जुड़ी बीमारियाँ, हृदय रोग और डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में आयरन फोर्टिफाइड चावल उन लोगों के लिए जहर के समान है जिन्हें एनीमिया यानी खून की कमी नहीं है। सर्वेक्षण के मुताबिक हर चार में से एक पुरुष को एनीमिया है। इस तरह से हर चार में से बाकी तीन पुरुषों साथ ही उन महिलाओं जिन्हें एनीमिया नहीं है, के शरीर में यह चवाल बीमारी पैदा कर सकता है और जिन लोगों को ये बीमारियाँ पहले से हैं उनके लिए यह जहर के समान है।

प्रधानमंत्री मोदी का भाषण कि सरकार 2024 तक सभी सरकारी योजनाओं के तहत दिये जाने वाले चावल को 100 फीसदी फोर्टिफाइड करने वाली है, यह प्रमाणित करता है कि सरकार ने बिना किसी प्रारम्भिक शोध के फोर्टिफाइड चावल का वितरण शुरू कर दिया। वितरित किये जाने वाले ज्यादातर चावल खुले बिकते हैं और प्राय: इसकी बोरियों पर इस चावल के उपयोग के विषय में कोई चेतावनी नहीं लिखी होती है। हालाँकि भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकारण (एफएसएसएआई) ने दिशा–निर्देश जारी की है कि चावल के पैकटों पर चेतावनी सहित पूरी जानकारी देनी जरूरी है, लेकिन सरकार इसकी पूरी अनदेखी कर रही है और लोगों को फोर्टिफाइड चावल खिला रही है। कुछ पैकेटों पर चेतावनी छपी भी होती है, लेकिन इसके सम्बन्ध में चावल विक्रेता और ग्राहक को कोई जानकारी नहीं दी जाती है।

सरकार का दावा है कि फोर्टिफाइड चावल बड़े पैमाने पर पोषण की कमी से निपटने में मददगार साबित होगा, लेकिन यह चावल ज्यादातर लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालने वाला है। फोर्टिफाइड चावल कुपोषण से लड़ने का एकमात्र उपाय नहीं है। सही मायने में इस चावल को केवल जरूरतमन्दों को आवश्यक जाँच करके डाक्टरी सलाह के बाद ही सेवन करने के लिए दिया जाना चाहिए। लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा करना सम्भव नहीं है। एक ही परिवार में अलग–अलग बीमारियों से ग्रस्त लोग हो सकते हैं जिनके लिए अलग–अलग खाना पकाना आम लोगों के लिए आसान नहीं। सामूहिक रूप से खिलाये जाने वाले चावल जैसे मिड डे मिल और आँगनबाड़ी केन्द्र पर भी उपयुक्त जाँच के बाद खाना देने की कोई सुविधा नहीं है।

दूसरी ओर अगर पूरी प्रक्रिया अपनाकर यानी जरूरतमन्दों का पता लगाकर और सही जाँच कर के ये चावल खिलाया भी जाये तो उन्हें एनीमिया से लड़ने में ज्यादा मदद नहीं मिल सकेगी क्योंकि भोजन में मिलने वाले आयरन को अवशोषित करने के लिए कुछ सहायक पोषक तत्व जरूरी हैं जिसमें मुख्य है विटामिन सी। भोजन में विटामिन सी के बिना शरीर आयरन अवशोषित नहीं कर सकता जिसे सुनिश्चित करने की सरकार की ओर से कोई व्यवस्था नहीं की गयी है।

सरकार की इस योजना का जनता को नुकसान ही नुकसान है। फिर इस तरह की योजना बनाने के पीछे का क्या मकसद है? सरकारी आँकड़ों पर गौर करें तो पिछले 2 सालों में फोर्टिफाइड चावल तैयार करने वाली कम्पनियों की संख्या लगभग 4 गुना बढ़कर 9000 के करीब पहुँच गयी है। वहीं कांग्रेस का आरोप है कि कुछ एनजीओ की मदद से नीदरलैंड की कम्पनी रॉयल डीएसएम की सरकार से साँठ–गाँठ है जिससे उस कम्पनी को फोर्टिफाइड चावल तैयार करने के लिए लगभग 1800 करोड़ का व्यापार मुहैया कराया गया है।

सारे शोधों, वैज्ञानिकों की राय और चेतावनियों को दरकिनार करके सरकार द्वारा फोर्टिफाइड चावल वितरण का यह निर्णय सरकार की बहुतायत जनता के स्वास्थ्य और जिन्दगी के प्रति केवल लापरवाही को ही नहीं दिखाता है, बल्कि सरकार द्वारा बेशर्मी से फोर्टिफाइड चावल बनाने वाली निजी कम्पनियों के पक्ष में खड़े होने को भी दिखाता है।