भारत में ऑन लाइन व्यापार करने वाली कम्पनियों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इस क्षेत्र की मुख्य कम्पनियाँ फ्लिपकार्ट, अमेजन, इवे, वालमार्ट, स्नैपडील, जोमैटो, स्वीगी, अलीबाबा, आदि हैं। इन कम्पनियों का मुख्य उद्देश्य भारत के खुदरा बाजार पर कब्जा जमाना है। सरकार द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को 100 प्रतिशत अनुमति दिये जाने के चलते इस क्षेत्र में विदेशी पूँजी के लिए रास्ता सुगम हो गया है। इस कारोबार में भारतीय पूँजीपति उनके सहयोगी की भूमिका में हैं।

भारत में इण्टरनेट उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ने के साथ इन कम्पनियों के कारोबार में बढ़ोतरी हुई है। भारत के खुदरा व्यापार में इन कम्पनियों की हिस्सेदारी 180 अरब रुपये की है, जबकि खुदरा व्यापार का कुल कारोबार 300 अरब रुपये का ही है। रिर्पोटों के मुताबिक बाजार में ऑनलाइन कम्पनियों की हिस्सेदारी में और बढ़ोतरी होगी।

इन कम्पनियों के कारोबार के लिए अभी तक सरकार की तरफ से कोई स्पष्ट कानून या दिशा–निर्देश नहीं है। इस व्यापार से जुड़ी अनेक कम्पनियाँ ऐसे देशो में रजिस्टर्ड है, जिन्हें टैक्स हैवन कहा जाता है। इसके चलते ये कम्पनियाँ एक्साइज, सेल टैक्स सर्विस टैक्स और इनकम टैक्स नहीं चुकातीं। ये भारी मात्रा में सस्ता सामान सीधे उत्पादकोें से खरीदती हैं और सीधे उपभोक्ता को बेच देती हैं। इससे बीच के दुकानदार, आपूर्तिकर्ता और ट्रांसपोर्ट आदि से जुड़े लोगों का रोजगार छिन जाता है और इनकी सारी कमाई इकट्ठी होकर ऑनलाइन कम्पनियों की जेब में चली जाती है। मीडिया की खबरों के मुताबिक 30 अरब डॉलर के वैश्विक कॉफी बाजार में उत्पादकों को पहले 10 अरब डॅालर की कमाई होती थी। अब कॉफी का विश्व बाजार 60 अरब डॉलर हो गया है, जबकि कॉफी उत्पादकों की कमाई में 6 अरब डॉलर की कमी आयी है। जायज सी बात है कि बाजार पर एकाधिकार के चलते ये कम्पनियाँ उत्पादकों (उद्यमियों और किसानों) को अपना अपना माल कम दामों पर बेचने के लिए मजबूर करती हैं। माल का दाम सस्ता रखने के लिए उत्पादक मजदूरों का शोषण बढ़ा देता है। 

ये अपनी बिक्री का 70 प्रतिशत हिस्सा किसी भी देश से खरीदने के लिए आजाद होती हैं, जबकि 30 प्रतिशत हिस्सा उसी देश से खरीदेंगी, जिस देश में माल बेचती हैं।

देश के खुदरा व्यापार में 5 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है और लगभग 4.25 करोड़ लघु तथा मध्यम उद्योगों में 10–6 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। ये लघु और मध्यम उद्योग सरकारी या निजी बैंको से कर्ज लेकर अपना कारोबार करते है। सरकार द्वारा वालमार्ट, अमेजन फ्लिपकार्ट जैसी कम्पनियों को भारतीय बाजार में छूट देने के कारण इन व्यापारियों के कारोबार में गिरावट आयी है, जिससे मजदूरों की छँटनी भी बढ़ गयी है।

अगस्त 2018 में खुदरा व्यापार की अमरीका की दैत्याकार कम्पनी वालमार्ट ने 1119 अरब रुपये में फ्लिपकार्ट के 77 प्रतिशत शेयर खरीद लिये। फ्लिपकार्ट का मालिकाना वालमार्ट के पास है जो दुनिया की सबसे बड़ी खुदरा कम्पनी है। 15 देशों में स्थिति वालमार्ट के 85 सौ स्टोर में महज 20.2 लाख लोगों को रोजगार मिलता है जबकि 2018 में वालमार्ट की कुल कमाई 35 अरब रुपये और कुल मुनाफा लगभग 8–88 अरब रुपये था। वालमार्ट भारत के 9 राज्यों में 50 नये स्टोर खोल रही है। जिसमें सिर्फ 13,100 लोगों को ही रोजगार मिलेगा। फ्लिपकार्ट के अधिग्रहण के बाद वालमार्ट को ऑनलाइन व्यापार में एक बड़ा बाजार हाथ लग गया है।

ऑनलाइन कम्पनियाँ स्थायी कर्मचारियों की भर्ती कम करती हैं। वे ज्यादातर ठेके पर कर्मचारी रखती हैं। कम्पनी ठेके पर रखे कर्मचारियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं लेती। ग्राहक को सामान पहँुचाने वाले कर्मचारी के पास अपना स्मार्टफोन और मोटरसाइकिल पहले से होनी चाहिए। सामान पहुँचाने में लगे पेट्रोल का खर्च खुद कर्मचारी को वहन करना पड़ता है। यदि सामान पहुँचाते समय सामान में कोई खराबी आ जाये तो कर्मचारी का वेतन काट लिया जाता है।    

ऑनलाइन कम्पनियाँ ग्राहक कोे होम डिलवरी की सुविधा देती हैं। जिसमें ग्राहक विक्रेता से नहीं मिलता। ग्राहक का सम्पर्क सीधे डिलीवरी ब्वाय से होता है। ग्राहक की असन्तुष्टि का सामना उसी को करना पड़ता है। यदि ग्राहक शिकायत दर्ज करता है तो कर्मचारी को कम्पनी मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान करती है। ग्राहक जितनी बार सामान वापिस करता है, उसके ट्रांसपोर्ट का खर्च उस डिलीवरी ब्वाय को उठाना पड़ता है। कम्पनी सिर्फ एक बार खर्च वहन करती है। सामान पहुँचाते समय कोई दुर्घटना होने पर कम्पनी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती।

ये कम्पनियाँ अपने ग्राहकों तक पहुँच बढ़ाने के लिए प्रलोभन देती हैं जिससे ग्राहक खुद ही कम्पनी के एजेन्ट का काम करना शुरु कर देते है। ये कम्पनियाँ ग्राहकों द्वारा इण्टरनेट सर्फिंग की निजी सूचनाओं को इक्ट्ठा करती हैं। एक निश्चित समय अवधि के बाद ग्राहक से उनका आधार कार्ड, पेन कार्ड और बचत खाते की जानकारी लेती हैं। इस जानकारी का उपयोग कम्पनियाँ अपने हिसाब से अपने फायदे के लिए करती हैं। अधिक लाभ कमाने के लिए ये जानकारियाँ दूसरी कम्पनियों को बेच देती हैं।

ये कम्पनियाँ अपना खर्च कम करने के लिए कई शहरों में गोदाम बनवा रही हैं जिसमें उपभोक्ताओं की जरूरत के हिसाब से सामान भरे जायेंगे। 20 से 30 किलोमीटर के दायरे के ग्राहकों को 2 से 3 व्यक्तियों के माध्यम से सभी उपभोग की वस्तुए उपलब्ध करायी जायेंगीे। जायज सी बात है कि इससे उस शहर में खुदरा व्यापार में और गिरावट आयेगी तथा छोटे दुकानदारों के उजड़ने की प्रक्रिया और तेज हो जायेगी। इसका साफ अर्थ है कि बेरोजगार लोगों की संख्या तेजी से बढ़ेगी।

भारत में ऑनलाइन व्यापार करने वाली कम्पनियों की सबसे बड़ी समस्या पेमेन्ट को लेकर आती है। ये कम्पनियाँ पैसे के मामले में कर्मचारियों पर विश्वास नहीं करती हैं। कम्पनी उपभोक्ताओं से ऑनलाइन पेमेन्ट करने का दबाव बनाती हैं जिसके लिए उपभोक्ताओं को विभिन्न तरह के प्रलोभन दिये जाते हैं। शुरु में ऑनलाइन पेमेन्ट पर ये कम्पनियाँ उपभोक्ता को 20 से 50 रुपये प्रलोभन राशि देती हैं। लेकिन एक अवधि के बाद पेमेन्ट करने का पैसा वसूल करने लगती हैैं। उपभोक्ता द्वारा ऑनलाइन पेमेन्ट करने पर बैंक भी हर माह अपना चार्ज काटता है। इन कम्पनियों का दायरा बढ़ाने के लिए 4जी जीयो  जैसी सस्ती इण्टरनेट की सुविधा को करोड़ों लोगों तक पहुँचाया गया।

सरकार द्वारा उठाये गये नोटबन्दी और जीएसटी जैसे कदमों ने छोटे व्यापारियों, कर्मचारियों और मजदूरों की कमर तोड़ कर इन कम्पनियों को ही फायदा पहुँचाया है।