26 जून 2018 को गुजरात के कच्छ विश्वविद्यालय में आरएसएस की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के नेताओं ने छात्र चुनाव में धाँधली का आरोप लगाते हुए एक प्रोफेसर के मुँह पर कालिख पोत दी। विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर चन्द्रसिंह जडेजा ने बताया कि एबीवीपी छात्रों का एक समूह चुनाव समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर गीरीन बख्शी के पास उस समय पहुँचा जब वह कक्षा में लेक्चर दे रहे थे। उस समूह ने उन्हें कक्षा से बाहर खींच लिया और उनके मुँह पर कालिख पोतकर रजिस्ट्रार कार्यालय तक जुलूस निकाला। छात्रों ने प्रोफेसर बख्शी पर आरोप लगाया कि वह वोटर रजिस्ट्रेशन फार्मों को जानबूझकर निरस्त कर रहे थे। जाँच में यह आरोप पूरी तरह झूठा साबित हुआ।

इसी से मिलती–जुलती एक घटना 10 जनवरी 2018 की गिरडीह कॉलेज की है, जहाँ पर दो सहायक प्रोफेसरों डॉ– बलभद्र सिंह और नीतेश कुमार पर रात करीब साढ़े नौ बजे हमला किया गया। पुलिस को दिये गये आवेदन के अनुसार 10 जनवरी को गिरडीह कॉलेज में छात्र संघ चुनाव था। परिणाम घोषित होने के बाद दोनों प्रोफेसर रात साढ़े नौ बजे घर के लिए निकले। रास्ते में उन पर लाठी–डंडो से हमला किया गया। उनका पर्स छीन लिया और इतना ही नहीं उन्हें धमकी दी गयी कि यदि नौकरी करनी है तो 10–10 हजार रुपये की रंगदारी देनी होगी। यह हमला एबीवीपी के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया था।

गुजरात के प्रोफेसर से बदसलूकी, स्वामी अग्निवेश पर हमला, दिल्ली विश्वविद्यालय में एबीवीपी के पूर्व अध्यक्ष सतिंदर सिंह अवाना द्वारा लॉ विभाग की डीन वेद कुमारी को पुलिस के सामने धमकाना, हैदराबाद के नारायण जूनियर कॉलेज में तोड़फोड़ करना, रायपुर छत्तीसगढ़ के पब में शराब पीने के लिए तोड़फोड़ करना। पिछले कुछ महीनों में ऐसी तमाम घटनाओं में एबीवीपी और आरएसएस से जुड़े लोगों की संलिप्तता पायी गयी।

आजादी के पहले से ही आरएसएस देश का साम्प्रदायीकरण करने में लगी है। जब से भाजपा सत्ता में आयी है, तब से साम्प्रदायिक और कथित राष्ट्रवादी संगठन चैतरफा अराजकता का माहौल बनाये हुए हैं। ये लोग कभी भी जानलेवा हमला कर देते हैं, खुलेआम किसी को बेइज्जत कर देते हैं, कानून को हाथ में लेकर किसी भी घटना का निर्णय स्वयं कर देते हैं और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है। 

भाजपा के सत्ता में आने के साथ ही विश्विद्यालयों में अशांति और अराजकता का माहौल बना हुआ है। इसके पीछे सरकार की जन विरोधी शिक्षा नीतियाँ, फीस में बढो़तरी, छात्रवृत्ति में कटौती, प्रमुख पदों पर अपने अक्षम और अकुशल समर्थकों की भर्ती प्रमुख कारण हैं।

इन छात्र विरोधी फैसलों के खिलाफ छात्रों की हर आवाज को दबाने में शासन–प्रशासन के साथ भाजपा से जुड़े संगठनों का अपवित्र गठबन्धन है जो एक साथ मिलकर काम करते हैं। आये दिन शैक्षिक संस्थाओं में आयोजित किसी नाटक, गोष्ठी, सेमिनार पर रोक लगा देना या हंगामा खड़ा करना, विरोधी छात्र संगठनों का दमन करना, एबीवीपी की मनमानी और विश्वविद्यालय परिसर से उठने वाली हर आवाज का गला घोंटने के तानाशाही रवैये का हिस्सा है। कांग्रेस और दूसरी पार्टियों केे छात्र संगठन भी अपनी सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में काम करते रहे हैं, लेकिन इतने खुले रूप में छात्र हितों की जगह पार्टी हितों के लिए काम करना नहीं देखा गया। ये घटनाएँ ज्ञान–शील–एकता के आकर्षक नारे में छिपे उनके असली चरित्र को उजागर करती हैं।